‘संत की समाधि’ : आस्था या अंधविश्वास

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‘केवल महाराज जी (आशुतोष महाराज) ही सच्चे गुरु हैं जो ‘ब्रह्मज्ञान’ दे सकते हैं. मीडिया वालों ने उनके बारे में काफी उल्टी-सीधी बातें फैला दी हैं. मीडिया वाले समाधि का अर्थ नहीं समझते. हम बार-बार कह रहे हैं कि महाराज जी समाधि में हैं और वे वापस आएंगे.’

ये बयान आशुतोष महाराज की अनुयायी 38 वर्षीय सोनिया का है. सोनिया पिछले 7-8 साल से आशुतोष महाराज के दिव्य ज्योति जागृति संस्थान से जुड़ी हैं. दिल्ली के कड़कड़डूमा स्थित केंद्र में होने वाले साप्ताहिक सत्संग में वे अक्सर अपनी 11 और 13 साल की दो बेटियों के साथ जाती हैं.

पिछले दो साल से आशुतोष महाराज को लेकर विवाद गहराते चले जा रहे हैं. पंजाब के नूरमहल में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के संस्थापक आशुतोष महाराज को 2014 में डॉक्टरों ने चिकित्सकीय रूप से मृत घोषित कर दिया लेकिन उनके शिष्यों का कहना है कि वे लंबी समाधि में हैं और एक दिन वापस लौट आएंगे. संस्थान की वेबसाइट पर भी साफ-साफ लिखा गया है, ‘श्री आशुतोष महाराज जी 29 जनवरी 2014 से समाधि की अवस्था में हैं.’  ‘तहलका’ के साथ बातचीत में संस्थान के मीडिया प्रवक्ता विशालानंद ने बताया,‘समाधि लेने से कुछ दिन पहले महाराज जी खुद के लोप हो जाने की बात अपने प्रवचनों में कहते रहे हैं. बाद में हमें समझ आया कि वे दरअसल समाधि में जाने की बात कर रहे थे. महाराज जी के शरीर को संरक्षित करने के लिए विशेष प्रकार के फ्रीजर में रखा गया है.’

‘आशुतोष महाराज के सत्संग में साक्षात ईश्वर के दर्शन कराए जाते हैं. मैं पहले काफी तर्क करती थी, अब मैंने संस्थान के लिए जीवन समर्पित कर दिया है’

कड़कड़डूमा स्थित केंद्र आने वाले अनुयायियों के साथ ही केंद्र की संचालिका ‘मोनिका दीदी’ को पक्का यकीन है कि आशुतोष महाराज समाधि में हैं और एक दिन वापस जरूर आएंगे. समाधि के बारे में जानकारी किसने दी, के सवाल पर मोनिका ने बताया कि ‘ध्यान’ में बैठने पर महाराज जी ने उन्हें दर्शन देकर ऐसा कहा. उस वक्त लगभग 20-22 की संख्या में मौजूद अनुयायी ‘जय महाराज जी’ कहकर एक दूसरे का अभिवादन कर रहे थे. संध्या के समय दीप-धूप से आरती करते और सजे हुए सिंहासन पर आशुतोष महाराज की तस्वीर के सामने श्रद्धापूर्वक झुककर जैसे उनकी मौजूदगी को अनुयायी जीवंत करने पर आमादा नजर आ रहे थे. ‘मोनिका दीदी’ ने बताया, ‘बाकी जगहों पर केवल झूठी बातें की जाती हैं लेकिन आशुतोष महाराज के सत्संग में साक्षात ईश्वर के दर्शन कराए जाते हैं. मैं खुद भी पहले काफी तर्क करती थी और सवाल उठाती थी लेकिन यहां पर सचमुच ईश्वर के दर्शन करने के बाद मेरी श्रद्धा पूर्ण रूप से आशुतोष महाराज में हो चुकी है और मैंने संस्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है.’ उन्होंने आशुतोष महाराज के जीवन पर लिखीगई इसी साल प्रकाशित एक किताब ‘आशुतोष महाराज: महायोगी का महारहस्य’ भी उपलब्ध कराई जो किसी अनुयायी द्वारा नहीं बल्कि स्वतंत्र पत्रकार संदीप देव द्वारा लिखी गई है.

