अलविदा कॉमरेड

11707656_10152839702726012_3494383671858891480_nAप्रद्योत लाल

6 नवंबर 1957 – 12 जुलाई 2015 

कॉमरेड क्या आप सुन रहे हैं? मैंने आपसे कुछ महीने पहले जो वादा किया था, उसे निभा रहा हूं. वह सांझ, दूसरी सांझों की ही तरह ही थी जब मैं आपके साथ बैठा था और मैंने आपसे एक वादा किया था. हालांकि मैं इसमें एक और बात जोड़ना चाहता हूं कि हम दोनों ने तब उस वादे को गंभीरता से नहीं लिया था. हमारे बीच कई ऐसी बातें थीं जो हम निर्लिप्त भाव से किया करते थे.

मैं आपसे ‘जिंदादिली’ सीख रहा था और आपके शब्दों में कहूं तो मैं इस कला में तेजी से माहिर हो रहा था. उस शाम को थोड़ी-सी शराब पीने के बाद आप अपने पसंदीदा पुराना गाना गाने लगे और फिर अचानक गंभीर हो गए. यह आपके मिजाज से बिल्कुल जुदा बात थी. जो लोग आपको जानते हैं क्या वे आपके ‘गंभीर’ होने की गवाही दे पाएंगे और शायद वे आपके शब्दकोश में इस शब्द को ढूंढते हुए निराश हो जाएंगे. आपने कहा था, ‘मुझे लगता है कि मैं चार-पांच साल से ज्यादा नहीं जी पाऊंगा.’ मैं थोड़ी देर के लिए अचरज में पड़ गया था लेकिन तब मैंने आपकी आंखों में एक शरारतभरी चमक देखी. हम दोनों ने जोरदार ठहाका लगाया था. क्या मैंने आपकी इस शरारत का यह जवाब दिया था कि अगर ऐसा हुआ तो मैं आपकी श्रद्घांजलि लिखूंगा?

चीफ, आपने मुझे कुछ और साल दिए होते ताकि मैं अपना वादा पूरा कर पाता. इस बात की कल्पना कैसे की जाए कि अब हम कभी बात नहीं कर पाएंगे. इस बात कि कल्पना कैसे करुं कि जो मेरे साथ के लोग हैं और जो मुझे बहुत प्रिय हैं, जो मुझे प्रेरणा देते रहे, वे मुझे श्रद्घांजलि लिखना सिखाएंगे? आपकी श्रद्घांजलि का मतलब हमसब- आपके मित्र, आपका परिवार, आपके आलोचक (शायद ही कोई हो) अगर कुल जमा कहना चाहें तो क्या कहेंगे? हम सभी के लिए कुछ भी कह पाना असंभव होगा.

कॉमरेड, क्या आपने कभी भी यह महसूस किया कि आप खुद में एक संस्थान हैं? हम यह आपके लिए आदर से कहना चाहेंगे कि आपने 35 साल का लंबा कैरियर पत्रकारिता में गुजार दिया, सच तो यह है कि तहलका के 80 फीसदी पत्रकार अभी 35 के भी नहीं हुए हैं. मुझे अच्छी तरह से याद है कि मैं जब सात महीने पहले ‘तहलका’ में दूसरी पारी के लिए आया था तब आप ही पहले व्यक्ति थे जो सबसे पहले स्वागत के लिए मेरी ओर बढ़कर आए थे. आपने उसी एक पहल से मेरा हृदय जीत लिया था और अपने लिए मेरे मन में आजीवन आदर का बीज बो गए. यही वो अलहदा प्रद्योत लाल थे. अंदर से खालिश भद्र पुरुष. एक ऐसे पत्रकार जो हर तरह के अहंकार से मुक्त थे. एक ऐसे लेखक जो सिर्फ अच्छा ही जानते थे और जो संकीर्णता से कोसों दूर थे. उनके इस दुर्लभ गुण के बारे में वह भी जानते हैं जिन्होंने पत्रकारिता में कुछ वर्ष बिताए हों या जिन्होंने कुछ बायलाइन रिपोर्ट लिखी हो.

