‘साई’ पर संसद

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साई भक्त मनुष्यमित्र ने जब मंच पर अपनी बात कही तो उनके साथ मंच पर ही झूमझटकी की गई. फोटो प्रतीक चौहान

‘जाको राखे साईयां, मार सके ना कोय…’ पीढ़ियों से सुनी जा रही इस कहावत में साई का आशय है सिद्ध पुरुष या ईश्वरीय अवतार. हालांकि जनसामान्य लंबे समय से इस कहावत में ‘साई’ को साई बाबा (शिरडी वाले) के लिए ही प्रयोग करता रहा है. कहावतें समाज के बीच पैदा होती और पनपती हैं इसलिए उनका भविष्य भी समाज ही तय करता है. इसी तरह से अवतार या सिद्ध पुरुष भी समाज ही बनाता है.

हाल ही में आयोजित धर्म संसद में भले ही साधु-संतों ने साई बाबा की पूजा को धर्म विरुद्ध करार दिया हो लेकिन जनसामान्य के लिए यह फैसला कितना अनुकरणीय होगा यह भविष्य में ही तय होना है. फिलहाल यह जानना जरूर दिलचस्प होगा कि इस धर्म संसद की कार्यवाही चली कैसे और साधु-संत इस नतीजे पर कैसे पहुंचे.

राजू सेठ (30 वर्ष) की पान की गुमटी है. धर्म संसद के फैसले से बेखबर राजू कहते हैं, ‘जिसको जो भगवान अच्छा लगे, वह उसे माने. हमें तो दो वक्त की रोटी कमाने से फुर्सत नहीं है.’ राजू की बात यहां इसलिए मायने रखती है, क्योंकि उनकी पान की दुकान ठीक वहीं स्थित है, जहां धर्म संसद आयोजित की गई और देश-भर में इसी वजह से चर्चा में रही कि यहां साधु-संतों ने एकमत होकर साई बाबा के सिद्ध पुरुष होने की बात को खारिज कर दिया. राजू को धर्मसंसद देखने-सुनने की न तो फुर्सत है, न ही उत्सुकता. उन्हें यहां भीड़ इकट्ठी होने की खुशी है क्योंकि इससे उनकी अच्छी-खासी कमाई हो रही है.

न्यायिक लड़ाई की भी तैयारीद्वारिकापुरी और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती मंदिरों में साई की फोटो अथवा मूर्ति लगाने के खिलाफ न्यायिक लड़ाई लड़ने की तैयारी भी कर चुके हैं. इसकी शुरुआत शंकराचार्य ने इस साल के शुरु होते ही नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लैटर पिटीशन (पत्र याचिका) भेजकर सनातन धर्म मंदिरों में साई की मूर्तियां हटाने का आग्रह करने के साथ कर दी थी. इस पिटीशन में कहा गया था कि सनातन धर्म के मठ-मंदिरों में देवी-देवताओं के साथ साई की मूर्ति अथवा फोटो लगाई जा रही है. यहां तक कि साई से संबंधित साहित्य में वेद-उपनिषद के मंत्र तक बदल दिए गए हैं. इस बारे में शंकराचार्य के प्रवक्ता अजय गौतम कहते हैं, ‘ जब बाइबिल, कुरान आदि धर्मग्रंथों की शब्दावली को नहीं बदला जा सकता तो वेद उपनिषद के मंत्रों में साई को शामिल कर करोड़ों लोगों की आस्था से खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है.’ इस वर्ष जून में हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद में भी शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद साई की मूर्तियां हटाने का प्रस्ताव पारित करवा चुके हैं.

