फिलहाल राज्य सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए अलग-अलग पदों के हिसाब से अलग-अलग इनाम घोषित कर रखा है. यदि सेंट्रल कमेटी का सचिव आत्मसमर्पण करता है तो इनाम की राशि 12 लाख रुपये होती है. वहीं सेंट्रल मिलेट्री कमीशन प्रमुख के लिए 10 लाख, पोलित ब्यूरो सदस्य के लिए सात लाख, स्टेट कमेटी सदस्य के लिए तीन लाख, पब्लिकेशन कमेटी के सदस्य के लिए दो लाख, एरिया कमेटी सचिव के लिए 1.5 लाख, अन्य एरिया कमेटी सचिव के लिए 1 लाख, एलओसी कमांडर को समर्पण पर 50 हजार रुपये की राशि दी जाती है. छत्तीसगढ़ में वर्ष 2004 के बाद मुआवजा राशि नहीं बढ़ाई गई है. इस बारे में प्रदेश के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा कहते हैं, ‘नक्सलवाद राष्ट्रीय मुद्दा है. इस पर व्यापकता से विचार किए जाने की जरूरत है. दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि माओवादी हिंसा की काट विकास है. ऐसे में नक्सल प्रभावित सभी राज्यों को मिल बैठकर इस समस्या पर समग्र नीति बनाने की जरुरत है. जिसकी दिशा में काम शुरू हो चुका है. अलग-अलग राज्यों में माओवादियों को लेकर अलग-अलग नीति का होना भी परेशानी को बढ़ाने का ही काम कर रहा है. इसलिए केंद्र में अपनी सरकार आने पर हमारी कोशिश होगी कि नक्सलवाद को लेकर देश में एकीकृत नीति बनाने की दिशा में पहल हो.’
स्वामी अग्निवेश की राय इस बारे में अलहदा है. वे मानते हैं, ‘ यदि संविधान में उल्लेखित अधिकारों को सही तरीके से आदिवासियों तक पहुंचा दिया जाए तो इस समस्या का हल बगैर किसी कसरत के निकल आएगा. यदि नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति चाहिए तो सबसे पहले जेलों में बंद निरपराध आदिवासियों को छोड़ना होगा. दूसरा यह कि पांचवी और छटी अनुसूची को लेकर जल्द निर्णय लेना होगा. ग्राम सभाओं को अधिकार देने होंगे. लेकिन दुर्भाग्य से छत्तीसगढ़ सरकार ने ऐसे कई मौके गवाएं हैं. जब वह आगे बढ़कर इस समस्या का जड़ से समाधान कर सकती थी. फिलहाल भी भाजपा की ऐसी कोई इच्छाशक्ति नहीं दिखती.’

इस वक्त छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के आरोप में बंद कुछ लोगों की रिहाई की दिशा में भी तेजी दिखाई देने लगी है. नक्सलियों की रिहाई के लिए बनाई गई उच्च स्तरीय समिति की अध्यक्ष निर्मला बुच बताती हैं, ‘ हमने करीब 150 सिफारिशें की हैं. इनमें जमानत के वक्त राज्य सरकार किसी प्रकार की आपत्ति नहीं करेगी. हमारी समिति की सिफारिश के कारण कई नक्सलियों को जमानत भी मिली है. हमने नक्सलियों के सभी मामलों की समीक्षा की है. हम लगातार बैठक कर रहे हैं. चुनाव शुरु होने के पहले भी हमने बैठक ली थी. चुनाव खत्म होते ही हमारी एक बैठक होनी है.’ निर्मला बुच मध्य प्रदेश की मुख्य सचिव भी रह चुकी हैं. वर्ष 2012 में नक्सलियों ने तत्कालीन सुकमा कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन को अगवा कर लिया था. उन्हें छोड़ने के बदले नक्सलियों ने जेलों में बंद अपने साथियों की रिहाई की शर्त रखी थी. इसी के जवाब में बुच की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति बनाई गई थी. इसमें राज्य के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी को सदस्य बनाया गया था. निर्मला बुच सरकार की तरफ से नक्सलियों के मध्यस्थों से बात भी कर रही थीं.
इस समय राज्य की जेलों में (जिनमें पांच केंद्रीय कारागार भी शामिल हैं) तकरीबन 1400 ऐसे आरोपित या सजायाफ्ता बंदी हैं, जिनपर नक्सली होने या नक्सली समर्थक होने का आरोप है. जेल सूत्रों की मानें तो इनमें कट्टर नक्सली कम, जन मिलिशिया और संघम सदस्य ज्यादा हैं. आंकड़ों पर नजर डालें तो जगदलपुर जेल में नक्सली मामलों के 332 विचाराधीन कैदी बंद हैं. साथ ही यहां 25 सजायाफ्ता कैदी भी रखे गए हैं. दंतेवाड़ा जेल में नक्सली मामलों के करीब 350 विचाराधीन कैदी बंद हैं. कांकेर जेल में नक्सली मामलों के करीब 250 और दुर्ग जेल में तकरीबन 100 विचाराधीन कैदी बंद हैं. अंबिकापुर जेल में लगभग 100 और रायपुर में 150 कैदी हैं, जो नक्सली होने के आरोप में बंद हैं.
बहरहाल एनडीए की सरकार केंद्र में बने या न बने छत्तीसगढ़ में इस बहाने शुरू हुई कवायदों से यह जरूर स्पष्ट हो रहा है कि नक्सलवाद पर बनी सरकारी नीति आनेवाले समय में बड़े बदलाव से गुजरने वाली है.