विश्व विजेता भारत

IMG-20150128-WA0001 modiहौसले और हिम्मत से दुनिया जीतनेवालों के बेशुमार किस्से हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी नायक होते हैं जिनकी पहचान गुमनामी के अंधेरे में खोई रहती है. जब इंडियन ब्लाइंड क्रिकेट टीम पिछले साल 8 दिसंबर को वर्ल्ड कप के फाइनल में पाकिस्तान को हराकर सफलता की इबारत लिख रही थी, तो न कैमरों की चकाचौंध थी और न ही मीडिया का शोरगुल. कड़ी मेहनत, सतत अभ्यास और टीम भावना की बदौलत कोच पैट्रिक राजकुमार की 11 खिलाड़ियों की इस सेना ने खामोशी के बीच यह शानदार उपलब्धि अपने नाम कर ली.

जिन क्रिकेट प्रेमियों के लिए भारतीय क्रिकेट टीम की हर छोटी-बड़ी जीत उत्सव मनाने का मौका होती है, उन्हें इन खिलाड़ियों की कामयाबी के बारे में तब पता लगा, जब खेल मंत्रालय और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन खिलाड़ियों को सम्मानित किया. और यह पहली बार नहीं था जब इंडियन ब्लाइंड क्रिकेट टीम ने विश्व विजेता की उपलब्धि हासिल की हो. इससे पहले भी इंडियन ब्लाइंड क्रिकेट टीम ने साल 2012 में हुए पहला टी-20 वर्ल्ड कप जीता था. इस बार के वर्ल्ड कप से पहले भी इस टीम ने पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया में द्विपक्षीय सीरीज जीती थी.

वर्ल्ड कप से पहले ओडीसा के बाराबती स्टेडियम में खिलाड़ियों ने डेढ़ महीने के अभ्यास सत्र में हिस्सा लिया था. प्रैक्टिस सेशन में खेल की बारीकियों के साथ-साथ खिलाड़ियों के बीच आपसी तालमेल बनाने की भी पूरी ट्रेनिंग दी गई थी. अभ्यास सत्र के दौरान सभी खिलाड़ी ट्रेनिंग और एक्सरसाइज करने में एक-दूसरे की मदद करते थे. देश के 10 अलग-अलग राज्यों से आए इन खिलाड़ि़यों ने इस दौरान रोजाना 10 से 12 घंटे का कड़ा अभ्यास किया. इसके अलावा कुछ खिलाड़ी ऐसे भी होते हैं, जिन्हें न ठीक से हिंदी आती है और न अंग्रेजी. उनके साथ संवाद बनाए रखना भी चुनौती होता है. खिलाड़ियों के बीच तालमेल बना रहे, वे एक-दूसरे के संकेतों, आवाजों को पहचान सकें, इस पर भी कोचिंग स्टाफ को काफी मेहनत करनी पड़ी है.

ब्लाइंड क्रिकेट टीम के पास कोई बड़ा स्पॉन्सर नहीं है. ऐसे में खिलाड़ियों के लिए खेल के जरूरी उपकरणों के साथ सुविधाओं का इंतजाम करना किसी चुनौती से कम नहीं हंै

 अलग होता है यह क्रिकेट
ब्लाइंड क्रिकेट टीम में खिलाड़ियों का चयन तीन कैटेगरी में होता है. पहली कैटेगरी बी1 होती है जिसमें पूरी तरह दृष्टिहीन 4 खिलाड़ी होते हैं. दूसरी कैटेगरी बी2 होती है, जिसमें ऐसे 3 खिलाड़ी होते हैं जिन्हें 3 मीटर तक दिखाई देता है. तीसरी कैटेगरी होती है बी3, जिसमें 4 ऐसे खिलाड़ी होते हैं जिन्हें लगभग 6 मीटर तक दिखता है. खेल में अंडर आर्म बॉलिंग होती है और आवाज करनेवाली बॉल प्रयोग की जाती है. विकेटकीपर के आवाज करने के बाद गेंदबाज बॉल डालता है. बी1 कैटेगरी के खिलाड़ियों को रनर दिया जाता है. पूरी तरह दृष्टिहीन खिलाड़ियों को फील्डिंग के लिए 10 गज के भीतर ही रखा जाता है. दरअसल क्रिकेट का यह फॉर्मेट आवाज और टीम के खिलाड़ियों के आपसी समायोजन पर आधारित है. फील्डिंग के दौरान बी2 और बी3 कैटेगरी के खिलाड़ी एक-दूसरे को सतर्क करते रहते हैं. साथ ही कोच भी खिलाड़ियों को निर्देश दे सकते हैं. खेल में ज्यादातर स्वीप शॉट लगाए जाते हैं.

रोमांचक था फाइनल मुकाबला
फाइनल में टीम की जीत की पटकथा लिखनेवाले ऑलराउंडर सोनीपत के ऑलराउंडर दीपक मलिक ने बताया कि पाकिस्तान ने 40 ओवर में 389 रनों का लक्ष्य रखा था, जिसे भारतीय टीम ने 2 गेंद रहते छह विकेट के नुकसान पर हासिल कर लिया. इस फॉर्मेट के नियमों के मद्देनजर ओपनिंग के लिए दीपक कैप्टन शेखर नायक के साथ उतरे. शेखर बी2 कैटेगरी के हैं और दीपक बी3. नियमानुसार एक साथ एक कैटेगरी के दो खिलाड़ी बल्लेबाजी नहीं कर सकते. विशाल लक्ष्य का पीछा करते हुए कैप्टन शेखर नायक एक रन बनाकर कैच आउट हो गए. अब पूरी जिम्मेदारी दीपक के कंधों पर थी. ऐसे में 33 बॉल पर आतिशी 60 रन की पारी खेलकर हरियाणा के दीपक ने जीत की स्क्रिप्ट लिख दी.