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 130 किलोमीटर दूर स्थित कबीरधाम (कवर्धा) में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के चार्तुमास के कारण पिछले दो महीने से बहुत गहमागहमी है. लेकिन इस सप्ताह के दो दिन 24 और 25 अगस्त कुछ ज्यादा की खास रहे. इन्हीं दो दिनों में कबीरधाम में साधु संतों और उनके अनुयायियों का मेला लगा रहा. मौका था शंकराचार्य द्वारा बुलाई गई 19वीं धर्म संसद का. धर्म संसद का एंजेडा तो लंबा-चौड़ा था लेकिन मुख्य विषय था शिरडी के साई बाबा के भगवान होने या न होने पर निर्णय करना. इस मसले पर दो दिनों तक बहस चली, शास्त्रार्थ किया गया, लेकिन दिलचस्प बात यह थी कि शास्त्रार्थ करने के लिए दूसरा पक्ष मौजूद ही नहीं था. शिरडी के साई संस्थान से कोई प्रतिनिधि इस धर्म संसद में नहीं आया. तीन साई भक्तों मनुष्यमित्र (मध्य प्रदेश से), प्रेम कुमार और अशोक कुमार (दोनों दिल्ली से) ने जरूर अपना पक्ष रखने की कोशिश की लेकिन उनकी बात को पूरा सुने बगैर उनके कपड़े फाड़कर मंच से नीचे उतार दिया गया. दरअसल मनुष्यमित्र ने मंच पर पहुंचकर यह कह दिया था कि साधु-संत गौ हत्या जैसे विषयों पर धर्म संसद क्यों नहीं बुलाते, धर्म से जुड़े दूसरे मुद्दों पर अनशन क्यों नहीं करते. इस पर कुछ अन्य साधुओं ने इस साई भक्त के कपड़े फाड़ दिए. पुलिस ने बीच-बचाव करते हुए साई भक्तों को मंच से सुरक्षित उतारकर कार्यक्रम से बाहर निकालकर सीधे रायपुर पहुंचा दिया.

‘साई ट्रस्ट साधु संतों को शिरडी बुलाकर साई बाबा की पूजा संबंधित सारी बातें स्पष्ट कर चुका है. इसके बाद भी धर्म संसद का आयोजन किया जाना पाखंड की पराकाष्ठा है’

इसके बाद दो दिन तक चली धर्म संसद में काशी विद्वत परिषद ने अपना फैसला सुनाया कि साई भगवान नहीं हैं. वे गुरू भी नहीं हैं, संत और अवतारी पुरुष भी उन्हें नहीं माना जा सकता इसलिए साई की पूजा बंद होनी चाहिए. धर्म संसद ने एक फैसला और लिया है कि देश में भविष्य में कोई साई मंदिर नहीं बनाया जाए. सनातन धर्म के मंदिरों में साई की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाएगी. अपने फैसले के बारे में काशी विद्वत परिषद ने तर्क दिया कि दो दिन के मंथन के बाद साई किसी भी कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं, इसलिए उन्हें भगवान कहना वेद सम्मत या धर्म सम्मत नहीं है.

जिन करोड़ों लोगों के लिए धर्म संसद यह फैसला सुना रही थी उनमें से एक राजेश चौहान (36वर्ष) के विचार भी राजू सेठ से अलहदा नहीं हैं. पेशे से ड्राइवर राजेश ने इन दो दिनों में धर्म संसद के आयोजन स्थल तक सैकडों लोगों का पहुंचाया है.  उन्हें भी इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन किसको पूज रहा है, या किसको पूजा जाना चाहिए. उन्हें तो बस अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाना है क्योंकि वह नहीं चाहते कि उनके बच्चे भी उनकी तरह ड्राइवरी करें.

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धर्म की राजनीति या राजनीति का धर्म

