एक लव जेहाद चाहिए

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इलस्ट्रेशनः तहलका आका्इव

इन दिनों कठमुल्ला ताकतों ने डरने और डराने के लिए, और फिर हमला करने के लिए एक नए शब्द का सहारा लिया है- लव जेहाद. सबसे पहले शायद केरल से यह शब्द चला, और फिर जांच से पता चला कि यह शब्द जितना हवा में है, उतना हकीकत में नहीं. केरल सरकार ने बाकायदा अदालत में कहा कि उसे इस तथाकथित लव जेहाद का एक भी मामला नहीं मिला.

अब अचानक उत्तर प्रदेश से लेकर झारखंड तक में यह शब्द नई गूंज लेकर फिजाओं में तैर रहा है. यह शुरुआत इधर तब हुई जब मेरठ की एक लड़की ने आरोप लगाया कि उसे अगवा करके मदरसों में रखा गया, उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ, उसका ऑपरेशन कराया गया, उस पर धर्म बदलने का दबाव था और फिर उसे सऊदी अरब भेजने की तैयारी थी. माहौल में अचानक सांप्रदायिक तनाव पैदा कर सकने वाली ताकत से लैस इन आरोपों की पोल पट्टी जब धीरे-धीरे खुलने लगी और दिखने लगा कि यह मामला दरअसल एक प्रेम प्रसंग का है जिसे छुपाने के लिए इतने सारे झूठ बोले गए, तब अचानक कठमुल्ला भाषा ने इसे लव जेहाद का नाम दिया. उनके मुताबिक इस लव जेहाद में मुस्लिम लड़के हिंदू लड़कियों को फुसलाते हैं और फिर शादी करके उनका धर्म परिवर्तन कराते हैं. इन आरोपों को असली गरमी तब मिली जब रांची की एक राष्ट्रीय निशानेबाज लड़की तारा शाहदेव का मामला सामने आया. तारा ने बताया कि रकीबुल हसन नाम के एक शख्स ने उसे झांसा देते हुए अपना नाम रंजीत सिंह कोहली बताया और फिर उससे शादी कर ली. यह बात बाद में खुली कि वह मुस्लिम है और उसके बाद उसने धर्म परिवर्तन का दबाव बनाना शुरू किया- तारा के साथ बुरी तरह मारपीट भी की. अब इस मामले की जांच पुलिस कर रही है.

हालांकि यह बात कुछ अचरज में डालती है कि जिस भारतीय समाज में शादी से पहले पूरे खानदान का पता लगाने का रिवाज है, वहां एक शख्स इस तरह का झांसा देने में कैसे कामयाब रहा. लेकिन इस शक को मुल्तवी करते हुए तारा शाहदेव के आरोप को बिल्कुल सही भी मानें तो भी यह मामला एक लड़की के साथ छल का, उसके शारीरिक और यौन उत्पीड़न का है जिसके लिए रकीबुल हसन को वाकई सजा मिलनी चाहिए. लेकिन इंसाफ के इस जरूरी तकाजे को भाजपा और संघ परिवार ने अपनी राजनीतिक मुहिम में बदल डाला और जोर-जबरदस्ती रांची बंद करवाई. यह मामला उनके लिए तथाकथित लव जेहाद की ऐसी नायाब मिसाल है जिसके आधार पर भावनाएं भड़काई जा सकती हैं और झारखंड में इसी साल होने वाले चुनावों से पहले एक उपयोगी ध्रुवीकरण किया जा सकता है.

