‘लोकतांत्रिक मूल्यों पर भारत के मुसलमानों का विश्वास कमजोर है’

सभी धर्म उदार, मानवीय और सहिष्णु होते हैं. लेकिन समय-समय पर धर्म के आधार पर राजनीति करने वाले तत्व या धर्म के आधार पर सत्ता में बने रहने या सत्ता प्राप्त करने का प्रयास करनेवाले धर्म को आक्रामक बना देते हैं. धर्म की आड़ में राजनीति होती है. यदि फ्रांस या संसार के अन्य भागों में मुसलिम आतंकवादियों की हिंसक गतिविधियों के आधार पर इस्लाम को हिंसक धर्म मान लिया जाए , तो प्रश्न यह उठ खड़ा होगा कि इस्लाम के अतिरिक्त जिन धर्मों की आड़ में राजनीतिक स्वार्थ पूरे करने के लिए हिंसा का सहारा लिया गया क्या वे हिंसक धर्म नहीं कहे जाएंगे?

इतिहास बताता है कि बौद्ध धर्म के माननेवाले दूसरे धर्मों और विश्वासों के प्रति उदार और सहिष्णु नहीं थे. सम्राट अशोक (304-232 ई.पू.) ने 18,000 जैनियों की हत्या करा दी थी क्योंकि किसी ने एक चित्र बनाया था जिसमें महात्मा बुद्ध को महावीर के चरणों को स्पर्श करते दिखाया गया था. क्या इस आधार पर बौद्ध धर्म को हिंसक धर्म कहा जा सकता है? या कालांतर बौद्ध धर्म के माननेवालों पर अत्याचार करनेवालों के धर्म को हिंसक धर्म कहा जा सकता है?

पिछले वर्षों के दौरान म्यांमार और श्रीलंका में मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध की गयी हिंसा में लगभग 250 मुसलमान मारे गये थे. यह हिंसा बौद्धों ने की थी. क्या इस आधार पर कहा जाए कि बौद्ध धर्म हिंसक धर्म है. इसका सीधा अभिप्राय है कि धर्म हिंसक या अहिंसक नहीं होता.

धर्मों का उदय प्राय: समाज और देश की भलाई और मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए होता है. धर्म के आधार पर लोग संगठित होते हैं. संगठन सत्ता में आने के लिए राजनीति में प्रवेश करते हैं. इस तरह धर्म राजनीति का हिस्सा बन जाते हैं. फिर सत्ता में बने रहने के लिए ये संगठन वही करते हैं, जो सत्ताएं करती हैं. हर प्रकार के नैतिक और अनैतिक तरीके से सत्ता में बने रहना.

इस्लामी दुनिया में फैली हिंसा का कोई संबंध इस्लाम धर्म से नहीं, बल्कि मुसलिम धर्म की राजनीति और विश्व राजनीति से है. इसमें क्या संदेह हो सकता है कि विश्व की बड़ी शक्तियों ने अपना प्रभुत्व बनाये रखने और दूसरे देशों के संसाधनों पर अधिकार जमाये रखने के लिए धार्मिक कट्टरता को भड़काया है. तालिबान को एक समय में दी जानेवाली अमेरिकी सहायता इसका उदाहरण है.

पेरिस से लेकर पेशावर तक फैली हिंसा के कारणों पर बात करना जरूरी है. पाकिस्तान की हिंसा मुख्य रूप से दो मुस्लिम समुदायों के आपसी विवाद की पैदाइश है. इनमें से एक समुदाय को एक बड़े मुस्लिम देश का समर्थन प्राप्त है और दूसरे को एक अन्य देश से पूरी मदद मिलती है. यह प्रभुत्व की लड़ाई है, जिसमें दो मुस्लिम पंथ एक-दूसरे के सामने खड़े हैं. इनमें से एक देश को बड़े पूंजीवादी देशों का समर्थन प्राप्त है. पाकिस्तान में दूसरे प्रकार की धार्मिक हिंसा का आधार भी इस्लाम के विभिन्न पंथों के बीच प्रभुत्व की लड़ाई ही है.