शिरडी के साई बाबा के अवतार होने या उनकी पूजा के मामले में केंद्र की नई-नवेली भाजपा सरकार और मुख्य विरोधी दल कांग्रेस दोनों ही चुप हैं. शुरुआत में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने जरूर शंकराचार्य की बात को काटते हुए टिप्पणी कर दी थी लेकिन बात उनके इस्तीफे की मांग तक आ गई तो उन्होंने भी चुप्पी साध ली. उमा की बात काटते हुए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी शंकराचार्य का दबी जुबान से समर्थन कर दिया था. लेकिन अब कहीं से कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही है. दरअसल शिरडी के साई बाबा की प्रामाणिता पर सवाल उठाने वाले शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती को कांग्रेस समर्थक माना जाता रहा है. यह अलग बात है कि शंकराचार्य ने धर्म संसद के लिए भाजपा शासित प्रदेश छत्तीसगढ़ को चुना. शंकराचार्य चातुर्मास के लिए कवर्धा आए थे. मुख्यमंत्री रमन सिंह का पैतृक निवास भी कवर्धा में ही है. शंकराचार्य ने रमन सिंह के निवास से चंद कदम दूर ही अपना डेरा डाला हुआ है. उन्हें राज्य अतिथि का दर्जा दिया गया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि धर्म संसद में आने वाले 28 साधु-संतों को भी राज्य अतिथि का दर्जा दिया गया है. यानी कहा जा सकता है कि धर्म संसद राज्य सरकार के सरंक्षण में ही बुलाई गई. अब यहां गौर करने वाली बात यह है कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि शिरडी महाराष्ट्र में धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र है. महाराष्ट्र में स्थित तीन ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर (औरंगाबाद), भीमाशंकर (पुणे) और त्र्यंबकेश्वर (नासिक) कभी चढ़ावे को लेकर सुर्खियों में नहीं रहते, जबकि शिरडी में चढ़ने वाले अकूत चढ़ावे की आए दिन चर्चा होती है. जाहिर है कि भक्तों की आमद शिरडी में ही ज्यादा होती है. साई से महाराष्ट्र का दलित समुदाय भी गहरा जुड़ा हुआ है. साई के प्रचार-प्रसार में इस समुदाय का खासा योगदान रहा है. मतदाताओं का एक बड़ा समूह शिरडी में आस्था रखता है. ऐसे में ऐन चुनाव के वक्त भाजपा या कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे पर बीच में पड़ना नहीं चाहती. शिवसेना और मनसे ने भी मौन धारण कर रखा है. इस पर पेंच यह है कि शंकराचार्य समेत धर्म संसद में शामिल होने वाले साधु संत भाजपा से जवाब चाहते हैं. आयोजन के दौरान केवल भाजपा को बार-बार कोसा गया जबकि कांग्रेस पर किसी ने टीका-टिप्पणी नहीं की. आयोजन में शामिल होने आए भारत साधु समाज के उपाध्यक्ष एवं महामंडलेश्वर स्वामी डॉ प्रेमानंद जी महाराज का कहना था, ‘ भाजपा हिंदुओं की रक्षा करने वाली पार्टी होने का दावा करती है लेकिन धर्म संसद में भाजपा, संघ या विहिप की तरफ से कोई प्रतिनिधि नहीं आया.’ हालांकि इसके बाद भी भाजपा का कोई बयान नहीं आया. पार्टी के साथ दिक्कत यह है कि वह संगठन या सरकार के तौर पर यदि इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर करती है तो उसे लाखों साई भक्तों की आस्था पर चोट माने जाने की आशंका है. ऐसा होने पर इसका खामियाजा भाजपा को महाराष्ट्र समेत दूसरे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में चुकाना पड़ सकता है. शंकराचार्य का यह चक्रव्यूह भाजपा भी खूब समझ रही है यही कारण है कि भाजपा शासित प्रदेश होने के बावजूद पार्टी या सरकार का कोई जनप्रतिनिधि धर्म मसंसद के आसपास भी नहीं फटका.

