प्रोफेसर अखतरुल वसी, पद्मश्री
वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाने के लिए छिड़ी बहस में तमाम धार्मिक विद्वान और उपदेशक भी इसके विरोध में खड़े नजर आ रहे हैं. जामिया मिलिया इस्लामिया में ‘इस्लामिक स्टडीज’ पढ़ाने वाले पद्मश्री अख्तरुल वसी के मुताबिक वैवाहिक बलात्कार को अपराध करार देने से शादी का स्वरूप ही नष्ट हो जाएगा. वे कहते हैं, ‘यौन सुख या शारीरिक सुख लेना शादी का एक सहज हिस्सा है. मियां-बीवी दोनों को ये समझना चाहिए.’ दूसरी तरफ वे ये भी कहने से नहीं चूकते कि इस्लाम किसी भी प्रकार की जबरदस्ती या जबरन संबंध बनाने का समर्थक नहीं है.
जाने-माने इस्लामिक विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन खान एक विपरीत दृष्टिकोण रखते हैं. उनके मुताबिक, ‘इस्लाम के अनुसार ‘बलात्कार’ और ‘वैवाहिक बलात्कार’ में कोई फर्क नहीं है. इसलिए दोनों की सजा एक ही होनी चाहिए.’
सीरियन ऑर्थोडॉक्स चर्चेस (उत्तर भारत) के अध्यक्ष बिशप पॉलस मार डिमिट्रिअस ने वैवाहिक बलात्कार पर हो रही विवेचना में अपनी राय साझा की. इसे अपनी निजी राय बताते हुए वे कहते हैं, ‘वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाना उतना असरदार नहीं होगा जितना ये सुनने या देखने में लग रहा है. यह एक समस्या को तो खत्म कर देगा मगर दूसरी कई समस्याओं को जन्म देगा. हम लोग विवाह की पवित्रता में विश्वास रखते हैं और इसमें साथी से जबरदस्ती बनाए गए संबंधों के लिए कोई जगह नहीं है.’ वहीं अगर सैद्धांतिक तौर पर देखा-परखा जाए तो ये बात देवदूत पॉल की उस शिक्षा के बिलकुल विपरीत है, जिसमें वे कहते हैं, ‘एक पत्नी की देह पर उसका कोई अधिकार न होकर उसके पति का अधिकार होता है, इसी प्रकार पति के शरीर पर उसका नहीं बल्कि पत्नी का अधिकार होता है.’ ये वाक्य बाइबल की ‘बुक वन कोरिंथिअंस (7:4)’ में लिखा हुआ है, जिसका सीधा अर्थ यह है कि विवाह हो जाने के बाद पति-पत्नी का एक दूसरे की देह पर सामान रूप से पूर्ण अधिकार होता.
इस मुद्दे पर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के मीडिया सलाहकार परमिंदर सिंह भी सरकार के साथ हैं. उनका कहना है, ‘पश्चिमी परंपराओं को भारतीय परंपराओं में नहीं मिलाना चाहिए क्योंकि हिंदुस्तानी महिलाएं अपने पति या उसके किए गए किसी काम पर उंगली नहीं उठातीं.’ वे साफ शब्दों में कहते हैं, ‘पत्नी की मर्जी के बिना पति द्वारा बनाए गए शारीरिक संबंधों को हिंदुस्तान में बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए. हम इसका विरोध करते हैं.’ दोनों पक्षों को सुनने-समझने के बाद यही लगता है कि वैवाहिक बलात्कार का समाधान या तो अलगाव है या शादी का खारिज होना जिसके अपने प्रभाव और नतीजे हो सकते हैं. इन्हीं नतीजों को ध्यान में रखते हुए भारत में परिवार न्यायालय के साथ मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत मामलों में दोनों (मियां-बीवी) को पहले सलाह देते हैं. अगर पति फिर भी नहीं सुधरते या बीवी के प्रति अपना व्यवहार नहीं बदलते तब तलाक ही एकमात्र उपाय रह जाता है.
‘लोग विवाह की पवित्रता में विश्वास रखते हैं और इसमें साथी से जबरदस्ती बनाए गए संबंधों के लिए कोई जगह नहीं है.’
एक तथ्य ये भी है कि महिलाएं ऐसे मामलों में उतनी बेबस नहीं होतीं जितनी दिखती हैं. मतलब उन्हें कई तरह के कानूनी अधिकार मिले हुए हैं. वे घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत मजिस्ट्रेट से मदद मांग सकती हैं. वहीं आईपीसी के प्रावधानों के तहत पत्नियां जो पति से अलग हो चुकी हैं, उनके खिलाफ बलात्कार की शिकायत कर सकती हैं. इस अधिनियम में महिलाओं को दोहरा लाभ मिलता है. पहली, वे चाहें तो उसी घर में पति या फिर लिव-इन पार्टनर के साथ रह सकती हैं और दूसरी, वह व्यक्ति अपनी शारीरिक जरूरतें उसके ऊपर थोप नहीं सकता. शिक्षाविद मीनाक्षी मुखर्जी बताती हैं, ‘अग्रणी माने जाने वाले पश्चिमी देशों में भी महिलाएं वैवाहिक बलात्कार की शिकायतें दर्ज करवाती हैं मगर ठोस नतीजा तभी मिलता है जब वे तलाक ले लेती हैं. भारतीय परिप्रेक्ष्य में औरतों के आर्थिक रूप से स्वतंत्र न होने के कारण बात तलाक तक पहुंचती ही नहीं.’
इन सब के बीच एक सच यह भी है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए में साफ-साफ दर्ज है कि हर नागरिक का मौलिक कर्तव्य है कि अगर वो किसी भी महिला/महिलाओं के प्रति कोई अपमानजनक या घृणित कृत्य होते देख रहा है तो उसे उस बात का पुरजोर विरोध करना चाहिए. इन सबके बीच ये बात भी भुला दी गई है कि वैवाहिक बलात्कार मात्र भावातिरेक में किया गया अपराध ही नहीं है बल्कि सामान्य मानवधिकारों का भी गंभीर उल्लंघन है. अनिल कौल कहते हैं, ‘अगर पत्नी द्वारा लगाए गए वैवाहिक बलात्कार के आरोप पति पर सिद्ध हो जाते हैं तो उसे इस बिना पर तलाक लेने का अधिकार मिलना चाहिए. उसी तरह अगर ये आरोप किसी निजी स्वार्थ या ओछेपन की भावना से लगाए गए हों तो इनकी सजा उसी आधार पर निर्धारित होनी चाहिए.’