किताब में संदीप देव ने समाधि को अंधविश्वास कहकर प्रचारित करने वाले मीडिया के पक्षपातपूर्ण रवैये की आलोचना की है और गोवा में हर दस साल पर सेंट फ्रांसिस जेवियर के शव के सार्वजनिक प्रदर्शन का हवाला दिया है. सेंट फ्रांसिस जेवियर की मृत्यु वर्ष 1552 में हुई थी लेकिन वेटिकन चर्च का मानना है कि उनका शरीर आज भी खराब नहीं हुआ है. संदीप कहते हैं, ‘दिसंबर 2014 में भी ऐसी ही प्रदर्शनी लगाई गई लेकिन देश या विदेश की मीडिया ने कभी इसे अंधविश्वास के रूप में प्रचारित नहीं किया.’ बेशक संदीप के इस तर्क में कुछ दम हो सकता है लेकिन आशुतोष महाराज की कथित समाधि के बारे में जिस तरह के तथ्य सामने आते हैं वे कई सवाल उठाते हैं.

29 जनवरी की रात को सांस लेने में तकलीफ होने के बाद अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों की एक टीम ने जांच के बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया था. तब मीडिया को एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने बताया था कि 60 घंटे के इंतजार के बाद एक फरवरी को आशुतोष महाराज का अंतिम संस्कार करने की योजना है. हालांकि ऐसा कुछ नहीं हो सका.  एक फरवरी को संस्थान की ओर से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कहा गया कि आशुतोष महाराज की मौत की खबर एक ‘अफवाह’ है. उनकी मृत्यु नहीं हुई बल्कि वे लंबे वक्त के लिए समाधि में चले गए हैं. उस समय तक पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी सहित पंजाब के कई बड़े राजनीतिज्ञों ने मेल के जरिए सभी प्रमुख मुख्य मीडिया संस्थानों को आशुतोष महाराज की मृत्यु पर शोक संदेश भेज दिया था. संस्थान द्वारा समाधि की घोषणा के बाद उन्होंने वे शोक संदेश वापस ले लिए गए.

उस समय इस खबर की रिपोर्ट करने वाले एनडीटीवी के पत्रकार अश्विनी मल्होत्रा बताते हैं, ‘संस्थान के तत्कालीन प्रवक्ता अमर श्रीवास्तव ने आशुतोष महाराज के निधन की खबर हमें दी थी, बाद में उन्हें प्रवक्ता पद से ही हटा दिया गया.’  इतना ही नहीं खबर सुनते ही नूरमहल में उमड़ने वाले अनुयायियों को आशुतोष महाराज के दर्शन नहीं करने दिए गए और न ही स्थानीय पुलिस ही जांच के लिए भीतर जा सकी.

3 फरवरी, 2014 को मामले में नया मोड़ तब आया जब 1988-1992 में आशुतोष महाराज का ड्राइवर होने का दावा करने वाले पूरण सिंह ने उनकी हत्या का शक जताते हुए ‘हैबियस कॉरपस’ यानी 24 घंटे के भीतर आशुतोष महाराज उर्फ महेश झा के शरीर को कोर्ट के समक्ष पेश करने तथा उनके पोस्टमॉर्टम के लिए याचिका दायर की. आशुतोष महाराज का रहस्य तब और गहरा गया जब 7 फरवरी को दिलीप झा नाम के व्यक्ति ने कोर्ट में यह दावा पेश किया कि आशुतोष महाराज दरअसल उनके पिता हैं, उनका असल नाम महेश झा है जो बिहार के मधुबनी जिले के लखनौर गांव के रहने वाले हैं. 1970 में जब दिलीप झा एक महीने के थे तो महेश झा उर्फ आशुतोष महाराज गांव छोड़कर दिल्ली आ गए थे. दिलीप ने याचिका में अपने पिता का अंतिम संस्कार करने की अनुमति भी मांगी.

