सवालों के घेरे में एनकाउंटर

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परिवार वालों को न्याय का इंतजार

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने से पहले ही धर्मेद्र के परिजन मामले की न्यायिक जांच के लिए अड़े हुए थे. जांच खत्म होने तक मुठभेड़ में शामिल क्राइम ब्रांच की टीम को बर्खास्त करने या तबादला करने की मांग भी उन्होंने शासन के सामने रखी ताकि दोषी जांच को किसी भी प्रकार से प्रभावित न कर सकें. अपनी मांग के समर्थन में धर्मेंद्र के शव पर लगी चोटों को दिखाते हुए उन्होंने शवगृह से शव ले जाने से इंकार कर दिया.

फिर उनके समर्थन में क्षेत्रीय जनता, कुशवाह समाज और कई राजनीतिक दलों के नेता शवगृह पर आ डटे. विरोध के स्वर बढ़ते देख आनन-फानन में जिला कलेक्टर डॉ. संजय गोयल ने पीड़ित पक्ष और प्रदर्शनकारियों के साथ बैठक बुलाकर न्यायिक जांच के आदेश का मांग पत्र राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को फैक्स किया. साथ ही गृह सचिव और मुख्यमंत्री से फोन पर न्यायिक जांच की स्वीकृति मिलने की बात बताकर जांच जल्द शुरू कराने का आश्वासन दिया. तब जाकर पीड़ित धर्मेंद्र का शव ले जाने तैयार हुआ. तीन दिन बीतने के बाद भी जब न तो न्यायिक जांच के लिखित आदेश आए और न ही मुठभेड़ में शामिल क्राइम ब्रांच की टीम को बर्खास्त किया गया तो राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता ‘पुलिस अत्याचार मिटाओ संघर्ष समिति’ का गठन कर मोहन कुशवाह के साथ अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए. इस धरने की गूंज भोपाल तक पहुंची तो दूसरे ही दिन राज्य सरकार ने जस्टिस सीपी कुलश्रेष्ठ की अध्यक्षता में एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठनकर धरना स्थल पर न्यायिक जांच के लिखित आदेश भिजवा दिए. लेकिन आंदोलनकारी इससे संतुष्ट नहीं हुए और अगले एक महीने तक धरने पर बैठे रहे.

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धर्मेंद्र के पिता मोहन कुशवाह अब भी न्याय की आस में भटक रहे हैं

उनकी मांग थी कि जांच को प्रभावित होने से बचाने के लिए मुठभेड़ में शामिल क्राइम ब्रांच की टीम को भी हटाया जाए. साथ ही उन्हें सीपी कुलश्रेष्ठ को जांच की कमान सौंपे जाने पर भी आपत्ति थी. पुलिस अत्याचार मिटाओ संघर्ष समिति के महासचिव भारत देहलवार बताते हैं, ‘जांच के नाम पर शासन केवल लीपापोती कर रहा था. जांच जस्टिस सीपी कुलश्रेष्ठ को थमा दी गई, जिनके भाई स्वयं संभाग के मुरैना जिले में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के तौर पर पदस्थ हैं. ऊपर से मुठभेड़ में शामिल क्राइम ब्रांच की एएसपी प्रतिमा एस. मैथ्यू व उनकी टीम को न तो बर्खास्त किया गया और न ही उनका तबादला हुआ. इससे तो जांच प्रभावित होने की आशंका है और वैसे भी आप ही देखिए जांच आयोग तो बना दिया पर महीने भर से ज्यादा होने को है लेकिन जांच अब तक शुरू नहीं की जा सकी है.’

उधर, बैकफुट पर आता देख पुलिस ने खुद मोर्चा संभाला और आंदोलनकारी और पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टरों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. आंदोलन के संरक्षक काशीराम देहलवार के भतीजे नीलेश को झूठे आरोप में फंसाकर हवालात में डाल दिया गया. पोस्टमॉर्टम करने वाली डॉक्टरों की टीम पर दबाव बनाने के लिए एएसपी प्रतिमा मैथ्यू ने पीएम रिपोर्ट से संबंधित क्वैरी मांगने के लिए अस्पताल अधीक्षक को पत्र लिख दिया. पर दोनों ही तरफ से पुलिस को मुंह की खानी पड़ी. न तो नीलेश पर आरोप साबित हुए और डॉक्टर भी अपनी दी पीएम रिपोर्ट पर डटे रहे. 25 अगस्त को राज्य सरकार के विरोध में माकपा और समानता दल ने 194 गिरफ्तारियां दीं.

मामला राजनीतिक तूल पकड़ चुका था. छह सितंबर को मुख्यमंत्री का ग्वालियर दौरा प्रस्तावित था और दो दर्जन से अधिक दलों के सहयोग से बनी ‘पुलिस अत्याचार मिटाओ संघर्ष समिति’ ने मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखाने की योजना बनाई थी. सूबे के मुखिया के सामने अपनी किरकिरी होने से बचाने के लिए पुलिस और प्रशासन ने आंदोलन को तोड़ने की रणनीति पर अमल करना शुरू किया जिसमें उन्हें दो सत्तारूढ़ दल के स्थानीय विधायकों का साथ मिला.

समिति के संरक्षक काशीराम देहलवार बताते हैं, ‘प्रशासन-पुलिस जब धर्मेंद्र के न्याय की आवाज नहीं दबा सके तो उन्होंने आंदोलन में फूट के बीज बोने शुरू कर दिए. मोहन को आर्थिक सहायता, उनके दूसरे बेटे को सरकारी नौकरी और दूसरी मांगों को पूरी करवाने का आश्वासन देकर मुख्यमंत्री से सीधी मुलाकात करवाने का वादा किया. पूरा कुशवाह समाज इस धरने प्रदर्शन में शामिल था इसलिए कुशवाह समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले दो स्थानीय भाजपा विधायक भी मुख्यमंत्री के सामने अपनी किरकिरी नहीं होने देना चाहते थे. दोषी को सजा मिले और पीड़ित को न्याय इसे दरकिनार कर उन्होंने बस अपनी राजनीति की. लिहाजा पिता मोहन न्याय के लिए भटक रहे हैं.’

