आतंक का ऑनलाइन चेहरा

Burhan‘कितना सुंदर चेहरा है हमारे भाई का’… फेसबुक पर ‘ट्राल- द लैंड ऑफ मार्टियर्स’ (शहीदों की जमीन) नाम के पेज पर हुई एक पोस्ट में लिखा है जिसके नीचे दक्षिणी कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की धुंधली आंखों वाली एक तस्वीर लगी है जिसमें बुरहान ने अपने हाथ सिर के पीछे रखे हुए हैं. इस तस्वीर के अपलोड होने के 12 घंटों के अंदर ही इस पर 900 लाइक्स और 60 कमेंट्स आए, जिनमें अधिकतर उसकी प्रशंसा में थे. पेज पर ऐसे कई तस्वीरें अपलोड की गई हैं, जिसमें वो मिलिट्री ड्रेस पहने हथियारों से लैस नजर आ रहा है.

वानी कश्मीरी उग्रवादियों की नई पीढ़ी का ‘पोस्टर बॉय’ बनकर उभरा है, जिसे घाटी के इस हिस्से में दम तोड़ते जिहाद को फिर से जिंदा करने का श्रेय दिया जाता है. 22 साल का वानी 2010 की गर्मियों में हिजबुल में तब शामिल हुआ था जब पुलिस फायरिंग में एक किशोर तुफैल मट्टू की मौत के बाद घाटी विरोध में सुलग उठी थी. तमाम विरोध प्रदर्शन चल रहे थे. ऐसे ही एक प्रदर्शन के दौरान उसे एक आर्मी कैंप में पीटा गया, जिसके तीन महीने बाद अपने परिजनों के उकसाने पर वह इस हिजबुल में शामिल हो गया.

उसके दादा, हाजी गुलाम मोहम्मद वानी, जो एक सरकारी कर्मचारी हैं, याद करते हुए बताते हैं, ‘वो जब उस दिन घर लौट कर आया तो बहुत गुस्से में था. उसे ये समझ नहीं आ रहा था कि जब उसने कुछ गलत नहीं किया तो उसे मार क्यों पड़ी.’ हाजी अपने पोते के हथियार उठा लेने के इस फैसले पर गर्व महसूस करते हैं. वे कहते हैं ‘वो हमेशा से एक अच्छा लड़का रहा है. वो पांचों वक्त की नमाज पढ़ता है और एक आज्ञाकारी बेटा भी है. अब जब वो एक सही कारण के लिए आतंकी बना है तो हम सब उसके साथ हैं.’

पिछले पांच सालों में, अपने शहर ट्राल के पास की ही किसी पहाड़ी से हिजबुल को ऑपरेट करते हुए वानी ने कश्मीरी आतंकियों की ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराते हुए संगठन का चेहरा ही बदल दिया है. इसकी शुरुआत उस तस्वीर से हुई थी जिसमें वानी एक क्लाशिनकोव राइफल लिए खड़ा है. यही तस्वीर अब और लोगों को भर्ती करने के इस अभियान का मुख्य चेहरा बन गई है. उनका संगठन अब ऐसी ही फोटो अपलोड करता है. वो उन पहाड़ियों में कैसे रहते हैं, इसके भी वीडियो अपलोड करते हैं. और ये सब करते हुए वे अपने चेहरे किसी नकाब से नहीं छिपाते बल्कि वो पोज दे रहे होते हैं या मुस्कुराते हुए कैमरा की तरफ देख कर हाथ हिलाते हैं. ये ऑनलाइन शो-ऑफ सुरक्षा एजेंसियों को कोई मदद देने की बजाय हिजबुल के ही उद्देश्यों की पूर्ति कर रहा है.