इसके लगभग दस महीने बाद एक दिसंबर, 2014 को हरियाणा और पंजाब हाईकोर्ट के जज एमएमएस बेदी ने दिलीप झा की याचिका को  यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे ऐसा कोई भी साक्ष्य अदालत में पेश नहीं कर पाए जिससे यह साबित हो सके कि आशुतोष महाराज उनके पिता हैं. इसी सुनवाई में पूरण सिंह की याचिका को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने आशुतोष महाराज की हत्या की आशंका जताते हुए पोस्टमॉर्टम की मांग की थी. हालांकि इसके साथ ही अदालत ने पंजाब सरकार को 15 दिन के भीतर आशुतोष महाराज का अंतिम संस्कार करने का निर्देश दिया. अदालत ने दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा ‘समाधि’ बताकर आशुतोष महाराज के शरीर को अनिश्चितकाल के लिए संरक्षित किए जाने के अधिकार को खारिज कर दिया. अदालत ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित अधिकारों के तहत ऐसी कोई प्रथा उस धर्म विशेष का अनिवार्य भाग नहीं है जिसे आशुतोष महाराज के अनुयायी मानते हैं. साथ ही संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत यह हर नागरिक का कर्तव्य है कि व​ह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवता, सवाल करने और सुधार करने की प्रवृत्ति को बढ़ाए. लेकिन पंजाब सरकार ने कोर्ट में यह हलफनामा दिया कि आशुतोष महाराज का अंतिम संस्कार सरकार के लिए संभव नहीं है क्योंकि यह आशुतोष महाराज के श्रद्धालुओं की आस्था का मामला है. ऐसे में जबरन अंतिम संस्कार किए जाने से कानून एवं व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है. इसके बाद 15 दिसंबर को हुई सुनवाई में चीफ जस्टिस शियावक्स जल वजीफदार और जस्टिस आॅगस्टीन जॉर्ज मसीह की डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच द्वारा अंतिम संस्कार किए जाने संबंधी फैसले पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी.

Dilip Jha
दिलीप झा

‘मेरे पिता आशुतोष महाराज इस बात को सबके सामने जाहिर नहीं करना चाहते थे कि मैं उनका बेटा हूं या वह विवाहित भी हैं. उनकी असली पहचान गोपनीय रहे, इसलिए उन्होंने मुझे ‘हरिदत्त’ नाम से फोन करने की हिदायत दी थी. वे खर्च के लिए मुझे पैसे भी भिजवाते रहे हैं’: दिलीप झा

दूसरी ओर दिलीप झा ने आशुतोष महाराज के पुत्र होने का अपना दावा छोड़ा नहीं है. उन्होंने आशुतोष महाराज की डीएनए जांच के लिए याचिका दायर की है. कोर्ट में इसी 24 फरवरी को इसकी सुनवाई होगी. दिलीप झा ने बताया कि उनके पास 1999 में पिता का पत्र आया जिसमें उन्होंने अपने परिवार से मिलने की इच्छा जताई. इसके बाद वे दिल्ली में अपने पिता आशुतोष महाराज से मिले. 2002, 2006 और 2009 में भी वे अपने पिता से मिले हैं. दिलीप के अनुसार, ‘मेरे पिता आशुतोष महाराज इस बात को सबके सामने जाहिर नहीं करना चाहते थे कि मैं उनका बेटा हूं या वह विवाहित भी हैं. उनकी असली पहचान गोपनीय रहे, इसलिए उन्होंने मुझे ‘हरिदत्त’ नाम से फोन करने की हिदायत दी थी. 1999 के बाद से मेरा उनसे लगातार संपर्क रहा और वे खर्च के लिए मुझे पैसे भिजवाते रहे हैं.’

