किसी कलाकार की जिंदगी के बारे में रिसर्च करके लिखना आसान नहीं है. वक्त बीतने के साथ-साथ कलाकार को जानने वालों की यादें अक्सर धुंधली होती जाती हंै. जरूरी है कि उन लोगों से बात करके उसकी पर्सनैलिटी को समझ कर, उसे दस्तावेजबंद किया जाए. कोई भी शख्स ऐसा क्यों था? उसकी एक्टिंग, फिल्में और जिंदगी, सिनेमा के इतिहास का हिस्सा हैं जिनके बारे में लिखा जाना चाहिए.
इस किताब के शोध के लिए लेखक यासिर उस्मान ने ऐसे कई लोगों से बात की है जो राजेश खन्ना को करीब से जानते थे या फिर उनके साथ काम कर चुके हैं. इसके अलावा खुद राजेश के पुराने इंटरव्यूज, उनके निर्माता-निर्देशकों, को-स्टार्स के अनुभव और कड़ी रिसर्च के जरिए उनकी जिंदगी और उस दौर को बड़ी खूबसूरती से री-क्रिएट किया गया है. हालांकि ये राजेश खन्ना की असली जिंदगी की कहानी है लेकिन लेखक का अंदाज-ए-बयां ऐसा है कि ये कहानी किसी दिलचस्प फिल्म की तरह जेहन में यादगार तस्वीरें उभारती है. इन तस्वीरों में राजेश खन्ना पलकें झपकाते हुए, अपनी हसीन मुस्कान के साथ भी नजर आते हैं और बाद में अकेलेपन और गुमनामी से जूझते हुए गुजरे जमाने के स्टार के तौर पर भी.

लेखक: यासिर उस्मान
मूल्य: 250 रुपये
पृष्ठ: 296
प्रकाशन: पेंगुइन बुक्स इंडिया
फिल्म स्टार्स या पब्लिक फिगर्स के बारे में बात करते वक्त हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि वो भी आम इंसान ही हैं, जो गलतियां करते हैं, नाकाम भी होते हैं, जिन्हें असुरक्षा होती है और कामयाबी खोने का डर भी सताता है. इस कहानी में राजेश खन्ना के बेमिसाल स्टारडम के साथ एक एक्टर के तौर पर उनकी काबिलियत का जिक्र है, तो एक इंसान के तौर पर उनकी खूबियों और खामियों की भी बात है. कुल-मिलाकर लेखक, राजेश खन्ना की शख्सियत के कई डायमेंशंस बड़ी खूबी से सामने लाए हैं. अक्सर मशहूर शख्सियतों की असली जिंदगी पर लिखे गए लेख या किताबें या तो सिर्फ उनकी तारीफ करती हैं या सिर्फ आलोचना और इस कोशिश में अक्सर यूनी डायमेंशनल हो जाती हैं. लेकिन यहां कड़ी रिसर्च के हवाले से, बड़े बैलेंस तरीके से सारी बातें उभरती हैं. किसी दिलचस्प नॉवेल की तरह कहानी को आगे बढ़ाते हुए, लेखक गंभीर बात कह जाते हैं. खासतौर पर अंत तक पहुंचते हुए, उन्होंने जिस तरह राजेश खन्ना के व्यक्तित्व को समझाने की कोशिश की है, वो लेखनी पर उनकी पकड़ को साफ दिखाता है. इसमें लेखक की पत्रकारिता की ट्रेनिंग भी नजर आती है.
मैंने भी ये सोचा नहीं था कि अगर एक इंसान की जिंदगी खोली जाए तो उसमें कितनी पर्तें हो सकती हैं और ये पर्तें उसकी शख्सियत को कितने आयाम देती हैं. फिल्म की स्क्रिप्ट लिखते समय, नए-नए किरदार गढ़ते वक्त मैं इन बातों पर बेहद ध्यान देता था, लेकिन ये किताब पढ़कर मुझे यही लगा कि वाकई ट्रूथ इज स्ट्रॉन्गर दैन द फिक्शन. एक ऐसा शख्स जिसे मैं एक जीते-जागते इंसान के तौर पर जानता था, उसी शख्स को देखने समझने का एक नया नजरिया और उसकी जिंदगी एक नया पहलू मुझे इस किताब में नजर आया.
मुझे यकीन है कि इस किताब को पढ़ते वक्त आप मुस्कुराएंगे, कुछ हिस्से आपकी आंखें नम भी करेंगे. अपने हीरो राजेश खन्ना के लिए आपको हमदर्दी भी होगी और फिर क्लाईमैक्स तक आते-आते एक जीत का अहसास भी होगा. यानी ये अनुभव तकरीबन वैसा ही है जैसा राजेश खन्ना की कोई बेहद कामयाब फिल्म देखने के बाद हुआ करता था. फिल्म इंडस्ट्री के जिस दौर का मैं भी गवाह रहा हूं, उस खास वक्फे को इस किताब में जिंदा करने की कोशिश की गई है. मेरा मानना है कि ये किताब सिनेमाई लेखन में एक अहम दस्तावेज हैं, जो आने वाले समय में फिल्म इतिहास का हिस्सा रहेगी.
(पुस्तक की भूमिका से)