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दूसरी ओर, धर्मेंद्र के पुलिस के निशाने पर आने की जो कहानी सामने आई है उसके अनुसार धर्मेंद्र और हरेंद्र राणा का दाहिना हाथ मनीष कोली बचपन से ही एक-दूसरे से परिचित थे. दोनों ही हजीरा क्षेत्र में रहते थे. समय के साथ मनीष कोली अपराध की दुनिया से प्रभावित होकर उसका हिस्सा बन गया और धर्मेंद्र ने परिवार की जिम्मेदारी उठा ली. पांच सदस्यों वाले धर्मेंद्र के परिवार में उसके माता-पिता, एक बड़ा भाई और एक बहन थे. पिता एक ऑटो स्टैंड की चौकीदारी करते थे. धर्मेंद्र बचपन से ही पढ़ाई के साथ पिता के काम में हाथ बंटाया करता था. पहले पिता ने उसे दोने-पत्तल की दुकान खुलवा दी. दुकान नहीं चली तो धर्मेंद्र ने मोबाइल का काम शुरू किया लेकिन कुछ दिन बाद वह भी बंद करके ऑटो चलाने लगा. इसके अलावा धर्मेंद्र ने एक प्राइवेट काॅलेज से बीएससी में दाखिला भी लिया था. हालांकि दो साल पहले गिरने से पिता की रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण परिवार की सारी जिम्मेदारी धर्मेंद्र के कंधों पर आ गई. बड़ा भाई एम. टेक कर रहा था, उसकी पढ़ाई में कोई व्यवधान न पड़े इसलिए धर्मेंद्र ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी. अब वह दिन में ऑटो चलाता था और रात को ऑटो स्टैंड पर चौकीदारी करता था. बीच में समय मिलता था तो ऑटो स्टैंड के बाहर ही गाड़ियों की धुलाई कर लेता था. कभी-कभार राह चलते उसकी मुलाकात मनीष कोली से हो जाती थी. अपनी ही दुनिया में खोया रहने वाला धर्मेंद्र इस बात से अंजान था कि मनीष कोली पुलिस और क्राइम ब्रांच के निशाने पर है. इन्हीं मुलाकातों के चलते धर्मेंद्र क्राइम ब्रांच की नजर में आया. हरेंद्र राणा और मनीष कोली की गिरफ्तारी के बाद जब पुलिस को संदेह हुआ कि ये दोनों जेल से ही कोई आपराधिक षड्यंत्र रच रहे हैं तो उन्होंने इनके संपर्कों को टारगेट करना शुरू कर दिया. इसी कड़ी में धर्मेंद्र को क्राइम ब्रांच ने उठा लिया और हरेंद्र राणा से उसके संबंध उगलवाने के लिए उसे तब तक पीटा, जब तक कि उसकी मौत नहीं हो गई. इसके बाद क्राइम ब्रांच ने मुकेश राठौर एनकाउंटर की तरह ही फिर एक पटकथा लिखी और उसे एनकाउंटर का नाम दे दिया.

वैसे दोनों ही मामलों में शासन-प्रशासन के रवैये को देखकर लगता ही नहीं कि वह पीड़ितों को न्याय दिलाने के इच्छुक हैं. धर्मेंद्र की मौत के मामले में जांच के नाम पर बस खानापूर्ति ही की जा रही है. कथित एनकाउंटर के दूसरे दिन ही न्यायिक जांच के आदेश दे दिए गए थे लेकिन 40 दिन बीतने के बाद भी अब तक जांच शुरू नहीं हो सकी है. वहीं सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग की स्पष्ट गाइडलाइन हैं कि एनकाउंटर में किसी भी व्यक्ति के मारे जाने पर तुरंत मजिस्ट्रियल जांच प्रशासन द्वारा कराई जानी चाहिए (वैसे तो निर्देश एनकाउंटर में शामिल टीम के हथियार जब्त करने के भी हैं लेकिन इसका पालन नहीं किया जाता) लेकिन धर्मेंद्र के मामले में तो मजिस्ट्रियल जांच ही एक महीने बाद शुरू करवाई गई. एक सीनियर एडवोकेट का कहना है कि यह सब बस मामले को लटकाना चाहते हैं इसलिए जांच प्रक्रिया को लंबा खींचा जा रहा है.

एक अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं कि अगर इस मामले में कार्रवाई होती है तो पुलिस अधीक्षक हरिनारायणचारी मिश्र पर भी आईपीसी की धारा 120 (बी) के तहत प्रकरण दर्ज हो सकता है, क्योंकि मुठभेड़ को उनकी भी स्वीकृति प्राप्त थी. इसलिए विभाग फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है. वहीं मुकेश राठौर के मामले में भी पुलिस विभाग ने क्राइम ब्रांच पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है जिससे साफ जाहिर है कि एएसपी प्रतिमा एस. मैथ्यू और उनकी टीम को बचने का पूरा मौका दिया जा रहा है. इस बारे में विभाग का कहना है कि कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल की गई है. मामले की सीआईडी जांच भी चल रही है.  बहरहाल न्याय की आस लगाए धर्मेंद्र कुशवाह और मुकेश राठौर के परिजनों को अब बस कोर्ट से ही न्याय की उम्मीद है.

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