लोकसभा चुनाव के ठीक पहले सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा की स्थापना को लेकर पूरे देश मे रन फॉर यूनिटी जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए थे. इसकी स्थापना उसी केवड़िया में होनी है जहां सरदार सरोवर बांध बना है. राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि प्रतिमा का एक उद्देश्य सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की अपनी पुरानी मांग को मजबूत करना भी था. सरदार सरोवर बांध को बल्लभ भाई पटेल का सपना बताकर पूरे देश में एक माहौल बनाया जा रहा था. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गठित सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट ने परियोजना के बारे में अपनी वेबसाइट पर जो अधिकारिक जानकारी मुहैया कराई है, उसके मुताबिक यह प्रतिमा तकनीकी तौर पर एक 182 मीटर (597 फुट) ऊंची इमारत होगी. इसे स्थापित करने में 2500 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत आएगी. जिसके अंदर से सरदार सरोवर का विस्तृत नजारा देखा जा सकेगा. अमेरिका की टर्नर कंस्ट्रक्शन कंपनी इसका निर्माण कर रही है. वहीं मीन हार्ट्ज और माइकल ग्रेव्ज एंड एसोसिएट्स डिजाइन व आर्किटेक्ट फर्म है. इस प्रतिमा को ‘एकता की प्रतिमा’ कहा गया है. नरेंद्र मोदी स्टेच्यू ऑफ यूनिटी की स्थापना के साथ ही सरदार सरोवर बांध से भरूच के समुद्री तट तक नर्मदा के दोनों किनारों पर कैनाल टूरिज्म के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पर्यटन स्थल विकसित करना चाहते हैं.
मध्यप्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया कहते हैं, ‘असल में नरेंद्र मोदी सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने के लिए सरदार पटेल के व्यक्तित्व का दोहन कर रहे थे. उन्होंने एक तीर से दो निशाने साधे हैं, पहला तो गुजरात की मांग पूरी करने का, दूसरा वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक कद की भी छटांई करना चाहते हैं, ताकि वे अपने ही प्रदेश में कमजोर साबित हो जाएं.’
[/box]राजनीति का बांध
सरदार सरोवर बांध से कई राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी जुड़ी हुई हैं. बांध की ऊंचाई बढ़ने से जहां नरेंद्र मोदी और उनके गुजरात को कई लाभ हैं. वहीं मध्य प्रदेश की राजनीति के तीन सितारों (शिवराज सिंह, उमा भारती और थावरचंद गहलोत) को इस बांध की ऊंचाई में डूबने का खतरा पैदा हो गया है. सबसे पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बात करें तो वे इस मुद्दे पर बोलने से बचते रहे हैं. जिस वक्त बांध की ऊंचाई बढ़ाने का फैसला हुआ, वे दक्षिण अफ्रीका में मध्य प्रदेश में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नए निवेशक तलाश कर रहे थे. शिवराज ने विदेश यात्रा के दौरान ही ट्वीट कर मोदी के फैसले का स्वागत किया. उन्होंने यह भी ट्वीट किया, ‘हमें शून्य लागत पर बिजली मिलेगी.’ लेकिन वे जैसे ही भोपाल पहुंचे तो मीडिया के सामने नए तेवर में नजर आए. पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि विस्थापितों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का ध्यान रखा जाएगा. यह बयान देते वक्त वे भूल गए कि पहले ही ट्विटर पर कह चुके हैं, ‘2008 में ही विस्थापितों को मुआवजा बांट दिया गया. अब तत्काल कोई क्षेत्र डूब से प्रभावित नहीं होने वाला.’ सरदार सरोवर बांध पर विरोधाभासी बयान देने वाले शिवराज सिंह चौहान भूल गए कि आने वाले दिनों में यही मुद्दा उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं में सबसे बड़ा रोड़ा बनेगा. दूसरे स्थान पर केंद्रीय जलसंसाधन मंत्री उमा भारती का नाम आता है. मूलतः मध्य प्रदेश की रहने वाली उमा भारती अच्छी तरह जानती होंगी कि सूबे में पुर्नवास की स्थिति क्या है. इसके बावजूद भी उन्होंने अपने बयान में कहा, ‘विस्थापितों को ध्यान में रख कर दिए गए सुझावों के बाद सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की मंजूरी दी गई है. सामाजिक न्याय मंत्रालय विस्थापितों के लिए उठाए गए कदमों से संतुष्ट है.’ केंद्रीय जल संसाधन मंत्री रहते हुए उमा का बांध की ऊंचाई बढ़ाने का समर्थन करना उनकी स्थिति को आने वाले दिनों में कमजोर करेगा. जिस परियोजना से मध्य प्रदेश को सिवाय नुकसान के कुछ नहीं मिल रहा है, उसका समर्थन कर उमा ने अपने विरोधियों को एक नया मुद्दा दे दिया है. चूंकि सरदार सरोवर बांध की पूरी कहानी सामाजिक न्याय मंत्रालय का हवाला देकर लिखी जा रही है, ऐसे में प्रदेश की राजनीति से राज्यसभा सांसद के रूप में केंद्र में पहुंचे केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत के लिए भी यह अच्छे दिनों की शुरुआत तो कतई नहीं मानी जा सकती. गहलोत भी मध्यप्रदेश से हैं. वे 1990-92 में प्रदेश के सिंचाई, नर्मदा घाटी विकास विभाग के मंत्री रह चुके हैं यानी यह माना जा सकता है विस्थापितों के दर्द को उन्होंने करीब से देखा और समझा होगा. लेकिन उनके ही मंत्रालय को ढाल बनाकर सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाई जा रही है. ऐसे में मध्य प्रदेश में विस्थापन के लिए वे भी उतने ही दोषी माने जाएंगे जितने कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती. आने वाले समय में मध्य प्रदेश में तीनों को ही बांध की ऊंचाई का समर्थन करना राजनीतिक रूप से बहुत मंहगा पड़ सकता है.
