परिवार के बाद लालू प्रसाद यादव के सामने पार्टी की चुनौती बड़ी है. लालू प्रसाद यादव अपनी पार्टी का विलय जनता परिवार में करवा चुके हैं लेकिन इससे उनकी चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं. उनके दल से अभी चुनौतियां मिलना बाकी है. हालांकि लालू प्रसाद यादव के दल से एक-एककर कई नेता बाहर का रास्ता देख चुके हैं. और अब जो नेता हैं, उनमें भी कई ऐसे हैं, जो साथ छोड़ सकते हैं. इसके पहले विगत साल नीतीश कुमार ने एक झटके में लालू प्रसाद यादव की पार्टी को तोड़ दिया था. अभी सबसे ज्यादा चर्चा राजद के एक प्रमुख नेता अब्दुल बारी सिद्दिकी को लेकर की जाती है. कहा जाता है कि सिद्दिकी एक ऐसे नेता हैं, जो लालू प्रसाद यादव के लिए वरदान हैं तो वे कभी भी चुनौती बन सकते हैं. सिद्दिकी के भी उपमुख्यमंत्री बनने की बात थी लेकिन सूत्र बताते हैं कि इसमें सबसे बडा अड़ंगा खुद लालू प्रसाद यादव के खेमे से ही लगा था. सिद्दिकी के मजबूत होने से लालू प्रसाद यादव जानते हैं कि फिर वे उन्हें अपने साथ रख नहीं पाएंगे. सिद्दिकी नेतृत्व पद पर जाने की मांग करेंगे, जो फिलहाल लालू प्रसाद यादव को किसी हाल में मंजूर नहीं. लेकिन सूत्र एक दूसरी खबर भी बताते हैं. बताया गया है कि अब्दुल बारी सिद्दिकी पर फिलहाल कांग्रेस की नजर है, जो बिहार में खस्ताहाली के दौर में है. अगर सिद्दिकी जैसा नेता कांग्रेस को मिल जाता है तो उसे बिहार में खड़ा होने में मदद मिलेगी. अगर ऐसा होता है तो यह न सिर्फ लालू प्रसाद के लिए बल्कि महाविलय के लिए भी एक बड़ा झटका होगा. लालू प्रसाद के दल में चुनौती यहीं खत्म नहीं होती. अभी बड़ी चुनौती का सामना उन्हें विधानसभा चुनाव के वक्त करना है. विधानसभा चुनाव के समय महाविलय के आधार पर अगर टिकट का बंटवारा होता है तो लालू प्रसाद को कई अपने लोगों का टिकट काटना होगा. वे वैसे लोग व नेता होंगे, जो वर्षों से नीतीश कुमार की पार्टी और भाजपा से लड़कर अपना जनाधार बनाए हैं. टिकट नहीं मिलने की स्थिति में वे लालू के सबसे बड़े विरोधी होंगे. इनमें कई यादव नेता भी होंगे. इस तरह कई जगहों पर लालू प्रसाद के विरोध का जो नया खेमा बनेगा उसे अगर पप्पू यादव या मांझी का साथ मिलेगा तो फिर यह लालू प्रसाद को और कमजोर करनेवाला ही होगा. बात इतनी भी होती तो एक बात होती. जो लालू प्रसाद यादव 1990 में थे, उस समय के उनके एक-दो बड़े नेता ही उनके साथ बचे हैं. लालू भी जानते हैं कि अपने कोर वोट में भी उनकी पकड़ पहले की तुलना में ज्यादा कमजोर हुई है. पिछड़े बिखर चुके हैं. दलितों व पिछड़ों के मसीहा के रूप में वे एक जुमले की तरह तो इस्तेमाल किए जाएंगे लेकिन अब दलितों व पिछड़ों का वोट आसानी से अपने पाले में नहीं करवा पाएंगे.
