विवेक देसाई
स्वतंत्र फोटोग्राफर हैं. गुजरात में रहते हैं और अहमदाबाद में स्थित नवजीवन ट्रस्ट के कार्यकारी ट्रस्टी हैं.
गुजरात में हर साल रण उत्सव मनाते हैं. चांदनी रात में यह कार्यक्रम होता है. यह बॉर्डर वाला इलाका है. मैं 2007 से इस उत्सव का ऑफीशियल फोटोग्राफर हूं. यह फोटो साल 2011 के रण उत्सव के दौरान की है. कार्यक्रम चल रहा था तभी जिलाधिकारी ने मुझे बताया कि मोदी जी बुला रहे हैं. जब मैं उनके पास पहुंचा तो उन्होंने मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया. थोड़ी देर में कार्यक्रम खत्म हुआ और सारे लोग अपने-अपने टेंट में चले गए. अब वहां केवल मोदी जी, मैं और उनके सुरक्षाकर्मी थे. रात के दस बज रहे थे. मोदी जी ने मुझे अपने साथ लिया और हम कार्यक्रम वाली जगह से करीब आधा किलोमीटर और अंदर आ गए. सुरक्षाकर्मियों ने आपत्ति दर्ज की लेकिन उन्होंने उसे नजरअंदाज कर दिया. सामने दूर तक फैले सफेद बालू के टीले थे जो चांदनी रात में चमक रहे थे. मोदी जी ने मुझसे कहा कि मैं यहां उनकी तस्वीर निकालूं. मुझे चिंता हुई कि कम रौशनी की वजह मुझे लॉंग एक्सपोजर चाहिए और इस दौरान मोदी जी को बिल्कुल स्थिर रहना पड़ेगा. मैं यह उन्हें बता पाता उससे पहले ही उन्होंने कहा- चिंता मत करो. मैं सांस रोके खड़ा रहूंगा.
मुझे इस बात का आश्चर्य हुआ कि फोटो उतरवाने की इच्छा के अलावा उन्हें फोटोग्राफी की बारीकियों की भी बहुत जानकारी है.
शैलेंद्र पाण्डेय
नेशनल फोटो एडिटर, राजस्थान पत्रिका
जब नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री पहली बार संसद पहुंचे तो उन्होंने संसद की चौखट को दंडवत प्रणाम करके पूरे देश को चौंका दिया. यह उसी क्षण की तस्वीर है. इसका परिणाम यह भी हुआ कि अगले दिन के सभी अखबारों में उनकी यह तस्वीर प्रमुखता से छपी.
मोदी जी के चेहरे पर हाव-भाव आसानी से दिख जाते हैं. जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस मामले में थोड़े कंजूस थे.
प्रधानमंत्री के आसपास रहने वाले सुरक्षाकर्मी फोटोग्राफर्स के फ्रेम में नहीं आते. ऐसा लगता है कि उन्हें इसके लिए निर्देश दिया गया है. वहीं गांधी परिवार के नेताओं के आसपास रहने वाले सुरक्षाकर्मी फोटोग्राफर्स की मौजूदगी को लेकर लापरवाह रहते हैं.
रवि एस सहनी
स्वतंत्र फोटो पत्रकार
यह तस्वीर लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान की है. नरेंद्र मोदी भाषण देते वक्त बीच में कुछ क्षण के लिए मौन होकर अपने हाथ की उंगलियों को जिस प्रकार घुमाते हैं, अक्सर उनकी यह भाव- भंगिमा अटल बिहारी वाजपेयी की याद दिलाती है. ऐसा जान पड़ता है कि भाषण देते वक्त मोदी अपने आप को अटल विहारी वाजपेयी के आसपास देखते हैं. इस तस्वीर में मोदी बोल रहे हैं. पूरी रौ में बोल रहे हैं लेकिन उनकी आंखे बंद हैं. आंखें बंद होने की वजह से इस तस्वीर को एक ‘खराब फ्रेम’ भी माना जा सकता था. लेकिन मैं इस फोटो को कुछ ऐसे देखता हूं- पूरे चुनाव प्रचार के दौरान, प्रधानमंत्री तक की अपनी यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी ने अपनी आलोचनाओं की तरफ से आंखें बंद रखीं लेकिन इसी दौरान वे मीडिया और विपक्षी पार्टी पर एक के बाद एक कटाक्ष करते रहे. इस फोटो को गौर से देखने पर ऐसा भी लगता है कि मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी के खास अंदाज में अपने विरोधियों से कह रहे हों- ये अच्छी बात नहीं है.
विजय पांडे
फोटो संपादक, तहलका
पिछले साल 15 सितंबर को हरियाणा के रेवाड़ी में नरेंद्र मोदी की एक सभा हुई थी. यह उसी सभा की तस्वीर है. पूर्व सैनिकों के सम्मान में होनेवाली इस सभा को नरेंद्र मोदी की पहली चुनावी सभा भी कह सकते हैं. मैदान में बहुत भीड़ थी. जैसे ही मोदी मंच पर आए, लोग काबू से बाहर हो गए. हमारे पीछे से लोगों ने बैरिकेड तोड़ दिया. एक बार तो ऐसा लगा कि आज कुचले गए. लेकिन मंच से मोदी जी के बोलने के बाद स्थिति संभल गई. उनके लिए लोगों का पागलपन उस दिन जो देखा और भोगा वह आज भी महसूस होता है.
MODI ji Great person h..
Mujhe bhi tahalka m Photographer banna h..i love photography… plzz mail me
Modiji is great.
माननीय के मंचीय अभिनय से तो उनमें रची बसी नाटकियता का पता चलता था। आज पता चला कि ये तो पेशेवर अदाकारों के भी कान काटते हैं।
अच्छी स्टोरी। 🙂