ऐलान के पीछे

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भारत और इसके आसपास के देशों में अपनी एक नई शाखा खोलने की अलकायदा की घोषणा की स्वाभाविक प्रतिक्रिया हुई है. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने खुफिया विभाग (आईबी) के बड़े अधिकारियों के साथ बैठक की है. इसके बाद आइबी ने पूरे देश में हाई अलर्ट जारी कर दिया है. गौरतलब है कि अपने ताजा वीडियो में इस आतंकी संगठन के नेता अयमन अल जवाहिरी ने ऐलान किया है कि क़ायदात अल जिहाद नाम की यह नई शाखा उसकी लड़ाई को भारत, बांग्लादेश और म्यांमार तक ले जाएगी. अपने 55 मिनट के वीडियो संदेश में जवाहिरी ने कहा कि क़ायदात अल जिहाद इस क्षेत्र में मुस्लिम आबादी को बांटने वाली बनावटी सीमाओं को नष्ट कर देगा. इस शाखा की कमान आसिम उमर को दी गई है जो पाकिस्तान का नागरिक है.

लेकिन बहुत से जानकार इस ऐलान का एक दूसरा पक्ष भी देख रहे हैं. उनके मुताबिक अलकायदा की इस नई कवायद का मकसद भारतीय उपमहाद्वीप में अपना प्रभाव फैलाने से ज्यादा यह है कि इस्लामिक स्टेट या आईएस के असर को कम किया जाए. आईएस 2013 में अल-कायदा से अलग हो गया था. यह संगठन सीरिया और इराक के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाकर उसे इस्लामी राज्य घोषित कर चुका है. इसके नेता अबू बकर अल बग़दादी ने खुद को मुसलमानों का नया खलीफा भी घोषित कर दिया है. बगदादी ने हाल ही में दक्षिण एशिया में भी अपने संगठन की शाखा खोलने की इच्छा जताई थी. माना जा रहा है कि अल कायदा के नेता इस वक्त परेशान हैं क्योंकि नए लड़ाके उनसे ज्यादा आईएस से जुड़ने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ तालिबानी नेता तो अल-कायदा का साथ छोड़कर आईएस से जुड़ चुके हैं. माना जा रहा है कि इसके चलते ही अल-कायदा ने यह नया दांव चला है. यानी यह खुद को प्रासंगिक बनाए रखने की कवायद है.

फिर भी माना जा रहा है कि भारत को यह ऐलान हल्के में नहीं लेना चाहिए. जानकारों के मुताबिक कमजोर अलकायदा भी कम खतरनाक नहीं है क्योंकि तब भी अच्छा-खासा प्रभाव रखता है. माना जाता है कि इस विकेंद्रीकृत संगठन का लचीला स्वरूप उसे उन जगहों पर तेजी से फैलने में मदद करता है जो अस्थिरता के शिकार हों. पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हालात फिर से अस्थिरता की तरफ ही जाते दिख रहे हैं. साफ है कि भारत को इससे चिंतित होने की जरूरत है.