सुनहरे सपनों की फीकी चमक

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लखनऊ की रहने वाली शिक्षिका पुष्पा की रुचि सरकार की नई योजनाओं में खूब रहती है. वह बहुत सारी योजनाओं को लेकर आस-पास के लोगों को जागरूक भी करती रहती हैं. जब उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार की सोने पर ब्याज मिलने की योजना के बारे में सुना, तो खासी उत्साहित हो गईं और इसके बारे में जानकारी जुटाने लगीं. लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि उन्हें अपने सोने के आभूषण को सरकार द्वारा बनाए गए शुद्धता जांच केंद्र पर ले जाकर गलवाना होगा और तब उन्हें सोने पर ब्याज मिलेगा तो उनकी सारी खुशी काफूर हो गई.

पुष्पा बताती हैं कि उनके पास सोने के जो आभूषण हैं, उनसे ढेरों यादें जुड़ी हैं. कुछ गहने उनके पति ने बनवाए पर ज्यादातर उन्हें घर के बड़े-बूढ़ों ने दिए हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी उसी रूप में हस्तांतरित होने चाहिए. उन्हें गलाने के बारे में वह सोच भी नहीं सकतीं. भले ही इनसे उन्हें कोई फायदा नहीं हो रहा है, पर उन्हें गहनों को देखकर संतुष्टि मिलती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धनतेरस से पहले स्वर्ण मौद्रीकरण योजना 2015, सार्वभौमिक स्वर्ण बॉन्ड योजना और अशोक चक्र के निशान वाले सोने के सिक्के जारी करने की तीन योजनाओं की शुरुआत की थी. इनका मकसद सोने को बैंकिंग प्रणाली में लाना व इसके बढ़ते आयात पर रोक लगाना था. बढ़ते आयात के चलते भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जो सोने के सबसे बड़े खरीददार हैं. भारत सालाना 1000 टन सोने का आयात करता है जिससे भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा बाहर चली जाती है. इससे राजकोषीय घाटे पर दबाव बढ़ता है. अनुमान है कि देश में लोगों के पास और मंदिरों में कुल मिलाकर करीब 20 हजार टन सोना पड़ा है, जिसकी अनुमानित कीमत 52 लाख करोड़ रुपये होती है.

 सोने से बड़ी हैं उम्मीदें

योजनाओं की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि जिस देश के पास घर-परिवार और संस्थानों में 20 हजार टन सोना बेकार रखा हो, ऐसे देश के गरीब रहने की कोई वजह नहीं है. भारत कुछ नई पहलों और सही नीतियों के साथ आगे बढ़ते हुए गरीब देश के तौर पर अपनी पहचान को खत्म कर सकता है. स्वर्ण मौद्रीकरण योजना 2015 के तहत लोग अपने पास उपलब्ध सोने को जमा कर सकेंगे जिस पर उन्हें 2.5 प्रतिशत सालाना ब्याज मिलेगा. जबकि सार्वभौमिक स्वर्ण बॉन्ड योजना के तहत आपको सोना खरीदने की जरूरत नहीं होगी, बल्कि सोने के नाम पर आपको बॉन्ड पत्र मिलेगा. निवेशक बॉन्ड पत्र खरीदकर सालाना 2.75 प्रतिशत तक ब्याज प्राप्त कर सकेंगे. बॉन्ड पांच ग्राम से 100 ग्राम सोने तक के होंगे और 500 ग्राम से ज्यादा खरीदने की छूट नहीं होगी. लेकिन अगर जरूरत है तो समय से पहले भी पैसे निकालने की छूट मिलेगी. ये बॉन्ड बैंक और पोस्ट ऑफिस से खरीद जा सकेंगे. स्वर्ण बॉन्ड की अवधि पूरी होने पर आपको सोना नहीं मिलेगा बल्कि ब्याज के साथ सोने की उतनी कीमत (जो उस समय होगी) नकद मिल जाएगी. अगर सोने की कीमत गिर जाती है तो सरकार विकल्प देगी कि आप तीन साल या फिर उससे ज्यादा वक्त के लिए बॉन्ड आगे बढ़ा दें मतलब उस वक्त न भुनाएं. इसके साथ ही सरकार ने अशोक चक्र और महात्मा गांधी के चित्र वाले पांच ग्राम तथा दस ग्राम के सोने के सिक्के चलाकर लोगों को निवेश का एक और विकल्प दिया. वैसे सोने को हमारे देश में एक वैकल्पिक और सुरक्षित निवेश के तौर पर देखा जाता है लेकिन अधिकांश सोना घरों की तिजोरियों और बैंकों के लॉकर में बंद है, इसलिए इसे रखने वाले को इससे किसी भी तरह का फायदा नहीं होता. सिर्फ इस धातु की कीमत बढ़ने पर ही पूंजी बढ़ने की उम्मीद होती है. ऐसे में अगर लोग सरकार की योजनाओं का हिस्सा बनते हैं तो वे इससे कुछ आय भी अर्जित कर सकते हैं.

