थी, हूं और रहूंगी

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प्रभा, 55 साल
28 नवंबर, 2012, रात 12.00 बजे, नई दिल्ली
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जब बिन्नी छोटी थी तब सोचती थी कि जब वो सेटल हो जाएगी और मैं बूढ़ी हो जाऊंगी तो तसल्ली से डायरी लिखा करूंगी. लेकिन शाम से ही सिद्धार्थ चाय- चाय चिल्लाने लगता है. पिछले 25 साल से उसे चाय पिला-पिला के थक चुकी हूं. कभी-कभी चिढ़ भी होती है लेकिन फिर लगता है कुछ ही तो शौक हैं उसके. दिन में 10 बार चाय पीना और बढ़िया खाना खाना. उसे और बिन्नी को खाना बनाकर खिलाना मुझे सबसे ज्यादा सुख देता है. खाना खाते हुए दोनों बाप-बेटी मेरी तारीफों के पुल बांधते और मैं उनके चेहरे की मुस्कान देखकर खिल जाती! अब सोचती हूं तो लगता है कि अपनों के लिए खाना बनाने से ज्यादा स्नेहिल और करुणामयी प्रक्रिया कोई और नहीं हो सकती. आप अपने अस्तित्व में और अपने बच्चों में कितना कुछ जोड़ पाते हैं ! आपके पकाए भोजन से उनके शरीर में खून बनता है. वो धीरे-धीरे बड़े होते जाते हैं. बहुत सुंदर एहसास है. उफ, ये सिद्धार्थ और बिन्नी मेरे अंदर इतना जिंदा रहते हैं कि हर एंट्री में इनका जिक्र आ ही जाता है. खैर, अभी-अभी सिद्धार्थ को चाय बनाकर दी है. उसे हल्का जुकाम है. इतना समझाती हूं कि अब 60 के हो गए हो. मेरे साथ सुबह वाक पर चला करो. लेकिन सुनता ही नहीं. पता नहीं यूपीएससी वालों ने इसे इतना बड़ा अफसर क्या सोचकर बना दिया था ! सारी दुनिया में इतने तीर मार आया है. आठ जिलों में कलेक्टर रहा, फिर अलग-अलग विभागों में निदेशक. और विदेश मंत्रालय में मुख्य सचिव भी.

नौकरी के बाद से दिन भर लाइब्रेरी में ही बैठा रहता है. पहले तो एक बिन्नी ही थी इंटरनेट की दीवानी. अब सिद्धार्थ भी दिन भर नेट और किताबों के बीच ही बिताता है. जब बिन्नी पढ़ने कोलंबिया गई थी तब हम स्काइप पर उससे बातें किया करते थे. तब से जो सिद्धार्थ को नेट का चस्का लगा आज तक कायम है. लेकिन जो भी हो. बिन्नी के तलाक के दौरान सिद्धार्थ ने जिस समझदारी से व्यवहार किया उसके लिए मैं मन ही मन हमेशा उसकी शुक्रगुजार रहती हंू. रोशन बिन्नी की पसंद था और उसी के साथ कोलंबिया में पढ़ा था. दोनों ओहायो की एक यूनिवर्सिटी में रिसर्च करते हुए पढ़ाने भी लगे थे. हमें भी लगा कि रोशन अच्छा लड़का है और फिर बिन्नी की खुशी में ही हमारी खुशी थी. लेकिन शादी के दो महीने बाद ही बिन्नी ने शिकायत कि रोशन के घरवाले उसे परेशान करते हैं और चाहते हैं कि हम उन्हें अमेरिका में एक घर दिलवाएं. मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सिद्धार्थ और मेरी बेटी को दहेज के लिए परेशान किया जाएगा. फिर एक दिन रोशन ने बिन्नी को मारा और उसका सर फूट गया. सिद्धार्थ ने तुरंत दोनों का तलाक करवाया और हम बिन्नी को घर ले आये. अब रोशन के मां-बाप केस वापस लेने की विनती करते हुए रोज फोन करते हैं लेकिन सिद्धार्थ टस से मस नहीं होता. मुझे सिद्धार्थ पर बहुत नाज है. वो बिन्नी को बहुत प्यार करता है. आज लगता है कि 25 साल पहले उसके प्यार भरे वादों पर यकीन करके ठीक ही किया था मैंने. उसने मेरी बच्ची को कभी वो ‘लड़की’ होने वाली बेचारगी नहीं महसूस होने दी. कभी नहीं कहा कि वो लात-जूते खाने के बाद भी अपनी शादी बचाए. उल्टा वो बिन्नी को शादी और तलाक से इतर अपनी पहचान बनाने के लिए कहता रहता! उसे अपने हिस्से की जमीन और आसमान तलाशने के लिए प्रोत्साहित करता. उसने मुझे कभी महसूस नहीं होने दिया कि हमारी बेटी का तलाक हो चुका है. वर्ना जवान बेटी का तलाक और इससे जुड़ी सामाजिक रूढ़ियां किसी भी पिता को तोड़ सकती हैं. लेकिन सिद्धार्थ एक अच्छा पिता है और मेरा अच्छा दोस्त भी !