आशुतोष महाराज का ड्राइवर होने का दावा करने वाले पूरण सिंह बताते हैं, ‘मैं महाराज के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर 1988 में उनका अनुयायी और ड्राइवर बना लेकिन 1992 आते-आते मुझे ऐसी काफी सारी बातें पता चलीं जिसके कारण मेरा उनसे मोहभंग हो गया और मैंने संस्थान छोड़ दिया. सबसे पहले मैं तब चौंका जब आशुतोष महाराज ने बिहार में अपनी पत्नी और बेटे के बारे में मुझे बताया.’ पूरण सिंह का यह भी दावा है कि आशुतोष महाराज संन्यासी नहीं थे बल्कि उनके महिलाओं से संबंध थे. वह कहते हैं, ‘जिस तरह आशुतोष महाराज का दर्शन किसी को नहीं करने दिया गया, वह शक पैदा करता है. इसीलिए मैंने अदालत में पोस्टमॉर्टम के लिए याचिका भी डाली थी. वह याचिका खारिज हो गई लेकिन व्यक्तिगत रूप से मैं दिलीप झा के संपर्क में हूं और उनका पूरा समर्थन करता हूं, क्योंकि मैं सच को किसी भी तरह सामने लाना चाहता हूं. इसके लिए मैं मरने से भी नहीं डरता.’ गौरतलब है कि पंजाब सरकार की ओर से पूरण सिंह को सुरक्षा मुहैया कराई गई है. दो सुरक्षा गार्ड हमेशा उनकी सुरक्षा के लिए तैनात रहते हैं.

पंजाब सरकार की ओर से दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के नाम पर एक गांव बसाया गया जिसका नाम ‘दिव्य ग्राम’ है. इस गांव की जनसंख्या 525 है

संदीप देव ने अपनी किताब में आशुतोष महाराज के मूल स्थान को विवादास्पद बताया है. वह कहते हैं, ‘मैं लखनौर गांव गया था लेकिन दिलीप झा के अलावा वहां कोई भी ऐसा नहीं मिला जो आशुतोष महाराज  के उस गांव का होने का दावा करता. वहां दिलीप से जब मैंने पिता की कोई पुरानी तस्वीर दिखाने के लिए कहा तो वे नहीं दिखा पाए. दिलीप की मां जिनके बारे में आशुतोष महाराज की पत्नी होने का दावा किया गया, वह एक शब्द भी नहीं बोलीं बस चुपचाप खड़ी रहीं.’

इसके उलट ‘तहलका’ ने लखनौर गांव के थानेदार शिवकुमार, पूर्व बीडीओ रवीश किशोर, वर्तमान मुखिया पवन ठाकुर जैसे कुछ पदाधिकारियों सहित गांव के पूर्व मुखिया एवं स्वतंत्रता सेनानी के बेटे सुनोज से संपर्क साधा और दिलीप झा के दावे की पड़ताल करने की कोशिश की. इन सभी ने न केवल दिलीप झा के दावे की पुष्टि की बल्कि थानेदार शिवकुमार ने महेश झा उर्फ आशुतोष महाराज के परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों से संपर्क साधने में भी मदद की. गांव के लोगों ने बताया कि 1970 के आसपास छोटे बच्चे को छोड़कर जाने के बाद महेश झा (आशुतोष महाराज) की पत्नी ने धीरे-धीरे अपना मानसिक संतुलन खो दिया और अब वे चुपचाप ही रहती हैं. आशुतोष महाराज के भांजे प्रमोद झा ने बातचीत में पूरे परिवार का ब्योरा दिया. उन्होंने बताया, ‘महेश झा (आशुतोष महाराज) के पिता स्व. देवानंद झा की दो शादियां हुई थीं. दूसरी शादी से महेश झा (आशुतोष महाराज) सहित चार लड़के और दो लड़कियां पैदा हुई. उनके पिता और चाचा संस्कृत के विद्वान रहे जिन्हें राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की ओर से पुरस्कार भी दिया गया. महेश झा ने अपनी बड़ी बहन अन्नपूर्णा (प्रमोद की मां) के पास रहकर एमएलएस कॉलेज सरसोंपाही से अंग्रेजी से स्नातक किया है.’ परिवार के किसी सदस्य के साथ आशुतोष महाराज की फोटो के बारे में पूछने पर प्रमोद का कहना था कि ‘पुराने समय में लोग कहां फोटो लेते थे और कहां उन्हें संभालकर रखते थे’.