लव जेहाद का यह शिगूफा एक थकी और चिढ़ी हुई पितृसत्तात्मक व्यवस्था अपने को बचाए रखने की आखिरी कोशिश के तौर पर छोड़ रही है

लेकिन तथाकथित लव जेहाद के इस तथाकथित विरोध से किसे डरना चाहिए? क्या अल्पसंख्यकों को? शायद कुछ हद तक, इसलिए कि इससे पैदा हुए तनाव का असर उन्हें भुगतना पड़ सकता है. लेकिन इस मानसिकता के असली शिकार वे लड़के-लड़कियां होंगे जो अपनी जाति, अपने धर्म भूल कर एक-दूसरे से प्रेम और शादी करने की जुर्रत करते रहे हैं और इसके लिए कई तरह की सजाएं पहले से झेलते रहे हैं. कहीं उन्हें खाप वालों के हाथ मरना पड़ता है, कहीं दूसरी पंचायतों के हाथ. जहां मरना नहीं पड़ता, वहां कई दूसरी सजाएं होती हैं. प्रेम करने वाली लड़कियां तो सीधे बदचलन मान ली जाती हैं और सबसे पहले उनके परिवार उनका बहिष्कार करते हैं, उन्हें संपत्ति तो वैसे भी नहीं देते, मामूली संरक्षण से भी वंचित कर देते हैं.

ऐसे भयानक प्रेम विरोधी माहौल में, जब अपने कल्पित लव जेहाद के खिलाफ जेहाद छेड़ने वाले डंडा लेकर निकलेंगे तो इसकी सबसे ज्यादा मार उन लड़कियों पर पड़ेगी जो घर की दहलीज लांघ कर निकलने की कोशिश करती हैं. अभी से इन तथाकथित जेहादियों का यह मशविरा शुरू हो गया है कि अपनी बहनों-बेटियों को संभालिए, उन पर नजर रखिए. जाहिर है,  इससे बेकार और बेमकसद भटकने वाले बेरोजगार भाइयों और रिश्तेदारों को एक काम और मकसद मिल गया है जिसे वे अपनी पूरी प्रतिभा के साथ अंजाम देंगे. लड़के पिटेंगे, लड़कियां चोटी पकड़ कर घर पर लाई जाएंगी, अगर नहीं मानेंगी तो उन्हें भूखा रखा जाएगा और इस पर भी नहीं मानेंगी तो ऐसी ‘कुलच्छनियों’ को मार दिया जाएगा.

जाहिर है, लव जेहाद का यह शिगूफा भी एक थकी और चिढ़ी हुई पितृसत्तात्मक व्यवस्था अपने को बचाए रखने की आखिरी कोशिश के तौर पर छोड़ रही है. उसे मालूम है, वह तभी बची रहेगी जब समाज में पहले से चले आ रहे पूर्वाग्रह बचे रहेंगे, सांप्रदायिकता का भूत बचा रहेगा और लड़कियों में अच्छी लड़की बने रहने का डर बचा रहेगा. लेकिन दुर्भाग्य से लगता नहीं कि अब वह व्यवस्था इतिहास का चक्का वापस उलटी तरफ मोड़ पाएगी. देश के हजारों स्कूलों-कॉलेजों में पढ़ने वाले लाखों-करोड़ों लड़के-लड़कियां अंततः धीरे-धीरे अपने जीवन के फैसले करना सीख रहे हैं. बेशक, उनके बीच भी कई तरह की कट्टरताएं मौजूद हैं, ऊंच-नीच के फर्क भी हैं और अलग-अलग वर्गों का फासला भी है, लेकिन इन सबके बीच एक बात साझा है- अगर उन्हें कोई चीज बदल और जोड़ रही है तो वे किताबों में दिए जाने वाले आदर्शवादी वाक्य नहीं हैं, पिताओं की नसीहतें नहीं हैं, बल्कि वह प्रेम है जो बता रहा है कि सब बराबर हैं और एक जैसे हैं. इस ढंग से सोचें तो हिंदुस्तान को वाकई एक लव जेहाद की जरूरत है- मोहब्बत के ऐसे चलन की, जो कई तरह की बाड़ेबंदियों को अंगूठा दिखा सके और तमाम मुश्किलों के बीच और बावजूद अपना घर बसा सके. निस्संदेह ऐसी दुनिया आज से ज्यादा न्यायप्रिय और इसलिए सुंदर भी होगी.

लेकिन यह बाद का सपना है, ताजा हकीकत और जरूरत यह है कि लव जेहाद के झूठे प्रचार की कलई खोली जाए.