‘ये अपने किए हुए सब्र के बदले दोहरा अजर दिए जाएंगे. ये नेकी से बदी को टाल देते हैं’ (28.54).
इस्लाम में कहीं भी तौहीन की सजा मौत नहीं है. यह दहशतगर्द, चाहे वह इराक में हों, पाकिस्तान में या फिर पेरिस में, जो इस्लाम के नाम पर बेगुनाह लोगों का खून बहाते ह,ैं वे इस्लाम की कोई खिदमत अंजाम नहीं दे रहे हैं बल्कि खुद कुफ्र-ए-कुरान और तौहीन-ए-रिसालत कर रहे हैं. कुरान हमें बताता है कि तकरीबन हर नबी की शान में गुस्ताखियां की गईं, लेकिन उसके लिए दुनिया की कोई सजा तजवीज नहीं की गई.
कुरान में रसूल की जिंदगी के बहुत से वाकयात बयान हुए हैं जो इस बात की दलील हैं की रसूल रहम और दरगुजर से काम लेते थे. कुरैश ने मक्का में आपके साथ कितनी बदसलूकियां की और कितने जुल्म ढाए यहां तक कि आप को मक्का छोड़ देने पर मजबूर कर दिया. लेकिन जब आप मक्का को जीतकर दोबारा कमांडर की हैसियत से वापस लौटे तो आप ने आम माफी का ऐलान कर दिया और अपने दुश्मनों से भी दरगुजर का बर्ताव किया.
इस्लाम का एक हिस्सा मानना और एक हिस्से को छोड़ देना वास्तव में इस्लाम से कुफ्र करना है. इसे कुरान मुनारेकत का नाम देता है. आज जो दुनिया में दहशतगर्दी फैला रहे हैं असल में वो यही काम कर रहे हैं. वह कुरान का एक हिस्सा मानते हैं ज्यादातर हिस्से को नजरअंदाज कर देते हैं. बंदूक उठाने से बेहतर है वो कुरान की तालीम पर गौर करें और नबी के रास्ते पर चलने की कोशिश करें.
किसी मुसलमान को ये हक नहीं के वो गुस्ताख-ए-रसूल या मुंकर-ए-इस्लाम को सजा दे. यह हक सिर्फ अल्लाह का है. वो जो सजा चाहेगा, देगा. ये इन्तहापसंद इस्लाम की कोई सेवा नहीं कर रहे हैं बल्कि कुरान की तालीम को अपने पैरों तले रौंद रहे हैं और दुनिया में फसाद कर रहे हैं. ये ‘इस्लामी दहशतगर्द’ नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ दहशतगर्द हैं.