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राजनीतिक रसूख पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह अक्सर आशुतोष महाराज के शिविर में नजर आते थे

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, आशुतोष महाराज ने 1983 में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान नाम के पंथ की स्थापना की थी. अकेले पंजाब में इस पंथ के 36 केंद्र हैं. इसके अलावा 109 केंद्र और हैं, जिनमें से कुछ विदेश में भी हैं. 2014 में पंजाब सरकार की ओर से इस पंथ के नाम पर एक गांव बसाया गया जिसका नाम ‘दिव्य ग्राम’ है. गांव की जनसंख्या 525 है. इनमें से 264 मतदाता हैं, जिसमें से अधिकांश पंथ के साधु, साध्वी और सेवादार हैं. संस्थान की संपत्ति लगभग 1500 करोड़ रुपये की बताई जाती है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स पर गौर करें तो पता चलता है कि ‘समाधि’ की इस पूरी कहानी के पीछे संस्थान की संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर संस्थान में कई गुटों में विवाद है. स्थानीय अनुयायियों का गुट आशुतोष महाराज के एक पुराने शिष्य अमरजीत सिंह को संस्थान का प्रमुख बनाना चाहता है जो अरविंदानंद के नाम से जाने जाते हैं जबकि आदित्यानंद की अध्यक्षता में संचालित संस्थान की गवर्निंग बॉडी नरेंद्रानंद नाम के शिष्य के समर्थन में है. जोर आजमाइश की इस कवायद में सुविधानंद नाम के एक और शिष्य का गुट भी शामिल है.

हालांकि संस्थान के प्रवक्ता विशालानंद इस बात को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं, ‘मीडिया के कयास के मुताबिक अगर वाकई संस्थान में संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर कोई विवाद होता तो अब तक संस्था टूट गई होती, कई गुटों में बंट गई होती. संस्थान को पूरा अधिकार है कि वह आशुतोष महाराज के निर्देशानुसार उनकी समाधि की तब तक रक्षा करे जब तक कि वे अपने शरीर में लौट नहीं आते. इस क्रम में संस्थान कानून व्यवस्था या लोगों के स्वास्थ्य के लिए कोई समस्या पैदा नहीं कर रहा. ऐसे में किसी को भी हमारे अधिकार के पालन से कोई दिक्कत क्यों होनी चाहिए?’ इस मसले पर पंजाब सरकार की वकील रीता कोहली कहती हैं, ‘एक दिसंबर, 2014 को अंतिम संस्कार के लिए कोर्ट ने जो निर्देश दिया था, वह अपने आप में बिल्कुल भी व्यवहारिक नहीं था. कोर्ट ने एक समिति बनाई थी और किस प्रकार संस्कार किया जाए यह समिति को ही तय करना था. इसके अलावा जहां लाखों श्रद्धालु आशुतोष महाराज पर अपना अधिकार जता रहे हों वहां सरकार के लिए उनकी अनदेखी करना संभव नहीं था. संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अनुसार अगर किसी समूह की धार्मिक गतिविधि से कानून व्यवस्था को खतरा हो तभी सरकार हस्तक्षेप करती है और यहां धार्मिक गतिविधि में सरकारी हस्तक्षेप से श्रद्धालुओं द्वारा कानून व्यवस्था भंग कर दिए जाने का डर है. अब तो कोर्ट को भी यह लगने लगा है कि आस्था के मामले उसे तय नहीं करने चाहिए. जहां तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की बात है तो इस आधार पर तो देश में कोई मंदिर भी नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि पत्थरों को पूजे जाने में कौन सा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है?’

‘यह आस्था नहीं अंधविश्वास है. दो साल तक कोई समाधि नहीं हो सकती. आशुतोष महाराज का निधन हो चुका है. उनका अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए’

वहीं शिरोमणि अकाली दल की ओर से नूरमहल के विधायक गुरप्रताप वडाला कहते हैं ‘बेशक यह आशुतोष महाराज के शिष्यों की आस्था का मामला है लेकिन हम देखते आए हैं कि सभी पीर, महात्मा और संतों ने भी एक दिन शरीर छोड़ा है. इसके अलावा लेनिन और माओ जैसे कुछ गिने-चुने उदाहरण हमारे सामने हैं जिनमें मृत शरीर को संरक्षित करके रखा गया है लेकिन वे किसी धार्मिक कर्मकांड का सहारा नहीं लेते. धार्मिक विश्वास और व्यक्तिगत अधिकार के बीच में टकराव न होकर आपसी बातचीत से कोई रास्ता निकाला जाना चाहिए. अगर आशुतोष महाराज का परिवार है, बच्चे हैं तो उनका अधिकार बनता है.’

