न्याय को ना

पिछले साल 15 फरवरी, 2012 के अंक में तहलका ने एक खबर प्रकाशित की थी. ‘न्यायिक नियुक्ति का धनचक्कर नाम से प्रकाशित इस खबर में बताया गया था कि किस तरह से उत्तर प्रदेश में जजों की नियुक्ति में भी मुंह खोलकर पैसे मांगे जा रहे हैं. उस वक्त प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती थीं और राज्य में चुनावी माहौल था. चुनाव के बाद प्रदेश में सरकार बदली. अखिलेश यादव के नेतृत्व में बनी नई सरकार से लोगों ने काफी उम्मीदें लगाईं. लेकिन कानून-व्यवस्था से लेकर कई मोर्चों पर अब तक नाकाम साबित हुई राज्य सरकार ने न्यायिक नियुक्ति के इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी करने को लेकर अब तक हीलाहवाली ही बरती है. वह भी तब जब देश के राष्ट्रपति से लेकर मुख्य न्यायाधीश तक उसे इस मामले में कार्रवाई करने को कह चुके हैं.

इस मामले में तब से लेकर अब तक की सरकारी सुस्ती को समझने से पहले इसकी पृष्ठभूमि को समझना जरूरी है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्ति को मंजूरी दिए जाने के बावजूद राज्य के नियुक्ति विभाग के आला अधिकारियों द्वारा नियुक्ति पत्र जारी करने के एवज में रिश्वत मांगने का आरोप पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय की पूर्व सहायक महाधिवक्ता गगनगीत कौर ने लगाया था. उन्होंने इन अधिकारियों को न सिर्फ रिश्वत देने से मना कर दिया था बल्कि अपनी सीट यह कहते हुए सरेंडर कर दी कि वह भ्रष्ट बनकर न्याय देने वाली कुर्सी तक नहीं पहुंचना चाहती हैं. उन्होंने राज्य नियुक्ति विभाग के प्रमुख सचिव कुंवर फतेह बहादुर, संयुक्त सचिव युगेश्वर राम मिश्रा और अंडर सेक्रेटरी सुनील कुमार पर नियुक्ति पत्र जारी करने के बदले रिश्वत मांगने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश और इलाहाबाद उच्च न्यायालय तक अपनी शिकायत पहुंचाई थी.

2009 में उत्तर प्रदेश में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे. परीक्षा हुई और उसमें गगनगीत कौर का चयन हुआ. कुल 24 सीटों में से पांच पर महिलाओं की नियुक्ति होनी थी क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने महिलाओं के लिए 20 फीसदी आरक्षण का नियम बना रखा है. लेकिन साक्षात्कार तक पहुंचने वाली सामान्य वर्ग की महिलाओं की संख्या चार रही. सरकारी नियमों के मुताबिक इनमें से सभी का चयन हो जाना चाहिए था. लेकिन 12 जनवरी, 2010 को जो अंतिम परिणाम आया उसके मुताबिक सामान्य वर्ग से सिर्फ तीन महिलाएं चुनी गईं और दो सीटें सामान्य वर्ग के पुरुष उम्मीदवारों को दे दी गईं. कौर ने इसकी शिकायत इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से की. कौर की नियुक्ति प्रक्रिया आगे बढ़ाने के लिए एक बार फिर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक पत्र 5 मई, 2011 को सूबे के नियुक्ति विभाग को लिखा. अदालत का कहना था, ‘पूर्ण कोर्ट ने गगनगीत कौर की नियुक्ति के मामले पर विचार किया और यह निष्कर्ष निकाला कि 2009 में आयोजित परीक्षा में 20 फीसदी महिला आरक्षण कोटे के तहत चौथी महिला उम्मीदवार के तौर पर कौर की नियुक्ति की सिफारिश राज्य सरकार को की जाए.इस पत्र में यह भी लिखा गया कि सरकार की तरफ से गगनगीत कौर की नियुक्ति का आदेश जारी किया जाए और इसकी एक प्रति इलाहाबाद उच्च न्यायालय को जल्द से जल्द भेजी जाए.

