हाथ के सहारे खिला कमल!

पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच आपसी रिश्ते भी इस बुरे दौर में पार्टी का काम कठिन कर रहे हैं. पीजे कुरियन (बाएं), चिदंबरम(दाएं)

अगर हालिया उपचुनाव और विधानसभा चुनाव को संकेत माना जाए तो कहा जा सकता है कि कांग्रेस की हालत दयनीय हो चली है. एक सदी से अधिक पुरानी यह पार्टी जिसने आजाद भारत पर 60 वर्षों तक राज किया, उसकी पहुंच देश के अधिकांश राज्यों में दिन पर दिन सिमटती जा रही है.

सबसे पहले उत्तर प्रदेश और बिहार में और अब महाराष्ट्र और हरियाणा में उसका पराभव सबको साफ नजर आ रहा है. महाराष्ट्र और हरियाणा तो लंबे समय से पार्टी के सबसे मजबूत गढ़ रहे हैं लेकिन इन दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी मुख्य विपक्षी दल तक नहीं बन पाई. दोनों ही जगह उसे तीसरा स्थान मिला. नरेंद्र मोदी नामक तूफान ने पार्टी का सफाया कर दिया है.

साफ-साफ कहा जाए तो भाजपा की इस सफलता के पीछे एक बड़ा श्रेय  कांग्रेस को जाना चाहिए जिसने अपनी रणनीतिक चूकों के जरिए भाजपा को बढ़ने में मदद की. यह पूरी तरह कांग्रेस की गलत नीतियों की वजह से हुआ. ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने अपनी पिछली गलतियों से कुछ नहीं सीखा है और वह चुनाव दर चुनाव वही गलतियां दोहराती चली जा रही है.

लोकसभा चुनाव के दुस्वप्न के बाद पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी की अध्यक्षता वाली समिति का गठन किया गया ताकि वह पार्टी के बुरे प्रदर्शन की समीक्षा करे. अपनी रिपोर्ट में एंटनी समिति ने खासे बदनाम हो चुके राहुल गांधी को क्लीन चिट दे दी और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण को चुनावी हार की सबसे बड़ी वजह करार दिया. रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम समुदाय को खुश करने की कोशिश में पार्टी सवर्ण हिंदू और अन्य पिछड़ा वर्ग से दूर होती चली गई.

रिपोर्ट में कहा गया कि कांग्रेस ने अनचाहे ही मोदी को बहुसंख्यक समुदाय की उम्मीदों का वाहक बना दिया और भाजपा ने इसका पूरा लाभ उठाया. जहां तक मुस्लिम समुदाय की बात है तो उन्होंने बढ़-चढ़कर मतदान नहीं किया क्योंकि उनको लगा कि कांग्रेस की हार अपरिहार्य है और उनके वोट देने न देने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. रोचक बात यह है कि रिपोर्ट एक ऐसे नेता ने तैयार की थी जो बतौर मुख्यमंत्री वर्ष 2004 में केरल में पार्टी को एक भी लोकसभा सीट जिता पाने में नाकाम रहा था.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि अगर सोनिया गांधी, एंटनी और अहमद पटेल का नाम निकाल दिया जाए तो पार्टी में बस गिनेचुने लोग रह जाएंगे. इनके बिना पार्टी में कोई ऐसा नेता नहीं रह जाएगा जिसकी राष्ट्रीय अपील हो और इस तरह पार्टी में नेतृत्व का संकट उत्पन्न हो जाएगा.

पार्टी के अनेक नेता महसूस करते हैं कि मणिशंकर अय्यर और पी चिदंबरम जैसे वरिष्ठ नेता अमित शाह का मुकाबला नहीं कर सकते और पार्टी नेतृत्व में सुधार बहुत लंबे समय से लंबित है. वास्तव में अय्यर ने मोदी के चाय बेचने को लेकर एक गैरजरूरी और असंवेदनशील टिप्पणी की थी जिससे कांग्रेस के खिलाफ माहौल बना. उस बयान ने कांग्रेस को गरीब विरोधी साबित किया. चिदंबरम ने भी पार्टी की संभावनाएं खराब करने में योगदान दिया लेकिन उस पर हम बाद में बात करेंगे. दो साल पहले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और राज्यसभा के उपाध्यक्ष पीजे कुरियन को पता था कि पार्टी में गंभीर खामी है. वे समस्या के देख रहे थे लेकिन पार्टी के नेता उसे स्वीकार और उसका सामना करना नहीं चाहते.

ऐसे में उन्होंने सोनिया गांधी से मुलाकात की और कहा कि पार्टी को दूसरों को दांव पर लगाकर एक खास अल्पसंख्यक समुदाय को खुश करना बंद करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि संप्रग सरकार को तत्काल उच्च वर्ग के गरीब लोगों के लिए 1000 से 2000 करोड़ रुपये की योजना लानी चाहिए. इस फंड को समाज के बहुसंख्यक वर्ग के लोगों को बेहतर शिक्षा और आजीविका देने में इस्तेमाल किया जा सकता है. कुरियन के मुताबिक एक खास समुदाय को खुश करना पार्टी के लिए किसी न किसी तरह नुकसानदेह साबित हो रहा है.

