‘गंदे कंबल में इंसानियत की गर्माहट मिली’
इतने सालों बाद भी जब कभी सर्दियों में देर रात ऑफिस से निकलता हूं तो सड़क किनारे ठंड से कंपकंपाते लोगों को देखकर उस अनजान मददगार के प्रति मन आभार से भर जाता है.
(कौशलेंद्र विक्रम लेखक पत्रकार हैं और लखनऊ में रहते हैं)
Touching Story!
भावपूर्ण..मन को छूता हुआ। कौशलेन्द्र बहुत उम्दा तरीके से पूरी बात कही है ## 🙂
वाह कौश्लेन्द्र बहुत ही भावपूर्ण कहानी दिल को छू गयी यार