‘मैंने इस गलत बात पर आपत्ति जताई तो उनका जवाब था कि पैसा कुंवर फतेह बहादुर और मुख्यमंत्री तक जाता है इसलिए बगैर पैसा दिए कुछ नहीं होगा’कौर ने जब नियुक्ति विभाग के अधिकारियों से नियुक्ति पत्र जारी करने के संबंध में संपर्क साधा तो अधिकारियों ने उनसे रिश्वत की मांग शुरू कर दी. कौर कहती हैं, ‘सुनील कुमार ने नियुक्ति पत्र जारी करने के बदले मुझसे लाखों रुपये की मांग की.कौर ने इसकी शिकायत करते हुए 31 मई, 2011 को भारत के मुख्य न्यायाधीश और इलाहाबाद उच्च न्यायालय को पत्र लिखा. कुछ होता नहीं देख तकरीबन दो साल की भागदौड़ और अदालत से लेकर उत्तर प्रदेश के नियुक्ति विभाग के अधिकारियों का चक्कर काटने के बाद अंततः 23 जनवरी, 2012 को कौर ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को एक पत्र लिखकर अपनी सीट सरेंडर कर दी. उसी समय तहलका ने इस मामले को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी.

इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के बाद तीन पूर्व केंद्रीय मंत्रियों ने इस मामले की जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय और भारत के राष्ट्रपति को पत्र लिखा था. ये तीन पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं- सुब्रमण्यम स्वामी, जयनारायण निषाद और संजय पासवान. संजय पासवान ने भारत के राष्ट्रपति और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर इस मामले की जांच कराने का आग्रह किया. वे अपने पत्र में लिखते हैं, ‘नियुक्ति विभाग के अधिकारी इलाहाबाद हाई कोर्ट के फुल कोर्ट की सिफारिश के बाद भी नियुक्ति पत्र जारी करने से मना कर रहे हैं और वे चयनित अभ्यर्थी गगनगीत कौर से पैसे मांग रहे हैं. पैसे देने से मना करने पर ये अधिकारी लगातार हीलाहवाली कर रहे हैं. इसे देखते हुए कौर ने अपना दावा वापस ले लिया है. लेकिन यह घटना न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाती है. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी उच्चस्तरीय जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जानी चाहिए और दोषियों को सजा मिले, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल अनंत कुमार ने 19 जुलाई को एक पत्र लिखकर संजय पासवान को बताया कि अदालत ने तमाम भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतों पर आगे की कार्रवाई के लिए शासन को लिख दिया है. कुमार ने यह भी बताया कि गगनगीत कौर की शिकायत के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने शासन यानी प्रदेश सरकार को संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए लिखा. लेकिन आज की तारीख में तथ्य यह है कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा कार्रवाई के लिए लिखे जाने के बावजूद अब तक शासन ने इस मामले में कुछ नहीं किया.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर इस मामले की जांच की मांग की. स्वामी लिखते हैं, ‘इस मामले की जांच कराने के लिए कौर ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा था. उन्होंने न्यायिक पद से अपना दावा भी वापस ले लिया. लेकिन इसके बावजूद अब तक इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है. इसलिए मेरा आपसे आग्रह है कि इस मामले में हस्तक्षेप करें और जरूरी कार्रवाई का आदेश दें.स्वामी के पत्र के बाद उस समय भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे एसएच कपाडि़या ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को उचित कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा. उन्होंने चीफ जस्टिस को बताया कि इस संबंध में इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को गगनगीत कौर ने पहले भी लिखा था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान सांसद कैप्टन जयनारायण प्रसाद निषाद ने भी इस मसले को भारत के राष्ट्रपति और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को सामने पत्र लिखकर उठाया. राष्ट्रपति ने निषाद के पत्र के बाद उतर प्रदेश के मुख्य सचिव को नियुक्ति विभाग के संबंधित अधिकारियों के न्यायिक नियुक्ति में भ्रष्टाचार को लेकर कार्रवाई के लिए कहा. लेकिन मुख्य सचिव स्तर पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.

