ह्त्याग्रही गांधी!

फोटो- विजय पांडेय

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वरुण गांधी बीते दिनों दो कारणों से चर्चा में रहे. एक, उनके खिलाफ चल रहे भड़काऊ भाषण के मुकदमों में उन्हें बरी कर दिया गया और दूसरा उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव भी बना दिया गया. तहलका की इस रिपोर्ट में ऐसी तमाम सच्चाइयां सामने आई हैं जिनसे साफ होता है कि वरुण इन दोनों में से किसी के भी हकदार नहीं हैं. तहलका के खुफिया कैमरों और इन मामलों से जुड़े दस्तावेजों में कैद तथ्यों से साबित होता है कि वरुण ने असल में वे सारे अपराध किए थे जिनके आरोपों में उन पर मुकदमे चल रहे थे. इतना ही नहीं, इस पड़ताल से यह भी साफ होता है कि कैसे भड़काऊ भाषणों के इन आपराधिक मामलों को निपटाने के फेर में भी कई अपराध किए गए. तहलका की यह रिपोर्ट आपको यह भी बताएगी कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए वरुण गांधी क्यों इस पद के लायक नहीं हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अपनी ही पार्टी के खिलाफ गतिविधियों में भी शामिल रहे हैं.

इस कहानी की शुरुआत साल 2009 से होती है. उस साल हुए लोकसभा के आम चुनावों ने गांधी परिवार के एक और सदस्य वरुण गांधी को राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर ला खड़ा किया था. इससे पहले वरुण की पहचान सामान्य ज्ञान के उस प्रश्न से ज्यादा नहीं थी कि ‘इंदिरा गांधी के दूसरे पोते का नाम क्या है’? उनके चचेरे भाई-बहन राहुल-प्रियंका सालों पहले देश भर में चर्चित हो चुके थे, जबकि वरुण को उस वक्त लोग ठीक से जानते तक नहीं थे. सालों से गुमनामी में रहे वरुण अचानक ही मार्च 2009 में सारे देश में चर्चा का केंद्र बन गए. वह नाम और चर्चा, जो हमारे देश में नेहरू-गांधी परिवार के ज्यादातर वारिसों को एक प्रकार से मुफ्त में मिलती रही है, वह उन्होंने भी एक झटके में हासिल कर ली. लेकिन वरुण का यह रूप नया था. गांधी-नेहरू परिवार की परंपरा के विपरीत. इन सबसे ज्यादा भारत के उस विचार के तो बिल्कुल ही उलट जिसे स्थापित करने में उनके परनाना जवाहरलाल नेहरू की भूमिका बहुत बड़ी थी.

फोटो- विजय पांडेय
फोटो- विजय पांडेय

वरुण अपने चुनावी मंच से मुसलमानों के खिलाफ आग उगल रहे थे और सारा देश स्तब्ध था. कई दिनों तक उनके भड़काऊ भाषण टीवी पर छाए रहे. उनकी अलग-अलग सभाओं की नई-नई सीडी सामने आती गईं और वे हर बार पहले से भी ज्यादा जहर बुझे नजर आए. गांधी उपनाम वाले किसी शख्स को इस रूप में देखना सारे देश के लिए ही चौंकाने वाला था. उन पर एक समुदाय के खिलाफ नफरत से भरे भाषण देने और सांप्रदायिक हिंसा का माहौल तैयार करने के आरोप में दो मुकदमे दर्ज किए गए. उन्हें बीस दिन के लिए जेल भी जाना पड़ा. मगर पीलीभीत में विवादों से वरुण का यह कोई पहला सामना नहीं था और न ही आखिरी. अगस्त, 2008 में अपनी पीलीभीत यात्रा के दौरान ही उन पर मारपीट और जान से मारने की धमकी देने का एक मुकदमा दर्ज हो चुका था. और वरुण गांधी ने जब पीलीभीत की अदालत में अपने भड़काऊ भाषणों के मामले में आत्मसमर्पण किया था उस वक्त वहां हुई हिंसा के चलते भी उन पर एक और मामला दर्ज किया गया था. इसमें उन पर दंगा-फसाद करवाने, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और हत्या के प्रयास जैसे संगीन आरोप थे.