बीसीसीआई का उपेक्षापूर्ण रवैया
कामयाबी की इस पूरी दास्तान के बीच सबसे बड़ी विडंबना यह है कि भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट टीम को विश्व के सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई से अब तक कोई सहयोग नहीं मिला है. न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और यहां तक कि नेपाल क्रिकेट बोर्ड भी अपने देश की ब्लाइंड क्रिकेट टीम को पूरा सहयोग देते हैं. ब्लाइंड वर्ल्ड कप में हिस्सा लेनेवाली बाकी सारी टीमें अपने देश के क्रिकेट बोर्ड से संबद्ध हैं. ये खिलाड़ी अपनी मूल क्रिकेट टीम की ही जर्सी में खेलते हैं, लेकिन बीसीसीआई अकेला ऐसा बोर्ड है, जिससे ब्लाइंड क्रिकेट टीम का एफिलिएशन नहीं है. कोई टूर्नामेंट जीतने के बाद खिलाड़ियों पर करोड़ों रुपयों की बौछार करनेवाले बीसीसीआई ने अब तक इन खिलाड़ियों के हौसले और इनकी उपलब्धि पर ध्यान देना तक जरूरी नहीं समझा है.

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इंतजार है धोनी सर का
टीम के ऑलराउंडर दीपक मलिक जो मूलतः सोनीपत के हैं, इन दिनों दिल्ली के आरकेपुरम् स्थित अंध विद्यालय में रह रहे हैं. इस समय वे 12वीं में पढ़ रहे हैं. वे महेंद्र सिंह धोनी को अपना रोल मॉडल मानते हैं. दीपक ने बताया, ‘जिन दिनों मैं वर्ल्ड कप की तैयारी कर रहा था, धोनी सर से मेरी मुलाकात हुई थी. उस समय उन्होंने कहा था कि अगर हम वर्ल्ड कप जीतते हैं, तो मुझे एक करोड़ रुपए की स्पॉन्सरशिप दिलवाएंगे. पहले तो मुझे विश्वास नहीं हुआ. फिर मैंने उनसे पूछा कि कहीं आप मजाक तो नहीं कर रहे? वर्ल्ड कप जीतने के बाद उन्होंने मुझे कॉल किया था और बधाई दी थी. उस समय वे ऑस्ट्रेलिया टूर पर थे. अब मुझे उनके वापस लौटने का इंतजार है.’

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सीमित साधनों में हासिल की असाधारण सफलता
एक तरफ बीसीसीआई का उपेक्षापूर्ण रवैया है, तो दूसरी तरफ संसाधनों की कमी. टीम के पास कोई बड़ा स्पॉन्सर नहीं है. ऐसे में खिलाड़ियों के लिए खेल के जरूरी उपकरणों के साथ सुविधाओं का इंतजाम करना किसी चुनौती से कम नहीं है. कुछ खिलाड़ी ऐसे भी हैं, जिन्हें अपने खर्च पर आने-जाने का इंतजाम करना पड़ता है. कोच पैट्रिक राजकुमार का कहना है कि खेल की बारीकियां सिखाने के साथ-साथ हमारी कोशिश यह भी रहती है कि बच्चों का आत्मविश्वास बना रहे. बिना किसी बड़े सहयोग के टीम ने कई बड़े टूर्नामेंट जीते हैं, हमारे लिए यह गर्व की बात है. अगर इनको दूसरे देशों की टीमों की तरह पूरा सहयोग मिले, तो ये बड़ी कामयाबियां हासिल कर सकते हैं.

कैप्टन शेखर नायक के दिल में भी इस बात की कसक है कि उनकी उपलब्धि के मुताबिक उन्हें सहयोग नहीं मिलता. वे कहते हैं, ‘टीम इंडिया की ही तरह टी-20 और वनडे वर्ल्ड कप जीतने के बावजूद अब तक सरकार और बीसीसीआई से उम्मीद के अनुरूप सहयोग नहीं मिला है.’ हालांकि खेल मंत्रालय और प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा सम्मानित किये जाने से टीम के सभी खिलाड़ी खुश जरूर हैं. शेखर का कहना है, ‘जब हमने साल 2012 में बेंगलुरू में हुआ टी-20 वर्ल्ड कप जीता था, तब मीडिया में इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई थी. इस बार जब प्रधानमंत्री ने सम्मान किया, तो उसके बाद राष्ट्रीय मीडिया में भी हमारी उपलब्धियों पर बात की गई.’

टीम इंडिया की जर्सी में खेलने की तमन्ना
टीम के सभी खिलाड़ियों की इच्छा है कि जैसे दूसरे देशों की टीमें अपने देश की आधिकारिक ड्रेस में खेलती हैं, वैसे ही इनको भी टीम इंडिया की जर्सी मिले. वर्ल्ड कप जीतनेवाली टीम के सदस्य केतन पटेल का कहना है, ‘मैं यह महसूस कर सकता हूं कि जब टीम इंडिया के खिलाड़ी मैदान पर उतरते होंगे, तो उनके अंदर गर्व के कैसे भाव आते होंगे? हम भी जब मैदान पर उतरते हैं, तो सिर्फ जीत के ख्याल से आते हैं. टीम के सभी खिलाड़ी चाहते हैं कि हमें बीसीसीआई से कुछ सहयोग मिले और हम सब टीम इंडिया की तरह खेल सकें.’