फ्लॉप हो गईं योजनाएं

उद्योग निकाय रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद (जीजेईपीसी) के अनुसार स्वर्ण मौद्रीकरण योजना का पहला पखवाड़ा निराशाजनक रहा. इस दौरान महज 400 ग्राम सोना ही जमा कराया गया. इसी तरह सरकार की बहु-प्रचारित स्वर्ण बॉन्ड खरीद योजना से प्राप्त अंतिम राशि पर अगर नजर डालें तो एक तरह से यह योजना भी लोगों को आकर्षित करने में विफल रही है. इस योजना से मात्र 150 करोड़ रुपये ही जुटाए जा सके. वरिष्ठ आर्थिक विश्लेषक भरत झुनझुनवाला इन योजनाओं की विफलता का कारण भरोसे की कमी बताते हैं. वे कहते हैं, ‘लोगों का सोना खरीदने का मकसद उसे बेचकर पैसा कमाना नहीं होता है. वे अपनी सुरक्षा के लिए सोना खरीदते हैं. अगर लोगों को सरकार और बैंकों पर भरोसा होता, तो वे सोना खरीदते ही नहीं. ऐसे में सोना खरीदकर सरकार या बैंकों के हाथ में देने की कोई भी योजना सफल ही नहीं हो सकती है.’

भारत में सोने की चाहत बहुत प्रबल है. यह अचल पूंजी के साथ-साथ पारिवारिक विरासत की निशानी भी होती है. पुश्तों से ये बचत की पूंजी जमा करने और सुरक्षित निवेश का आसान जरिया माना जाता रहा है. ऐसे में इन योजनाओं की शुरुआत से ही यह सवाल उठाया जा रहा था कि कितने लोग अपने ‘खानदानी’ सोने की पहचान मिटने यानी आभूषणों को गलाने की इजाजत देंगे. ढाई प्रतिशत तक ब्याज की सुविधा और फिर एक निश्चित समय के बाद जमा सोने को उतनी ही मात्रा में वापस पाने जैसे प्रावधानों से उम्मीदें बढ़ी थी, लेकिन लोगों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई.

दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. आसमी रजा सोने से जुड़े भावानात्मक लगाव और योजनाओं को लाने के गलत समय को इस तात्कालिक विफलता की बड़ी वजह बताते हैं. उनके अनुसार, ‘भारतीय महिलाओं का सोने के साथ बहुत गहरा लगाव है. वे लंबे समय से इसी के जरिये उपहारों का आदान-प्रदान करती आ रही हैं. ऐसे में लोगों से निवेश के लिए सोना निकलवाने के लिए हमें बढ़िया ऑफर देना होगा. अभी हमारी वित्तीय व्यवस्था में सोना गिरवी रखने पर बहुत अच्छा रिटर्न नहीं मिलता है. इन योजनाओं की विफलता के लिए हमारा अंडरसाइज फाइनेंशियल सिस्टम जिम्मेदार है. अंडरसाइज सिस्टम का मतलब पारदर्शिता से है. भारत इतना बड़ा देश है और हमने सोने की शुद्धता की जांच के लिए बहुत कम ही केंद्र बनाए. सरकार का फोकस तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों पर रहा. यह योजना बहुत ही कम समयावधि के लिए लोगों के सामने आई है और इसमें निरंतरता की जरूरत है. इसके अलावा सरकार ने एक तय मात्रा से अधिक सोना जमा करने पर उसके स्रोत के बारे में जानकारी देने की अनिवार्यता तय कर दी. इससे भी लोगों ने इस योजना में रुचि नहीं दिखाई. सबसे बड़ी बात योजना को लाने के समय को लेकर है. इस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोने का दाम पांच साल के सबसे निचले स्तर पर है. इसके अलावा पिछले करीब तीन सालों में भारत के इक्विटी मार्केट और सोने के दामों में विपरीत संबंध दिखाई पड़ रहा है. इसके चलते भी निवेशक अभी पैसा लगाने को तैयार नहीं हैं.’ फिलहाल सोने की जांच के लिए कम केंद्र होने की बात सरकार भी मान रही है. देशभर में योजना के लिए महज 29 जांच केंद्र और चार रिफाइनरी हैं. लोगों से मिली ठंडी प्रतिक्रिया को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने योजनाओं को लेकर 15 दिन के भीतर 19 नवंबर को तीसरी बार बैठक की. इसमें भारतीय मानक ब्यूरो, हॉलमार्क एसोसिएशन, बैंकों सहित सभी पक्ष शामिल हुए. इस दौरान साल के अंत तक सोना जांच केंद्र और रिफाइनरी की संख्या बढ़ाकर क्रमश: 55 और 20 करने का लक्ष्य रखा गया. इसके अलावा वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सरकार अब भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) से प्रमाणित ज्वेलर्स को सोने की शुद्धता की जांच का जिम्मा सौंपने पर भी विचार कर रही है. बीआईएस से प्रमाणित देशभर में कुल 13,000 ज्वेलर्स हैं.