जब इस संवाददाता ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करके इन पत्रों पर शासन और इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तरफ से हुई कार्रवाई की जानकारी चाही तो जो सूचनाएं मिलीं उनसे पता चला कि अब तक तो इन मामलों में कुछ हुआ ही नहीं है. बदहाली का आलम यह है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति द्वारा इस मामले की जांच कराने के लिए लिखे जाने के बावजूद इस दिशा में कुछ नहीं हो रहा है. कौर कहती हैं, ‘ऐसे में फिर कोई भी इंसाफ की गुहार आखिर कहां लगाए? ‘ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल अनंत कुमार से जब तहलका ने कार्रवाई के बारे में जानना चाहा तो पहले तो उन्होंने यह कहा कि कई मामले हमारे सामने आते हैं और ऐसे में किसी एक मामले के बारे में बताना तो मुश्किल है. लेकिन जब उन्हें उन्हीं के दस्तखत से आए एक पत्र का हवाला देकर याद दिलाने की कोशिश की गई तो उनका जवाब बदल गया. वे कहने लगे, ‘देखिए, यह तो गोपनीय मामला है. हम किसी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकते हैं कि इस शिकायत पर अब तक क्या कार्रवाई हुई है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर इस मामले की जांच की मांग की.

तहलका से बातचीत में कौर बताती हैं, ‘जब मैंने पैसे देने से मना कर दिया तो नियुक्ति विभाग के अधिकारी सुनील कुमार और योगेश्वर राम मिश्रा ने मेरी नियुक्ति पत्र जारी करने संबंधी फाइल पर आपत्ति लगा दी. उनका तर्क था कि गगनगीत कौर राज्य की बाहर की महिला हैं इसलिए उतर प्रदेश में वे नौकरी नहीं कर सकती हैं. जबकि मेरे साथ ही परीक्षा में बैठी हरियाणा राज्य के पानीपत की निवासी बबीता रानी को महिला अभ्यर्थी के तौर पर चयनित होने के बाद शासन के उसी अधिकारी सुनील कुमार और योगेश्वर राम मिश्रा ने नियुक्ति पत्र जारी करने की अनुशंसा की. बबीता रानी अभी उतर प्रदेश के कानपुर देहात कोर्ट में एडिशनल सेशन जज के पद पर हैं.वे आगे कहती हैं, ‘जब मैंने बबीता रानी को राज्य के बाहर का होने के बावजूद नियुक्ति दिए जाने को आधार बनाकर उनके कुतर्क को काटना चाहा तो उनका जवाब था कि पैसा कुंवर फतेह बहादुर और मुख्यमंत्री तक जाता है. इसलिए बगैर पैसा दिए कुछ नहीं हो सकता.

दिलचस्प बात है कि गगनगीत कौर ने जब सूचना के अधिकार कानून के तहत नियुक्ति विभाग से अपने मामले से संबंधित सारी फाइलों की नोटिंग मांगी तो लेकिन आज तक उन्हें फाइलों की नोटिंग उपलब्ध नहीं कराई गई. उन्हें आवेदन के जवाब में कहा गया कि फिलहाल उनकी नियुक्ति को लेकर उच्च न्यायालय से पत्राचार चल रहा है इसलिए जवाब पत्राचार समाप्त होने के बाद देंगे.

इस मामले में भले ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल अनंत कुमार औपचारिक तौर पर कुछ जवाब देने से बच रहे हों लेकिन उच्च न्यायालय में इस मामले की प्रगति से वाकिफ लोगों से जब तहलका ने बातचीत की तो पता चला कि अभी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश हैं इसलिए कोई खास प्रगति नहीं हुई है. इन लोगों का यह भी कहना है कि जैसे ही नए पूर्णकालिक मुख्य न्यायाधीश आएंगे वैसे ही इस मामले से संबंधित फाइल को उनके सामने रखा जाएगा और उम्मीद है कि तब इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई हो.