ह्त्याग्रही गांधी!

मामला-1: मारपीट और जान से मारने की धमकी
घटना दिनांक : 1 अगस्त 2008
प्रथम सूचना रिपोर्ट : 1 अगस्त 2008
आरोप पत्र : 24 दिसंबर 2008
अंतर्गत धारा: 452, 352, 323, 504 तथा 506 भारतीय दंड संहिता

जैसा कि हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं कि स्थानीय दुकानदार भरतवीर गंगवार से मारपीट का यह मामला वरुण के खिलाफ पीलीभीत का पहला आपराधिक मामला था. इस मामले की सुनवाई 2008 से ही चल रही थी. अचानक ही यह मामला खत्म हो गया और इसकी कहीं चर्चा तक नहीं हुई. दरअसल वरुण के मामलों को तेजी से निपटाने का सिलसिला शुरू हुआ पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में. उनके कुछ मामले कोर्ट में निपटाए जा रहे थे तो कुछ कोर्ट के बाहर. यह मामला भी उन्हीं में से एक था जिसका निपटारा कोर्ट के बाहर ही हुआ. लगभग चार साल तक एक मामूली-सा दुकानदार जिस मजबूती से वरुण के खिलाफ कोर्ट में लड़ाई लड़ रहा था वह अचानक ही तब वरुण से समझौते को तैयार हो गया जब वरुण के सभी मुकदमे एक-एक कर ख़त्म हो रहे थे. इसकी पड़ताल के लिए जब हम पीड़ित भरतवीर गंगवार से मिले तो उनके चेहरे पर मौजूद डर साफ देखा जा सकता था. यह डर भरतवीर की उन मजबूरियों को भी बयान करता था जिनके चलते वे वरुण गांधी से समझौते को तैयार हो गए. भरतवीर इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए. उन्होंने इस मामले में समझौता क्यों किया और वरुण के खिलाफ केस क्यों वापस ले लिया इन सवालों का उनके पास कोई भी जवाब नहीं था. भरतवीर  2008 की घटना पर भी बात करने से पूरी तरह कतराते रहे . लेकिन इस घटना के एक चश्मदीद फूलचंद ‘आचार्य जी’ हमें पूरी आंखों-देखी सुना चुके थे जिसका जिक्र हम पहले ही कर चुके हैं.

इस मामले में समझौता करने के पीछे भरतवीर की क्या मजबूरियां थीं इनका पता हमें तब चला जब हम मामले की पैरवी कर रहे भरतवीर के वकील से मिले. भरतवीर गंगवार के वकील अश्विनी अग्निहोत्री इस पूरे मामले के निपटारे के बारे में बताते हैं, ‘वर्तमान पुलिस अधीक्षक महोदय अमित वर्मा साहब ने भरतवीर को बुलाया. उन्होंने कहा कि आप मुकदमा खत्म करिए. भरतवीर हमारे ऊपर बात डाल कर चला आया कि मैं अपने वकील साहब से बात करके आपको बताऊंगा. उन्होंने दूसरी बार जब बुलाया तो उसने टाल दिया. तीसरी बार उन्होंने पुलिसिया रंग दिखाया और पुलिसिया तरीके से समझाया या यूं कहिए कि धमकाया. एसपी ने कहा कि देख लीजिए वरना आप भी परिणाम भुगतने को तैयार रहिएगा.’ अश्विनी आगे बताते हैं कि भरतवीर ने उन्हें आकर कहा कि एसपी उसे सीधे-सीधे धमका रहा है और उस पर ऐसे दबाव बनाया जा रहा है कि उसे किसी भी मामले में जेल भिजवा दिया जाएगा. ‘मैंने भरतवीर को कहा कि आपके खिलाफ कोई मुकदमा होगा तो हम लड़ेंगे लेकिन साथ ही मैंने उन्हें यह भी साफ़-साफ़ कहा कि इतनी पावर तो मेरी नहीं है कि वरुण आपको बंद करवाए तो मैं रोक लूं. कोर्ट में तो मैं मामले से निपट सकता हूं.

फिर मैंने भरतवीर को एक सलाह दी कि अगर आप समझौता करना चाहते हैं तो पहले आप वरुण से एक एफिडेविट ले लो क्योंकि आपने एफआईआर लिखवाई, इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर को बयान दिया और कोर्ट में आप होस्टाइल हो गए तो कल वो आपके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दाखिल कर देगा. इसलिए मैंने भरतवीर को कहा कि पहले वरुण से एफिडेविट लो कि वे समझौता होने के बाद हिंदुस्तान की किसी भी अदालत में इस केस के संबंध में आपके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं करेंगे.’ अश्विनी वरुण गांधी से यह शपथपत्र लिए जाने के संबंध में भी बताते हैं कि भरतवीर का एक रिश्तेदार दिल्ली में वरुण गांधी के घर गया और उनसे यह शपथपत्र लिया.

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अश्विनी कहते हैं, ‘अशोका रोड पर उनके आवास से एफिडेविट लिया गया. फिर वहीं से मुझे वह पढ़कर सुनाया गया. मैंने उसमें कुछ कमियां बताईं इसलिए उस एफिडेविट में उसी वक्त कुछ संशोधन किए गए और नया एफिडेविट दिया गया. जब वो एफिडेविट हमारे पास आ गया तब मामले में समझौता हुआ.’