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      एक नजर में

  • 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान वरुण गांधी पीलीभीत में अपनी चुनावी रैली के दौरान मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काऊ भाषण देते हुए कैमरे पर कैद हुए.
  • उनके खिलाफ कुल तीन मामले दर्ज हुए. बरखेड़ा और डालचंद में भड़काऊ भाषण देने के दो मामले और पीलीभीत कोर्ट मंे समर्पण के दौरान दंगा भड़काने, पुलिस पर हमला करने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का एक मामला दर्ज हुआ.
  • इस साल चार मई तक वरुण गांधी इन सभी मामलों से बरी हो गए. चमत्कारिक रूप से इन मामलों में गवाह बनाए गए सभी 88 गवाह अदालत में अपने बयान से मुकर गए. शायद यह आपराधिक मामलों के इतिहास में पहला मामला होगा जिसमें इतनी बड़ी संख्या में गवाह पक्षद्रोही सिद्ध हुए.
  • तहलका की तहकीकात में कई विस्फोटक सच्चाइयां सामने आई हैं. न्यायिक प्रक्रिया को तोड़ा-मरोड़ा गया. खोजबीन करने पर गवाह, पुलिस, अभियोजन, जज, समेत हर व्यक्ति की भूमिका संदेह के घेरे में दिखी.
  • गवाही बदलने के लिए पुलिस द्वारा कुछ गवाहों को धमकाया गया, वरुण गांधी द्वारा कुछ गवाहों को रिश्वत दी गई. इसके अलावा जज की अनुपस्थिति में ही गवाहों की गवाही हो गई. उनके अंगूठे के निशान  लेकर उन्हें वापस भेज दिया गया. अभियोजन पक्ष ने फोरेंसिक विशेषज्ञ जैसे कई अहम गवाहों को गवाही के लिए समन तक जारी नहीं किया. कईयों से सवाल जवाब तक नहीं किया गया. ये बातें गवाहों ने तहलका के खुफिया कैमरे पर स्वीकार की हैं.
  • वरुण गांधी को हाल ही में भाजपा का महासचिव बनाया गया है. लेकिन तहलका की तहकीकात इस बात को भी साबित करती है कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी को चुनाव में हरवाने का काम किया. उन्होंने अपने उम्मीदवार को हराकर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रियाज अहमद को जिताने के निर्देश दिए. बदले में रियाज अहमद ने मुस्लिम गवाहों के बयान बदलवाने में मदद की.
  • तहलका के पास पीलीभीत भाजपा के दो महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की बातचीत का ऑडियो मौजूद है जिसमें वे इस बात की चर्चा कर रहे हैं कि वरुण गांधी ने उनसे कहा है कि विधान सभा चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशी सतपाल गंगवार को हराना है. सतपाल गंगवार भी तहलका के सामने यह स्वीकार करते हैं कि वरुण गांधी ने ही उन्हें विधानसभा चुनाव हरवाने का निर्देश दिया.
  • वरुण गांधी के काफी करीबी और पीलीभीत जिले के भाजपा उपाध्यक्ष परमेश्वरी गंगवार ने तहलका के खुफिया कैमरे पर कुछ बेहद चिंताजनक और गंभीर राज उगले. उन्होने विस्तार से बताया कि वरुण गांधी ने वे सारे नफरत से भरे भाषण दिए थे जिनकी चर्चा हुई थी. उन्होंने समाजवादी पार्टी के विधायक रियाज अहमद के बारे में भी बताया कि मुस्लिम गवाहों के बयान बदलने में उन्होंने भूमिका निभाई. इसके अलावा गवाहों को धमकाने और उनके बयान बदलवाने में तत्कालीन एसपी अमित वर्मा की सबसे बड़ी भूमिका सामने आ रही है.
  • वरुण गांधी के भड़काऊ भाषण को रिकॉर्ड करने वाले और इस मामले के सबसे महत्वपूर्ण गवाह थे तीन मीडियाकर्मी. ये तीनों भी अपनी गवाही के दौरान मुकर गए. तारिक अहमद ने कहा कि उन्होंने भाषण रिकॉर्ड जरूर किया था लेकिन उन्होंने वरुण गांधी का भाषण नहीं सुना था. कोर्ट ने इस हास्यास्पद बयान पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया. रामवीर सिंह ने स्वीकार किया कि उसने और तारिक दोनों ने वह भाषण सुना था और उन्होंने तहलका को बताया, ‘इस मामले में अभियोजन पक्ष समेत हर कोई बिका हुआ था.’ तीसरे मीडियाकर्मी शारिक परवेज ने इसकी पुष्टि करते हुए यह भी कहा कि रामवीर और तारिक भी इस मामले में बिके हुए थे.
  • पीलीभीत से विधायक और सपा सरकार में मंत्री रियाज अहमद के वरुण गांधी की मां मेनका गांधी के साथ पुराने राजनीतिक रिश्ते हैं. रियाज अहमद ने भी तहलका के कैमरे पर इस बात की पुष्टि की है कि इस मामले में नियम-कानूनों को जमकर तोड़ा-मरोड़ा गया और वरुण गांधी को लाभ पहुंचाया गया.
  • महज अपने राजनीतिक फायदे के लिए और भड़काऊ भाषण के अपराध से बचने के फेर में वरुण गांधी ने शर्मनाक तरीके से तमाम कानूनी प्रक्रियाओं को ध्वस्त किया.