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नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव्स के चेयरमैन मोहन गुरुस्वामी का कहना है, ‘इस योजना की शुरुआत करने का मकसद लॉकरों में बेकार पड़े सोने को वित्तीय उपयोग में लाने का है. यह सोच सही है, लेकिन सरकार को यह बात समझनी होगी कि इस पर लोगों का क्या सोचना है. जैसे कि यदि कोई अपने घर पर कई पीढ़ियों से पड़े सोने को लेकर बैंक के पास जाएगा तो उससे सवाल-जवाब शुरू हो जाएगा. यह सोना आपको कहां से मिला? आपने आयकर भरा है या नहीं? इसके लिए पैसा कहां से आया? सोने को लोगों के घरों से बाहर निकालने के लिए सरकार को ऐसी लुभावनी नीति बनानी चाहिए, जिससे इन सवालों से गुजरना ही नहीं पड़े. सरकार ने इस बारे में सोचा ही नहीं जिससे योजना फ्लॉप हुई.’

‘सरकार को इस योजना को जनसुलभ बनाने के साथ ही इस बात का ध्यान रखना होगा कि काले धन वाले इसे अपने हित में इस्तेमाल न कर पाएं’

विशेषज्ञ सोना जमा करने की एक थकाऊ प्रक्रिया को भी योजना सफल न होने का कारण बता रहे हैं. यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है. इसके लिए आपको सरकार से मान्यता प्राप्त केंद्र पर अपने आभूषणों ले जाकर उसकी शुद्धता की जांच करानी होगी. यहां आपको गहनों की शुद्धता के बारे में जानकारी दी जाएगी. यानी सोना 22 कैरेट है, 24 कैरेट है, 18 कैरेट या इससे कम का है. अगर दी गई जानकारी के बाद ग्राहक अपने सोने को जमा कराने पर राजी होता है तो आगे की प्रक्रिया शुरू होगी और अगर राजी नहीं होता है तो उसे गहने वापस कर दिए जाएंगे. इस प्रक्रिया में करीब 45 मिनट का समय लगेगा और ग्राहक को सोने की जांच के लिए 300 रुपये चुकाने होंगे. जांच केंद्र की ओर से दी गई जानकारी के बाद अगर ग्राहक सोने के गहनों को बैंक में जमा कराने पर राजी होता है तो उसे उन्हें पिघलाने के लिए एक फॉर्म भरना होगा. पिघलाने के पहले उनकी सफाई की जाएगी. फिर उनको तौल कर पिघलाया जाएगा. इसके बाद उसे छड़ों में तब्दील कर दिया जाएगा. इसमें 3-4 घंटे लग सकते हैं. ग्राहक चाहे तो इसके बाद भी सोने को बैंक में जमा करने से मना कर सकता है, अगर वह मना करता है तो उसे प्रति 100 ग्राम सोने को पिघलाने पर 500 रुपये फीस चुकानी होगी और सोने की छड़ उसे सौंप दी जाएगी. अगर ग्राहक सोने को बैंक में जमा कराने पर राजी होता है तो कलेक्शन सेंटर से उसको सोने की शुद्धता और मात्रा के बारे में एक सर्टिफिकेट दिया जाएगा. उसे बैंक में दिखाने पर ग्राहक का गोल्ड सेविंग अकाउंट शुरू कर दिया जाएगा. इसके लिए कम से कम 30 ग्राम सोने की अनिवार्यता है. ग्राहक और जांच केंद्र जितने सोने की जानकारी देंगे, बैंक उतना ही सोना ग्राहक के अकाउंट में दर्शाएगा. इस पर मिलने वाला ब्याज बैंक तय करेगा. साथ में ग्राहक चाहे तो ब्याज को सोने के तौर पर भी ले सकता है या फिर उसे कैश करा सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि शुरुआती दौर में जांच केंद्र, बैंक और सरकार के समन्वय में कमी इस योजना के फ्लॉप होने का कारण हैं.

वहीं, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर अरुण कुमार के अनुसार, ‘सरकार ने खुद को सक्रिय दिखाने के लिए बगैर तैयारी के ही इस योजना की शुरुआत कर दी है. सरकार ने जल्दबाजी में रोडमैप तैयार नहीं किया है. ऐसा सिर्फ इस योजना के ही साथ नहीं है. स्वच्छ भारत अभियान और गुड गवर्नेंस जैसी योजनाओं में भी यही कमी सामने आई थी. वैसे इस योजना के बारे में जैसे-जैसे लोगों को पता चलेगा, यह लोगों को आकर्षित करेगी. बस एक अंदेशा है कि कहीं यह काले धन को सफेद करने का जरिया न बन जाए. सरकार को इस योजना को जनसुलभ बनाने के साथ ही इस बात का ध्यान रखना होगा कि काला धन रखने वाले इसे अपने हित में इस्तेमाल न कर पाएं.’ वित्त मंत्रालय द्वारा इन योजनाओं को लेकर 15 दिन के भीतर तीन बार बुलाई गई बैठक इस बात की पुष्टि करती है कि सरकार ने एक अच्छी पहल जरूर की, लेकिन इसकी शुरुआत बहुत ही हड़बड़ी में की.