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साई को अवतार मानने पर सबसे पहले बहस शंकराचार्य स्वरूपानंद ने ही शुरू की थी और उनके द्वारा बुलाई गई इस धर्म संसद में पहुंचे 13 अखाड़ा प्रमुखों ने भी उनकी बात का समर्थन किया है. निरंजनी अखाड़ा के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी का कहना है, ‘जब धर्म पर संकट आता है तब धर्म संसद का आयोजन किया जाता है. यह 19वीं धर्म संसद थी. फकीर को भगवान मानना पूरी तरह से गलत है. शंकराचार्य इसी बात का तो विरोध कर रहे हैं.’ पंचायती जूना अखाड़ा हरिद्वार के प्रमुख संत हरिगिरि का कहते हैं, ‘हिंदू सनातन धर्म की सुदृढ़ धार्मिक परंपराओं से कुछ लोग अंजान हैं. वेदों और शास्त्रों में सप्रमाण वर्णित व्यक्ति ही भगवान है. इसी प्रामाणिकता के आधार पर हिंदू धर्म में पूजा करने की परंपरा है. लाखों हिंदू भटकर साई की पूजा करने लगे हैं. उन्हें समझा बुझाकर सही राह पर लाया जाएगा. साई ट्रस्ट का नाम लिए बगैर स्वामी हरिगिरि ने कहा कि आपको व्यवसाय करना है तो करिए. हिंदूओं को भ्रमित मत करिए. लोगों को समझाने का काम शंकराचार्य और संतों का है. हमने अपना काम कर दिया है. धीरे-धीरे लोग भी इसे मानेंगे.’

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कबीरधाम के एक मंदिर में स्थापित हनुमान व साई बाबा की मूर्ति. फोटो: प्रतीक चौहान

हिंदू साधु-संतों को इस बात पर घोर आपत्ति है कि करीब दशक-भर पहले तक साई के आगे बाबा शब्द लगाया जाता था लेकिन अब उन्हें साई राम के रूप में स्थापित किया जा रहा है. पहले लोग ओम सीताराम का जाप किया करते थे अब ओम साई राम का प्रचार कर रहे हैं. साधु-संतों का आरोप है कि साई भक्त सनातन धर्म के प्रतीकों का इस्तेमाल करके साई को प्रतिष्ठित और धार्मिक लोगों को बरगलाने का काम कर रहे हैं. वे इसके पक्ष में यह तर्क भी देते हैं कि पहले लोग गुरुवार को भगवान विष्णु का व्रत रखते थे लेकिन उस व्रत की जगह साई के व्रत ने ले ली है.

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शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने धर्म संसद के दौरान साई को असत्य, अचेतन और अयोग्य करार दिया है. साई संस्थान से किसी भी प्रतिनिधि के धर्म संसद में नहीं पहुंचने के सवाल पर शंकराचार्य कहते हैं, ‘वे लोग विज्ञापन जारी करते हैं लेकिन धर्म संसद में पहुंचकर विमर्श करने को तैयार नहीं है. जब वे जवाब देने को तैयार नहीं हैं तो उनको जिम्मेदारी लेनी होगी कि धर्म संसद में जो निर्णय हो, उसे वे मानेंगे.’ शंकराचार्य ने साई के अवतार के बारे में प्रमाण मांगते हुए कहा कि सनातन धर्म में शिव, गणेश, विष्णु और सूर्य या उनके अवतारों की पूजा होती है  ऐसे में साई भक्त स्पष्ट करें कि साई किनके अवतार हैं. वहीं कई साई भक्त धर्म संसद को जबर्दस्ती का नाटक बता रहे हैं. छत्तीसगढ़ के ही एक साई भक्त संजय साई धर्म संसद पर आरोप लगाते हैं, ‘साई ट्रस्ट साधु-संतों को शिरडी बुलाकर साई बाबा की पूजा

संबंधित सारी बातें स्पष्ट कर चुका है. इसके बावजूद भी धर्म संसद का आयोजन किया जाना पाखंड की पराकाष्ठा है.’  संजय यह भी बताते हैं कि कवर्धा में धर्म संसद के मंच पर जिस तरह एक साई भक्त के साथ बदसलूकी की गई इसकी उन्हें आशंका थी इसलिए शिरडी साई संस्थान से कोई प्रतिनिधि धर्म संसद में नहीं पहुंचा. हालांकि साईं ट्रस्ट शिरडी ने इस आयोजन से पर कोई टिप्पणी नहीं की है. ट्रस्ट के जनसपंर्क अधिकारी मोहन यादव का कहना है, ‘हम धर्म संसद के फैसले पर कोई टिप्पणी या प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते.’

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