राधा और फौजिया के साथ ही अकेले रायपुर में हजारों लड़कियां ऐसी हैं जिन्होंने या तो स्कूल छोड़ दिया या फिर पढ़ाई के दौरान उस यातना को भोगने को मजबूर हैं, जिसकी तरफ आजादी के 67 साल बीतने के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारों ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया.
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के हालिया सर्वे के मुताबिक अकेले रायपुर के 78 स्कूलों में छात्राओं और 220 स्कूलों में छात्रों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है. वहीं राजधानी के 1000 स्कूलों में छात्राओं के 583 और छात्रों के लिए बने 516 शौचालय खराब स्थिति में हैं. इन शौचालयों का इस्तेमाल करना स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो गया है. यह स्थिति तब है जब रायपुर को राजधानी बने 13 साल बीत चुके हैं. मानव संसाधन मंत्रालय का सर्वे यह भी बताता है कि प्रदेश के जिन स्कूलों में छात्राओं के लिए शौचालय बनाया गया था वे रख-रखाव के अभाव में अनुपयोगी हो चुके हैं. इनकी संख्या रायपुर में 583, कांकेर में 156, धमतरी में 150, बेमेतरा में 213, मुंगेली में 149 और बलौदाबाजार में 135, सूरजपुर में 503, बस्तर में 359, सरगुजा में 323, गरियाबंद में 235, कोरबा में 238, कोरिया में 189, जशपुर में 166 है. आदिवासी क्षेत्र के स्कूलों की बात करें तो यहां हालत और भी बुरी है. बस्तर में 738, सूरजपुर में 683, सरगुजा में 560, गरियाबंद में 394, जशपुर में 369, कोरिया में 358 और कांकेर में 323 स्कूलों में शौचालय का निर्माण तो किया गया था लेकिन अब वे अनुपयोगी हो चुके हैं. इसी पखवाड़े की शुरुआत में राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री केदार कश्यप खुद भी शौचालय विहीन स्कूलों को लेकर चिंता जता चुके हैं. कश्यप ने नए रायपुर स्थित मंत्रालय में आला अफसरों की बैठक बुलाकर उन्हें जल्द से जल्द स्कूलों में शौचालयों के निर्माण के निर्देश दिए हैं. केदार कश्यप तहलका से कहते हैं, ‘यह सच है कि कई छात्राओं ने केवल इसी कारण स्कूल जाना छोड़ दिया. लेकिन हम उन लड़कियों के लिए भी किसी ऐसी योजना पर विचार कर रहे हैं, जो उनकी स्कूली पढ़ाई फिर से शुरू करवा सके.’ स्कूली शिक्षा के सचिव सुब्रत साहू का कहना है, ‘ प्रदेश के सभी स्कूलों में शौचालय की समुचित व्यवस्था की दिशा में काम शुरू कर दिए हैं. आने वाले समय में सभी स्कूलों में इसकी बेहतर व्यवस्था देखने को मिलेगी.’
भले ही स्कूल शिक्षा मंत्री स्कूल छोड़ रही छात्राओं पर दुख जता रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि वे इसे पहले नहीं रोक सकते थे. छत्तीसगढ़ में स्कूल शिक्षा विभाग तीसरा ऐसा विभाग है, जिसका सालाना बजट दूसरे विभागों से कहीं ज्यादा होता है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य निर्माण के वक्त यानि वर्ष 2001-2002 में स्कूल शिक्षा विभाग का बजट केवल 813 करोड़ 58 लाख रुपये था, जो 2013-14 में बढ़कर 6 हजार 298 करोड़ रुपये हो गया है. बजट में जो बिंदु विशेष रूप से उल्लेखित किए गए हैं, उसमें कहीं भी शौचालय निर्माण को शामिल करने की जहमत भी नहीं उठाई गई है. जबकि शालाओं में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए (जिसमें प्रयोगशाला उपकरण के साथ फर्नीचर खरीदी को भी शामिल किया गया है) 175 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. जाहिर है कि मूलभूत सुविधाओं में शौचालय भी आता है, लेकिन इसके निर्माण में राज्य सरकार ने कुछ कम ही दिलचस्पी दिखाई है. छत्तीसगढ़ में लंबे समय से काम कर रहे है ऑक्सफैम इंडिया के कार्यक्रम अधिकारी विजेंद्र अजनबी कहते हैं, ‘स्कूलों में आवश्यक सुविधाओं का अभाव लड़कियों में कई बीमारियों को भी जन्म दे रहा है. हमारी टीम के सामने लगातार कई ऐसे मामले आए हैं, जो चिंताजनक हैं.’
अपने निर्माण के 13 साल बाद ही सही इस संवेदनशील मुद्दे पर राज्य सरकार सक्रिय होते दिख रही है. ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं की ही नहीं बल्कि छात्र-छात्राओं से सहित उनके अभिभावकों की भी चिंताएं जल्दी दूर होंगी.
तहलका हमेशा से ही जनसरोकार के मुद्दे उठाता रहा है। इसके लिए तहलका की टीम बधाई की पात्र है। जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है तो यहां की सरकार केवल राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार बटोरने में ज्यादा रूचि रखती आई है। भले ही जमीनी स्तर पर कोई खास काम ना किया गया हो लेकिन तब भी आंकडों की हेराफेरी कर अपने आपको सबसे अच्छा साबित करने में सरकारी अफसर सफल होते रहे हैं। आपकी पत्रिका की जमीनी पड़ताल इनकी कलई खोलने के लिए काफी है। विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस भी अपना कर्त्तव्य नहीं निभा रही है। उनके नेताओं को आपस में लड़ने से फुर्सत नहीं है। लोगों की तकलीफ के लिए कांग्रेस भी राज्य सरकार जितनी ही दोषी है।
यह बेहद शर्मनाक है कि आजादी के इतने साल बीतने के बाद भी हम लोग अपने बच्चों को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं दे पाए हैं। छत्तीसगढ़ में यदि लड़कियां केवल इसलिए स्कूल जाना छोड़ रही हैं, क्योंकि वहां शौचालय नहीं है। सभ्य समाज के लिए इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता। राज्य सरकार को चाहिए कि वो तत्काल इस विषय पर संवेदनशीलता दिखाए और इस समस्या को दूर करे।
प्रियंकाजी उम्दा खबर, ये सच है कि शौचालय के अभाव में कई बच्चियां स्कूल छोड़ रही हैं, लेकिन चक्षु खोलदेने वाली आपकी रपट काबिलेतारीफ है। मोदीजी ने भले ही कारपोरेट जगत से आह्वान किया हो, लेकिन वो भी अपने बिजनेस वाले एरिया के स्कूलों में शौचालय बनाने में दिलस्पी दिखा रहे हैं, जबकि आदिवासी एवं सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में बने स्कूलों में बच्चियों के लिए शौचालय की आवश्यकता है।
सरकार को जगाने वाली अच्छी खबर के लिए शुभकामनाएं।