‘जो किसान फंदे पर लटकने से नहीं डर रहा, वो किसी को मारने से भी नहीं झिझकेगा’

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वह क्या था, जिसने आपको किसानों की मदद के लिए आगे आने को प्रेरित किया?

मैं भी एक किसान हूं. मैं खेती की हकीकत और उस पीड़ा से परिचित हूं, जिनसे किसान गुजरते हैं. हम लोग यह सब उनके लिए ही नहीं बल्कि खुद के लिए भी कर रहे हैं. हम लोग मानवता को बचाए रखना चाहते हैं. जो लोग मर रहे हैं, वे मेरे परिवार की तरह हैं. एक देश के रूप में हमें अपने भीतर मानवता को जीवित रखना होगा, इससे पहले कि ये बिलकुल ही खत्म हो जाए. अगर हम ही सहयोग के लिए आगे नहीं आएंगे, तो और कौन मदद करेगा? सच्चाई ये है कि किसानों की हालत बहुत खराब है और इसी वजह से ही वे खुदकुशी कर रहे हैं. हम जो भी कर सकते हैं वो करेंगे और सरकार जो करना चाहती है, वह करने के लिए स्वतंत्र है.

अक्षय कुमार को छोड़कर क्या हिंदी फिल्मों की कोई दूसरी शख्सियत मदद के लिए आगे आई है?

मदद करने का सबका अपना-अपना तरीका होता है. ऐसा नहीं है कि कुछ लोग असंवेदनशील हैं. बस इतना है कि एक दुनिया में हर तरह के लोग हैं. कुछ लोग अपने कामों में बहुत ज्यादा व्यस्त हैं, उन्हें सामाजिक कार्यों के लिए मुश्किल से समय मिल पाता है लेकिन जब भी उन्हें कहीं, किसी दुखद घटना की जानकारी मिलती है, वे नकद या किसी अन्य तरीकों से मदद करते हैं. किसानों की मदद के लिए उनसे जाकर मिलना जरूरी नहीं है. हम किसानों की समस्या स्थायी तौर पर दूर नहीं कर सकते हैं. हम उन्हें बिजली नहीं दे सकते हैं लेकिन हम उन्हें पानी दे सकते हैं, जिसके लिए हमारी कोशिश जारी है.

आपका प्रयास सराहनीय है लेकिन भारत में किसानों की खुदकुशी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. आपके अनुसार किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में एक राष्ट्र के रूप में हम कहां पर चूक रहे हैं?

किसानों को समझना बहुत आसान है. उन्हें बिजली व पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की जरूरत है. यदि वहां पर एक या दो साल सूखा पड़ जाता है, तो हमें यह तय करना होगा कि उन्हें पानी मिल सके. यदि फसल नहीं होगी, तो वे पूरे साल क्या खाएंगे? जलापूर्ति के लिए यह पहेली सुलझानी होगी कि उनके खेत तक कैसे पानी पहुंचाया जाए. हमारे अभियान के जरिये तकनीकी पृष्ठभूमि वाले स्वयंसेवी आगे आ रहे हैं. मुझे उम्मीद है कि हम पानी से जुड़ी इन समस्याओं को दूर करने में सफल होंगे. सरकार इन मामलों में पूरी तरह विफल रही है. हम इस समय जमीनी काम कर रहे हैं. हम अपनी कामकाजी दिनचर्या में से किसानों से मिलने और उनकी समस्याओं को समझने के लिए समय निकाल रहे हैं. नियमित मुलाकात के बगैर हम न तो उनकी समस्याएं दूर कर सकते हैं और न ही कोई मदद कर सकते हैं.

किसानों की विधवाओं की सहायता अच्छी पहल है लेकिन जब आप खुदकुशी की बढ़ती दर को देखते हैं, तो आपको सबसे ज्यादा क्या परेशान करता है?

हम लोगों ने खुदकुशी करने वाले सभी किसानों के परिवारों को 15,000 रुपये देने का फैसला किया है, ताकि वे बुआई के लिए बीज खरीद सकें. मैं महसूस करता हूं कि किसानों की सबसे बड़ी समस्या सरकारी बैंक से कर्ज लेना है, हाल ये है कि बारिश न होने की स्थिति में उनके पास अपनी फसल व जमीन के दस्तावेजों को गिरवी रखकर सूदखोरों से कर्ज लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है. मनरेगा किसी परिवार के एक सदस्य को एक दिन में केवल 180 रुपये देती है, जबकि उसके परिवार में पत्नी, बच्चे, माता और पिता भी होते हैं. इतनी आमदनी में कोई भी अपना घर नहीं चला सकता है, क्योंकि स्कूल फीस, दवाओं जैसे अन्य खर्चे भी होते हैं. कई बार किसान अपनी दूसरी इच्छाएं और पारिवारिक जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाते हैं जैसे बच्चों की मात्र 10 रुपये की कीमत वाले खिलौने की चाहत अधूरी रह जाती है. यही असहनीय पीड़ा उन्हें खुदकुशी के लिए उकसाती है. उन्हें एक या दो साल तक मदद देना समाधान नहीं है. उनकी दुर्दशा का स्थायी समाधान खोजना होगा.