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वरुण गांधी अब एक बार फिर से चर्चा में हैं . इस बार मामला और भी ज्यादा चौंकाने वाला है. जिन वरुण गांधी को सारे देश ने टीवी चैनलों पर सांप्रदायिक और भड़काऊ भाषण देते सुना था, उन्हें एक-एक कर सभी मामलों में दोषमुक्त किया जा चुका है. हज़ारों की भीड़ के सामने उन्होंने जो भड़काऊ भाषण दिए थे और जिन्हें करोड़ों लोगों ने टीवी पर देखा था उनसे जुड़े दोनों मामलों में वे इसलिए बरी कर दिए गए कि कोर्ट को उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिले. मारपीट का मुकदमा कहां गायब हो गया इसकी किसी को खबर भी नहीं हुई. वरुण के आत्मसमर्पण के वक्त हुई हिंसा के मामले में भी चार मई को पीलीभीत की सत्र अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया.

तहलका ने जब वरुण को दोषमुक्त करने वाले न्यायालय के फैसलों और अन्य दस्तावेजों पर नजर डाली तो उनमें कई ऐसी खामियां सामने आईं जिनसे यह साफ था कि वरुण को एकतरफा फायदा पहुंचाया गया है. वरुण गांधी के भाषण और आत्मसमर्पण से जुड़े तीन मामले शायद भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक रिकॉर्ड होंगे जिनमें कुल मिलाकर सभी 88 गवाह पक्षद्रोही हो गए. वरुण से जुड़े एक मामले में दो ही दिन में अदालत में 18 गवाहों को पेश किया गया और इन गवाहों के विरोधाभासी बयानों पर सरकारी वकील और कोर्ट ने कोई सवाल खड़ा नहीं किया. इस मामले की जांच के दौरान वरुण गांधी ने अपनी आवाज का नमूना देने से ही इनकार कर दिया और अभियोजन पक्ष ने बिना किसी विरोध के इस बात को स्वीकार कर लिया. मामले के ट्रायल के दौरान कई अहम गवाहों को कोर्ट में पेश ही नहीं किया गया और इसकी अर्जी खुद सरकारी वकील ने यह कहकर दी कि उन गवाहों को कोर्ट में बुलाने की कोई आवश्यकता नहीं है. ऊपरी तौर पर मुआयना करने से ही पता चल जाता है कि वरुण गांधी से जुड़े मामलों को कदम-कदम पर कमजोर करने का प्रयास सिर्फ बचाव पक्ष ने ही नहीं किया, बल्कि अभियोजन ने भी इसमें उसका पूरा साथ दिया.

