चैनलों की दाल में काला

पिछले कई महीनों से भ्रष्टाचार के खिलाफ समाचार चैनलों का जोश देखकर लगता है कि मानो वे भ्रष्टाचार को खत्म करके ही मानेंगे. इसमें कोई दो राय नहीं कि चैनलों ने जिस तरह से एक के बाद एक कई बड़े घोटालों का पर्दाफाश किया है या उन्हें जोर-शोर से उछाला और मुद्दा बनाया है, उससे भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल और जनमत बना है. इसके कारण कई बड़े घोटालेबाज जेल गए हैं, कई मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को कुर्सी गंवानी पड़ी है और देश भर में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जोर पकड़ने लगा है. लेकिन लगता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध में चैनल या तो थकने लगे हैं या फिर उनके आकाओं ने उनकी लगाम खींचनी शुरू कर दी है.

उदाहरण के लिए, बीते पखवारे संसद में पेश रिपोर्ट में सीएजी ने एयर इंडिया में अनियमितताओं और विमानों की खरीद में गड़बड़ियों पर उंगली उठाने के साथ कृष्णा गोदावरी घाटी (केजी बेसिन) में गैस की खोज, उसकी कीमत तय करने और उत्पादन आदि में मुकेश अंबानी की रिलायंस को अनुचित तरीके से फायदा पहुंचाने से लेकर कंपनी की धांधलियों और मनमानियों को आड़े हाथों लिया. लेकिन चैनलों ने थके मन से एयर इंडिया की अनियमितताओं पर रस्मी हो-हल्ला किया और चुप मार गए. उससे भी हैरान करने वाली बात यह है कि केजी बेसिन-रिलायंस मामले पर सीएजी की रिपोर्ट के बावजूद चैनलों ने न तो उसे प्राइम टाइम चर्चा लायक समझा और न ही उसे समग्रता में रिपोर्ट किया. इस खबर पर चैनलों में वह उत्साह भी नहीं दिखा जो हाल के महीनों में अन्य घोटालों को रिपोर्ट करते हुए दिखा था.

चैनलों को देखने और सुनने से ऐसा लगता है जैसे निजी यानी कॉरपोरेट क्षेत्र में रामराज्य है जबकि वह भ्रष्टाचार की जड़ में है यह हैरान करने वाला इसलिए भी था कि चैनलों को अपनी ओर से कुछ खास नहीं करना था क्योंकि सीएजी की रिपोर्ट में सारा खुलासा मौजूद था. यह भी 2जी स्पेक्ट्रम की तरह गैस जैसे प्राकृतिक और कीमती सार्वजनिक संसाधन को राष्ट्रीय हितों की कीमत पर निजी लाभ के लिए दुरुपयोग का गंभीर मामला है. यही नहीं, इसमें राजनीतिक एंगल भी मौजूद था. पूर्व पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा को रिलायंस समर्थक माना जाता रहा है. उन्हें पिछले कैबिनेट फेरबदल में हटाया गया था. उससे पहले अमेरिकी विरोध के कारण मणिशंकर अय्यर को पेट्रोलियम मंत्रालय से हटाया गया था. इसके अलावा हाल में, रिलायंस और बहुराष्ट्रीय तेल कंपनी ब्रिटिश पेट्रोलियम के बीच बड़ी डील हुई है. इस डील को लेकर भी कई सवाल उठे हैं. इसके बावजूद अधिकांश न्यूज चैनलों पर इस मुद्दे पर रहस्यमयी चुप्पी छाई रही. ऐसा लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं है या सीएजी की रिपोर्ट में कोई दम नहीं है. यहां तक कि भ्रष्टाचार के खिलाफ इस समय सबसे बड़े योद्धा अर्नब गोस्वामी और ‘टाइम्स नाऊ’ भी रस्म अदायगी से आगे नहीं बढ़े.

क्या यह नीरा राडिया प्रभाव है? याद रहे, राडिया रिलायंस के मीडिया मैनेजमेंट का काम देखती हैं. उन पर आरोप है कि वे रिलायंस और अपने दूसरे कॉरपोरेट क्लाइंट टाटा के पक्ष में सकारात्मक जनमत बनाने के लिए अनुकूल समाचार आगे बढ़ाने और प्रतिकूल समाचार दबाने में समाचार माध्यमों और पत्रकारों को इस्तेमाल करती रही हैं. इस बार भी जिस तरह से केजी बेसिन की खबर को चैनलों ने ‘अंडरप्ले’ किया है, उससे लगता है कि कोई ‘अदृश्य शक्ति’ है जो चैनलों के मुंह पर पट्टी बांधने में कामयाब हुई है. क्या वह रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियों की विज्ञापन देने की शक्ति है जिसे कोई चैनल अनदेखा नहीं कर सकता?

इसके उलट लगभग सभी चैनलों पर एयर इंडिया में अनियमितताओं पर सीएजी की रिपोर्ट को न सिर्फ पर्याप्त कवरेज मिली बल्कि सबने प्राइम टाइम चर्चाएं भी कीं. इन चर्चाओं में भी दोषी अधिकारियों/मंत्रियों को पहचानने और उन्हें निशाना बनाने की बजाय चैनलों का जोर इस बात पर था कि एयर इंडिया को बचाने के लिए उसका निजीकरण क्यों जरूरी है. गोया निजीकरण हर मर्ज का इलाज हो. अगर ऐसा ही है तो टेलीकाॅम क्षेत्र में 2जी की लूटपाट में कौन शामिल थे?

असल में, न्यूज चैनलों के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की यही सीमा है. उनके लिए भ्रष्टाचार और घोटाला सिर्फ एक घटना या प्रकरण है जो कुछ व्यक्तियों खासकर नेताओं और अफसरों तक सीमित है. सच यह है कि यह भ्रष्टाचार का मांग पक्ष है. लेकिन भ्रष्टाचार का आपूर्ति पक्ष भी उतना ही महत्वपूर्ण है. वे छोटी-बड़ी कंपनियां जो अपने मुनाफे के लिए नेताओं और अफसरों को घूस खिलाकर तमाम नियम-कानूनों को तोड़ती-मरोड़ती हैं, संगठित लॉबीइंग के जरिए अपने अनुकूल नियम-कानून बनवाती हैं, उनके अपराधों की कोई चर्चा नहीं होती है या बहुत कम होती है. इसके उलट चैनलों को देखने और सुनने से ऐसा लगता है जैसे निजी यानी कॉरपोरेट क्षेत्र में रामराज्य है जबकि यह किसी से छिपा नहीं है कि वह भ्रष्टाचार की जड़ में है. फिर क्यों न माना जाए कि भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के पीछे चैनलों का अघोषित एजेंडा सार्वजनिक क्षेत्र को बदनाम करने और उसके निजीकरण का रास्ता साफ करने का है?