मध्य प्रदेश की राजनीति के तीन सितारों (शिवराज सिंह, उमा भारती और थावरचंद गहलोत) को इस बांध की राजनीति से ज्यादा नुकसान हो सकता है
[box]‘बांध की ऊंचाई बढ़ाया जाना सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है’
सरदार सरोवर परियोजना में विस्थापितों की पूरी तरह अनदेखी की गई है. गुजरात सरकार ने अभी तक नहरों का काम ही पूरा नहीं किया है, फिर उसे और केंद्र सरकार को सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की जल्दी क्यों है. यह समझ नहीं आता. पिछले 30 सालों में नहरों का काम 30 फीसदी भी पूरा नहीं हो पाया है. बांध की ऊंचाई बढ़ने से गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र को इसका तत्काल कोई लाभ नहीं मिलेगा. इन इलाकों में सिंचाई के लिए पानी तब ही मिल पाएगा, जब नहरों का काम पूरा होगा. सबसे गौर करने वाली बात यह भी है कि किसान गुजरात सरकार को अपनी जमीन तक नहीं देना चाहते, तो फिर नहरें बनेंगी कहां पर. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि जहां तक पुर्नवास हुआ हो, वहीं तक काम को आगे बढ़ाया जाना है, लेकिन किसी भी प्रभावित प्रदेश में पुनर्वास हुआ ही नहीं है तो फिर बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाना न्यायालय की अवमानना के तहत आता है. आप सोचिए कि योजना आयोग ने 2012 में परियोजना की अनुमानित लागत 70 हजार करोड़ रुपये बताई थी. इसपर अब तक 63 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं और यह खर्च 90 हजार करोड़ रुपये तक जाने की उम्मीद है. हमने परियोजना से जुड़े तथ्यों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिखा है. यह लाखों लोगों के जीवन का प्रश्न है. इस पर सरकार को जवाब देना ही होगा. जैसे ही गेट लगाने की कार्रवाई शुरु होगी, वैसे वैसे बैक वॉटर के कारण पानी का स्तर बढ़ेगा. इसके परिणामस्वरूप अभी तक जो बस्तियां डूब क्षेत्र में चिन्हित हुई हैं. वहां पानी भर जाएगा. बारिश में यह स्थिति और भी ज्यादा चिंताजनक होगी.
[/box]मोदी को फायदा ही फायदा
बांध की ऊंचाई बढ़ने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजनीतिक फायदा तीन गुना हो जाएगा. पहला तो यह कि गुजरात में उन्होंने साबित कर दिया कि वे अपने प्रदेश के कितने बड़े हितैषी हैं. खुद नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए लंबे समय से बांध की ऊंचाई बढ़ाने की मांग कर रहे थे. 2006 में उन्होंने 51 घंटे का उपवास भी रखा था. प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहले उन्होंने गुजरात के हित में फैसला लेते हुए सरदार सरोवर बांध में 17 मीटर ऊंचे दरवाजे लगाने की अनुमति दे दी. इससे गुजरात में उनका कद और बढ़ गया. गुजरात में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही खुलकर उनके निर्णय का स्वागत कर रही हैं. सरदार सरोवर बांध के द्वारा उन्होंने महाराष्ट्र और राजस्थान को साधने की भी कोशिश की है. महाराष्ट्र में कुछ समय बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. सरदार सरोवर परियोजना से महाराष्ट्र को भी फायदा होना है. यहां पैदा होने वाली 1,450 मेगावॉट बिजली में से 27 फीसदी बिजली महाराष्ट्र को मिलेगी. महाराष्ट्र के पहाड़ी इलाकों की 37 हजार पांच सौ हैक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए जल उपलब्ध हो जाएगा.
बांध की ऊंचाई बढ़ने से राजस्थान को अच्छे दबाव से पानी मिल सकेगा, इससे वहां के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर और जालौर की दो लाख 46 हजार हैक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी. इसके अलावा राजस्थान के तीन शहरों और 1336 गांवों के चार करोड़ लोगों को पेयजल भी उपलब्ध हो सकेगा. अपने इस फैसले मोदी गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में हीरो के रूप में उभरेंगे.