पुराने समय में गांवों में तालाब व कुंए होते थे. हम इस पर शोध कर रहे हैं और उम्मीद है कि ऐसी सुविधाओं को लाने में सफल होंगे. ऐसे कुओं व तालाबों को चिह्नित करने के लिए हमारी टीम बड़े पैमाने पर काम कर रही है. मैं इस काम में अकेला नहीं हूं, बहुत से स्वयंसेवी धीरे-धीरे आगे आ रहे हैं.

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फोटो साभार- प्रोकेरला डॉट कॉम

हाल ही में महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री एकनाथ खड़से ने कहा है कि आपदा प्रभावित जिलों में किसानों के बच्चों की 12वीं तक की स्कूल फीस माफ होगी. क्या यह पर्याप्त है?

मैं समझता हूं कि यदि पूरे देश को निःशुल्क शिक्षा दी जाए तो किसी भी मानवीय हस्तक्षेप के बगैर विकास हो जाएगा. किसानों के बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा एक अच्छा कार्यक्रम है लेकिन सवाल भोजन का भी है. खाली पेट पढ़ाई नहीं हो सकती. भोजन बुनियादी जरूरत है.

इस मामले में सरकार का हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए आप किस तरह के प्रयास कर रहे हैं? क्या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने आपसे बात की है?

सरकार को उनका काम करने दें. मैं सरकार के कामकाज पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. मैं अपने हिस्से का सहयोग कर रहा हूं. मैंने फड़णवीस से बात की है और उन्हें बताया है कि आप जो कुछ भी दे रहे हैं, वह किसानों के लिए पर्याप्त नहीं है. भविष्य में, उनकी समस्याएं घटने के बजाए कई गुना बढ़ेंगी. एक किसान, जो खुद को फंदे पर लटकाने से नहीं डर रहा है, भविष्य में किसी दूसरे को मारने में भी नहीं झिझकेगा. किसानों में मायूसी नहीं फैलनी चाहिए.

एक तरफ सरकार ने स्मार्ट सिटी की योजना पेश की है, किसान फसलों की कम कीमत और खेती से हो रही न्यूनतम आय की वजह से जान दे रहे हैं. आपका क्या कहना है?

मैं खुद गांव से आता हूं, मेरे पास स्मार्ट सिटी को लेकर कोई राय नहीं है. बुनियादी सच्चाई यह है कि किसान, जो देश को भोजन देता है, देश का अन्नदाता है, मर रहा है. उनकी समस्याओं के हल ढूंढने की वजह ने मुझे जीने का मकसद दिया है. उनकी आमदनी अनिश्चित है. वे बिना ये सोचे कि इसके बदले उन्हें क्या मिलेगा फसल में पैसा लगाते हैं.

किसानों की सबसे बड़ी समस्या सरकारी बैंक से कर्ज लेना है, हाल ये है कि बारिश न होने की स्थिति में उनके पास अपनी फसल व जमीन के दस्तावेजों को गिरवी रखकर सूदखोरों से कर्ज लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता

कोई किसान आपसे मदद चाहता है, तो कैसे संपर्क करे?

जैसे-जैसे हमारे पास फंड आ रहा है, हम गांवों को गोद लेने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि सभी घरों तक मदद पहुंच सके. हम नहीं चाहते कि किसानों को पानी के लिए मीलों तक दौड़ना पड़े, इसलिए पानी की समस्या के समाधान के लिए हमने कई इंजीनियरों को अपने साथ जोड़ा है.

इस अभियान में मदद के लिए क्या आप किसी अन्य कलाकार से आगे आने के लिए संपर्क करना चाहेंगे?

नहीं, मैं कौन होता हूं किसी से संपर्क करने वाला? यह अच्छा है कि लोग स्वेच्छा से आगे आ रहे हैं.

सूखाग्रस्त क्षेत्रों में किसानों की मौत के मुद्दे पर आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से क्या कहना चाहेंगे?

जैसे मैं इस विषय को लेकर गंभीर हूं, सरकार को भी इस मुद्दे पर गंभीरता दिखानी चाहिए. जब तक सरकार ऐसा नहीं करे, जनता को सरकार पर पूरी तरह से निर्भर नहीं होना चाहिए. हमें खुद-ब-खुद आगे आना होगा.

 आम जनता के लिए कोई संदेश?

कुछ नहीं बस केवल धन्यवाद. सिर्फ दो दिनों में लोगों ने दो करोड़ रुपये दान किए हैं. 10-20 रुपये जैसी छोटी ही सही लेकिन व्यक्तिगत मदद आ रही है. मुझे यह देखकर प्रसन्नता हो रही है कि युवा आगे आ रहे हैं और मुझसे कह रहे हैं कि वे किसानों के लिए अपना एक महीने का वेतन दान करना चाहते हैं. इसके अलावा वे लोग भी हैं, जिनके बारे में आप सोचते हैं कि उनके पास देने को कुछ नहीं है, वे मदद के लिए आगे आ रहे हैं. चाय बेचने वालों ने मिलकर 2,000 रुपये दान किए हैं. यह सब देखकर मैं खुश हूं. ये खुशी पैसे के लिए नहीं है बल्कि मुझे यह देख खुशी हो रही है कि किसानों की मदद करने की जरूरत को लेकर जागरूकता बढ़ रही है.