ग्रीनपीस के एक वालंटियर का इंटरनेशनल हेड कुमी को भेजा गया ई-मेल

किस बिना पर समित एच जैसा दंभी और अशिष्ट व्यक्ति ग्रीनपीस इंडिया में कार्यकारी निदेशक  के पद पर बना हुआ है? लगभग दो साल पहले, एक पत्रकार के बतौर (बद)किस्मती से मुझे उनसे मिलने का मौका मिला था और मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं कि मैं आज तक समित जितने दंभी और अहंकारी व्यक्ति से नहीं मिला.

क्या आपको लगता है कि मोदी सरकार की कार्रवाई से इतर अगर भारत में ग्रीनपीस को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है तो इसके अनेक कारणों में से एक कारण कई प्रचारकों और सीनियर मैनेजमेंट का सार्वजानिक रूप से किया हुआ अहंकारी व्यवहार है?

जैसा कि मैंने अपने पिछले ईमेल में भी बताया मैंने मेनस्ट्रीम मीडिया में हमेशा ग्रीनपीस और इसके अभियानों का समर्थन किया है, उनके बारे में लिखा है. मैं जब भी किसी विश्वस्तरीय मंच पर खुद को ग्रीनपीस का कार्यकर्ता बताता हूं तो मुझे बहुत गर्व का अनुभव होता है. पर भारत के इस ग्रीनपीस को मैं नहीं स्वीकारता.

मैं आपसे निवेदन करता हूं कि बहुत हो चुका है, अब अपनी चुप्पी तोड़िए और कोई एक्शन लीजिए. अब तक मैंने यहां, ग्रीनपीस इंडिया में चल रहे नकारात्मक मामलों को बाहरी दुनिया के सामने उजागर नहीं किया है और यकीन मानिए, अगर जरूरत पड़ी तो मुझे इस मुद्दे को उजागर करने और ग्रीनपीस इंडिया को मीडिया ट्रायल में लाने में घंटे भर से भी कम समय ही लगेगा.

अगर मैं विश्व मीडिया में भारत सरकार द्वारा ग्रीनपीस के साथ हुए अन्याय के बारे में लिख सकता हूं तो ग्रीनपीस के कार्यकर्ताओं और कर्मचारियों के साथ हो रहे अन्याय के बारे में लिखना भी ईमानदारी ही होगी. और इसमें सबसे ऊपर यहां प्रचलित ‘इनफॉर्मल रेप कल्चर’ ही होगा. इस वक्त सबसे आखिरी चीज जिससे ग्रीनपीस जूझ सकता है वो है मीडिया.

कुमी, मैं ग्रीनपीस को गिरते हुए नहीं देख सकता. मैं आपसे फिर ये अनुरोध करता हूं कि आप इस मामले में संज्ञान लें और भारत में ग्रीनपीस की गिरती हुई साख को बचाएं.

धन्यवाद

अविक रॉय, (पत्रकार व ग्रीनपीस से लंबे समय से जुड़े वालंटियर)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here