कोने से हाशिये तक!

दृश्य-एक

 लड़के के पिता जी के मित्र आए हुए थे. अब वे जा रहे हैं. लड़के के पिता जी ने ‘उधर से’ जाने से मना कर दिया और कहा, ‘इधर से जाइएगा.’ वह इसलिए कि उधर वाली रोड बहुत खराब है न! जो आए थे उन्होंने अक्षरशः ऐसा ही किया और होने वाली असुविधा से बच गए. वह लड़का भी उस तरफ जाने से बचता है. जब कभी उस तरफ से निकलता, तो सबको कोसते हुए. जिनको इस हालत के लिए जिम्मेदार समझता है उन सभी को. महीनों से खराब है उधर वाली रोड. उस पर अब अजनबी ही चलते हैं. आस-पास के रहने वाले भूले से भी उधर से नहीं निकलते या भूले से ही उधर निकलते हैं. फिलहाल लड़के ने,उसके पिता जी ने, आसपास रहने वालों ने अपना रास्ता बदल लिया है. और वह रोड अपनी बेनूरी पर आंसू बहा रही है.

दृश्य- दो

झक सफेद खादी के कुर्ते में जो इस मुहल्ले में खड़ा है, वह चुनाव लड़ रहा है. मोहल्ले के सारे लोग उसकी कथनी-करनी से अच्छी तरह से परिचित हैं. वह चुनाव जीतने की तैयारी में जमकर लगा हुआ है, लिहाजा वह पैसे और शराब बंटवा रहा है. इस मोहल्ले के सयाने लोगों का कहना है कि अब चुनाव जीतने के बाद कौन पहचानता है. तो क्यों न चुनाव परिणाम आने से पहले, उसके एवज में प्रत्याशी की अंटी से कुछ झटक ही लिया जाए, कुछ तो मिलेगा. इसलिए वे प्रत्याशी के पैसे से, जिसे कुछ लोग हराम की कह रहे हैं, जमकर शराब पी रहे हैं. भले ही वह शराब अप्रत्यक्ष रूप से लोकतंत्र को पी रही है. मगर लोगों के लिए यह लोकतंत्र का यह डैमेज कंट्रोल जैसा है.

दृश्य- तीन

 एक गृहिणी बहुत गर्व से बता रही है कि उसका दूधवाला दूध में पानी के अलावा और कुछ नहीं मिलाता. ऐसा नहीं कि उसे अपने दूध वाले से शिकायत नहीं, मगर वह अंदर ही अंदर संतुष्ट भी है. जिस हिसाब से जहरीला कृत्रिम दूध बनाया जा रहा है, उससे तो यह दूध गनीमत है. वह जानती है शुद्ध दूध तो मिलने से रहा. चलो, पानी वाला दूध पीने से नुकसान तो नहीं होगा. वह यह सोचकर संतुष्ट है और दूधवाला पानी मिलाकर. आशा नाम की इस गृहिणी ने ‘शुद्ध’ की आशा ही छोड़ दी है. 

दृश्य- चार

राशन की दुकान पर लाइन में लगा हुआ है हरिया. आज दुकान कई दिनों के बाद तो खुली है इसलिए अच्छी खासी भीड़ भी है. और एक अच्छी बात है कि राशन की दुकान पर गेहूं का स्टाक है, और उससे अच्छी बात यह कि वह बंट भी रही है. हरिया इन्हीं बातों से खुश है. वह गेहूं की गुणवत्ता के बारे में नहीं सोच रहा. न गेहूं में मिली हुई या मिलाई हुई गंदगी के बारे में. वह तो अपना मैला-कुचैला, कई जगह से सिला हुआ, झोला लेकर खुशी-खुशी घर जा रहा है.

आजादी के बाद से आम आदमी ने एक ही बात सीखी है. वह है किसी न किसी तरह से ‘मैंनेज’ या ‘एडजस्ट’ करना. ‘वह’ नहीं तो ‘यह’ ही मिल जाए. ‘उससे’ नहीं तो ‘इससे’ काम चल जाए. उसकी मैनेज करने की ऐसी आदत हो गई है कि अगर कोई आम आदमी भूले से किसी चीज के लिए जिद कर बैठता है, तो बाकी कहते हैं, ‘देखो,मत मारी गई है उसकी! बच्चों की तरह जिद कर रहा है.’

प्रगति की राह में दनादन दौड़ते इस देश में आम आदमी एक अच्छा मैनेजर सिद्ध हो रहा है. वह संतुष्टि के लिए कोई न कोई कोना खोज ही लेता है. मगर यह नहीं जानता कि कोना खोजते-खोजते वह खुद कोने पर आ गया है. या यह कहें कि हाशिये पर खिसक गया है.

-अनूप मणि त्रिपाठी