लेकिन अब मुझे बिन्नी की बहुत चिंता होती है. आजकल माहौल बहुत खराब है. एक डर सा लगा रहता है.. बिन्नी अब हमारे साथ दिल्ली में ही रहती है. लिखने के साथ-साथ उसने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए काम करने वाली एक गैरसरकारी संस्था के साथ काम करना भी शुरू कर दिया है. लेकिन मैं महसूस कर सकती हूं कि वो कितनी अकेली है, बिल्कुल मेरी तरह. सिद्धार्थ इतने साल सिर्फ काम करता रहा और मैं घर पर उसका इंतजार करती रही. पढ़ी-लिखी थी, लेकिन सिद्धार्थ और बिन्नी से अलग अपनी एक दुनिया बनाने के बारे में कभी सोच ही नहीं पाई. बिन्नी मुझसे ज्यादा मजबूत है. उसकी अपनी एक दुनिया है. उसने बड़ी मेहनत से विदेश में अपना थीसिस लिखा और अब अपनी किताब पर काम कर रही है. बच्चों के लिए उसके मन में करुणा है. लेकिन हां, रोशन से अलगाव के बाद उसके अंदर थोड़ी कड़वाहट आ गई है. मैं ये जानती हूं, लेकिन उसके और अपने बीच की खाई नहीं पाट पाती. उसकी कविताएं और पेंटिंग्स मेरी समझ में नहीं आतीं. लेकिन मैं जानती हूं कि वह अकेली और परेशान है, मेरी तरह. हम दोनों एक ही स्पेस में जी रहे वक्त के दो अलग-अलग हिस्सों की तरह हैं. न मैं उसे छू पाती हूं और न वो मुझ तक पहुंच पाती है. हम दोनों एक ही घर में अपने-अपने अकेलेपन के घेरों के साथ जीते हैं.

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लिखते हुए बीच में ही कमली की पड़ोसन का फोन आ गया था. कमली की बेटी मृदुला ने आत्महत्या कर ली है. मैंने सिद्धार्थ और बिन्नी को फोन कर दिया है. वो दोनों सीधे कमली के घर ही पहुंच रहे हैं. कमली घर के कामों में मेरा हाथ बंटाने पिछले पांच साल से आती रही है. मैं एकदम सन्न महसूस कर रही हूं. मृदुला को मैंने अपनी आंखों के सामने बड़ा होते देखा था. अभी तो बिन्नी ने कालेज के फर्स्ट इयर में उसका दाखिला करवाया था. मैं नहीं जा पाऊंगी. मुझमें मृदुला की अंतिम यात्रा देखने की हिम्मत नहीं. पिछले दो घंटों से उसके रिश्तेदारों और पड़ोसियों से बात कर रही थी. कमली तो बेहोश पड़ी है. सब कह रहे थे कि कमली मृदुला का बहुत ध्यान रखती थी और उसके लिए कपड़े और मिठाइयां भी लाती थी. लेकिन मृदुला खोई-खोई रहती. मुझे याद है. बिन्नी के पिछले जन्मदिन पर मृदुला ने कविता सुनाई थी ! हां, वो कविता लिखती थी. कविता का नाम ‘संताप’ था!  लगभग 18 साल की गोरी सी लड़की. भूरी आंखें. नीले रंग की सलवार-कमीज पहने हमारी बैठक में कविता सुना रही थी.
‘जाने कैसी रुत है ये कि अब पानी में भी वो बात नहीं.
बरसता तो है. भिगोता भी है .
लेकिन भीतर तक रिस-रिस कर भूमि के बांझपन का दर्द नहीं मिटा पाता . .
बरसता तो है, भिगोता भी है.
लेकिन पानी तृष्णा तृप्त नहीं कर पाता !!’
उफ! उस रात सिद्धार्थ ने मुझसे कहा था कि हमें मृदुला का ध्यान रखना चाहिए. इतनी छोटी उम्र में वो जिस तरह की कविताएं लिखती है उससे पता चलता है कि वो बहुत ज्यादा संवेदनशील है और कमली शायद उसे समझ नहीं पाएगी. हुआ भी यही. कमली को समझ में नहीं आया कि मिठाई, कपड़ों और किताबों के बाद भी उसकी बेटी क्यों उदास रहती है ! मैं भी कहां पकड़ पाई उसकी बेचैनी को! अब सोचती हूं तो लगता है कि मृदुला भी मेरे और बिन्नी के जैसी ही तो थी ! अपनी उदासी को तो मैं आज तक नहीं समझ पाई, बिन्नी की उदासी और अकेलापन जब तक समझा तब तक हम एक छत के नीचे रहने वाली दो अलग-अलग दुनियाओं में तब्दील हो चुके थे!  मृदुला हम सबमें सबसे छोटी और कमजोर थी. जब तक हम उसे समझ पाते उस बच्ची ने अपनी तकलीफ के आगे दम तोड़ दिया !