नर्मदा घाटी से जुड़े कुछ तथ्य
- जुलाई 1993 टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस ने सात वर्षों के अध्ययन के बाद नर्मदा घाटी में बनने वाले सबसे बड़े सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों के बारे में अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया. इसमें कहा गया कि पुनर्वास एक गंभीर समस्या रही है. इस रिपोर्ट में ये सुझाव भी दिया गया कि बांध निर्माण का काम रोक दिया जाए और इस पर नए सिरे से विचार किया जाए
- अगस्त 1993 परियोजना के आकलन के लिए भारत सरकार ने योजना आयोग के सिंचाई मामलों के सलाहकार के नेतृत्व में एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया.
- दिसंबर 1993 केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि सरदार सरोवर परियोजना ने पर्यावरण संबंधी नियमों का पालन नहीं किया है.
- जनवरी 1994 भारी विरोध को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने परियोजना का काम रोकने की घोषणा की.
- मार्च 1994 मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस पत्र में कहा कि राज्य सरकार के पास इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पुनर्वास के साधन नहीं हैं.
- अप्रैल 1994 विश्व बैंक ने अपनी परियोजनाओं की वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि परियोजना में पुनर्वास का काम ठीक से नहीं हो रहा है.
- जुलाई 1994 केंद्र सरकार की पांच सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी लेकिन अदालत के आदेश के कारण इसे जारी नहीं किया गया. इसी महीने में कई पुनर्वास केंद्रों में प्रदूषित पानी पीने से दस लोगों की मौत हुई.
- नवंबर-दिसंबर 1994 बांध बनाने के काम दोबारा शुरू करने के विरोध में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भोपाल में धरना देना शुरू किया.
- दिसंबर 1994 मध्य प्रदेश सरकार ने विधानसभा के सदस्यों की एक समिति बनाई जिसने पुनर्वास के काम का जायज़ा लेने के बाद कहा कि भारी गड़बड़ियां हुई हैं.
- जनवरी 1995 सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि पांच सदस्यों वाली सरकारी समिति की रिपोर्ट को जारी किया जाए. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने बांध की उपयुक्त ऊंचाई तय करने के लिए अध्ययन के आदेश दिए.
- मार्च 1995 विश्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में स्वीकार किया कि सरदार सरोवर परियोजना गंभीर समस्याओं में घिरी है.
- जून 1995 गुजरात सरकार ने एक नर्मदा नदी पर एक नई विशाल परियोजना-कल्पसर शुरू करने की घोषणा की.
- नवंबर 1995 सुप्रीम कोर्ट ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की अनुमति दी.
- 1996 उचित पुनर्वास और ज़मीन देने की मांग को लेकर मेधा पाटकर के नेतृत्व में अलग-अलग बांध स्थलों पर धरना और प्रदर्शन जारी रहा.
- अप्रैल 1997 महेश्वर परियोजना के विस्थापितों ने मंडलेश्वर में एक जुलूस निकाला जिसमें ढाई हज़ार लोग शामिल हुए. इन लोगों ने सरकार और बांध बनाने वाली कंपनी एस कुमार्स की पुनर्वास योजनाओं पर सवाल उठाए.
- अक्तूबर 1997 बांध बनाने वालों ने अपना काम तेज़ किया जबकि विरोध जारी रहा.
- जनवरी 1998 सरकार ने महेश्वर और उससे जुड़ी परियोजनाओं की समीक्षा की घोषणा की और काम रोका गया.
- अप्रैल 1998 दोबारा बांध का काम शुरू हुआ, स्थानीय लोगों ने निषेधाज्ञा को तोड़कर बांधस्थल पर प्रदर्शन किया, पुलिस ने लाठियां चलाईं और आंसू गैस के गोले छोड़े.
- मई-जुलाई 1998 लोगों ने जगह-जगह पर नाकाबंदी करके निर्माण सामग्री को बांधस्थल तक पहुंचने से रोका.
- नवंबर 1998 बाबा आमटे के नेतृत्व में एक विशाल जनसभा हुई और अप्रैल 1999 तक ये सिलसिला जारी रहा.
- दिसंबर 1999 दिल्ली में एक विशाल सभा हुई जिसमें नर्मदा घाटी के हज़ारों विस्थापितों ने हिस्सा लिया.
- जून 2014 बांध की आखिरी ऊंचाई बढ़ाने की घोषणा होते ही मध्यप्रदेश के बडवानी, अंजड, कुक्षी, मनावर, धरमपुरी रैलियां निकालकर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है.
तहलका की तेवरदार अच्छी स्टोरी के लिए बधाई। ये बात सही है कि विस्थापितों का पुनर्वास होना चाहिए, क्योंकि जिसका घर उजड़ता है वहीं जानता है इस मर्म को। फिर डूब में आने का मतलब है, विरासत की जल समाधि। ऐसी ही समाधि हमने हरसूद के दौरान नजदीक से देखी है। शुभकामनाओं सहित