सोनिया ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक खत लिखा जिसकी एक प्रति तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम को भी भेजी गई. इस खत में कुरियन की बातों का उल्लेख किया गया था. उन्होंने कुरियन से यह भी कहा कि वह इस मामले पर आगे मनमोहन सिंह, चिदंबरम और एंटनी से संपर्क में रहे. बहरहाल प्रधानमंत्री ने इस प्रस्ताव को बहुत तवज्जो नहीं दी और चिदंबरम ने इसे खारिज कर दिया. इस तरह कुरियन के प्रयासों पर पानी फिर गया.

अनेक नेता महसूस करते हैं कि मणिशंकर अय्यर और पी चिदंबरम जैसे नेता अमित शाह का मुकाबला नहीं कर सकते. पार्टी नेतृत्व में सुधार बहुत जरूरी है

कुरियन को इससे निराशा हुई. चुनाव के बाद उन्होंने इस मुद्दे को एंटनी के समक्ष उठाया. उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि पार्टी को अल्पसंख्यक राजनीति का खमियाजा उठाना पड़ा है. कुरियन ने यह भी कहा कि पार्टी की हार की कई वजहों में यह सिर्फ पहली थी. एक के बाद एक खराब नीतियों ने कांग्रेस की दिक्कतों में और इजाफा ही किया.

खाद्य सुरक्षा विधेयक और बुनियादी ढांचा सुधार जैसी उपलब्धियों को प्रमुखता देने के बजाय पार्टी ने मोदी और गुजरात दंगों पर अधिक बात की. इन बातों का मतलब यही था कि कांग्रेस अपनी जमीन गंवाती जा रही है और मोदी की संभावनाओं को मजबूत करते हुए भाजपा के हाथों में खेल रही है.

अय्यर के चायवाले बयान की बात करें तो कांग्रेस को यह याद रखना चाहिए कि चाय बेचना किसी भी लिहाज से अपमानजनक काम नहीं है. भारत में जहां सड़क किनारे चाय के ठेले पर बहस-मुबाहिसा आम बात है वहां भाजपा के चाय पे चर्चा कार्यक्रम ने लोकसभा चुनाव में उसकी जबरदस्त मदद की. दुखद बात यह है कि यह पूरा मामला कांग्रेस पर भारी पड़ा क्योंकि वह आम भारतीयों के मनोविज्ञान को समझ पाने में वह नाकाम रही. अय्यर और चिदंबरम जैसे उच्च शिक्षित और विदेशों में पढ़े मंत्रियों को इसकी बेहतर जानकारी होनी चाहिए थी. क्या अय्यर को जमीनी राजनीति की समझ है? या फिर बतौर वित्तमंत्री चिदंबरम ने अल्पसंख्यक समुदाय की तुलना में बहुसंख्यकों को क्या दिया? पार्टी नेता अगर इन सवालों पर गौर करने का वक्त निकालें तो यह उनकी बेहतरी में होगा.

जानकार सूत्रों के मुताबिक चिदंबरम की पत्नी नलिनी और बेटे कार्ती बैंकिंग क्षेत्र और सरकारी कंपनियों में प्रमुख पदों पर होने वाली नियुक्तियों में शामिल थे. इस चयन में शायद ही कभी श्रेष्ठता पर ध्यान दिया गया हो. हर नियुक्ति से ये दोनों लाभान्वित होते रहे.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नाम जाहिर न करने की शर्त पर इस बात की पुष्टि करते हैं कि नलिनी और कार्ती ऐसे मामलों में शामिल थे. दरअसल नलिनी तो कई निजी क्षेत्र की कंपनियों की विधिक सलाहकार भी हैं जबकि कार्ती कई सरकारी बैंकों में ऋण को मंजूरी दिलाने तथा उसे आगे बढ़वाने का काम करते थे.

वित्तीय मामलों में कार्ती के शामिल होने को आईडीबीआई द्वारा संप्रग के कार्यकाल में अब बंद हो चुकी किंगफिशर एयरलाइंस को 950 करोड़ रुपये के कर्ज के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. किंगफिशर बहुत लंबे समय से बुरी हालत में है और यह बात किसी से छिपी नहीं है.

कांग्रेस ने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए शायद ही कभी कुछ किया हो. वास्तव में ऐसी कई बातों को लेकर पार्टी ने जो खामोशी ओढ़े रखी उसने भी चुनाव में उसकी छवि को धक्का पहुंचाया. हम सब जानते हैं उसे इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. लाख टके का सवाल यह है कि कांग्रेस खुद को मौजूदा संकट से कैसे बाहर निकालेगी? पार्टी को इस समय एक ऐसे

नेता की जरूरत है जो उसे अस्तित्वविहीन होने की आशंका से निजात दिला सके.