इसके बाद जब तहलका ने वरुण गांधी से जुड़े मामलों की तहकीकात शुरू की तो परत दर परत ऐसी सच्चाइयां सामने आईं जिनमें पीलीभीत के वर्तमान एसपी अमित वर्मा, सरकारी वकील, भाजपा के नेता और प्रदेश सरकार सबके हाथ रंगे मिले. इन मामलों में गवाह बनाए गए लोगों और खुद जिले के भाजपा उपाध्यक्ष परमेश्वरी गंगवार ने तहलका को बताया कि किस तरह से पीलीभीत के पुलिस अधीक्षक और अन्य पुलिस अधिकारियों ने गवाहों को धमकाया और कम से कम एक गवाह के यहां स्वयं वरुण गांधी के यहां से गवाही बदलने के लिए फोन किया गया. इसके अलावा इन गवाहों ने जो सनसनीखेज सच उजागर किया उसके मुताबिक कोर्ट में न्यायिक प्रक्रियाओं का जमकर मखौल उड़ाया गया, जज की नामौजूदगी में ही उन सबकी गवाहियां हो गईं, उनके बयान खुद वकील ने लिखे और उनसे सिर्फ अंगूठा लगवाया गया या दस्तखत करवाए गए. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश की सपा सरकार और उनके एक मंत्री तक ने वरुण को बरी करवाने में सक्रिय भूमिका निभाई.

पहले शुरुआत वहां से जहां से वरुण की विवादित राजनीतिक यात्रा शुरू हुई.

वरुण गांधी का राजनीतिक सफर साल 2008 में शुरू हुआ. अपने पहले चुनाव के लिए उन्होंने पीलीभीत संसदीय सीट को चुना जहां से पिछली कई लोकसभाओं में उनकी मां मेनका गांधी सांसद रही थीं. जब उन्होंने अपने होने वाले चुनाव क्षेत्र का भ्रमण शुरू किया तो शुरू में उनके साथ उनके दिल्ली के ही ज्यादातर साथी होते थे. एक अगस्त, 2008 को वरुण अपने इन्ही साथियों के साथ पीलीभीत से 22 किलोमीटर दूर बरखेड़ा नाम के कस्बे की ओर जा रहे थे. इसी रास्ते पर एक गांव पड़ता है ज्योरह कल्यानपुर. इस गांव की सड़क उस वक्त काफी खराब थी जिस कारण वरुण की गाड़ी एक गड्ढे में फंस गई. वरुण अपने साथियों के साथ गाड़ी से उतर गए और उन्होंने लोगों से बात करनी चाही. इस गांव में ज्यादातर स्थानों पर किसान मजदूर संगठन एवं कांग्रेस पार्टी के झंडे लगे थे. यह बात वरुण को पसंद नहीं आई. उन्होंने गांववालों से पूछा कि यहां ये झंडे क्यों लगे हैं? भरतवीर गंगवार नाम के एक स्थानीय दुकानदार ने जवाब में कहा कि ‘किसान मजदूर संगठन ने यहां के किसानों के लिए काम किया है इसलिए उनके झंडे लगे हैं.’

