नीडो तानिया प्रकरण: नस्लवाद-विवाद

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नीडो तानिया

31 जनवरी, 2014. मीडिया में पूर्वोत्तर के एक छात्र की नस्ली हिंसा में मौत की ख़बरें आई. नीडो तानिया नाम का यह छात्र मूल रूप से अरुणाचल प्रदेश का था और उसके पिता वहां विधान सभा सदस्य हैं. 29 जनवरी को नीडो और उसके साथियों की लाजपत नगर के एक दुकानदार से मारपीट हुई थी जिसके अगले दिन नीडो की मौत हो गई. मीडिया ने आनन-फानन में इसे नस्ली हिंसा बताया और लगभग सभी समाचार चैनलों ने ‘नस्लभेद’ पर बहस शुरू कर दी. दिल्ली में मौजूद पूर्वोत्तर के जनप्रतिनिधि तक शुरुआत में नीडो की मौत को नस्ली हिंसा मानने से इनकार करते रहे लेकिन चैनल इस मामले को नस्लभेद का मुद्दा बनाने की ठान चुके थे. जल्द ही यह मुद्दा देश भर में फैल गया.

नस्लभेद के खिलाफ कानून बनाने और नीडो को इंसाफ दिलाने के लिए जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इन प्रदर्शनकारियों का खुलकर समर्थन किया.

इस पूरे प्रकरण का एक सकारात्मक परिणाम यह हुआ कि नस्लभेद के खिलाफ मौजूदा कानूनों की समीक्षा के लिए सरकार पर दबाव बन गया. इसके चलते सरकार ने एक कमेटी का गठन भी कर दिया. इस छह सदस्यीय कमेटी को पूर्वोत्तर के लोगों के साथ होने वाली हिंसा और भेदभाव की रोकथाम के लिए दो महीने के भीतर सुझाव देने हैं. दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए पुलिस से इस पर रिपोर्ट मांगी है. साथ ही कोर्ट ने सरकार से दिल्ली में रह रहे पूर्वोत्तर के लोगों की सुरक्षा व्यवस्था पर रिपोर्ट पेश करने को भी कहा है.

मीडिया और प्रदर्शनकारियों के दबाव में हाई कोर्ट और सरकार ने जो किया उसे तो सही कहा जा सकता है, लेकिन सरकार के दबाव में पुलिस इस मामले में जो कर रही है उस पर कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं. इस मामले में पुलिस की भूमिका पर आगे चर्चा करेंगे. पहले बात करते हैं उस सवाल की जिसे सबसे पहले पूछा जाना चाहिए – क्या सच में नीडो तानिया का मामला नस्ली हिंसा का मामला था? लाजपत नगर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता आशीष तिवारी बताते हैं, ‘नीडो की मौत के मामले को सिर्फ मीडिया ने नस्लभेद का मुद्दा बनाया है. यह कहीं से भी नस्लभेद नहीं था. यह एक ऐसा झगड़ा था जो पूर्वोत्तर के ही नहीं बल्कि कहीं के भी व्यक्ति के साथ उन परिस्थितियों में हो सकता था.’ आशीष आगे बताते हैं, ‘इस मामले के बाद जो नस्लभेद पर बहस छिड़ी है और जो कानून बनाने की मांग हो रही है उसका स्वागत किया जाना चाहिए. लेकिन नीडो के मामले को इस तरह से प्रदर्शित करना जैसे उसे नस्ली हिंसा में मार दिया गया हो गलत है.’ पुलिस द्वारा निचली अदालत में दाखिल की गई रिपोर्ट और नीडो के दोस्त लोकम लूलू के बयान भी काफी हद तक आशीष की बात को ही सही ठहराते हैं. लोकम घटना वाले दिन नीडो के साथ थे और उन्होंने ही इस मामले में एफआईआर भी दर्ज करवाई थी. लोकम द्वारा पुलिस को दिया गया बयान कहता है, ‘मैं और नीडो पता पूछने दुकान में गए लेकिन दुकानदार नीडो के बाल देखकर हंसने लगा. इस पर नीडो को गुस्सा आया और उसने दुकान के काउंटर का शीशा मुक्का मारकर तोड़ दिया. इसके बाद दुकानदार और उसके तीन साथियों ने नीडो को बुरी तरह से पीटा और उसे जातीय एवं नस्ली अपशब्द कहे.’ इस बयान के साथ ही पुलिस द्वारा दाखिल की गई रिपोर्ट भी कहती है, ‘नीडो के बाल देख कर फरमान (दुकानदार) हंसने लगा जिससे नीडो को गुस्सा आया और उसने फरमान की दुकान का काउंटर तोड़ दिया. इसके बाद फरमान द्वारा नीडो को पीटा गया.’ इन दोनों ही बातों से यह साफ होता है कि झगडे़ की शुरुआत किसी भी नस्ली टिप्पणी या भेदभाव के कारण नहीं हुई थी. हालांकि एफआईआर में जरूर लोकम ने यह आरोप लगाया है कि झगड़ा नस्ली टिप्पणी से ही शुरू हुआ लेकिन एफआईआर की बातों पर संदेह के कई कारण हैं जिन पर आगे चर्चा करेंगे.

