जाएं तो जाएं कहां?

पुलिस का आरोप है कि सिकलीगर सिख तस्करों और आतंकवादियों को हथियार बनाकर दे रहे हैं. सिकलीगरों का कहना है कि तीन सदी पहले उन्होंने देश की रक्षा के लिए हथियार बनाना शुरू किया था, इसके अलावा उन्हें कुछ और नहीं आता और सरकार उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने को तैयार नहीं. क्या है सच? प्रियंका दुबे की रिपोर्ट.

पाचोरी गांव की कहानी खालसा पंथ के उन लोगों की व्यथा है जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के कहने पर देश की रक्षा के लिए हथियार बनाने शुरू किए थे. तीन सदियों बाद भी वे देश की मुख्यधारा में वापसी के लिए तरस रहे हैं. सिकलीगर सिख नाम का यह समुदाय शिक्षा और विकास से दूर सतपुड़ा की पहाड़ियों के जंगली कोनों में बसे दूर-दराज के गांवों में छिप कर जीवन बिताने को मजबूर है.

इस कहानी की शुरुआत मध्य प्रदेश के दक्षिण पिश्चमी छोर पर बुरहानपुर जिले की आदिवासी पट्टी में बसी खकनार तहसील से होती है. तहसील के मुख्य मार्ग पर बने एकमात्र पेट्रोल पंप के ठीक पीछे से सतपुड़ा की पहाड़ियों के लिए एक आधा कच्चा रास्ता निकलता है. इस पर 26 किलोमीटर आगे, घने जंगल और घाटियां पार करने के बाद सतपुड़ा की चोटियों पर बसा पचोरी गांव नजर आता है. गांव के करीब 100 परिवारों में सिकलीगर सिख समुदाय के कुल 500 लोग रहते हैं. पिछले 46 साल से सतपुड़ा की इन पहाड़ियों पर रह रहे ये सभी सिकलीगर सिख लोहे से देसी कट्टे, रिवॉल्वर, और सेल्फ लोडिंग रायफल (एसएलआर) जैसे कई खतरनाक औजार बनाने में माहिर हैं. पीढ़ियों से कच्चे लोहे को अचूक बंदूकों में बदल कर अपनी जीविका चलाने वाला यह समुदाय सामाजिक उपेक्षा का शिकार तो था ही, अब यह राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के निशाने पर भी आ गया है. मध्य प्रदेश पुलिस के इंटेलीजेंस विभाग की मानें तो प्रदेश के आदिवासी इलाकों से बड़ी संख्या में बरामद किए जा रहे गैर-लाइसेंसी देसी कट्टों के निर्माण में सिकलीगरों की महत्वपूर्ण भूमिका है. गौरतलब है कि पिछले दो साल में हुई तमाम सिकलीगर सिखों की गिरफ्तारियों के दौरान प्रदेश पुलिस ने पहली बार कहा है कि ये लोग अवैध हथियार बनाकर उन्हें हथियार तस्करों और आतंकवादी समूहों को उपलब्ध करवाते हैं. मध्य प्रदेश एटीएस (एंटी टेरर स्क्वाड) का मानना है कि जून, 2011 के दौरान राज्य से गिरफ्तार किए गए कुल 18 सिमी सदस्यों से बरामद किये गए देसी कट्टे और रिवॉल्वर भी सिकलीगरों द्वारा ही बनाए गए हैं. 

‘हमारे लोगों को इस काम के सिवा कुछ नहीं आता. हम हजारों अर्जियां दे चुके हैं, पर सरकार ने हमें मुख्यधारा से जोड़ने की कभी कोई कोशिश नहीं की’

