हम किरायेदार हैं, मालिक नहीं

तब पृथ्वी पर मनुष्य जाति के अस्तित्व तक पर संकट के बादल मंडराने लगे थे. उस समय तक अफ्रीका से इंसान पलायन करके हिन्दुस्तान में आ चुके थे. इस विस्फोट में मनुष्य जाति की आबादी का मात्र दस से बीस फीसदी हिस्सा ही बच पाया था. वैज्ञानिकों को आशंका है कि भविष्य में जो ज्वालामुखी विस्फोट होगा वो ऐसी ही ताकतवाला होगा. इस तरह के एक विस्फोट का होना तय है लेकिन ये कहां होगा. कब होगा इसके बारे में आज हम कुछ भी जान पाने में असमर्थ हैं.

अब सवाल ये उठता है कि अब जब आबादी इतनी बढ़ चुकी है तो इस विस्फोट की वजह से कितना नुकसान होगा हम उसके बारे में आज कोई अंदाजा नहीं लगा सकते हैं. 70 हजार साल पहले की त्रासदी में कम से कम दस फीसदी तो बच गए थे लेकिन अब तो इतनी आबादी का बचना भी मुश्किल लगता है. आज हम अपनी आदतों और तकनीक पर अपनी निर्भरता की वजह से बहुत ‘नाजुक’ हो चुके हैं.

बहरहाल ये बातें हुईं जमीनी खतरों की. आसमान में भी हर वक्त कुछ न कुछ चलता रहता है. जब हम अपने अंतरीक्ष में देखते हैं तो वहां पृथ्वी के आसपास कई सारे खतरे मंडराते नजर आते हैं. अंतरीक्ष में कई ऐसे लघु ग्रह हैं जो पहले भी पृथ्वी से टकराते रहे हैं और आगे भी ऐसी टक्कर दे सकते हैं. इन लघु ग्रहों में से कुछ के आकार तो हिमालय पहाड़ जितने हैं. हालांकि इस क्षेत्र में विज्ञान ने अच्छा काम किया है और आज हम यह खोज पाने में सक्षम हैं कि कौन-सा उपग्रह या पिंड कब पृथ्वी से टकराने वाला है. फिर हम इस बात में भी सक्षम हैं कि भविष्य में होने वाली ऐसी टक्करों से अपनी धरती मईया को बचा सकें. कहने का तात्पर्य को धरती पर रहने के कई खतरे हैं. सो हमारी भलाई इसी में है कि हम धरती पर एक ईमानदार किरायेदार की तरह रहें न कि इसे अपनी जागीर समझकर नोचें-खसोटें.

(विकास कुमार से बातचीत पर आधारित)

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