इस मामले की बारीकियों में जाने से पहले घटना को मोटे तौर पर जानते हैं. हालांकि इस घटना के कई पहलू ऐसे हैं जिनके बारे में अलग-अलग पक्षों द्वारा अलग-अलग बातें बताई जा रही हैं.

29 जनवरी को नीडो अपने तीन अन्य दोस्तों के साथ लाजपत नगर गया. यहां उसका एक दोस्त रहता था जिसकी तबीयत खराब थी. लगभग दोपहर दो बजे लाजपत नगर पहुंचने पर नीडो ने एक दुकान पर जाकर अपने दोस्त के घर का पता पूछना चाहा. यह दुकान फरमान नाम के एक लड़के की है. फरमान के साथ ही उसके छोटे भाई रिजवान और फैजान भी दुकान पर बैठते थे. नीडो जब इस दुकान पर पहुंचा तो फरमान और उसके साथियों द्वारा कोई ऐसी टिप्पणी या व्यवहार किया गया जिससे उसे गुस्सा आ गया. गुस्से में उसने दुकान के काउंटर पर लगे कांच को मुक्का मार कर तोड़ दिया. इस पर फरमान और नीडो के बीच मारपीट हुई. थोड़ी देर में किसी ने पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस आकर नीडो और फरमान को थाने ले गई. इस बीच नीडो ने काउंटर का कांच तोड़ने की भरपाई के लिए फरमान को सात हजार रुपये भी दिए. नीडो ने अपने घरवालों को भी उसी वक्त घटना की जानकारी दी. फरमान और नीडो द्वारा मामला दर्ज करवाने से इनकार करने के बाद पुलिस ने दोनों के बीच लिखित समझौता करवा दिया. इस समझौते पर दो निष्पक्ष गवाहों के दस्तखत भी कराए गए. शाम को लगभग चार बजे नीडो के दोस्त और रिश्तेदार नीडो को लेने लाजपत नगर थाने पहुंचे. नीडो उनके साथ चला गया. फरमान भी लौटकर अपनी दुकान पर आ गया. नीडो और फरमान दोनों को ही कुछ चोटें आई थीं. पुलिस के अनुसार दोनों ने ही मेडिकल जांच करवाने और मामला दर्ज करने से इनकार कर दिया था, इसलिए किसी का भी मेडिकल नहीं करवाया गया. नीडो के दोस्त के अनुसार नीडो ने शाम को टेटनेस का एक इंजेक्शन लगवाया. रात को उसने छाती में हल्के-से दर्द की शिकायत भी की. दोस्त के अनुसार उस रात वह और नीडो रात भर जगते रहे और सुबह लगभग छह बजे सोए. इसके बाद दोपहर (30 जनवरी) लगभग ढाई बजे जब दोस्तों ने नीडो को उठाना चाहा तो वह नहीं उठा. दोस्त नीडो को लेकर एम्स पहुंचे तो डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. अगले दिन यानी 31 जनवरी को शाम 6 बजकर 45 मिनट पर नीडो के दोस्त लोकम लूलू ने लाजपत नगर थाने में नीडो की हत्या की एफआईआर दर्ज करवाई.

