ऐसे ही कई उदाहरण बिहार की राजनीति में चर्चित दोनों जोड़ियों को लेकर मिलते हैं जिसमें वे एक-दूसरे से दांत-काटी दोस्ती वाला रिश्ता निभाते रहे हैं, एक दूसरे पर जान छिड़कते नजर आये हैं. लेकिन अब जबकि दोनों नेताओं के दलों में अलगाव हो चुका है तो बिहार में एक दूसरे को सबसे ज्यादा निशाने पर लेनेवाले यही दोनों नेता सामने आए हैं. हालांकि नीतीश कुमार अब भी सुशील मोदी को कम ही निशाने पर लेते हैं लेकिन जदयू-भाजपा अलगाव के बाद शायद ही कोई दिन ही ऐसा गुजरता है, जब सुशील मोदी नये-नये तर्कों से लैस होकर नीतीश पर निशाना नहीं साधते हो.
फिलहाल यह जोड़ी एक-दूसरे के विरोध में है और दोनों की पूरी उर्जा अगले साल बिहार में होनेवाले बिहार विधानसभा चुनाव के जरिये सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने में लगी हुई है. समय का फेर देखिए कि दोनों ही पूर्व दोस्तों की राह में रोड़े अटकने शुरू हो गए हैं. भाजपा में सुशील मोदी सर्वमान्य नेता नहीं हैं तो दूसरी ओर नीतीश कुमार के लिए उनके द्वारा ही चयनित मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी मुसीबत बढ़ाते जा रहे हैं. वैसे वर्षों तक एक-दूसरे के साथ रहने के बाद अब मजबूरी में बढ़ी दूरी और अलगाव के बावजूद सुशील मोदी और नीतीश कुमार के बारे में यही कहा जाता है कि दोनों एक दूसरे की पार्टी की बखिया तो रोज उधेड़ते है, राजनीतिक बददुआएं और अभिशाप भी देते हैं लेकिन दोनों दोस्त एक-दूसरे पर निशाना साधने में शालीनता बनाए रखते हैं. यही अनुमान लगाया जा रहा है कि कल को अगर लालू प्रसाद के साथ रहने और साथ मिलकर चुनाव लड़नेवाली शर्त में कभी कोई टूट-फूट होती है, गठबंधन टूटता है तो भाजपा में नीतीश कुमार का स्वागत करने के लिए उनका एक दोस्त हमेशा तैयार है. सुशील मोदी तो गाहे-बगाहे नीतीश कुमार के उस बयान की चर्चा मीडिया में करते रहते हैं जिसमें नीतीश कुमार कहते रहते थे कि जो भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा, उसके साथ हो जाएंगे. सुशील मोदी पूछते हैं बिहार को विशेष दर्जा मिल जाने के बाद क्या नीतीश कुमार फिर से भाजपा से यारी कर लेंगे? नीतीश कुमार फिलहाल इन अटकलों पर चुप्पी साधे हुए हैं. माननेवाले यह मानकर चलते हैं कि जब एनसीपी जैसी पार्टियां भाजपा के शरणागत होने को तैयार हैं तो फिर जदयू से क्या बैर हो सकता है, नीतीश कुमार से तो भाजपा का 17 साल लंबा संबंध रहा है.