इस तरह से एसपी के दबाव में यह मुकदमा कोर्ट के बाहर ही समाप्त हो गया. जिला पीलीभीत के जिस एसपी का जिक्र यहां भरतवीर के वकील कर रहे हैं उन्होंने वरुण के बाकी मामलों को निपटाने में भी अहम भूमिका निभाई है. 2008 बैच के आईपीएस अधिकारी अमित वर्मा मई, 2012 से पीलीभीत में तैनात हैं. तहलका की तहकीकात में आप आगे देखेंगे कि कैसे इस आईपीएस अधिकारी के कारनामों का जिक्र बरखेड़ा और मोहल्ला डालचंद मामले से जुड़े कई लोगों ने हमारे खुफिया कैमरे पर किया है.

मामला-2: भडकाऊ भाषण (क़स्बा बरखेड़ा)
घटना दिनांक : 8 मार्च 2009
प्रथम सूचना रिपोर्ट : 17 मार्च 2009
आरोप पत्र : 11 जुलाई, 2009
अंतर्गत धारा : 153(क), 295(क), 505(2) भारतीय दंड संहिता एवं 125 लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम
कुल गवाह: 34

वरुण गांधी के सिलसिलेवार भड़काऊ और सांप्रदायिक भाषणों में बरखेड़ा का भाषण ही सबसे ज्यादा कुख्यात हुआ था. इसी भाषण की झलकियां थी जो सबसे ज्यादा टीवी चैनलों पर दिखाई गई थीं. आठ मार्च को बरखेड़ा में दिए गए उनके इस भाषण से पहले वे मोहल्ला देशनगर, मोहल्ला डालचंद, लालोरी खेड़ा, दड़िया भगत एवं अन्य छोटी-बड़ी सभाओं में भी ऐसी ही आग उगल चुके थे. लेकिन भड़काऊ भाषण के बस दो ही मुकदमे वरुण गांधी के खिलाफ दर्ज हुए.

बरखेड़ा का मामला सबसे ज्यादा चर्चित हुआ और माना जा रहा था कि वरुण गांधी को इस मामले में सजा होना तय है. लेकिन इस मामले में 34 गवाह कोर्ट में पेश हुए और सभी को पक्षद्रोही घोषित किया गया. गवाहों के बयानों को यदि देखा जाए तो उनमें कई विरोधाभास मिलते हैं. वरुण गांधी की इस सभा में जिन पुलिसकर्मियों की सुरक्षा व्यवस्था में तैनाती थी उनमें से कईयों को गवाह बनाया गया. गवाह नंबर 13 के रूप में पेश हुए कांस्टेबल किशोर पुरी ने कोर्ट में दिए अपने बयान में यह तो स्वीकार किया कि आठ मार्च को उनकी ड्यूटी बरखेड़ा में सुरक्षा व्यवस्था में लगी थी लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें रैली की कोई भी जानकारी नहीं है. गवाह नंबर 11 के रूप में पेश हुए हेड कांस्टेबल हेतराम ने भी अपनी गवाही में यही कहा कि उनकी ड्यूटी उस दिन सुरक्षा में लगी थी लेकिन वे रैली में नहीं गए और उन्होंने भाषण नहीं सुना. इसी तरह गवाह नंबर 14 मथुरा प्रसाद और गवाह नंबर 10 रामेंद्र पाल ने भी कोर्ट में यही कहा कि वे सुरक्षा व्यवस्था में थे और उन्होंने कोई भाषण नहीं सुना. इन बयानों पर कोर्ट में कोई भी सवाल नहीं किया गया. ये सभी पुलिसकर्मी जिस सुरक्षा व्यवस्था में ड्यूटी की बात कर रहे हैं वह वरुण गांधी की रैली के लिए ही लगाई गई थी. वरुण खुद भी यह स्वीकार कर चुके थे कि उन्होंने रैली की थी. ऐसे में पुलिसकर्मियों का यह कहना कि उन्हें रैली की कोई जानकारी ही नहीं है एक कोरा झूठ था. लेकिन ऐसे बयानों के बावजूद  न तो इन गवाहों से कोई सवाल किया गया, न ही कोर्ट ने इन पर झूठी गवाही देने या कोर्ट को गुमराह करने के आरोप में कोई कार्रवाई की और न ही इन पर कोई विभागीय कार्रवाई ही की गई.

पुलिस द्वारा वरुण के भाषण वाला वीडियो जांच करने के लिए चंडीगढ़ की केंद्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला को भेजा गया था. इस जांच के लिए पुलिस ने एक कैमरा, एक कैसेट, एक मोबाइल फोन और एक फोन का मेमोरी कार्ड एफएसएल को भेजा था. एफएसएल के एडिशनल डायरेक्टर डॉक्टर एसके जैन ने इन उपकरणों की जांच के बाद पाया कि इनमें मौजूद वीडियो आपस में मेल खाते हैं. डॉक्टर जैन ने अपनी रिपोर्ट में यह तो लिखा कि ये वीडियो ‘ओरिजिनल’ नहीं हैं लेकिन पुलिस को दिए अपने बयान में उन्होंने ‘ओरिजिनल’  का अर्थ भी  स्पष्ट किया है. उनके मुताबिक ‘ओरिजिनल’ वीडियो उसे कहा जाता है जो एक ही शॉट में बनाया गया हो. लेकिन इस वीडियो के बीच में कट थे, इसलिए इसे ओरिजिनल नहीं कहा जा सकता.