घटना के इस विवरण की जिन बातों में विरोधाभास है उनमें से सबसे प्रमुख है कि झगड़ा एक बार हुआ या दो बार. शुरुआत में पुलिस के आधिकारिक बयानों में कहा गया कि झगड़ा सिर्फ एक ही बार हुआ था. लाजपत नगर इलाके के निवासी भी झगड़ा एक बार होने की ही बात बताते हैं. दूसरी तरफ नीडो के दोस्त एवं परिवारवाले बताते हैं कि झगड़ा दो बार हुआ. उस दिन नीडो के साथ मौजूद उनके दोस्त रिकम बताते हैं, ‘पहली बार नीडो और लोकम दुकान पर गए थे. तब दुकानदार ने नीडो को मारा था. इसके बाद हम अपने दोस्त के घर चले गए थे. लेकिन जब हम वहां से लौट रहे थे तो हम चार दोस्त साथ में थे. दुकान वालों को लगा कि हम ग्रुपिंग करके (संगठित होकर) आ रहे हैं. तो उन्होंने नीडो को दोबारा मारा. इस बार वहां 48 लोग मौजूद थे.’ रिकम के इस बयान से उलट नीडो के परिवारवालों का बयान था कि ‘पुलिस ने झगड़ा होने के बाद नीडो को दोबारा उसी जगह छोड़ दिया था जहां झगड़ा हुआ था, जिस वजह से नीडो को दोबारा मारा गया.’ लेकिन पुलिस और नीडो के दोस्त यह बताते हैं कि नीडो को लेने उसके परिचित थाने ही गए थे और फिर वहां से नीडो उनके साथ चला गया था. इसके अलावा रिकम की यह बात कि दूसरी बार झगड़े के वक्त वहां कुल 48 लोग मौजूद थे अपने आप में बेहद विचित्र है. सामान्य हालात में ही जब तक 48 लोग किसी व्यवस्थित तरीके से न खड़े हों, उन्हें ठीक-ठीक गिनना बेहद मुश्किल है. तो फिर मारपीट की हालत में रिकम ने ऐसा कैसे कर लिया? साथ ही एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि रिकम द्वारा बताई जा रही इस दूसरी मारपीट में उसको और नीडो के बाकी अन्य दो दोस्तों को कोई चोट नहीं आई.

अब बात करते हैं इस घटना के बाद हुई पुलिस कार्रवाई की. 30 जनवरी को नीडो की मौत हुई जिसकी सूचना लाजपत नगर थाने में भी आई. इसके अगले दिन यानी 31 जनवरी को नीडो के दोस्त लोकम लूलू ने एफआईआर दर्ज करवा दी. इसमें कहा गया कि 29 जनवरी को फरमान और उनके साथियों ने नीडो को मारा था. लोकम द्वारा इस रिपोर्ट में कहीं भी समझौते की बात नहीं कही गई. बल्कि यह कहा गया कि ‘फरमान और उनके साथियों ने हमसे बलपूर्वक सात हजार रुपये ले लिए. इसमें से पांच हजार मुझसे और दो हजार नीडो से लिए गए.’ यह आरोप इस एफआईआर के अलावा और कहीं नहीं है. नीडो के अभिभावक समेत खुद लोकम भी अपने बयानों में समझौते के तौर पर हर्जाना चुकाने की बात स्वीकार चुके हैं. एफआईआर में नीडो की मौत के दोष के बारे में आगे कहा गया कि ‘अब मुझे पूरा शक है कि नीडो की मौत 29 जनवरी को फरमान और उसके साथियों द्वारा मारे जाने के कारण ही हुई है.’ इस पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत मामला दर्ज किया. फरमान के रिश्तेदारों के मुताबिक 31 जनवरी को ही पुलिस फरमान को पकड़ कर थाने ले गई. अगले दिन पुलिस फरमान के दो नाबालिग भाइयों को भी थाने ले गई. फरमान के वकील विशेष कुमार राघव बताते हैं, ‘फरमान और उसके भाइयों को पुलिस ने तीन दिन तक गैरकानूनी तरीके से बंद रखा. उनकी गिरफ्तारी नहीं दिखाई और इसलिए उन्हें कोर्ट में पेश ही नहीं किया.’

