दूसरी पार्टियों से अलग कैसे?
‘हम राजनीति करने नहीं, राजनीति बदलने आए हैं’, ‘आप पुरानी पार्टियों से अलग है, हम उन्हें राजनीति िसखा देंगे’, ‘अगर हमने घमंड किया तो हम भी भाजपा और कांग्रेस जैसे हो जाएंगे’. पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल द्वारा अलग-अलग मौकों पर दिए गए ये कुछ ऐसे बयान हैं जिनसे भ्रम हो सकता है कि आम आदमी पार्टी बाकी पार्टियों से अलग है. इस पार्टी से जो लोग जुड़े हैं वो केवल सेवा के लिए जुड़े हैं. सिद्धांत के लिए जुड़े हैं. ऐसे दावे केवल अरविंद केजरीवाल नहीं बल्की पार्टी का हर नेता और हर कार्यकर्ता करता रहा है. अब पार्टी के भीतर हाईकमान कल्चर की बात हो रही है. सामान्य लोगों को भी यह साफ-साफ समझ में आ रहा है कि पार्टी में अरविंद केजरीवाल और उनके गुट से असहमति रखने वालों को योजनाबद्ध तरीके से निपटाया जा रहा है. ऐसे में यह सवाल बार-बार उठ रहा है कि क्या आप भी औरों जैसी ही है?
बाकी पार्टियों से अलग होने का दावा गलत साबित हो रहा है. पार्टी उस मुकाम पर खड़ी दिख रही है जिसे जोड़-तोड़, खरीद-फरोख्त, व्यक्तिपूजा जैसी चीजों से कोई परहेज नहीं है. लेकिन पार्टी के कुछ नेता सारा परदा उठ जाने के बाद भी पार्टी विद डिफरेंस का राग छेड़े हुए हैं. अंकित लाल कहते हैं, ‘आज भी आम आदमी पार्टी दूसरों से अलग है. अगर हम भाजपा और कांग्रेस जैसे होते तो यह सवाल ही नहीं उठता कि किसने क्या गलत किया और किसकी क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए.’
पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रो. आनंद कुमार यह तो मानते हैं कि आम आदमी पार्टी दूसरों से अलग है लेकिन साथ ही वो यह भी जोड़ते हैं कि मौजूदा संकट से पार्टी कैसे निपटती है उससे यह तय होगा कि हम कितने अलग हैं. वो कहते हैं, ‘फिलहाल बाहर गलत संदेश ही जा रहा है. पार्टी के नेताओं की छवि अगर धूमिल होगी तो उससे पार्टी की छवि भी कमजोर होगी. अगर कोई अरविंद की छवि धूमिल करने की कोशिश कर रहा है तो वो पार्टी को ही कमजोर कर रहा है. उसी तरीके से अगर कोई योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और शांति भूषण को सार्वजनिक तौर से नीचा दिखाने की कोशिश में लगा है तो वह भी पार्टी को ही कमजोर कर रहा है. हम कितने लोकतांत्रिक हैं. कितने उदार हैं और कितने समझदार हैं वो इससे ही साबित होगा कि हम इस समस्या से कैसे निपटते हैं.’
आम आदमी पार्टी के नेता खुद को बाकियों से अलग होने की चाहे जितनी भी दलीलें दें लेकिन पार्टी के कई कदम इसे ठेंगा दिखाते हैं. 2013 में पार्टी जब अपना पहला चुनाव लड़ रही थी तब पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के चयन की एक प्रक्रिया तय की थी. उस समय इसकी चौतरफा तारीफ हुई थी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने इन मानकों को किनारे करते हुए उम्मीदवारों की हैसियत और जीतने की क्षमता के आधार पर टिकट बांटना शुरू कर दिया.
इसी प्रकार लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद पार्टी ने एक बार फिर से उसी कांग्रेस पार्टी की मदद से दिल्ली में सरकार बनाने की नाकाम कोशिश की जिसका समर्थन उसने कुछ महीने पहले ठुकराया था. इस मामले में खुद अरविंद केजरीवाल की शुचिता और ईमानदारी चिंदी-चाक हो गई है. हाल ही में सामने आए एक ऑडियो टेप की बातें बहुत विस्फोटक हैं. अपने एक पूर्व विधायक राजेश गर्ग से अरविंद, कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की बात कह रहे हैं. उन्हें अलग पार्टी बनाने की सलाह दे रहे हैं. इन बातों से सिर्फ यही साबित होता है कि आम आदमी पार्टी फिलहाल भले ही पूरी तरह से भाजपा या कांग्रेस नहीं हुई है लेकिन बहुत तेजी से उसी रास्ते पर बढ़ रही है.
