अव्यवस्था की आहुतियां

मौनी अमावस्या का स्नान. इलाहाबाद के संगम तट पर देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक से उमड़ी करीब तीन करोड़ श्रद्धालुओं की भीड़. स्नान के बाद सभी को अपने-अपने घर जाने की जल्दी. इन सब के बीच प्रशासन व रेलवे की आधी अधूरी तैयारी. इस सबका परिणाम 10 फरवरी की रात रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर छह पर भगदड़ के रूप में देखने को मिला, खामियाजा 36 श्रद्धालुओं को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा. घटना क्यों और कैसे हुई, इसमें दोष किसका था, इस पर मंथन करने के बजाए केंद्र व उत्तर प्रदेश सरकार दोनों ने ही एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू कर दिया.

सबसे पहले हम बात शुरू करते हैं घटना वाले दिन यानि 10 फरवरी की जिस दिन मौनी अमावस्या का स्नान था. दरअसल उस दिन रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नम्बर छह पर पौने दो घंटे के अंतराल पर दो बार भगदड़ मची थी. पहली बार भगदड़ देर शाम करीब सात बजे हुई थी. स्टेशन पर दस प्लेटफार्म हैं जिसमें से छह नम्बर प्लेटफार्म सबसे बड़ा है. इस प्लेटफार्म से बिहार, झारखंड सहित पश्चिम बंगाल की तरफ जाने वाली रेलगाडि़यों को चलाया जाता है. शाम सात बजे इस प्लेटफार्म पर पटना को जाने वाली रेलगाड़ी खड़ी थी. दूसरे प्लेटफार्मों से इस प्लेटफार्म को जोड़ने वाले फुटब्रिज पर यात्रियों की भारी भीड़ पटना जाने वाली रेलगाड़ी को पकड़े के लिए बढ़ी आ रही थी. इसी बीच यात्रियों में किसी तरह यह अफवाह फैल गई कि गाड़ी छूट रही है. फुटब्रिज पर चलने वाले यात्रियों को जैसे ही पता चला कि ट्रेन छूट रही है वे एक दूसरे से आगे निकलने के चक्कर में धक्का-मुक्की करते हुए बढ़ने लगे और पल भर में ही वहां अव्यवस्था फैल गई जिसके कारण भगदड़ मच गई.

इस घटना के बाद भी न तो रेलवे ने और न ही प्रशासन ने कोई सबक लिया. घटना के समय मौके पर ड्यूटी दे रहे उत्तर प्रदेश पुलिस के दो सिपाहियों ने तहलका को बताया, ‘सात बजे वाली घटना के बाद भी स्टेशन पर आने वाली भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए न तो अतिरिक्त पुलिस बल लगाया गया और न ही भीड़ का डायवर्जन किया गया. जिससे भीड़ का दबाव प्लेटफर्मों पर कुछ कम हो सके.’ इसका नतीजा यह रहा कि रात करीब पौने नौ बजे दूसरी बार प्लेटफार्म नम्बर छह पर उतरने वाले फुटब्रिज की सीढि़यों पर दोबारा भगदड़ मच गई.

इस घटना के बाद भी न तो रेलवे ने और न ही प्रशासन ने कोई सबक लिया.फुटब्रिज से नीचे जाने वाली सीढ़ियों से आने वाले और जाने वाले दोनों ही तरफ के रास्तों यात्रियों का भारी दबाव था. पुलिस के चंद सिपाहियों ने मानव श्रंखला बनाते हुए एक दूसरे का हाथ पकड़ कर आने व जाने वाले यात्रियों को अलग-अलग करने का पहले प्रयास किया लेकिन कुछ देर में ही भारी भीड़ के कारण पुलिस का यह प्रयोग धराशाई हो गया. भीड़ अनियंत्रित होते देख जवानों ने लाठी पटकना शुरू किया जिससे स्थिति और भी विकराल हो गई. लोग एक दूसरे पर गिरने लगे और सीढ़ी पर भगदड़ की स्थिति उत्पन्न हो गई. दोनों ही भगदड़ों में 36 लोगों की मौत हुई और 100 से अधिक लोग घायल हुए. मौके पर मौजूद रेलवे के कर्मचारी बताते हैं कि स्टेशन पर ऐसी स्थिति इस लिए हुई क्योंकि सिविल लाइंस साइड और सिटी साइड दो ओर से यात्रियों का दबाव बढ़ने लगा जिससे भारी भीड़ आमने सामने आ गई और स्थिति अनियंत्रित हो गई.

