गौर करें कि यह पारी लक्ष्मण ने उस समय खेली है जिसे तेंदुलकर का दौर कहा जाता है. आज से करीब एक दशक पहले उस दिन जब लक्ष्मण और द्रविड़ बल्लेबाजी कर रहे थे तो यह एक तरह से उस टीम के भविष्य की झलक भी थी जो कुछ समय पहले अपने कप्तान के मैच फिक्सिंग में फंसने के झटके से उबर ही रही थी. मोहम्मद अजहरूद्दीन की जगह कप्तानी गांगुली ने संभाली थी. लेकिन अजहर की जगह गांगुली ने ही नहीं बल्कि लक्ष्मण ने भी भरी थी
जिनकी कलाई से निकले शॉट उतने ही जादुई थे जितने पूर्व कप्तान के.
खेलने की एक खास शैली की विरासत लक्ष्मण ने अनुकरणीय रूप से संभाली. किसी ओवरपिच गेंद पर द्रविड़ थोड़ा आगे बढ़ते और ऑफ स्टंप के बाहर पूरे बल्ले से शॉट लगाते हुए गेंद को कवर बाउंड्री की तरफ भेजते. यह एक आदर्श शॉट होता. अगर उनकी जगह लक्ष्मण होते तो वे एड़ियों के बल थोड़ा पीछे जाते और गेंद को स्क्वायर लेग पर फ्लिक कर देते. जब वे अपने रंग में होते थे तो बड़ी रेंज और रिकॉर्ड के बावजूद तेंदुलकर भी उनके सामने उन्नीस ही लगते थे. लक्ष्मण के खेल की खूबसूरती ही इस बात में थी कि उनके शॉट बहुत सहज लगते थे.
इसके बावजूद क्या भारतीय सर्वकालिक एकादश में वे सबकी पसंद के उम्मीदवार होंगे? द्रविड़ और तेंदुलकर इसमें निर्विवाद रूप से नंबर तीन और चार पर आते हैं और दो ऑल राउंडर वीनू मांकड़ और कपिल देव छठे और सातवें नंबर पर. इस तरह देखा जाए तो इसके बाद मध्य क्रम में एक ही जगह बचती है. अब सवाल यह है कि लक्ष्मण किसकी जगह ले सकते हैं. विजय हजारे? दिलीप वेंगसरकर? मोहिंदर अमरनाथ? विजय मांजरेकर? गुंडप्पा विश्वनाथ? भावनाओं का ज्वार भले ही अभी लक्ष्मण के साथ हो मगर तर्क से काम लिया जाए तो हो सकता है कि कुछ दूसरे उम्मीदवार लक्ष्मण से इक्कीस साबित हो जाएं.
यहीं वह दिक्कत समझ में आती है जो लक्ष्मण के साथ रही है. ऐसा कभी-कभार ही हुआ कि वे विपक्ष पर हावी रहे. हो सकता है ऐसा उनके सौम्य, भद्र और निस्स्वार्थ स्वभाव की वजह से हुआ हो. उनमें गेंदबाजों को सबक सिखाने का वैसा जुनून नहीं था जैसा तेंदुलकर और द्रविड़ में देखने को मिलता है. तेंदुलकर ऐसा अपनी आक्रामक शैली के साथ करते हैं जबकि द्रविड़ रक्षात्मक शैली के साथ.
इसके बावजूद दुनिया भर के गेंदबाज राहत की सांस ले रहे होंगे. यह सोचकर कि अब उन्हें उस खिलाड़ी का सामना नहीं करना पड़ेगा जो उनकी सबसे अच्छी गेंदों को भी कलाई की एक हल्की-सी घूम और हल्की-सी मुस्कान के साथ सीमा पार भेज देता था. हालांकि इस राहत में एक अफसोस भी होगा. इस बात का कि अब वे अपने उस साथी के साथ कभी मैदान साझा नहीं कर पाएंगे जिसके कौशल ने खेल का स्तर ऊंचा किया.
मुलत: 15 सितंबर 2012 को प्रकाशित