फरमान के भाइयों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने एक फरवरी को ही पवन और सुंदर नाम के दो भाइयों को भी गिरफ्तार किया. ये दोनों भाई घटना स्थल के सामने ही चौथे माले पर रहते हैं. सुंदर ने ही घटना वाले दिन पुलिस को सूचना दी थी जिसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची थी (तहलका के पास इसकी कॉल डिटेल मौजूद है). सुंदर की मां विमला देवी बताती हैं, ‘जिस दिन ये झगड़ा हुआ था उस दिन मैंने ही पहले बालकनी से देखा कि नीचे सड़क पर काफी भीड़ थी. सुंदर को मैंने बाहर बुलाया. मुझे लगा शायद कोई एक्सीडेंट हुआ है. वो नीचे देखने चला गया. जब उसे झगडे़ का पता चला तो उसने ही पुलिस को फोन किया.’ विमला देवी आगे बताती हैं, ‘पुलिस ने उस दिन दुकानवाले और उस लड़के का समझौता भी करवाया था. उसमें दो गवाहों के दस्तखत भी करवाए थे. मेरे बेटे पवन ने तो उस समझौते पर गवाह बनकर दस्तखत किए थे. अब पुलिस ने उसको ही बंद कर दिया. गवाह पर ही आरोप डाल दिया. अगर मेरे बेटों को कुछ होता है तो आगे से कोई किसी की मदद करने भी नहीं आएगा.’

फरमान और उसके भाइयों की तरह पुलिस ने पवन और सुंदर की गिरफ्तारी को दर्ज नहीं किया. पवन के वकील शलभ गुप्ता बताते हैं, ‘पवन और सुंदर को पुलिस एक फरवरी की सुबह 10.30 बजे ले गई थी. तीन फरवरी तक पुलिस ने उन्हें गैरकानूनी तरीके से बंद रखा और कोई गिरफ्तारी नहीं दिखाई. जब पवन के एक दोस्त ने डीसीपी को एक मेल भेज कर इसके बारे में बताया तब पुलिस ने उनकी और फरमान की गिरफ्तारी तीन फरवरी को दिखाई.’ अपने दोनों बेटों की गिरफ्तारी के बारे में विमला देवी बताती हैं, ‘पुलिसवाले ये बोल कर मेरे बेटों को ले गए थे कि ये तो गवाह हैं. इन्हें बस गवाही देनी है, शाम तक वापस आ जाएंगे. लेकिन रात को पुलिस ने घर से कंबल मंगवाए और कहा कि ये आज हमारे साथ ही थाने में रहेंगे. दो-तीन दिन तक पुलिसवाले यही कहते रहे कि थोड़ी देर में छोड़ देंगे. तब तक उनके मोबाइल भी उनके पास ही थे तो मेरी बात होती थी उनसे. फिर चार जनवरी को उनको जेल भेज दिया. सुंदर ने मुझे ये भी बताया कि फरमान को पुलिस ने थाने में बहुत मारा और कहा कि तुम इन दोनों भाइयों को भी मारपीट में शामिल बताना.’

पवन के अलावा उनके पड़ोस में रहने वाले एक वृद्ध ने भी घटना वाले दिन समझौते पर दस्तखत किए थे. पवन और सुंदर के साथ पुलिस उन्हें भी थाने ले गई थी. विमला देवी बताती हैं, ‘हमारे पड़ोसी को रात लगभग दस बजे वापस भेज दिया था. उनकी बहू ने थाने में जाकर बताया कि इनको दिल की बीमारी है और थाने में इनकी तबीयत खराब हो सकती है तो पुलिस ने उनको छोड़ दिया. अब वे हमसे बात भी नहीं कर रहे. मैंने उनसे कहा कि मेरे बेटे ने तो आपको देखकर ही दस्तखत किए थे. अब पुलिस उसको फंसा रही है तो आप मदद करो. उन्होंने मुझे कहा कि मैं कुछ नहीं कर सकता, मेरा कोई मतलब नहीं इस मामले से.’
इन सबकी गिरफ्तारी के बाद भी पुलिस के पास इन लोगों को हत्या का आरोपित बनाने का कोई ठोस कारण नहीं था. लिहाजा पुलिस ने अदालत में दाखिल की गई रिपोर्ट में लिखा कि ‘अभी इन सभी लोगों को एससी/एसटी एक्ट में आरोपित बनाया गया है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद इन्हें हत्या का आरोपित भी बनाया जा सकता है.’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण है. इसी के आधार इन सभी आरोपितों पर हत्या का आरोप लगाया गया है. लेकिन यह रिपोर्ट भी विवादों से परे नहीं है. शुरुआती पोस्टमार्टम के दौरान एम्स के डॉक्टरों ने बयान दिया कि नीडो के शरीर में कुछ मामूली चोटें हैं और गर्दन तथा दिमाग में हलकी सूजन पाई गई है. लेकिन इसके साथ ही यह भी कहा गया कि इनमें से कोई भी चोट मौत का कारण नहीं है. प्राथमिक पोस्टमार्टम में मौत का कारण स्पष्ट नहीं था, इसलिए नीडो के विसरा सैंपल को सीएफएसएल भेजा गया. कहा गया कि वहां से रिपोर्ट आने के बाद ही मौत का कारण बताया जा सकता है. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस बीच पुलिस को फटकारते हुए पोस्टमार्टम रिपोर्ट जल्दी दाखिल करने को कहा. लेकिन हाई कोर्ट द्वारा दी गई समय सीमा के भीतर पुलिस ने रिपोर्ट पेश नहीं की.

