उपद्रव की उपकथा

updravaमहफूज आलम मूलरूप से बिहार के समस्तीपुर जिले के रहनेवाले हैं. वे पिछले छह साल से पूर्वी दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में रह रहे हैं. पेशे से दर्जी महफूज के लिए ब्लॉक 27 के चौराहे पर बनी अपनी छोटी-सी दुकान ही पूरी दुनिया रही है. इस दुकान के बगल में ही बिहार के अलग-अलग इलाकों से आनेवाले छह और लड़के रहते थे और उनके रहते महफूज को कभी ऐसा नहीं लगा कि वे अपने घर यानी समस्तीपुर से इतनी दूर हैं. लेकिन अब उनके दिन दिल्ली में बहुत उदासी भरे बीत रहे हैं. सिलाई-कटाई के काम में ही लगे उनके आसपास के सभी लड़के इस समय जेल में बंद हैं और इन सब के अकेले ‘अभिभावक’ महफूज आलम इन्हें छुड़ाने के लिए दिनरात लगे रहते हैं. उनकी दुकान पिछले कई दिनों से बंद है. कुछ दिन पहले ही छह में से दो लड़कों को जमानत मिली है और वे वापस अपने गृह राज्य बिहार लौट चुके हैं. बाकी के चार लड़के अभी भी जेल में हैं. महफूज को इनके छूटने की उम्मीद जरूर है, लेकिन यह कब तक होगा उन्हें नहीं पता. वे बताते हैं, ‘ कानूनी तौर पर जो हो सकता है उसकी पूरी कोशिश कर रहा हूं. लेकिन इन लड़कों के बाहर आने के बाद अब ये यहां रुकेंगे मुझे इसका भरोसा नहीं. मेरी दुकान तो अभी बंद है. खुलेगी तो पता नहीं फिर वैसा माहौल रह पाएगा कि नहीं.’ इन लड़कों के साथ ही तकरीबन 70 और लोग हैं जिन्हें पुलिस ने त्रिलोकपुरी में हिंसा भड़काने, अफवाह फैलाने और पत्थरबाजी करने के आरोप में गिरफ्तार किया है. महफूज की तरह इन सबके संबंधियों को इनकी रिहाई की उम्मीद तो है लेकिन उसके बाद जल्दी ही हालात सुधरने की किसी को उम्मीद नहीं.

त्रिलोकपुरी में दीपावली (23 अक्टूबर) की रात दो समुदायों के बीच झड़प हुई थी. इसकी शुरुआत ब्लॉक-20 से हुई. इस ब्लॉक में माता की चौकी रखी गई थी. दीपावली की रात चौकी से थोड़ी दूर पर अलग-अलग समुदायों के दो शराबियों के बीच कुछ कहासुनी हुई और फिर हाथापाई हुई. बात थाने तक पहुंची तो पुलिस ने दोनों के परिवारवालों को थाने में बुलाया और थोड़ी समझाइश, थोड़ी डांट-डपट के साथ मामला खत्म कर दिया.

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‘मोहल्लों की लड़ाई बन गई सांप्रदायिक दंगा !’

rapid_electionदीवाली का दूसरा दिन था. मैं शाम को नोएडा की तरफ निकल गई. रात के 9 बजते-बजते मेरे पास घर से एक के बाद एक कई फोन आने लगे. पता चला, मेरा घर जो कि त्रिलोकपुरी में है, वहां पथराव हो रहा है. घरवालों ने कहा अभी कहीं बाहर ही रहो, जब मामला शांत होगा, हम बुला लेंगे. उस रात तकरीबन दो-ढाई बजे मैं घर पहुंची. इलाके में काफी पुलिस तैनात थी, लेकिन माहौल शांत हो चुका था.

अगले दिन भाईदूज था. छुट्टी का एक आैैर दिन. रात को देर से लौटने की वजह से घर में मेरी किसी से पिछली रात के पथराव और लड़ाई के बारे में बात नहीं हुई थी. मैं आधी नींद में ही थी कि अचानक गली से हल्का शोर आने लगा. मेरा 23 साल का छोटा भाई शोर सुनते ही मामला जानने के लिए बाहर की तरफ निकल गया. शोर थोड़ा और बढ़ा तो मैं और मेरे घर की बाकी महिलाएं खिड़की तक पहुंचकर बाहर देखने लगीं.

गली से सड़क का एक हिस्सा दिख रहा था जहां लोग चिल्लाते हुए भागते-दौड़ते दिख रहे थे. मैं समझ गई जरूर आसपास कहीं लड़ाई हुई है. लेकिन फिर मिनटों में लोग गली से गुजरकर भाग रहे थे. गली में रहनेवाले लोग फटाफट अपने दरवाजे और खिड़कियां बंद करने लगे. भागते दौड़ते लोगों से टुकड़ों-टुकड़ों में जानकारियां मिल रही थी, ‘ ब्लॉक-27 की दुकानों में आग लगा दी है… पथराव हो रहा है…आंसू गैसे के गोले छोड़े जा रहे हैं… गोलियां चल रही हैं…’

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