पूरे मसले पर पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो. आशुतोष कुमार सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहते हैं ‘पंजाब के सभी डेरे अच्छा खासा राजनीतिक प्रभाव रखते हैं और इस मामले पर वोट गंवाने के डर से सरकार कोई फैसला नहीं ले पा रही.’ ‘यथावत’ पत्रिका के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने समाधि के दावे पर सवालिया निशान लगाया है. उनका कहना है, ‘यह आशुतोष महाराज के शिष्यों की आस्था का मामला है. उनकी आस्था है कि वे वापस आएंगे लेकिन अगर ऐसा हुआ तो यह निसर्ग (प्रकृति) का एक नया नियम होगा. जहां तक समाधि का सवाल है तो समाधि में गए व्यक्ति के शरीर को कृत्रिम वातावरण में रखने की जरूरत नहीं पड़ती. विज्ञान के अनुसार परमहंस योगानंद के शरीर के मृत होने के बावजूद उस पर 20 दिन तक कोई प्रभाव नहीं पड़ा. इसी तरह श्री अरबिंदो घोष के मृत होने के बाद उनका शरीर 8 दिन बाद तक भी ठीक हालत में था. आशुतोष महाराज के बारे में तो मैं समझता हूं कि उनका देहांत हुआ है और मुझे नहीं लगता कि वे लौट कर आएंगे.’

वहीं अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के माधव बाजवा का कहना है, ‘यह आस्था नहीं बल्कि अंधविश्वास है. दो साल तक कोई समाधि नहीं हो सकती. निश्चित रूप से आशुतोष महाराज का निधन हो चुका है और उनका अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए. जब तक अंतिम संस्कार नहीं होता तब तक अनुयायियों में अंधश्रद्धा फैलती रहेगी. यह किसी भी तरह सही नहीं है.’ इसी समिति के साथ काम करने वाले मनोवैज्ञानिक डाॅ. हामिद दाभोलकर कहते हैं, ‘ऐसा देखने में आया है कि किसी की मौत के बाद उनसे गहरा भावात्मक लगाव रखने वाले उनकी मौत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते. लेकिन चिकित्सकीय रूप से मृत का मतलब ही है हृदय और मस्तिष्क सहित सभी अंगों की कोशिकाओं में खून का प्रवाह रुक गया है और वे मृत हो गई हैं जिनके फिर से जीवित होने की कोई संभावना नहीं है. महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा उन्मूलन विधेयक है जिसके आधार पर हम इस तरह के अंधश्रद्धा के मामलों का विरोध करते हैं. ऐसा कानून सारे देश में होना चाहिए ताकि आशुतोष महाराज जैसे मामले लोगों को गुमराह न कर सकें.’

जोशी मठ और द्वारकाधीश मठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने आशुतोष महाराज की समाधि के दावे को सिरे से नकार दिया है. उनका कहना है ‘यह सब सनातन धर्म और संन्यास की परंपरा के नाम पर लोगों को अंधविश्वास की ओर धकेलने की कोशिश है. वृहदारण्यक उपनिषद में ‘प्राण’ और ‘शरीर’ के संबंध की चर्चा है. समाधि में पंचभूत शरीर का क्षय जरूर होता है लेकिन ‘प्राण’ का संचार रहता है जिसके कारण पंचभूत शरीर सड़ता नहीं है. ऐसी अवस्था में शरीर कमजोर हो सकता है लेकिन सड़न नहीं होती. न ही सड़न से बचाने के लिए किसी कृत्रिम वातावरण की जरूरत होती.’

बहरहाल दिलीप झा ने आशुतोष महाराज के डीएनए टेस्ट के लिए जो याचिका दायर की है उस पर 24 फरवरी को सुनवाई होनी है. मौत के बाद सम्मानजनक अंतिम संस्कार हर व्यक्ति का अधिकार है. इस सबके बीच बड़ा सवाल यही है कि आस्था और धर्म की आड़ लेकर इस व्यक्तिगत अधिकार की अनदेखी कब तक होती रहेगी.