रेलवे व जिला प्रशासन दोनों ने ही घटना को छुपाने का भरसक प्रयास किया. घटना की जानकारी बाहर तक न जाए इस बात को ध्यान में रखते हुए अधिकारियों ने तत्काल शवों को हटवा कर साफ-सफाई करवा दिया. इसके बावजूद घटना कितनी वीभत्स थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दूसरे दिन भी प्लेटफार्म नम्बर छह से लेकर फुटब्रिज की सीढि़यों तक पर जगह-जगह बिखरे जूते-चप्पल, यात्रियों के सामान व खून से रंगे कपड़े 10 फरवरी के रात की कहानी बयां कर रहे थे.

मेला प्रशासन व प्रदेश सरकार दोनों ने ही मौनी अमावस्या के स्नान वाले दिन करीब तीन करोड़ श्रद्धालुओं के संगम तट पर एकत्र होने का अनुमान लगाया था. श्रद्धालुओं को स्नान के बाद सकुशल उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए राज्य सकार ने उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसों व केंद्र सरकार ने रेलगाडि़यां उपलब्ध कवाने का वायदा किया था. स्नान के बाद श्रद्धालुओं को उनके गंतव्य तक पहुंचाने की दोनों ही सरकारों की यह कवायद सिर्फ कागजों तक ही सीमित रही.

यदि हम राज्य सरकार की व्यवस्था पर नजर डालें तो यात्रियों के आवागमन के लिए उसके पास परिवहन निगम की बसों का संसाधन उपलब्ध था. मौनी अमावस्या के स्नान के लिए करीब छह हजार बसों को चलाने की तैयारी थी. लेकिन ऐन मौके पर राज्य सरकार की यह व्यवस्था धरी की धरी रह गई. 10 फरवरी को सरकार व परिवहन निगम श्रद्धालुओं के लिए मात्र 3445 बसें ही उपलब्ध करा पाया. इन बसों के माध्यम से मात्र ढ़ाई लाख के करीब श्रद्धालु ही निकल पाए. परिवहन निगम के सूत्र बताते हैं कि पूरे प्रदेश से दो हजार बसें स्नान वाले दिन इलाहाबाद पहुंचनी थी लेकिन पहुंच नहीं सकीं. यात्रियों के लिए जो 3445 बसें उपलब्ध भी थीं उनमें से भी सैकड़ों बसें सड़कों पर यात्रियों की भारी भीड़ के कारण शहर के भीतर ही प्रवेश नहीं कर सकीं. इन बसों से मात्र ढ़ाई लाख यात्री ही रवाना किए जा सके. बसें उपलब्ध न होने के कारण भीड़ निराश होकर रेलवे स्टेशन की ओर रवाना होने लगी.

भगदड़ मचने की वजह से काफी संख्या में श्रद्धालु हताहत हुए

स्नान वाले दिन रेलवे ने हर आधे घंटे पर एक रेलगाड़ी चलाने का प्लान बनाया था लेकिन यह व्यवस्था भी शुरू नहीं हो सकी. अप-डाउन मिला कर कुल 58 रेलगाडि़यां ही चल सकीं. रेलवे की लापरवाही का आलम यह रहा कि रूटीन की जो रेलगाडि़यां इलाहाबाद से चलती थीं उनमें भी कटौती कर दी गई. प्रयाग पैसेंजर, इंटर सिटी एक्सप्रेस और बरेली पैसेंजर जैसी नियमित गाडि़यों को रद्द कर दिया गया. जो गाड़ियां चलीं उनसे मात्र ढाई से तीन लाख के बीच ही यात्रियों को रेलवे इलाहाबाद से बाहर निकालने में सफल रहा. इस तरह देखा जाए तो इतने बड़े स्नान वाले दिन मात्र पांच से साढ़े पांच लाख यात्रियों को ही बस व रेलगाड़ी से उनके गंतव्य तक पहुंचाने की व्यवस्था राज्य व केंद्र सरकार कर सकी थी. ऐसी स्थिति तब थी जब कि कुंभ का स्नान शुरू होने से पहले ही इस बात का आंकलन लग चुका था कि मौनी अमावस्या के स्नान पर करीब तीन करोड़ श्रद्धालुओं की भीड़ तीर्थराज प्रयाग में उमड़ेगी.

