प्रिंस

प्रिंस अपने पिता के साथ. फोटोः जितेंद्र सिंह चुघ
प्रिंस अपने पिता के साथ. फोटोः जितेंद्र सिंह चुघ

2006 में जिस प्रिंस के बारे में पूरा देश जान गया था. आज वह बिल्कुल वैसा ही है जैसे गांव के दूसरे लड़के. हां बस एक अंतर यह है कि इन दूसरे लड़कों में से कोई कभी बोरवेल में नहीं गिरा.

21 जुलाई 2006. हरियाणा में कुरुक्षेत्र जिले के एक छोटे-से गांव हल्देहड़ी में रहने वाला पांच साल का प्रिंस खेतों में घूमते-घूमते 55 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया. राहत के लिए स्थानीय स्तर पर हुई शुरुआती नाकाम कोशिशों के बाद सेना को बुलाया गया. पूरे दो दिन के ‘राहत-बचाव कार्य’ के बाद इस बच्चे को बोरवेल से सुरक्षित निकाल लिया गया. यही वे 50 घंटे थे जिनके दौरान प्रिंस नाम के इस बच्चे के बारे में पूरा भारत जान गया. सेना की इस पूरी कार्रवाई की मीडिया में भारी कवरेज का असर ऐसा था कि हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रिंस के गांव पहुंच गए थे और तब तक वहीं रहे थे जब तक उसे गड्ढे से निकाल नहीं लिया गया. इस दौरान उन्होंने घोषणा की थी कि प्रिंस के पिता रामचंद्र को सरकारी नौकरी दी जाएगी. तब प्रिंस के परिवार को तकरीबन आठ लाख रुपये मिले थे. इनमें से दो लाख राज्य सरकार ने दिए थे और पांच लाख मुंबई स्थित एक समाचार चैनल नेे. तकरीबन एक लाख रुपये दूसरे कई लोगों की तरफ से मिले थे.

प्रिंस को बचाए जाने के कई महीनों बाद तक आसपास के गांव से लोग केवल उसे देखने के लिए उसके घर आते रहे. उसे पूजा,जागरण और दूसरे धार्मिक आयोजनों में खास मेहमान के तौर पर बुलाया जाने लगा. हर तरफ प्रिंस की चर्चा थी. लेकिन धीरे-धीरे यह सब थम गया. लोगों का आना-जाना कम हुआ. प्रिंस की पूछ भी कम हो गई. तब और अब के बीच आठ साल का समय निकल चुका है. वह पांच साल का बच्चा अब 12 साल का किशोर हो चुका है. जुलाई वाली घटना और उसके तुरंत बाद की जिंदगी के बारे में प्रिंस कहता है, ‘मुझे ज्यादा कुछ याद नहीं है. हल्का-हल्का याद है.’

हल्देहड़ी के ही रहने वाले जसमिंदर सिंह प्रिंस के बारे में कहते हैं, ‘बचपन में तो बड़ा जिंदादिल था तभी तो गड्ढे में फंसा रहने बाद भी वह डरा नहीं, कोई मानसिक झटका नहीं लगा. हालांकि अब वह थोड़ा शर्मीला हो गया है. ज्यादा बातें नहीं करता. दूसरे लड़कों के साथ ज्यादा खेलता-कूदता भी नहीं है. खेलकूद के समय दूसरे लड़कों को खेलते हुए देखना उसे पसंद है.’

जब प्रिंस को बचाया गया था तब डीएवी स्कूल ने घोषणा की थी कि उसकी आगे की पढ़ाई की जिम्मेदारी संस्थान की रहेगी. शाहाबाद के डीएवी स्कूल में उसका नाम भी लिखाया गया, लेकिन कुछ ही महीनों के बाद उसने यह स्कूल छोड़ दिया. क्यों, पूछने पर उसके पिता रामचंद्र बताते हैं कि वह उस स्कूल के दूसरे बच्चों के साथ और वहां के परिवेश के साथ तालमेल नहीं बिठा पाया. स्कूल के टीचर उसपर दूसरे बच्चों से ज्यादा ध्यान देते थे इसलिए कुछ समय बाद ही उसने जिद पकड़ ली कि वह स्कूल नहीं जाना चाहता. फिलहाल प्रिंस गांव के दूसरे लड़कों की तरह ही पास के समलखा गांव के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ रहा है. पढ़ने-लिखने में औसत है.

रामचंद्र अपने बेटे के चर्चा में आने से पहले बटाई पर खेती करते थे. आज भी वे वही कर रहे हैं. हालांकि उन्हें उम्मीद थी कि राज्य सरकार ने नौकरी देने की जो बात कही थी उसे अमल में भी लाया जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. वे बताते हैं, ‘सरकार के इस वादे पर बहुत उम्मीद टिकी थी. नौकरी के लिए मैंने कोशिश भी की. कई महीनों तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाए. वहां के बाबुओं को याद भी कराया कि मुख्यमंत्री ने खुद नौकरी देने की बात कही थी. लेकिन इस सब से कोई फायदा नहीं हुआ.’ सरकारी महकमे से परेशान रामचंद्र वापस अपने गांव के खेतों पर लौट आए.

प्रिंस के परिवारवालों को अब बस सेना से उम्मीद है जिसने वादा किया था कि 18 साल का होने पर उसे सेना में ले लिया जाएगा

इसी बीच प्रिंस की मां कर्मजीत और पिता रामचंद्र अलग हो गए. रामचंद्र ने दूसरी शादी भी कर ली. अपनी पहली पत्नी से अलग होने की वजह के बारे में रामचंद्र बात नहीं करना चाहते. वे केवल इतना कहते हैं, ‘प्रिंस की मां ममता (उनकी दूसरी पत्नी) ही है. कर्मजीत को गए हुए तीन साल से ज्यादा हो चुका है और उसने आजतक कभी फोन करके भी बच्चे का हालचाल नहीं जानना चाहा.’ रामचंद्र अपने लड़के के भविष्य को लेकर थोड़े परेशान भी रहते हैं. वे कहते हैं, ‘परिवार की माली हालत भी बहुत अच्छी नहीं है. हम तो चाहते हैं कि प्रिंस किसी तरह पढ़ाई चालू रखे और जब 18 साल का हो जाए तो सेना में भर्ती हो जाए.’

पिता की बातचीत से यह अंदाजा हो जाता है कि पूरा परिवार अब सेना से मिले उस भरोसे के सहारे ही है जिसमें कहा गया था कि जब प्रिंस 18 साल का हो जाएगा और सेना के मापदंडों पर खरा उतरेगा तो उसे भारतीय सेना में नौकरी दे दी जाएगी.

इसी बातचीत में प्रिंस के पिता उस आठ लाख रुपये के बारे में भी बताते हैं. वे कहते हैं,  ‘पैसे तो बहुत पहले ही खर्च हो गए. उस पैसे से ही हमने चार कमरों का पक्का मकान बनाया और एक मोटरसाइकिल खरीद ली.’  घर के दो कमरों में प्रिंस का परिवार रहता है और बाकी के दो कमरे स्टोर रूम की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं. जिस मोटरसाइकिल के बारे में प्रिंस के पिता बता रहे थे उसकी नंबर प्लेट पर लाल रंग से ‘प्रिंस’ लिखा हुआ है.