अगर पुलिस के आंकड़ों की मानें तो वानी को अपने उद्देश्य में सफलता मिलती दिखती है. पिछले दस सालों में पहली बार, घाटी के कुल आतंकवादियों में स्थानीय लोगों की संख्या बाहरी आतंकियों से ज्यादा है. 142 सक्रिय आतंकवादियों में से 88 स्थानीय हैं जबकि बाकि पाकिस्तान या पाक अधिकृत कश्मीर से हैं. और इसमें वानी के  दक्षिण कश्मीर क्षेत्र से सर्वाधिक 60 लोग हैं. पिछले 6 महीनों में इस संगठन में शामिल 33 युवाओं में से 30 दक्षिण से ही हैं. इस साल सेना द्वारा तकरीबन 29 आतंकवादियों को सीमा रेखा और अंदरूनी भागों में हुए ऑपरेशनों में खत्म कर दिया गया. पुलिस इन नए लोगों के इस आतंकी संगठन में हो रही भर्ती में आई बढ़त को स्वीकारती है. सीआईडी के इंस्पेक्टर जनरल अब्दुल गनी लोन ‘तहलका’ को बताते हैं, ‘हां, वहां नई भर्तियां हो रही हैं और हम इससे निपटने का कोई प्रभावी उपाय तलाश रहे हैं.’

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इन भर्तियों ने सेना को भी चिंता में डाल दिया है. नॉर्दन कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हूडा इसे दुखद करार देते हुए कहते हैं, ‘युवाओं की ऐसे संगठनों में भर्ती को मैं त्रासदी के रूप में देखता हूं. हालांकि इनकी संख्या बहुत ज्यादा नहीं है पर फिर भी युवाओं को दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से बंदूक उठाते देखना त्रासद है.’ हूडा मीडिया के सामने ये स्वीकार भी कर चुके हैं कि आतंकियों के लिए सोशल मीडिया एक बड़ा हथियार बन चुका है. वे कहते हैं, ‘जिस तरह से वे (आतंकी संगठन) सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं, युवाओं को अपने साथ जोड़ रहे हैं, यह काफी गंभीर बात है.’

फेसबुक पर वानी को समर्पित करीब दर्जन भर पेज बने हुए हैं, जिनमें से कुछ के नाम हैं, ‘वी लव बुरहान वानी, बुरहान भाई सन ऑफ कश्मीर, लवर्स ऑफ मुजाहिद बुरहान ट्राली.’ ये पेज चौबीसों घंटे वानी की फोटो या जिहादी संदेशों के साथ पाकिस्तान, अफगानिस्तान और मध्य पूर्व के देशों की तस्वीरें अपलोड करते रहते हैं, जिन पर ढेरों लाइक्स और कमेंट्स आते हैं. टिप्पणी करने वाले वानी की तारीफ करते हुए उसके संगठन की प्रगति पर खुशी जाहिर करते हैं. एक पोस्ट में लिखा है, ‘जब तक सूरज-चांद रहेगा, बुरहान तुम्हारा नाम रहेगा’, वहीं एक पोस्ट कहती हैं, ‘खुदा तुम्हें सलामत रखे. अल्लाह करे तुम्हें अपने मकसद में कामयाबी मिले और कश्मीर को उसकी आजादी.’ कई बार वहां हथियार उठाने की अपील भी की जाती है जो कई युवा दोहराते दिखते हैं, मगर ये फर्जी अकाउंट लगते हैं. मोईन भट नाम का एक शख्स 11 क्लाशिनकोव के साथ एक तस्वीर पर लिखता है, ‘मेरी जिंदगी में सिर्फ एक ख्वाहिश है कि मेरे हाथों में एके 47 हो. इस्लाम जिंदा रहे. मुजाहिदीन जिंदा रहें.’

