नेत्रकोष की वैधता सवालों के घेरे में
अस्पताल का नेत्र विभाग भले ही लाख दावे करे कि उसका नेत्रकोष ह्यूमन ऑर्गन ट्रांसप्लांट एक्ट, 1994 के तहत पंजीकृत है, लेकिन सच ये है कि नेत्रकोष का रजिस्ट्रेशन वर्ष 2013 में कराया गया. इससे पहले यह दशकों तक अवैध रूप से चलाया जाता है. इसकी पुष्टि एनपीसीबी का ‘परिशिष्ट 21’ करता है. इसमें दिए देशभर के नेत्रकोषों की सूची में इसका नाम नहीं है. इससे पता चलता है कि सभी दिशा-निर्देशों को ताक पर रखकर जयारोग्य अस्पताल का नेत्र विभाग वर्षों तक अवैध रूप से आई बैंक संचालित करता रहा.
नेत्र दान से मोहभंग
मामले में कितनी सच्चाई है इस बारे में तो अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन इसका असर ये हुआ है कि लोगों का नेत्रदान के प्रति मोहभंग हो गया है. लोगों का कहना है कि भले ही यह डॉक्टरों के खिलाफ कोई साजिश हो लेकिन आंखें तो फेंकी ही गई हैं न. सबसे अहम ये है कि लोग नेत्रदान को लेकर असमंजस में हैं. आंखें दान कर चुके एक परिवार के सदस्य सुरेश जैन कहते हैं, ‘साहब क्या होगा? सब बड़े लोग ही तो हैं कुछ नहीं बिगड़ेगा उनका. व्यापमं का ही उदाहरण ले लीजिए. जो असली गुनहगार हैं वो बच निकलेंगे और फंसेगा कोई लिसी पीटर जैसा ओटी इंचार्ज. जांच चलती रहेगी पर हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले को क्या कोई सजा मिल पाएगी? ये व्यवस्था अंदर तक खोखली है.’
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