मुथुलक्ष्मी का कहना है, ‘गांववालों को खाना खिलाना वीरप्पन के सम्मान में आयोजित पारिवारिक कर्मकांड का हिस्सा है. उन्हें गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने पर तसल्ली मिलती थी.’ जब मुथुलक्ष्मी से उनकी दोनों लड़कियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस बारे में कुछ कहने से मना कर दिया. गांववाले उनके बारे में बताते हैं कि उन दोनों की शादी हो गई है और दोनों अब अपने-अपने परिवारों के साथ कहीं दूर रहती हैं. तमिलनाडु में सामाजिक सुधार के लिए कार्यरत ‘द्रविड़र विदुथलाई कषगम’ नाम के राजनीतिक संगठन के संस्थापक कोलाथुर मणि बताते हैं, ‘मेरे पिता लकडि़यों के ठेकेदार थे, हम नदी के रास्ते लकडि़यां लाते थे. फिर वीरप्पन के पिता बाद में मजदूरों के बीच लकड़ी ढोने की मजदूरी बांटते थे.’
वीरप्पन का परिवार कावेरी नदी के किनारे कर्नाटक की सीमा पर बसे गोपीनाथम गांव में रहता था. वीरप्पन बहुत कम उम्र से ही शिकार करने लगा था. बदला लेने के लिए एक खून करने के बाद से उसे जंगल में छिपकर रहना पड़ा. उसके बाद से ही वीरप्पन ने जानवरों का शिकार और चंदन की तस्करी शुरू कर दी. मणि का कहना है, ‘वह एक अच्छा इंसान था, लेकिन पुलिस की हिंसा ने उसे बर्बर बना दिया.’ वीरप्पन को 1980 में गिरफ्तार किया था, लेकिन वह जेल से भाग गया. बाद में फिरौती के लिए बड़े-बड़े लोगों के अपहरण और पुलिस व वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की हत्या के लिए कुख्यात हुआ. मेट्टूर, गोपीनाथम और थलावाड़ी जैसे कुछ अन्य गांवों के लोग वीरप्पन से आज भी बेहद प्यार करते हैं. वीरप्पन की पुण्यतिथि पर वे श्रद्धाजंलि देते हैं और उसके लिए प्रार्थना करते हैं.

वीरप्पन एक अनुशासित इंसान था और महिलाओं का वह बहुत सम्मान करता था. बलात्कार या यौन अपराधों को वह बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करता था. इसलिए महिलाएं अक्सर उसे ‘पेरियन्ना’ (बड़ा भाई) कहती थीं. 55 वर्षीय थंगमा अपने साथ हुई हिंसा को याद करते हुए बताती हैं, ‘वीरप्पन को पान के पत्ते बेचने के आरोप में पुलिस ने एक बार मुझे गिरफ्तार किया था. हिरासत में तत्कालीन एसटीएफ प्रमुख वाल्टर देवराम सहित कई पुलिस अधिकारियों ने मेरे साथ गैंगरेप किया था. इसके बाद मुझे अधमरा होने तक पीटा गया. आज वे अधिकारी खुलेआम घूम रहे हैं. सरकार उन लोगों को सजा क्यों नहीं देती, जिन्होंने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी.’
महिलाओं के साथ ज्यादती करने वाले लोगों को वीरप्पन सजा देता था. वास्तव में भारतीय वन सेवा अधिकारी पी. श्रीनिवास का सिर काट देने की घटना से वीरप्पन काफी कुख्यात हुआ था. इस अधिकारी ने कथित रूप से वीरप्पन की बहन का बलात्कार किया था. जिसके बाद उसकी बहन ने आत्महत्या कर ली थी.
एसटीएफ की हिंसा की शिकार मुनियम्मा कहती हैं, ‘किसी भी तरह का दुर्व्यवहार जो हम झेलते हैं, वह बलात्कार की तुलना में कुछ भी नहीं होता.’ गांव के पुरुषों और महिलाओं को अक्सर पुलिस अपने कैंप में ले जाती थी जिसे वह ‘वर्कशाॅप’ कहती थी. वहां उनसे सवाल किए जाते थे और बुरी तरह उन्हें प्रताडि़त किया जाता था. इसमें बलात्कार करने के साथ गुप्तांगों पर इलेक्ट्रिक शाॅक दिया जाना, अपंग बना देना और बुरी तरह पीटना शामिल था.
अपने साथ हुई ज्यादती को याद करते हुए मुनियम्मा गहरी सांस लेते हुए बताती हैं, ‘मुझे हिरासत में लेने के बाद मेरे कपड़े उतार दिए गए थे. फिर मेरे ऊपर पानी फेंका गया और मेरे गुप्तांग और वक्षों पर इलेक्ट्रिक शाॅक दिया गया. वीरप्पन ने ऐसे अमानवीय अधिकारियों से बदला लिया था.’ बाहरी दुनिया वीरप्पन को एक जघन्य अपराधी मानती है लेकिन मेट्टूर और आसपास के इलाकों के गांव वाले अब भी उसकी पूजा करते हैं. पुलिस की धमकियों के बावजूद स्थानीय समुदाय के लोग आज भी वीरप्पन की याद को जिंदा रखने की कोशिश में लगे हुए हैं.