2. कि हमारी तो सारी जांचें ठीक निकली हैं सो अब हमें कुछ भी नहीं हो सकता :
बहुत से मरीज अपनी जांच रिपोर्टों को गर्व से तमगे की भांति लिए घूमते हैं. उन्हें तब बड़ा धक्का पहुंचता है जब ‘सब ठीक’ रहते हुए भी किसी बड़ी बीमारी की चपेट में आ जाते हैं. तब उन्हें जांच रिपोर्टों की सत्यता पर भी शक होता है. इतनी बढ़िया रिपोर्टें थीं, फिर कैसे? वे पूछते हैं.
याद रखें कि हर जांच रिपोर्ट की सेंसिटिविटी तथा स्पेसिफिसिटी होती है. कोई भी जांच सौ प्रतिशत पूरी नहीं होती. इसे मरीज के हाल से जोड़कर ही समझा जाता है. उदाहरण के लिए जिस टीएमटी जांच के ठीक निकल आने पर हम खुश होकर सोचते हैं कि इसका मतलब है कि हमारा दिल एकदम बढ़िया है, उसकी भी अपनी सीमा है. मान लें कि यदि दिल की एक ही नली बंद हो रही हो तो हार्ट अटैक तो आगे पीछे आएगा पर टीएमटी की जांच लगभग साठ प्रतिशत ऐसे केसों में ठीक ही बताती रहेगी. मेरी अपनी प्रैक्टिस में मैंने ऐसा देखा है कि जिसका टीएमटी मैंने पंद्रह दिन पूर्व नार्मल (निगेटिव) बताया था, वही हार्ट अटैक से भर्ती हो गया. ऐसे लोग यही शिकायत करते हैं कि जब जांच में सब ठीक था तो फिर ऐसा कैसे हुआ? जवाब यह कि कोई भी जांच प्राय: सौ प्रतिशत सेंसिटिव नहीं होती. ईसीजी की जांच नार्मल बताकर इमर्जेंसी से घर वापस भेज दिया था पर दो घंटे बाद ही हार्ट अटैक हो गया क्योंकि शायद डॉक्टर को भी यह सीमा नहीं पता थी कि ईसीजी लगभग 40 प्रतिशत केस में शुरू में नार्मल हो सकता है.
‘हमें दवा की सीमा समझनी चाहिए और उचित खान-पान, व्यायाम आदि द्वारा शरीर मजबूत रखने की कोशिश करनी चाहिए’
फिर तो मर गए सा’ब? जब जांच पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता तो आदमी कहां जाएं? इसका उत्तर यही है कि हर जांच डॉक्टर को निर्णय लेने में सहायता के लिए बनी है. एक अच्छा डॉक्टर कभी भी रिपोर्ट का इलाज नहीं करता है. वह हर जांच को मरीज की बीमारी से जोड़कर ही फिर तय करता है कि जांच रिपोर्ट को कितना महत्व दिया जाए. एक अच्छा डॉक्टर रिपोर्टों की सीमा को समझता है. सो हर रिपोर्ट उसी को समझने दें. स्वयं रिपोर्ट पढ़कर अपने नतीजे न निकालें.
कई मरीज यही कहते हैं कि हमारी हर संभव जांच करा दें क्योंकि ‘आई वॉन्ट टू बी श्योर.’ आप कभी, किसी जांच के बाद भी ऐसा श्योर नहीं हो सकते. भ्रम में न रहें. ऐसी कोई मशीन अभी तक नहीं बनी है जिसमें से शरीर को गुजार दें तो दूसरी तरफ से अदालत का प्रभावीकृत शपथपत्र निकल आए जो बता दे कि आप एकदम ठीक हैं. रिपोर्ट सही आने पर ये मीठे भ्रम न पाल बैठें. यात्री अपने सामान की रक्षा स्वयं करे.
3. कि पीलिया के मरीज को हल्दी तथा अन्य मसाले नहीं खाने देना चाहिए :
बीमारी में क्या खाएं क्या न खाएं- इस पर बहुत बहस होती है और गलतफहमियां तो इतनी कि क्या कहें. कुछ खाने गरम होते हैं, कुछ ठंडे. ऐसा भी सोचा जाता है. दूध लेने से कफ बढ़ जाएगा, यह भी माना जाता है. जितनी गलतफहमियां भोजन को लेकर हैं, उतनी किसी को लेकर नहीं. पीलिया के मरीज को केवल उबला खाना ही दिया जाए क्योंकि मसाले, तेल, हल्दी देने से बीमारी बढ़ सकती है. पर वास्तविकता क्या है? क्या यह अवधारणा सही है या मात्र एक और गलतफहमी?
मेरा मत है कि अगली बार का पूरा कॉलम ही विभिन्न बीमारियों में खान-पान को लेकर लिखूं. उसी में पीलिया की चर्चा भी कर ली जाएगी. क्या कहते
हैं आप?
I am surprised that no one commented on this. Yes, please. Keep this series going.