आप हमेशा अपनी तारीफ से बचना चाहते थे बल्कि उससे दो-चार होते और अक्सर ऐसे समय में आप बातचीत को दूसरी दिशा में बहा ले जाते थे. इस बारे में मैं आपको बताऊं, आप तहलका के किसी भी युवा पत्रकार से पूछ सकते हैं. आपको सभी प्रिय थे और उनसे कुछ देर की बातचीत में ही आप उनपर अपनी जबरदस्त छाप छोड़ जाते थे. इन युवाओं के लिए आपके गुण पर भरोसा करना थोड़ा अविश्वसनीय होता था. वे आपको गूगल के समान मानते थे. आप कुर्सी पर बैठकर पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों के लिए मुक्तिदाता की तरह थे. आप उनके लिए न्यूजरूम में सहज उपलब्ध थे. उनके बीच सांस ले रहे थे. चहल-पहल कर रहे होते थे औरहमेशा  नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने की कोशिश कर रहे होते थे. आपकी पत्नी मंजुला भी आपकी बेचैनी के बारे में कुछ-कुछ ऐसा ही वर्णन करती हैं.

बीते एक साल के दौरान ‘तहलका’ ने कई उतार-चढ़ाव देखे. हमने न्यूनतम संसाधनों के साथ काम किया और खुद को हर बार साबित किया. आप संगठन और हमलोगों के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे. आपकी बालसुलभ उत्सुकता और चुनौतियों से पार पाने के लिए अगली पंक्ति में झट से खड़े हो जाना, हमलोगों के लिए हमेशा प्रेरणादायी रहा.

और हां, आपकी रंगीन जिंदगी जिसको आपने नेतृत्व दिया, उसका जिक्र करना कैसे भला कोई भूल सकता है. हमारे दोस्त और ‘तहलका’ के हमारे पूर्व साथी हरीश नांबियार ने आपके चरित्र को क्या खूब पहचाना है. उनके शब्दों में, ‘प्रद्योत लाल की व्यवस्थता उल्लेखनीय थी. वे शिक्षित सर्वहारा और विद्वान पत्रकार थे. मितव्ययी थे. क्रिकेट और दिलीप कुमार को लेकर वे जुनूनी थे. मैं उनकी बात से पूरी तरह से सहमत हूं. आप संगीत, क्रिकेट, देव आनंद, दिलीप कुमार, टाइगर पटौदी (कभी खत्म न होने वाली सूची) के दीवाने हो सकते हैं.’

अक्सर ऐसा होता था कि काम का दबाव होता और प्रेस की डेडलाइन होती और इस बीच आप अपनी पसंदीदा पुरानी फिल्मों के बारे में बातचीत करने लग जाते. आप फिल्मों से जुड़ी चीजों को कैसे याद रखते थे, इसकी बारीकियों के बारे में आप हमें बताते रहते थे. ऐसा आप ही कर सकते थे और हम मंत्रमुग्ध होकर सुना करते थे.

कॉमरेड और एक बात यह कि आपके उत्साही पाठक आपसे बहुत जुड़ाव महसूस करते थे. आपके द्वारा प्रयोग किए जानेवाले शब्द आनंदित करते थे और आपके द्वारा इस्तेमाल में लाए जानेवाले मुहावरों की वजह से पंक्तियां गाने लग जाती थीं. लेकिन आपके अधिकांश प्रशंसक इस बात को नहीं जानते होंगे क्योंकि वे आपके साथ न्यूजरूम में नहीं होते थे, इसलिए मैं उसका जिक्र करने की स्वतंत्रता यहां ले सकता हूं. कभी ऐसे समय में जब कोई ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती और शब्द नहीं सूझ रहे होते और शोध का समय नहीं होता तब आप आगे आकर मोर्चा लेते.

मेरी आपसे एक मात्र शिकायत यह है कि आपने अपनी उदासी को अपने दिल में ही दबाए रखा. आपके लिए कुछ अधूरा रह गया था जिसे न हासिल करना आपको सालता रहा. कई बार आपसे जीवंत बातचीत के दौरान भी उस दर्द की झलक मिल जाती थी, जिसे आपने दिल में दबा रखा था. आपने जितना किया, आप उससे कहीं ज्यादा करना चाहते थे. हम जब आखिरी बार मिले थे तब मैंने आपसे कहा था कि आप अपनी जीवनी क्यों नहीं लिखते हैं? आपने जवाब में कहा था, ‘अगर मैं ऐसा करना चाहूं तो मुझे कुछ समय के लिए मीडिया की मुख्यधारा से दूर रहना पड़ेगा. मैं नहीं चाहता कि लोग मुझे भूल जाएं.’

कॉमरेड, क्या आप तब सचमुच गंभीर थे जब आप यह कह रहे थे कि लोग शायद आपको भूल जाएंगे? मुझे यकीन है कि यह आपकी तरफ से अंतिम चुटकुला था.