प्यार पूंजीवादी नहीं चाहिए…

हास्य, चतुर संवाद और छद्म प्रेम ने जिस शुरुआती हिस्से को मजेदार बनाया है, वहां, और बाकी की फिल्म में भी, आलिया-वरुण के बीच की केमिस्ट्री ही इस फिल्म की खूबसूरत रंगोली है. वरुण अगर अपनी ऊर्जा के साथ थोड़ा मितव्यय हो जाएं, ताकि ठहराव आए और गोविंदा उनपर से जाएं, तो वे बेहतर अभिनेता बनेंगे. फिल्म बेहतर नहीं है इसलिए उनके बेहतरीन अभिनय की उसे जरूरत नहीं है, लिहाजा जो वे करते हैं, अच्छे लगते हैं. आलिया जाहिर है हर फिल्म के साथ बेहतर हो रही हैं, और वे हमारी फिल्मों का भविष्य हैं, दोबारा लिखना जरूरी है. आलिया के पास करीना वाला तोहफा भी है, कम मेहनत में स्क्रीन पर नेचुरल लगना, लेकिन कुछ दृश्यों में जब वे लापरवाह होती हैं, अभिनय में लगने वाली मेहनत से जी चुराने की कोशिश साफ दिखती है. आशुतोष राणा फिल्म में साधारण हैं, यह लिखना और उनका जिक्र करना सिर्फ इसलिए आवश्यक है कि वे एक असाधारण अभिनेता हैं.

फिल्म असाधारण नहीं है क्योंकि जिन प्रेम कहानियों में इश्क लहंगे, पैसे और कार पर निर्भर हो, कुछ अरसे बाद उन कहानियों में प्रेम का अंत ही होता है. और ऐसा प्रेम हमें नहीं चाहिए. फिल्मों में भी नहीं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here