दलित-सवर्ण शादी और डर का साया

हुआ यह कि हमारे गांव के, हमारी ही जाति के एक लड़के ने अपने घर के सामने रहने वाली एक सवर्ण लड़की से प्रेम किया. दोनों स्कूल में साथ ही पढ़ते थे. उन दोनों के प्रेम का पता हमें तब चला जब एक रोज यह बात गांव में फैली कि दोनों भाग गए. हो-हल्ला मचा. दो दिनों बाद लड़का-लड़की वापस आ गए. पंचायत बैठी, तय हुआ कि लड़का और लड़की की शादी अपने-अपने समुदाय और समाज के लोगों में जल्द से जल्द करवा दी जाए. ऐसा ही हुआ. पहले हमने लड़के के पिता पर दबाव बनाया कि वह शादी करवा दें. लड़की वालों की ओर से भी यही दबाव था कि लड़के की शादी कहीं और होने के बाद लड़की की शादी कराई जाएगी. ऐसा हुआ भी. लड़के की शादी करवा दी गई लेकिन वह उसे पत्नी के रूप में अपना नहीं सका. उसने अपनी पत्नी को समझा दिया कि समय रहते ही वह अपने पिता से कहकर दूसरी शादी कर ले, क्योंकि वह किसी और से प्यार करता है. नई नवेली दुल्हन ने बात मान ली. दूसरी ओर सवर्ण समुदाय की लड़की की भी शादी इसी साल के शुरू में बेगूसराय में करा दी गई. वह विदा होकर ससुराल गई लेकिन कुछ ही दिनों में वह ससुराल से भी फरार हो गई. पता चला कि वह हमारे जाति के लड़के के साथ फिर कहीं चली गई. गांव में फिर से बवाल मचा. लड़के के मां-बाप भी रातोंरात कहीं चले गए. वे जान गए थे कि अब उनके अच्छे दिन नहीं रहने वाले हैं. इसके बाद सवर्ण टोलेवालों ने हम सब पर दबाव बनाना शुरू किया कि तुम लोग लड़का और लड़की को किसी भी तरह से बुलाओ, नहीं तो खैर नहीं. इसके लिए हमारी जाति के लड़कों पर केस भी हुआ.

हम डर के साये में जीने लगे. हमने पहला संपर्क अपने ही गांव के रहनिहार विधायक से किया, जो बिहार के सत्तारूढ़ दल के विधायक हैं, राज्य में मंत्री भी रहे हैं. विधायकजी सवर्ण टोले के हैं लेकिन उम्मीद थी कि वे जनप्रतिनिधि हैं तो उनकी क्या जाति, वे हमारी बात सुनेंगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. हमारे समाज के लोगों पर दबाव बढ़ता गया. बहुत कोशिश के बाद लड़का-लड़की से संपर्क हो सका, जो भागकर हरियाणा-पंजाब के अलग-अलग इलाकों में रह रहे थे. लड़के को हमने बताया कि प्रेम तुमने किया है, गुनाह तुम्हारा है और सजा हम भुगत रहे हैं. लड़का आने को तैयार हुआ. बेगूसराय कोर्ट में आईपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने की बात हुई. लड़का-लड़की के कोर्ट में आने की तारीख भी मुकर्रर हो गई. इस बीच गांव के सवर्ण टोलेवालों ने फिर से हम पर दबाव बनाया कि कोर्ट में बयान देने से पहले लड़के को समझाओ कि वह ऐसा बयान दे कि वह अपहरणकर्ता है और लड़की की कोई गलती नहीं. हम तारीख के दिन बेगूसराय कोर्ट गए लेकिन वहां लड़का क्या बयान देता, उसकी प्रेमिका यानी सवर्ण टोलेवाली लड़की ने ही पहले ही डंके की चोट पर बयान दे दिया कि उसका अपहरण नहीं हुआ है. वह बालिग है, अपनी मरजी से गई थी और लड़के के साथ ही रहेगी.  कोर्ट की बात वहीं खत्म हुई. हम समझ गए कि आफत के दिन अब शुरू होने वाले हैं लेकिन यह नहीं सोच सके कि इतनी जल्द. यह बात 26 जुलाई की है और इसके अगले ही दिन हमारे टोले पर सवर्ण टोलेवालों ने हथियार आैर लाठी-डंडों के साथ धावा बोल दिया. हम रोते-बिलखते रहे लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं. हमारे लोगों को घरों से निकालकर मारा-पीटा जा रहा था. लड़कियों और महिलाओं के साथ बदतमीजी की जा रही थी. घरों के सामान तोड़े जा रहे थे. देखते ही देखते हमारा सब कुछ लुट गया. सारी उम्मीदें, सारे सपने पल भर में भरभरा गए. फिर जिसे जैसे मौका मिला, गांव छोड़कर भागा. गांव से कुछ दूर पनाह ली ली गई. एक रात स्कूल में गुजारी. फिर वहां से भागकर दूसरी जगह अपनी ही जाति के एक टोले के सामु​दायिक भवन में रहने लगे. सभी जवान लड़कियों को उनके ननिहाल, मौसीहार में भेज दिया ताकि कम से कम वे सुरक्षित रहें. प्रशासन के लोग आए लेकिन हमारा सहयोग करने नहीं. हमें समझाने कि गांव चलो, सरकार की बदनामी होगी कि तुम लोगों ने गांव छोड़ दिया है. हमारा सवाल था कि जब हमारे घर तोड़े जाते रहे, हमें मारा जा रहा था, तब प्रशासन कुछ नहीं कर सका तो आगे की जिंदगी आखिर किस विश्वास पर प्रशासन के हवाले छोड़ दें.