जून, 2011 में खंडवा जिले से 10 सिमी संदिग्धों की गिरफ्तारी के तुरंत बाद खंडवा से सटे बुरहानपुर के सिकलीगर डेरों पर पुलिस ने धावा बोल दिया था. इस दौरान राज्य में बसे सिकलीगर डेरों के प्रदेश अध्यक्ष सरदार प्रेम सिंह पटवा के बेटे जसपाल सिंह को भी हत्या और आतंकवादियों के सहयोग के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. तहलका से बातचीत में प्रेम सिंह कहते हैं, “हमारा प्रमुख विरोध हमारे बच्चों को आतंकवादियों का सहयोगी घोषित करने के खिलाफ है. हम अपने देश के लिए जान देने वाले खालसा सिख हैं, हम आतंकवादियों की मदद कैसे कर सकते हैं? वे आर्म्स एक्ट से जुड़े आरोप लगा सकते हैं क्योंकि हम हथियार बनाते हैं पर हथियार बनाने का यह काम भी हमने इसी देश की रक्षा के लिए शुरू किया था.’ पचोरी गांव के सिकलीगर सिखों की पुलिसिया गिरफ्तारियों का सिलसिला नया नहीं है. 2002 में पड़े एक चर्चित छापे में स्थानीय पुलिस ने पचोरी के पांच सिकलीगरों को गिरफ्तार किया था. इनमें गांव के गुरुद्वारे के पुजारी भी शामिल थे. इस छापे में गिरफ्तार हुए सिकलीगरों में से एक अतीक सिंह का आरोप है कि अपना रिकॉर्ड चमकाने के लिए कई बार पुलिस उनके समाज के लोगों को झूठे मामलों में फंसा देती है. वे कहते हैं, “2002 की रेड के दौरान तो पुलिस यहां भेस बदलकर खुद खरीददार बनकर आई. हम लोग इतने अनपढ़ और पिछड़े हैं कि पुलिस को पहचान ही नहीं पाए. हम गरीब थे और हमें अपना माल बेचकर पैसा चाहिए था, इसीलिए हमने सौदा तय कर लिया. बस उसी वक्त पुलिस ने हमसे मार-पीट शुरू कर दी  और सामने से आ रहे हमारे गुरुद्वारे के पुजारी ज्ञानी तकदीर सिंह और ज्ञानी दीवान सिंह को गिरफ्तार कर लिया’. अपने धर्मगुरुओं की गिरफ़्तारी से नाराज़ सिकलीगरों ने इस पुलिस ऑपेरशन का काफी विरोध  भी किया था पर इस मामले में अभी तक गुरुद्वारे के पुजारियों समेत कुल पांच सिकलीगरों पर आर्म्स एक्ट के तहत अदालती कार्रवाई चल रही है. अपने लोगों की लगातार हो रही गिरफ्तारियों से परेशान पाचोरी के सभी सिकलीगरों ने इस घटना के कुछ ही महीनों बाद, मई 2003 में मध्य प्रदेश सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. 

सिकलीगरों से बातचीत के बाद यह भी लगता है कि इस समुदाय को आजीविका के लिए किसी दूसरे काम के साथ जोड़ने की जरूरत है. प्रेम सिंह कहते हैं, ‘हमारे लोगों को इस काम के सिवा कुछ नहीं आता. हम हजारों अर्जियां दे चुके हैं पर सरकार ने हमें मुख्यधारा से जोड़ने की कभी कोई कोशिश नहीं की. तो अपने बच्चों का पेट पालने के लिए हमें मजबूरी में हथियार बनाने ही पड़ते हैं.’ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश के बाद जसपाल सिंह पर आतंकवादी समूहों से जुड़े रहने से संबंधित सभी आरोप हटा लिए गए हैं. पर प्रेम सिंह के लिए यह सिर्फ एक पुरानी लड़ाई की नई शुरुआत है. बातचीत के दौरान पाचोरी गांव के सभी परिवार मुख्य चौपाल के आस-पास इकठ्ठा हो चुके हैं. गांव के बच्चों की ओर इशारा करते हुए प्रेम सिंह कहते हैं, ‘हम नहीं चाहते कि हमारी अगली पीढ़ी भी हथियार बनाए. आप खुद ही देखिए, इस कानूनी लड़ाई के बाद भी मेरे बेटे को जिला बदर घोषित कर दिया है और उस पर 302 अभी भी लगी हुई है. जबकि सिकलीगर किसी भी तरह के हिंसक अपराध में कभी शामिल नहीं रहे. हमने सिर्फ हथियार बनाए और जिसने भी खरीदना चाहा, उसे बेच दिए. सिर्फ इसलिए क्योंकि हमें सिर्फ यही काम आता है’. बुरहानपुर के सिकलीगर सिख पिछले एक दशक से खुद को सरकार से समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की गुहार लगा रहे हैं. पर प्रवासी भारतीयों के अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में ‘मेहनतकश पंजाबी सिखों’ की तारीफों में कसीदे पढ़ने वाला भारतीय राजनीतिक और प्रशासनिक अमला जंगली पहाड़ियों के अंधेरे गांवों में जीवन बिताने को मजबूर इन उपेक्षित सिखों के प्रति उदासीन ही रहा है. 