कार्यकर्ता : निराश और हताश
जिस तरह से देश में होनेवाला हर चुनाव गरीब-वंचित और किसानों के नाम पर लड़ा जाता है, उसी तरह से आप में मची उठापटक भी कार्यकर्ताओं की आड़ में चल रही है. पार्टी जब सार्वजनिक रूप से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पर आरोप लगाती है तो इस बात का हवाला देती है कि जब देशभर के कार्यकर्ता दिल्ली चुनाव में लगे हुए थे तब ये दोनों पार्टी को हराने में लगे हुए थे. जब प्रशांत और योगेंद्र यादव को पीएससी से निकाला गया तब दोनों नेता बड़ी ही विनम्रता से कहा कि वे बतौर कार्यकर्ता पार्टी से जुड़े रहेंगे और पार्टी के कहेनुसार काम करेंगे. अपने ब्लॉग की शुरुआत मंयक गांधी पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए करते हैं. जब आप आधिकारिक रूप से अपनी वेबसाइट पर योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण पर आरोप तय करती है और इसके जवाब में योगेंद्र और प्रशांत जो पत्र लिखते हैं वो भी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए ही लिखे जाते हैं.
यानी पार्टी के कार्यकर्ता फिलहाल नेताओं के लिए अहम हैं. इस पार्टी से जुड़े ज्यादातर कार्यकर्ता युवा हैं और मुखर हैं. वो सार्वजनिक रूप से अपनी बात रखते हैं और मौका आने पर अपनी पार्टी के बड़े से बड़े नेता से सवाल भी करते हैं. हालिया विवाद में टीम अरविंद के लिए यही सबसे बड़ा सिरदर्द है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों का एक बड़ा तबका यह मान रहा है कि पार्टी योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के साथ गलत कर रही है. बिहार में पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता नीरज कुमार हालिया प्रकरण से दुखी हैं. वो कहते हैं, ‘जो भी हो रहा है वो गलत है. अगर आम आदमी पार्टी में अरविंद का योगदान है तो उससे कम योगदान योगेंद्र यादव, शांति भूषण और प्रशांत भूषण का नहीं है. लेकिन आज अरविंद पार्टी को हिटलरशाही से चलाना चाहते हैं. आज जिस तरीके से इनको पार्टी से कुछ लोग खारिज करने में लगे हुए हैं वो गलत है.’
नीरज कहते हैं, ‘इस पूरे कांड से जो संदेश हम जैसे कार्यकर्ताओं तक आ रहा है वो यह कि हम चाहे कितना भी अच्छा काम कर लें, जब तक अरविंद या उनके आसपास के चार-पांच लोग हमसे खुश नहीं होंगे तब तक हमारा कुछ नहीं होगा. निराशा बढ़ती जा रही है. समझ नहीं आ रहा कि हो क्या रहा है.’ वहीं आम आदमी पार्टी की तरफ से भोपाल से लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी रचना ढिंगरा बार-बार दोहराती हैं कि हम वापसी करेंगे. उन्हें उम्मीद है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता आपसी विवाद का कोई सही हल खोज लेंगे. पार्टी जल्दी ही रौ में आ जाएगी.
लेकिन पार्टी के कौशांबी स्थित मुख्यालय में बैठनेवाले कार्यकर्ता इस सबसे हैरान-परेशान हैं. कार्यकर्ता अपने नेताओं की इस आपसी लड़ाई को समझने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वो इसे जितना समझने की कोशिश कर रहे हैं उतना ही उलझते जा रहे हैं. दफ्तर के रोजमर्रा के काम में हाथ बंटाने वाले कार्यकताओं का एक बड़ा तबका इस इंतजार में है कि जल्दी से जल्दी अरविंद बंगलोर से वापस आ जाएं. इनका ऐसा मानना है कि अरविंद केजरीवाल आएंगे और सब ठीक कर देंगे.
खींचतान और निराशा के इस माहौल में पार्टी के कार्यकर्ता अपने नेतृत्व से सवाल कर रहे हैं. पिछले कुछे दिनों में ही सोशल मीडिया पर आम आदमी पार्टी, अरविंद केजरीवाल और पार्टी के दूसरे नेताओं से लगभग 50 हजार लोगों ने सवाल पूछे हैं. सवाल पूछने का यह सिलसिला जारी है. संभव है कि अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव सहित पार्टी के बाकी नेताओं को साथ लाने में कार्यकर्ताओं के ये सवाल अहम भूमिका निभाएं.