औरतों की बेचैनी को कभी कोई सीरियसली नहीं लेता. ज्यादातर मामलों में वो खुद भी नहीं समझ पातीं कि वो इतनी उदास क्यों रहती हैं. जीवन के रूटीन, जीवन साथी की उपेक्षा, निजी व्यक्तित्व विकास की कमी और अकेलेपन से कहीं ज्यादा ये बेचैनी किसी से बात न कर पाने की वजह से उपजती है. संवाद की कमी. पतियों और बच्चों की व्यस्त जिंदगी के बीच औरत को लगने लगता है कि अब उसके आस-पास के लोग वो संवेदना खो चुके हैं जिसके सहारे वो उनसे अपनी बात कह सकती थी. फर्क इतना है कि मृदुला ने यह सब बहुत जल्दी महसूस कर लिया. एक पत्थर धोने वाले मजदूर पिता और बर्तन धोने वाली मां की इस पढ़ी-लिखी बिटिया के सामने जिंदगी के विरोधाभास जितने तीखे तौर पर बिखरे होंगे, इसकी हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं.

अब मैंने तय कर लिया है कि बिन्नी को अकेले नहीं रहने दूंगी. मैं उससे बात करूंगी. सिद्धार्थ से बात करूंगी. हम सब मिलकर उसके लिए कोई साथी ढूंढेंगे. मैं भी बीमार रहने लगी हूं. सिद्धार्थ तो मुझसे भी ज्यादा कमजोर हो गए हैं. बिन्नी के सामने लंबी जिंदगी पड़ी है. एक साथ का होना जरूरी है. मैं बिन्नी को समझाना चाहती हूं कि सिद्धार्थ के साथ रहते हुए मैंने यही सीखा है कि आदमी किसी भी औरत की जिंदगी को कभी पूरी तरह नहीं भर सकते. हम भी उनकी जिंदगियों को पूरी तरह नहीं समझ पाते. सालों साथ रहने के बाद भी आपको अकेला और उदास महसूस होता है. इसलिए क्योंकि हर इंसान की अपनी सीमाएं हैं और हमें असंतोष के साथ जीना भी सीखना चाहिए. मेरी बस यही इच्छा है कि मेरी बच्ची खुश रहे. काश मैं मृदुला से भी यह कह सकती. लेकिन बिन्नी से जरूर कहूंगी.

मेरी प्यारी बिन्नी, एक साथी भले ही हमें हमेशा खुश न रख सके, लेकिन उसका साथ जिंदगी को जीने और मुश्किलों को सहने लायक जरूर बना देता है. इसलिए मेरी इच्छा है कि तुम अपना समय लो लेकिन अपने आपको एक दूसरा मौका जरूर देना ! वह मौका, जो कई मायनों में मैंने अपना करियर खत्म करके खुद से छीना और मृदुला ने अपनी जिंदगी खत्म करके हम सभी से. बिन्नी, तुम अपने आपको वह दूसरा मौका जरूर देना! 

डायरी लेखन: प्रियंका दुबे; इलेस्ट्रेशन:मनीषा यादव