बंदूकों को लेकर ये लगाव 1990 के उस वक्त की याद दिलाता है जब घाटी में आतंकी संगठनों के ढेरों उत्साही अनुयायी हुआ करते थे. हालांकि उनका ये भ्रम जल्दी ही टूट ही गया जब उनके वादे में कही हुई ‘आजादी’ लोगों को नहीं मिली और घाटी में खून-खराबा आम बात हो गई. इसके बाद भी आतंक का दौर जारी रहा पर जिहाद की ये लड़ाई अब तक पाकिस्तान या अफगानिस्तान से आए लड़ाकों के कंधों पर थी. जिहाद लाने के लिए सुसाइड बम और कार विस्फोट करने वाले बाहरी आतंकियों की तुलना में स्थानीय लोगों का प्रतिशत और संगठन में उनकी सहभागिता लगातार कम होती गई. ये इराक और मध्य पूर्व में ये सब दोहराए जाने के बहुत पहले हुआ था. अब जब टेक-सेवी नई पीढ़ी आतंकी संगठनों से जुड़ी है, तस्वीरें और वीडियो अपलोड करने का नया खेल शुरू हुआ है तो लगता है कि एक समय का एक चक्र पूरा हो गया है. घाटी में हथियारबंद संघर्ष की फसल दोबारा खड़ी हो गई है और यहां समस्या सिर्फ आतंकियों में स्थानीयों का बढ़ता प्रतिशत या सोशल मीडिया पर मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं है बल्कि मुठभेड़ में हुई किसी आतंकी की मौत के बाद वहां पसरने वाला व्यापक शोक है.

23 जून को, दक्षिण कश्मीर के कुलगाम में दो आतंकियों- जावेद अहमद भट और इदरीस अहमद के अंतिम संस्कार के समय हजारों की भीड़ जमा हुई जो कश्मीर की आजादी से जुड़े नारे लगा रही थी. जब ये मुठभेड़ चल रही थी तब प्रदर्शनकारियों के एक बड़े समूह ने सुरक्षा दलों पर पथराव करते हुए आतंकियों को भागने में मदद की थी.

कुछ ऐसे ही तथ्यों को रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत ने भी अपनी किताब ‘द वाजपेयी ईयर्स’ में शामिल किया है. किताब में 1990 के कश्मीर के बारे में कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं. हाल ही में दिए गए एक साक्षात्कार में दुलत ने कहा भी कि कश्मीर फिर 1990 के पहले जैसे हालात में पहुंच गया है. दुलात कहते हैं, ‘1996 में, नेशनल कांफ्रेंस के सत्ता में आने का कारण था कि बाकी किसी ने भी इस चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया. आज कश्मीर में वैसे हालात नहीं हैं पर राजनीतिक रूप से देखें तो या तो समय कहीं रुक गया है या हम कुछ आगे निकल गए हैं. जिस तरह का आतंकवाद हम पिछले कुछ समय से देख रहे हैं वह भयावह है. आतंकी संगठनों में जाने वाले ये लड़के अच्छे मध्यम और उच्च वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं और प्रशिक्षित इंजीनियर हैं, तो इन्हें ऐसे संगठनों से जुड़ने की क्या जरूरत है? ये खौफनाक है.’

यहां वानी का मुद्दा प्रमुख है. उसके पिता मुजफ्फर अहमद वानी एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य हैं. इस संपन्न परिवार का तीन-मंजिला घर ट्राल शहर को जाने वाले मुख्य रास्ते से थोड़ी दूर पर लगभग दो कनाल की जमीन पर बना है. वानी की इस समृद्ध पृष्ठभूमि से आने की बात से आस-पास के इलाकों और घाटी में उसके दोस्तों के बीच उसका रुतबा और बढ़ा ही है.

बुरहान वानी के ‘नायकत्व’ के ऑनलाइन प्रचार के बाद अब दक्षिणी कश्मीर के कुछ हिस्सों और श्रीनगर के बाहरी इलाकों में उसके ‘ग्रैफिटी’ (दीवारों पर बने चित्र या नारे) भी दिखने लगे हैं. श्रीनगर के बाहर पम्पोर में एक दीवार पर लिखा दिखता है, ‘ट्राल, बुरहान जिंदाबाद! वी वांट हिजबुल मुजाहिदीन, तालिबान एंड लश्कर-ए-तैयबा.’