भरतवीर के गांव के निवासी और इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी फूल चंद ‘आचार्य जी’ यह पूरा किस्सा सुनाते हुए कहते हैं, ‘वरुण ने भरतवीर से गुस्से में कहा कि यहां किसानों के लिए जो कुछ भी किया है वह मेरी मां ने किया है. भरतवीर ने उन्हें जवाब दिया कि किसान नेता वीएम सिंह ने गन्ना किसानों के हितों की लड़ाई लड़ी है इसलिए यहां लोग उनका समर्थन करते हैं. यह बात वरुण को नागवार गुजरी और उन्होंने भरतवीर को थप्पड़ मार दिया. बस, वरुण के हाथ छोड़ते ही उनके अन्य साथी भी भरतवीर को पीटने लगे. गांव के लोगों ने छुड़ाने की कोशिश की लेकिन उन लोगों के पास हथियार भी थे और वरुण गांधी के सामने किसी की हिम्मत भी नहीं पड़ रही थी.’

एक अगस्त को ही शाम 6.30 बजे भरतवीर ने थाना बरखेड़ा में वरुण गांधी और उनके सहयोगियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई जिसमें फूल चंद का नाम भी बतौर गवाह दर्ज था. उधर, वरुण की ओर से भी तत्कालीन भाजपा जिलाध्यक्ष योगेंद्र गंगवार ने रात को लगभग 9.10 बजे एक एफआईआर दर्ज करवा दी. जहां पहली रिपोर्ट में वही लिखा था जो फूलचंद ने हमें बताया था, दूसरी रिपोर्ट में कहा गया था कि भरतवीर ने देसी तमंचे से वरुण गांधी पर गोली चलाई, उनसे दस हजार रुपये लूट लिए और अपने साथियों के साथ तमंचे लहराता हुआ फरार हो गया. पुलिस ने दोनों मामलों की जांच की, भरतवीर के खिलाफ दर्ज किए गए मामले को झूठा पाया और 22 अक्टूबर, 2008 को अंतिम रिपोर्ट दाखिल करते हुए इसे बंद कर दिया. वहीं वरुण गांधी के खिलाफ दर्ज हुए मामले को पुलिस जांच में सही पाया गया और 24 दिसंबर को पुलिस ने इस मामले में आरोप पत्र दाखिल कर दिया. केस नंबर 2362/08 के रूप में दर्ज हुआ यह मामला पीलीभीत जिले में वरुण गांधी के खिलाफ दर्ज हुआ पहला आपराधिक मामला था.

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अब तक वरुण अपने संभावित संसदीय क्षेत्र में अपना जनाधार देख चुके थे. उन्हें अंदाजा हो चुका था कि इस क्षेत्र में सिर्फ गांधी परिवार का नाम उनकी जीत सुनिश्चित नहीं करवा सकता. ऐसा सोचने के उनके पास और भी कारण थे. हाल ही में हुए परिसीमन के चलते इस संसदीय क्षेत्र से कुछ ऐसे इलाके बाहर हो गए थे जहां से मेनका गांधी को एकतरफा वोट पड़ा करते थे. इसके अलावा हिंदू-मुसलमानों की मिली-जुली आबादी वाला बहेड़ी अब पीलीभीत संसदीय क्षेत्र में आ चुका था. पीलीभीत संसदीय क्षेत्र की पांच विधानसभाओं में से तीन पर मुस्लिम विधायक थे जबकि क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 35 प्रतिशत ही थी. वरुण गांधी को इन्हीं समीकरणों में अपनी जीत का रास्ता नजर आया और उन्होंने पूरे चुनाव को हिंदू बनाम मुस्लिम में तब्दील कर दिया.