अंततः 10 फरवरी यानी सोमवार को पुलिस ने दिल्ली हाई कोर्ट में पोस्टमार्टम रिपोर्ट दाखिल कर दी. लेकिन यह रिपोर्ट और भी ज्यादा चौंकाने वाली है. रिपोर्ट में कहा गया कि नीडो की मौत सिर एवं चेहरे पर किसी ‘ब्लंट ऑब्जेक्ट’ द्वारा पहुंचाई गई चोटों के कारण हुई है. इस रिपोर्ट पर कई सवाल खड़े होते हैं. पहला तो यह कि विसरा सैंपल के आधार पर सिर एवं चेहरे की चोट के बारे में नहीं कहा जा सकता. भारत के चिकित्सीय न्याय शास्त्र के स्थापित मानकों (मोदी और कॉक्स) में कहीं ऐसा जिक्र नहीं है जिसमें विसरा का सैंपल देख कर यह बताया गया हो कि मौत सिर की चोट के कारण हुई है. ‘किसी भी मामले में यदि सिर या चेहरे पर आई चोट के कारण मौत हुई हो तो यह बात प्राथमिक पोस्टमार्टम में ही साफ हो जाती है. दस दिन बाद इस बात का सामने आना संदेह तो पैदा करता ही है.’ दिल्ली उच्च न्यायलय के अधिवक्ता गौरव गर्ग आगे बताते हैं, ‘यदि प्राथमिक पोस्टमार्टम में मौत का कारण स्पष्ट नहीं था और सिर पर किसी गंभीर चोट का जिक्र तक नहीं था तो दुनिया की ऐसी कोई विधि नहीं है जिसके द्वारा दस दिन बाद यह बताया जा सके कि मौत सिर की चोट के कारण हुई है.’

इस रिपोर्ट पर सवाल उठने का दूसरा कारण यह भी है एफआईआर से लेकर गवाहों के बयान तक में यह बात कहीं नहीं आई है कि नीडो को किसी ब्लंट ऑब्जेक्ट से पीटा गया हो. इन सभी जगह हाथापाई होने की ही बात कही गई है. इस कारण पोस्टमार्टम में ब्लंट ऑब्जेक्ट द्वारा चोट की बात अजीब-सी लगती है.

इन सभी सवालों से इतर हकीकत यह भी है कि नीडो ने अपनी जान गंवाई है. यह तथ्य अकेला ही सभी तर्कों पर भारी पड़ता है. इस मामले में आरोपित पवन की मां कहती हैं, ‘मैं उस मां का दर्द समझ सकती हूं जिसने अपना बेटा खोया है. मेरे बच्चे तो सुरक्षित हैं, आज नहीं तो कल लौट आएंगे. लेकिन उस मां ने तो अपना बेटा हमेशा के लिए खो दिया है. उसके साथ भी पूरा इंसाफ होना चाहिए. लेकिन किसी बेगुनाह को यदि सजा होगी तो यह उस लड़के के साथ भी अन्याय होगा जिसने अपनी जान गंवा दी.’

नीडो की हत्या के मामले में लाखों लोग जल्द से जल्द दोषियों को सजा देने की मांग कर रहे हैं. न्याय के बारे में कहावत भी है कि ‘देर से मिला न्याय अन्याय के समान है.’ लेकिन हकीकत यह भी है कि हड़बड़ी में किया गया न्याय भी अकसर अन्याय ही करता है. इस मामले ने नस्लभेद के खिलाफ सख्त कानून बनाने की जिस मांग को जन्म दिया है वह सराहनीय है. लेकिन जनभावनाओं को शांत करने के लिए यदि इस कानून की नींव ही कुछ बेगुनाहों की जिंदगी की कीमत चुका कर रखनी पड़े तो क्या वह न्यायपूर्ण होगा?