विधानसभा चुनाव के समय महाविलय के आधार पर अगर टिकट का बंटवारा होता है तो लालू प्रसाद को अपने कई लोगों का टिकट काटना होगा
राजनीतिक विश्लेषक प्रेम कुमार मणी कहते हैं- अभी भी वक्त है लालू प्रसाद यादव मांझी के साथ मिल जाएं, तभी वे दलित वोटों की रहनुमाई करने की स्थिति में रहेंगे. मणी बात ठीक कहते हैं लेकिन एक दूसरी किस्म की चुनौतियों से भी लालू प्रसाद को दो-चार होना अभी बाकी है और एक तरह से महाविलय कर के वे अपनी राजनीति का टेस्ट ही कर रहे हैं. लालू प्रसाद ने महाविलय के बाद नीतीश कुमार को बिहार में नेतृत्व का अवसर दिया तो इसका दूसरा साइड इफेक्ट होना है. यादव और कुरमी, दो छोरों पर रहनेवाली जातियां हैं. कुर्मी नेता का नेतृत्व जमीनी स्तर पर यादव मतदाता आसानी से हजम नहीं कर पाएंगे. उन्हें यह साफ लगता है कि यादवों का जो राजपाट था और वर्षों तक जो सत्ता थी, उसे कुरमी जाति के नेता ने ही चुनौती देकर खत्म किया था. पप्पू यादव कहते हैं कि यह कौन नहीं जानता कि नीतीश कुमार ने सबसे ज्यादा यादवों को गाली और जंगलराज का पर्याय बनाया. इसका खामियाजा तो महाविलय को भुगतना ही होगा.
तीसरी चुनौती : पप्पू यादव
लालू प्रसाद यादव के सामने इन सबके बाद जो सबसे बड़ी चुनौती होगी वह पप्पू यादव और जीतन राम मांझी जैसे नेताओं की होगी. जीतन राम मांझी जैसे नेताओं की चुनौती को तो लालू प्रसाद यादव दरकिनार कर चुके हैं, इसलिए वे महाविलय में न तो जीतन को शामिल करने की कोशिश किए और ना ही अभी कोशिश करते दिख रहे हैं. जीतन की चुनौती को छोड़ भी दें तो पप्पू यादव लालू प्रसाद यादव के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं. पप्पू यादव का कोसी में खासा जनाधार है. इस बार नरेंद्र मोदी की लहर में भी वे न सिर्फ अपनी और अपनी पत्नी की सीट को बचाने में कामयाब रहे बल्कि कोसी के इलाके में भाजपा का खाता तक नहीं खुल सका तो उसमें भी पप्पू यादव की भूमिका मानी गई.
लगभग साढे़ बारह सालों बाद जेल से निकलने के बाद पप्पू यादव को कोसी में यह सफलता मिली तो इससे वे उर्जा से लबरेज हैं और तेजी से पूरे बिहार में अब अपनी अलग पहचान बनाने के लिए अभियान तेज कर दिए हैं. इसके लिए पप्पू न सिर्फ हालिया दिनों में बिहार में हुई बड़ी घटनाओं के घटना स्थल पर ग ए बल्कि अपनी ओर से पीडि़तों को सहयोग भी किया. पप्पू यादव अब युवा शक्ति नामक संगठन के बैनर तले मगध से लेकर भोजपुर तक के इलाके के बुनियादी सवालों को उठाकर, लोगों से अपने को जोड़ रहे हैं.
पप्पू यादव को इतने-भर से पूरे बिहार में सफलता मिलेगी, यह कहना तो अभी जल्दबाजी है लेकिन राजद में जो नाराज खेमा बनेगा, टिकट नहीं मिलने से जो विक्षुब्धों का खेमा तैयार होगा, उसका नेतृत्वकर पप्पू यादव लालू प्रसाद को चुनौती देनेवाले एक बड़े नेता के तौर पर उभरेंगे. पप्पू यादव कहते हैं कि हम कौनसा रास्ता अपनाएंगे, अभी कह नहीं सकते लेकिन यह जो उत्तराधिकारी की परंपरा शुरू की है लालू प्रसाद यादव ने और कार्यकर्ताओं से लेकर जनता तक पर थोपना चाहते हैं, उसका विरोध करेंगे.