चुनावों को सांप्रदायिक रंग देने का उनका यह खेल शुरू हुआ फरवरी, 2009 से. स्थानीय लोगों के मुताबिक सबसे पहले 22 फरवरी को उन्होंने पीलीभीत के ललोरी खेडा इलाके के ‘राम मनोहर लोहिया बालिका इंटर कॉलेज’ में खुद को देश का एकमात्र हिंदुओं का रखवाला घोषित किया और मुसलमानों के खिलाफ बोलना शुरू किया. ललोरी खेड़ा में हुई वरुण की इस सभा में भड़काऊ भाषण दिए जाने का जिक्र उस चुनाव याचिका में भी किया गया है जो वरुण के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दाखिल की गई थी. पिछले करीब डेढ़ महीने के दौरान तहलका ने पीलीभीत जिले में जिनसे भी बात की उनमें से ज्यादातर लोगों ने हमें यह बताया कि 2009 के आम चुनावों से पहले वरुण जहां भी सभाएं कर रहे थे,  हर जगह गीता की कसमें खाते हुए मुसलमानों के हाथ और गले काटने की बातें कर रहे थे.

छह मार्च, 2009 को वरुण को पीलीभीत के देशनगर मोहल्ले में एक सभा को संबोधित करना था. तब तक पीलीभीत में ज्यादातर लोगों को यह मालूम हो गया था कि वरुण गांधी के भाषणों का विषय क्या होता है. वरुण के समर्थक सभा में आए किसी भी व्यक्ति को वीडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति नहीं देते थे और इस बात का ख़ास ध्यान रखा जाता था कि कोई भी वीडियो कैमरा लेकर सभा में न पहुंच पाए. रात को लगभग नौ बजे वरुण देशनगर में सभा को संबोधित करने पहुंचे. स्थानीय पत्रकार शारिक परवेज के मुताबिक जब उन्होंने इस सभा की वीडियो रिकॉर्डिंग करनी चाही तो वरुण के समर्थकों ने उनका कैमरा बंद करवा दिया. शारिक सिर्फ कुछ मिनट ही वरुण के भाषण को रिकॉर्ड कर पाए. वरुण देशनगर के निवासियों को हिंदू धर्म का वास्ता देते हुए चेतावनी दे रहे थे कि ‘यदि हिंदू धर्म को बचाना है तो मुझे वोट देने जरूर जाना और जो हिंदू वोट नहीं डालेगा वो अपने धर्म से गद्दारी कर रहा होगा.’ वरुण इस भाषण में लोगों को यह भी चेतावनी दे रहे थे, ‘देखिए! ये मुसलमान चाहें जो भी बोलें .. उनका एक-एक वोट जाना है उस कटुवे के लिए .. समझे? तो आपका एक-एक वोट जाना चाहिए हिंदुस्तान के लिए…’

इस बीच इस मोहल्ले के ही एक स्थानीय युवा शैलेंद्र सिंह ने वरुण गांधी का यह पूरा भाषण अपने मोबाइल फोन में रिकॉर्ड कर लिया. शैलेंद्र बताते हैं, ‘मैं कई लोगों से ये बात सुन चुका था कि वरुण गांधी सांप्रदायिक हिंसा भड़काने वाले भाषण लगातार दिए जा रहे हैं. इसलिए मैं सोच कर गया था कि उनका भाषण रिकॉर्ड कर लूंगा. वीडियो तो वहां कोई भी बना नहीं पा रहा था लेकिन मैंने अपने फोन की रिकॉर्डिंग ऑन करके उसे अपनी जेब में रख लिया और उनका पूरा ऑडियो रिकॉर्ड कर लिया.’ (लगभग 28 मिनट का यह ऑडियो और बाकी ज्यादातर वीडियो जिनका जिक्र इस स्टोरी में किया गया है, तहलका के पास हैं).

अगले दिन यानी सात मार्च को वरुण पहुंचे पीलीभीत के मोहल्ला डालचंद में और यहां भी उन्होंने उसी तरह के मुस्लिम विरोधी भाषण दिए. वरुण अपने इन भाषणों में कई ऐसे आंकड़े भी लोगों को बताते थे जिनका हकीकत से तो कोई भी वास्ता नहीं था लेकिन इनसे जनता का ध्रुवीकरण आसानी से हो जाता था. उदाहरण के तौर पर, उन्होंने लोगों से कहा कि ‘पिछले कुछ समय में 13 हिंदू औरतों का बलात्कार हुआ और जिन मुसलमानों ने ये बलात्कार किए वो आज भी खुले घूम रहे हैं.’ तहलका ने इन तथाकथित बलात्कारों के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की मगर उसे ऐसा कोई मामला थाने में दर्ज नहीं मिला. मगर चुनाव के दौरान इस तरह की अफवाहें जंगल की आग की तरह फैलकर दो समुदायों के बीच गहरे तनाव की वजह बन रही थीं.