Jan Ki Baat web

जिस टोले को हमने अपना बसेरा बनाया था, वहां के लोग चंदा जमाकर खाने का इंतजाम करते रहे. पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव को इसकी भनक लगी. वे पहुंचे. उन्होंने हम 80 परिवारों को पहले पांच-पांच हजार रुपये दिए ताकि हम कपड़े-लत्ते और जरूरी सामान खरीद सकें. पप्पू यादव ने आश्वासन दिया कि वे हमारी लड़ाई लड़ेंगे. संसद से सड़क तक लड़ेंगे. उसकी कोशिश उन्होंने की, कर भी रहे हैं. उन्होंने बाजार बंद कराए और प्रदर्शन भी कराया. ​हमें पटना ले जाकर हमारी पीड़ा को आवाज देने की कोशिश की. संसद में हमारी बातों को रखा. हाई कोर्ट में खुद हमारे पक्ष में बहस की लेकिन पप्पू यादव राज्य के सरकार नहीं. देश के सरकार नहीं. वे जितना कर सकते थे, उन्होंने किया और वे लगातार कर भी रहे हैं. उनसे कोई शिकायत नहीं.

नीतीश कुमार से उम्मीद थी क्योंकि उन्होंने हमें सशक्त बनाने के लिए दलित बनाया था लेकिन समझ में आ गया कि उन्होंने वोट के लिए ऐसा किया. हमें उम्मीद अपने गांव के विधायक से थी लेकिन उनके जो बयान अखबारों में आए, उससे हम हैरान हैं. उन्होंने बयान दिया था कि हम गांव में पीड़ित परिवारों के घर बिजली लगवा रहे हैं, शौचालय बनवा रहे हैं, चापाकल लगवा रहे हैं, अब सब ठीक हो जाएगा. आप इससे तो समझ ही गए होंगे कि इस प्रताड़ना का दंश झेलने के पहले हमारे इतने बड़े तांती टोले में न तो शौचालय था, न चापाकल और न ही बिजली पहुंची थी. हम गांव में छोड़कर भाग गए हैं तो हमारे घरों के बाहर शौचालय बनाया जा रहा है, बिजली का तार झुलाया जाता रहा. बिहार को यह नया रोग लगा है सर. यहां जहां भी बलात्कार होता है, सबसे पहले शौचालय और बिजली से उसका निदान किया जाता है. बलात्कार, प्रताड़ना और बिजली का क्या रिश्ता है, खुदा जाने.

हमारे पास कोई रास्ता नहीं बचा. आखिर कब तक शरणार्थी की तरह दूसरे गांव के सामुदायिक भवन में रहते. कब तक अपनी बेटियों को रिश्तेदारी में भेजकर रखते. कब तक चंदे के अनाज से अपना पेट भरते. हम अपने गांव लौटने लगे हैं. सब लौट ही जाएंगे. और कहां ठौर मिलेगा. लेकिन आप ही बताइए उसी गांव में कैसे रहेंगे. उस गांव में हमारा सिर्फ घर है. घर बाहर निकला रास्ता जिस पर हम चलते हैं, वह सवर्णों का है. जिस खेत में बकरी चराते हैं, जिस जमीन पर पेशाब-पैखाना करते हैं, वह भी उन्हीं का है. हम चारों ओर से थक-हारकर अपने गांव लौट रहे हैं लेकिन हम जानते हैं ​कि हमें इसकी कीमत पूरी जिंदगी चुकानी होगी. हम गांव में रहेंगे तो हमारी मजबूरी होगी कि उनके ही घरों, उनके खेतों में मजूरी करें. कैसे करेंगे काम उनके यहां, जिन्होंने बिना गलती के हमारे साथ दुर्व्यवहार किया था. मांस खाने के लिए हमारी बकरियों को घरों से खोलकर ले गए थे. वहां के कण-कण से हमें लगाव है लेकिन वहां अब कैसे रह सकते हैं. पूरी जिंदगी गिरवी रखनी होगी हमें वहां रहने के लिए.

प्रधानमंत्री जी आप ही बताइए कोई रास्ता. पुलिस प्रशासन का हवाला न दीजिएगा कि वे संभाल लेंगे सब. जिस दिन हम पीटे जा रहे थे, उस दिन भी पुलिस आई थी. तब पुलिसवाले भी पीटे गए थे और पत्रकार भी. हम तो बस यह कह रहे हैं कि कहीं कुछ गज जमीन दे दीजिए, गांव के हमारे घर के बदले, हम कहीं मजूरी कर जीवन गुजार लेंगे. कम से कम अनजान जगह पर बसेंगे तो अपनी मर्जी से सांस तो लेंगे. हम अपनी जड़ों से उखड़ना चाहते हैं सर, उखड़वा दीजिए.

शिराेमणि टोला वासी, खगड़िया, बिहार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here