घटना का एक बड़ा कारण यह भी रहा कि स्नान के बाद भीड़ को लगातार स्टेशनों की ओर रवाना करने पर मेला प्रशासन ने जोर दिया. इसके लिए बाकायदा माइक से मेले में एनांउंस किया जा रहा था कि श्रद्धालु जल्द से जल्द नहा कर घाट खाली कर के रेलवे स्टेशन व बस स्टेशन की ओर प्रस्थान करें. वहां से उनके गंतव्य को जाने के लिए पर्याप्त संख्या में बस व रेलगाडि़यां मौजूद हैं. पुलिस विभाग के एक अधिकारी कहते हैं,’ भीड़ एक साथ स्टेषनों पर न पहुंचे इसके लिए प्रशासन को चाहिए था कि इलाहाबाद के अन्य दर्शनीय स्थलों का भी प्रचार प्रसार किया जाता. ताकि श्रद्धालु इन स्थानों को देखते हुए स्टेशनों तक पहुंचते तो भीड़ का दबाव रेलवे स्टेशन पर एक साथ न बढ़ता.’ रेलवे स्टेशन के आसपास जो फोर्स लगा था उसे भी इस बात का प्रषिक्षण नहीं दिया गया था कि अलग-अलग दिशाओं में जाने वाले यात्रियों को किन-किन रास्तों से स्टेशन परिसर में प्रवेश कराना है. जबकि अलग-अलग दिशाओं में जाने वाले यात्रियों के लिए अलग-अलग गेट स्टेशन परिसर में आने के लिए बनाए गए थे. फिलहाल मेला प्रशासन जागा लेकिन घटना के बाद. घटना के अगले दिन यानि 11 फरवरी को मेले में बार बार एनाउंस किया जा रहा था कि बस व रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की भारी भीड़ है तथा दोनों स्थानों पर अभी साधन भी उपलब्ध नहीं है. लिहाजा श्रद्धालुओं से अनुरोध है कि वे अगली सूचना तक मेला परिसर में ही बने रहें.

ऐसी स्थिति तब थी जब कि कुंभ का स्नान शुरू होने से पहले ही इस बात का आंकलन लग चुका था कि मौनी अमावस्या के स्नान पर करीब तीन करोड़ श्रद्धालुओं की भीड़ तीर्थराज प्रयाग में उमड़ेगी.दस फरवरी को सिर्फ रेलवे स्टेशन पर ही भगदड़ नहीं मची बल्कि मेला परिसर में भी श्रद्धालुओं को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा. पहली घटना सेक्टर 12 में दोपहर करीब एक बजे की है. वहां भारी भीड़ के कारण अचानक अफरा-तफरी का माहौल उत्पन्न हो गया जिससे भगदड़ मच गई. भारी भीड़ व भगदड़ में दबने से प. बंगाल से आए 62 साल के गोविंद राय की मौत हो गई. इस घटना के एक घंटे बाद ही सेक्टर दो में त्रिवेणी बांध के नीचे भगदड़ मच गई. गनीमत यह रही कि यहां किसी भी श्रद्धालु की मौत तो नहीं हुई, कई लोग घायल जरूर हुए.

घटना के बाद मृतकों के परिवारों को भी कम अव्यवस्था का सामना नहीं करना पड़ा. जालंधर के राजागार्डेन से एक ही परिवार के 11 लोग गंगा स्नान को आए थे. इन सभी का महाबोधि एक्सप्रेस से वापस जाने का टिकट था. परिवार के सदस्य फुटब्रिज होते हुए प्लेटफार्म नम्बर छह पर जाने की तैयारी कर रहे थे तभी भगदड़ मच गई. जिसमें परिवार के साथ आई किरन नाम की महिला की मृत्यु हो गई. किरन के भाई सतीश कुमार बताते हैं कि घटना के काफी देर बात तक प्राथमिक उपचार नहीं मिला. काफी देर बाद एक नर्स आई भी तो उसने घायलों को हाथ तक नहीं लगाया. काफी देर बाद एम्बुलेंस आई जिसमें किरन को डाल कर सीधे स्वरूपरानी अस्पताल पहुंचाया जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. सतीश बताते हैं, ‘घटना के बाद अस्पताल तक पहुंचने में करीब तीन घंटे का समय लग गया. समय रहते यदि किरन को अस्पताल पहुंचाया जाता तो शायद उसकी जान बचाई जा सकती थी.’ सतीश और उनके परिवार की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुई. 11 फरवरी को पोस्टमार्टम के बाद दूसरे राज्य से आए इस परिवार को प्रशासन की ओर से कफन तक नहीं दिया गया. थक हार कर परिवार के लोग खुद ही पता करते करके कहीं से 1200 रुपये में किरन के लिए एक कफन लेकर आए जिससे शव को ढका जा सका.

पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को कहा गया कि शव ले जाने के लिए वाहन की व्यवस्था वे खुद करें. जिस पर मोर्चरी पर मौजूद किरन के परिवार सहित दूसरे लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. इतने में इलाहाबाद मंडल के कमिश्नर मौके पर पहुंच गए. स्थिति बिगड़ते देख प्रशासन ने शवों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए वाहन की व्यवस्था करने का आश्वासन दिया. सतीश व विनोद कुमार जैसे लोगों ने अपने परिजनों के शव के साथ जाने के लिए तो दूसरे वाहन की व्यवस्था कर ली लेकिन वहां ऐसे परिवार भी थे जिनके पास किराया तक नहीं बचा था.

इन्हीं में से एक मध्य प्रदेश के जबलपुर से आई चैनबाई भी थीं. स्टेशन पर हुई भगदड़ में चैनबाई की आठ साल की पुत्री मुस्कान सहित परिवार उनकी मां बिपता बाई व चाची फूलबाई की मौत हुई है. प्रशासन की ओर से मुहैया कराई जा रही एम्बुलेंस में परिवार के तीन शव रखने के बाद इतनी जगह नहीं बच रही थी कि और लोग बैठ कर घर को जा सकें. लिहाजा प्रशासन की ओर से मोर्चरी पर मौजूद कर्मचारियों ने अपने स्तर पर दूसरा वाहन करने की सलाह दी. चैनबाई बताती हैं, ‘रेलगाड़ी तक का किराया अब पास बचा नहीं है ऐसे में दूसरे वाहन का बोझ परिवार कैसे उठा पाएगा.’ लिहाजा चैनबाई ने परिवार के तीनों सदस्यों का अंतिम संस्कार इलाहाबाद के ही किसी घाट पर करने का निर्णय लिया.

भगदड़ के बाद दर्जनों की संख्या में ऐसे परिवार भी थे जिनके परिजन गायब थे. गायब लोगों का न तो मोबाइल ही काम कर रहा था और न ही परिजनों से संपर्क हो पा रहा था. सेना में सूबेदार मेजर रामेश्वर प्रसाद यादव अपनी पत्नी कुंती देवी के साथ 9 फरवरी को इलाहाबाद गंगा स्नान के लिए पहुंचे थे. पहले मेडिकल कालेज फिर स्वरूपरानी अस्पताल तक अपने पति को खोजते हुए पहुंची कुंती बताती हैं कि 10 फरवरी की शाम करीब सवा सात बजे वे पति के साथ प्लेटफार्म नम्बर छह पर बैठी थीं. उसी समय उनके पति ने अपनी जैकेट, घड़ी व मोबाइल निकाल कर देते हुए कहा कि वे शौच करने जा रहे हैं. रामेश्वर दोबारा वापस नहीं आए. कुंती बताती हैं कि पति न तो बलिया स्थित अपने घर पहुंचे हैं और न ही कोई संपर्क हो पा रहा है. लिहाजा किसी अनहोनी को सोच कर कुंती के आंसू थमने का नाम नहीं लेते.

भारी अव्यवस्था और तालमेल के अभाव के कारण हुई घटनाओं पर अब बारी केंद्र व राज्य सरकार की एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप की थी. उत्तर प्रदेश सरकार घटना का ठीकरा जहां रेलवे पर फोड़ रही है तो केंद्र सरकार पूरी घटना के पीछे मेला प्रशासन की खामियां बता रही है.