इस्लामी दुनिया में फैली हिंसा का कोई संबंध इस्लाम धर्म से नहीं बल्कि मुसलिम धर्म की राजनीति और विश्व राजनीति से है. विश्व की बड़ी शक्तियों ने धार्मिक कट्टरता को भड़काया है

आतंकी संगठन हथियार और पैसा कहां से पाते हैं? तालिबान या दूसरे आतंकी वे हथियार नहीं बना सकते, जिनका वे इस्तेमाल करते हैं. वे हथियार विकसित और धनवान देशों में ही बनते हैं. सवाल यह है कि आधुनिक हथियार आतंकियों तक कैसे पहुंच जाते हैं? आतंकी कहां से ऐसे साधन जुटाते हैं कि महंगे हथियार खरीद सकें? आतंकियों को कौन पैसा देता है? गरीब देशों के पास इतना धन नहीं है और संसार के सभी धनवान मुस्लिम देश अमेरिका के प्रभाव में हैं. बड़े मुसलिम देशों का व्यापार, मुख्य रूप से तेल का व्यापार अमेरिकी-यूरोपीय कंपनियों के पास हैं. अरब क्षेत्र के सभी बड़े धनवान अमेरिकी गठबंधन का हिस्सा हैं. यही देश आतंकी संगठनों को धन देते हैं तो आतंकवाद को अधिक गहराई से समझने की आवश्यकता है.

आधुनिक विचारों और शासन पद्धति से मुसलमान बहुत ज्यादा परिचित नहीं हैं. मेरा मानना है कि विश्व के मुसलमान और विशेष रूप से भारत-पाक के सामान्य मुसलमान ज्यादा पढ़े-लिखे या आधुनिक विचारों से संपन्न नहीं हैं. लोकतांत्रिक विचारों पर उनका विश्वास नहीं है, लेकिन वे हिंसक और आतंकी नहीं हैं. लोकतांत्रिक विचारों पर उनका विश्वास होना चाहिए, लेकिन वे सामंती विचारों को अधिक स्वीकार करते हैं.

भारत में इस समय एक दक्षिणपंथी सरकार है, लेकिन यह समझदार और चतुर सरकार है. भारत में बहुत प्रभावशाली और सटीक तरीके से अल्पसंख्यकों के प्रति विरोध और तिरस्कार की भावना फैलाई जा रही है. इसका पता भी मुसलमानों को नहीं चल रहा है. समय आने पर यह दूषित प्रचार वैसे ही काम करेगा, जैसा गुजरात में हुआ था. मुसलमान भारतीय जनतंत्र में अपना स्थान बना पाने में सक्षम नहीं हैं. सुदूर इराक और सीरिया की घटनाओं से भारतीय मुसलमान इसलिए जुड़ रहे हैं क्योंकि वे अपने यथार्थ से परिचित नहीं हैं. भावुक और अनपढ़ हैं. खिलाफत आंदोलन जैसे विदेशी आंदोलनों ने उन्हें सुदूर मुस्लिम देशों और समस्याओं से जोड़ने का काम किया है.

भारतीय मुसलमानों में समाज सुधार आंदोलन सर सैयद अहमद के शिक्षा आंदोलन के बाद आगे नहीं बढ़ सका. हालांकि यह बात उत्तर भारतीय मुसलमानों के संदर्भ में ही कही जा सकती है. दक्षिण भारतीय मुसलमान बिल्कुल भिन्न हैं. उत्तर भारत के मुसलमान पाकिस्तान बन जाने और पढ़े-लिखे मुसलमानों के पाकिस्तान चले जाने के बाद मध्यवर्ग विहीन हो गए थे. अब जो मध्यवर्ग बना है वह स्वार्थी, धर्मांध और विभाजित है. भारत में मुसलमानों के लिए यह बहुत कठिन समय है. अपनी अज्ञानता के कारण वे उसे पहचान नहीं पा रहे हैं.

भारतीय मुसलमान देश के बड़े सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों से जुड़कर ही आगे बढ़ सकते हैं. अलगाव, कट्टरता और अशिक्षा उनका सबसे बड़ा दुश्मन है.