पाचोरीके सिकलीगरों की जड़ें टटोलने पर पता चलता है कि 1966 में महाराष्ट्र से विस्थापित होकर बुरहानपुर आए इन लोगों को 1968 में मध्य प्रदेश सरकार ने पाचोरी की पहाड़ी पर तात्कालिक रूप से रहने की कानूनी ऑडर-शीट सौंप दी थी. पिछले 46 साल से मुख्य शहरी सड़क से कुल 26 किलोमीटर दूर सतपुड़ा के जंगलों में रहने वाले ये सिकलीगर सिख आज भी अपने गांव में बिजली और साफ पानी आने का इंतजार कर रहे हैं. पिछले दो दशकों से बुरहानपुर के जंगलों की वन सुरक्षा समिति के अध्यक्ष रहे जतन सिंह का कहना है कि पूरे गांव के आत्मसमर्पण करने के बाद भी उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. प्रशासनिक उदासीनता को सिकलीगरों के हथियार व्यापार का मुख्य कारण बताते हुए वे कहते हैं, ‘हमारे गांव को संवेदनशील क्षेत्र घोषित कर दिया है और पुलिस बार-बार हमारे लोगों को पकड़ कर ले जाती है. हम हथियार डालकर आत्मसमर्पण कर चुके हैं और कब से अपने पुनर्वास की मांग कर रहे हैं. पर सरकार ने हमारी कोई सुध नहीं ली. अगर सरकार हमें किसी दूसरे रोजगार में लगवाकर हमारे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई सुनिश्चित करती तो हम कब के इस दुष्चक्र से बाहर आ चुके होते, पर कोई रास्ता नहीं होने पर हमें पेट भरने के लिए हथियार बनाकर बेचने ही पड़ते हैं’.   

सिकलीगर सिखों की यह कहानी सिर्फ बुरहानपुर के पचोरी गांव तक सीमित नहीं है. अन्य पिछड़ी जनजाति के अंतर्गत आने वाले इस खालसा पंथ की भारत में कुल जनसंख्या लगभग 50 लाख है. इस आबादी का एक बड़ा वर्ग घरेलू इस्तेमाल में आने वाली लोहे की वस्तुएं बनाने का व्यापार करता है. कुछ ही लोग हैं जो लोहे के हथियार बना कर बेचते हैं. मिट्टी की भट्टी पर लोहे से देसी कट्टों से लेकर दुनाली-रायफल तक बना लेने वाले ऐसे ही लगभग 5,000 सिकलीगर मध्य प्रदेश के चार जिलों में रहते हैं. खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी और धार जैसे आदिवासी जिलों में रहने वाले इस हथियार-निर्माता सिख समुदाय का साक्षरता स्तर दशकों से शून्य पर है. पाचोरी के सबसे बुजुुर्ग निवासियों में से एक रेवल सिंह जुनेजा बताते हैं कि शिक्षा और रोजगार के अभाव के साथ-साथ अब उनका समाज सामाजिक रूप से बहिष्कृत भी होता जा रहा है. वे कहते हैं, ‘हमारे बच्चे शहर में जाकर पढ़ना चाहते हैं. पर गांव से बाहर कोई उन्हें स्वीकार नहीं करता. पहले तो हथियार बनाने की ही बात थी. अब तो हमें मुसलिम आतंकवादियों से जुड़ा हुआ बताया जाने लगा है. हम अगर मुख्यधारा से जुड़ना भी चाहें तो कैसे जुडें़? धीरे-धीरे सभी लोग हमें भी अपराधी मानने लगे हैं और शायद अब मुख्यधारा में हमारे लिए जगह भी नहीं है.’ लेकिन मध्य प्रदेश पुलिस के अनुसार सिकलीगर सिख राज्य में तेजी से फैल रही अवैध हथियारों की तस्करी के प्रमुख कारण हैं. फरवरी, 2012 में इंदौर में हुई सिकलीगर बहादुर सिंह की गिरफ्तारी इसका सबसे ताजा उदाहरण है. मूलतः बड़वानी जिले के पलसूद गांव  के निवासी बहादुर सिंह  को इंदौर पुलिस ने 28  फ़रवरी 2012 को अवैध कट्टों की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया. बताया जाता है कि पूछताछ के दौरान बहादुर ने कहा कि बेचे गए हथियारों की असल संख्या तो याद नहीं पर वह अब तक हजारों की संख्या में हथियार बनाकर राजस्थान से सटे जिलों में बेचता रहा है. अगस्त 2011 में खरगोन जिले से गुरुदेव सिंह और गुरुबक्श सिंह नामक दो सिकलीगर सिखों को 11 देसी कट्टों की अवैध खरीद-फरोख्त के लिए गिरफ्तार किया गया था. 