अब तक उनके भड़काऊ भाषणों की चर्चा सारे पीलीभीत में हो चुकी थी. आठ मार्च को जब वे बरखेड़ा नाम के कस्बे पहुंचे तो वहां कुछ पत्रकार उनका वीडियो बनाने में सफल हो गए. उनकी यही सभा थी जिसमें दिया हुआ उनका जहर बुझा भाषण सबसे पहले सारे देश ने 2009 में देखा था. बरखेड़ा के इस मंच पर कई साधु भी बैठाए गए थे. चूंकि उनकी यह सभा दोपहर में आयोजित की गई थी, इसलिए पत्रकारों को उनका वीडियो बनाने में उस तरह की परेशानी नहीं हुई जैसी कि इससे पहले की सभाओं में हो रही थी. इसके बाद वरुण गांधी के पहले बरखेड़ा और बाद में डालचंद में दिए भड़काऊ भाषण सभी राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर प्रसारित होने लगे. वरुण के सांप्रदायिक चेहरे को सारे देश ने देखा. मामले को गंभीरता से लेते हुए चुनाव आयोग ने तत्कालीन एसपी और जिलाधिकारी पीलीभीत का तबादला कर दिया और जिला प्रशासन को वरुण के खिलाफ सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए.

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17 तथा 18 मार्च को वरुण गांधी के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के आरोप में दो आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए. इनमें से एक डालचंद मुहल्ले से संबंधित था और दूसरा बरखेड़ा से. हालांकि वरुण के खिलाफ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस प्रत्याशी और रिश्ते में उनके दूर के मामा वीएम सिंह ने देशनगर वाला ऑडियो चुनाव आयोग को भेजा था. साथ ही सिंह ने 16 अप्रैल, 2009 को घटना के चार प्रत्यक्षदर्शियों – प्रशांत कुमार रवि, मुख्तार अहमद, कादिर अहमद एवं शैलेंद्र सिंह – के शपथपत्र भी चुनाव आयोग को भेजे थे जिनमें इन चारों ने कहा था कि वरुण गांधी ने देशनगर में भी मुस्लिम समुदाय के विरोध में अपशब्द कहे थे और वे घटना की गवाही देने को तैयार हैं, लेकिन इस मामले को पुलिस द्वारा दर्ज नहीं किया गया.

कई दिनों तक राष्ट्रीय चैनलों पर वरुण के सांप्रदायिक भाषण ही चुनावी कवरेज का मुख्य मुद्दा बने रहे . उस वक्त मुख्य चुनाव आयुक्त सहित तीनों चुनाव आयुक्तों ने बरखेड़ा की सीडी को देखने के बाद 22 मार्च को एक आदेश जारी किया था. इस आदेश में आयोग द्वारा कहा गया था, ‘आयोग ने एक बार नहीं बल्कि कई बार इस सीडी को देखा है. हम इस तथ्य से पूरी तरह सहमत और आश्वस्त हैं कि इस सीडी से कोई भी छेड़छाड़ नहीं की गई है.’ चुनाव में वरुण गांधी को किसी अदालत द्वारा प्रतिबंधित किए जाने से पहले ऐसा न कर पाने की मजबूरी तो आयोग ने इस आदेश में जताई मगर यह भी कहा, ‘आयोग की सुविचारित राय में प्रतिवादी मौजूदा चुनाव में प्रत्याशी बनने के योग्य नहीं है…’