पुलिस की मानें तो हथियारों का यह धंधा इनके लिए आसानी से पैसा कमाने का जरिया हो गया है इसलिए ये लोग इसे छोड़ना नहीं चाहते

सिकलीगरों की गिरफ्तारियों के साथ-साथ उनके पुनर्वास के लिए सुधार कार्यक्रम शुरू करने वाले बुरहानपुर पुलिस अधीक्षक अविनाश शर्मा बताते हैं कि सिकलीगरों को यह खुद भी मालूम नहीं होता कि उनके द्वारा बनाए गए हथियार कहां जाते हैं. वे कहते हैं, ‘यह लोग कहते जरूर हैं कि इनका पुनर्वास किया जाए , पर जब भी हम इन्हें किसी दूसरे व्यवसाय से जोड़ने की कोशिश करते हैं ये वापस हथियार बनाना शुरू कर देते हैं. दरअसल यह धंधा इनके लिए आसानी से पैसा कमाने का जरिया हो गया है इसलिए ये लोग इसे छोड़ना नहीं चाहते. लगभग 250 रूपये की लगत से बना एक देसी कट्टा ये अवैध बाजार में पांच से 10 हजार में बेच देते हैं. उसके बाद उस हथियार का इस्तेमाल किसी आतंकवादी ने किया या किसी चोर ने, इससे उनका कोई सरोकार नहीं होता. और इनके हथियार इतने बिचौलियों से होते हुए अपने ग्राहकों तक पहुचंते हैं कि ज्यादातर मामलों में उनके असली निर्माता को ट्रेस कर पाना असंभव हो जाता है.’ सिकलीगर सिखों के पुनर्वास योजनाओं के बारे में वे बताते हैं कि सिकलीगरों की वर्तमान स्थिति का पता लगाने के लिए प्रभावित जिलों में सर्वे किए जा रहे हैं. शुरूआती नतीजों के बारे में बताते हुए वे आगे कहते हैं, ‘कई जगह हमने देखा की नाबालिग बच्चे भी हथियार बनाना सीख रहे हैं.’ 

पुलिस और प्रशासन के तमाम दावों से इतर, सिकलीगरों का कहना है कि सरकार ने कभी उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया. पाचोरी के धुंधले आकाश में इन प्रशासनिक चर्चाओं से दूर गुरुद्वारे के पुजारी ज्ञानी तकदीर सिंह मुख्यमंत्री के नाम लिखी उनकी एक पुरानी चिट्ठी दिखाते हैं. वे कहते हैं कि उनके द्वरा प्रशासन को लिखी गयी बीसियों चिट्ठियों का कभी जवाब नहीं आया. टूटे-फूटे वाक्यों में लिखी इस अर्जी की एक पुरानी प्रति तहलका को सौंपते हुए वे कहते हैं, ‘हम लोग तो इतने अनपढ़ हैं कि अपनी बात भी ठीक से नहीं कह सकते. और यह देश आखिर हमें किस बात की सजा दे रहा है? गुरुगोविंद सिंह के आदेश पर, इस देश को विदेशी घुसपैठियों से बचाने के लिए हमने हथियार बनाना शुरू किया. इसके सिवा सिकलीगर कभी किसी अापराधिक गतिविधि में शामिल नहीं रहे. जिस समाज को बचाने के लिए हमने अपनी पीढ़ियों का रास्ता बदल दिया, वही समाज आज हमें स्मगलरों और हत्यारों के साथ खड़ा कर रहा है’. पाचोरी छोड़ते वक्त भारत के इस भूले बिसरे खालसा पंथ के बच्चे गांव के अंतिम छोर तक हमारे साथ चलते हैं. वे सब पढ़ना चाहते हैं. उन्हें अपने लिए शिक्षा का इंतजार है और सिकलीगर समुदाय को एक बेहतर भविष्य का.