20 हज़ार से अधिक स्कूल-कॉलेज बन्द करने की तैयारी में मध्य प्रदेश सरकार

आदिवासी संगठन जयस ने शिक्षा की गुणवत्ता पर किया जनसंवाद, पाँचवीं अनुसूची के अनुपालन को लागू करने की सरकार से की माँग

मध्य प्रदेश के आदिवासी और पिछड़े इलाकों की पहले से ही लचर शिक्षा व्यवस्था को  कोरोना वायरस और इस महामारी से सुरक्षा के लिए किये गये लॉकडाउन ने और चौपट कर दिया है। अब मध्य प्रदेश सरकार इन इलाकों के  20 हज़ार से अधिक स्कूल और कॉलेज बन्द करने का मन बना रही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि पहले से ही शिक्षा और समाज में बराबरी के स्तर पर पिछड़े लोगों से शिक्षा का अधिकार भी अगर छिन गया या सरकारी स्कूल-कॉलेज बन्द होने पर प्राइवेट स्कूल खुल गये, तो आदिवासी बच्चे किस तरह पढ़ सकेंगे?

इसी के मद्देनज़र मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता के मुद्दे पर 4 फरवरी, 2021 को भोपाल के श्यामला हिल्स स्थित गाँधी भवन सभागार में कुछ जनप्रतिनिधियों, विधायकों, शिक्षाविदों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के संयुक्त तत्त्वावधान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का विषय था- ‘आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता पर जनसंवाद’। कार्यक्रम में प्रदेश भर से अनेक सामाजिक संगठनों के लोग, जनप्रतिनिधि एवं शिक्षाविद् शामिल हुए। कार्यक्रम में सम्मिलित हुए कई बुद्धिजीवियों ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किये जाने की आवश्यकता है। सरकारों द्वारा किये जा रहे प्रयास नाकाफी हैं।

यह कार्यक्रम इसलिए भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि मध्य प्रदेश सरकार राज्य के आदिवासी बहुल एवं पिछड़े क्षेत्रों के 20 हज़ार से अधिक स्कूलों एवं कॉलेजों को बन्द करने की तैयारी कर रही है। चूँकि यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि भारतीय आबादी के एक बड़े हिस्से, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों को पिछले सात दशकों में कार्यान्वित विकास परियोजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिला है। बल्कि सही मायने में इस अवधि के दौरान कार्यान्वित विकास परियोजनाओं का उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा इतनी बड़ी संख्या में स्कूलों, कॉलेजों को बन्द करने के फैसले को प्रदेश के अनेक जनप्रतिनिधि, शिक्षाविद् एवं सामाजिक कार्यकर्ता भी आदिवासी समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला बता रहे हैं। बीते दिनों मध्य प्रदेश सरकार को अनेक जनप्रतिनिधियों एवं शिक्षाविदों ने पत्र लिखकर उक्त फैसले को वापस लेने का सुझाव दिया था। वहीं मध्य प्रदेश के अनेक आदिवासी संगठनों ने प्रदर्शन एवं आन्दोलन के माध्यम से ज्ञापन देकर इस फैसले को वापस लेने की माँग की थी। अगस्त, 2020 में राज्य शिक्षा केंद्र ने एक आदेश जारी कर ज़िलों के अधिकारियों से कहा था कि उन स्कूलों की समीक्षा की जाए जहाँ छात्रों की संख्या 0 से 20 है। ऐसे स्कूलों को समीप के स्कूलों में मिलाकर शिक्षकों की सेवाएँ कार्यालय या फिर अन्य स्कूलों में ली जाएँ।

कार्यक्रम में आये पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं झाबुआ विधायक कांतिलाल भूरिया ने कहा कि जब मैं केंद्रीय मंत्री था, तब देश भर के आदिवासी विकासखण्डों में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय की स्थापना करायी थी, ताकि प्रतिभाशाली आदिवासी छात्र-छात्राओं को बेहतर शिक्षा प्राप्त हो सके। लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा आदिवासी क्षेत्रों के स्कूलों को बन्द करना आदिवासी समाज को पीछे धकेलने जैसा है। आदिवासी समाज अब काफी जागरूक हो गया है और प्रदेश सरकार के आदिवासी विरोधी फैसले को स्वीकार नहीं करेगा।

जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन के राष्ट्रीय संरक्षक एवं मनावर विधायक डॉ. हिरालाल अलावा ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा ज़िला स्तर पर प्रभारी मंत्री नियुक्त नहीं किये जाने के कारण प्रदेश के 89 आदिवासी विकासखण्डों में वित्त वर्ष 2020-21 का आदिवासी उप योजना 275 (1) के तहत बस्ती विकास के लिए राशि जारी नहीं की जा सकी है, जिससे आदिवासी क्षेत्रों का विकास अवरुद्ध हो गया है। यदि बजट सत्र 2021-22 से पूर्व बस्ती विकास योजना की राशि जारी नहीं की गयी, तो यह राशि लैप्स हो जाएगी, जिससे प्रदेश के 89 ट्राइबल ब्लॉकों के अंतर्गत निवास करने वाली आबादी शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई इत्यादि मूलभूत बुनियादी सुविधाओं से वंचित हो जाएँगे।

डॉ. अलावा ने आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने हेतु सुझाव भी दिये। उन्होंने कहा कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में शिक्षकों की भारी कमी है। शिक्षकों के रिक्त पदों पर भर्ती हेतु विशेष अभियान चलाने की आवश्यकता है। साथ ही सभी छात्रावासों में गणित, विज्ञान, अंग्रेजी की कोचिंग की विशेष व्यवस्था की जाए; सभी हाई स्कूल एवं हायर सेकेंड्री स्कूलों में उच्च गुणवत्ता वाली लैब एवं लाइब्रेरी स्थापित की जाएँ; रोज़गार मूलक शिक्षा प्रणाली विकसित की जाए; जिन विद्यालयों का परीक्षा परिणाम 30 फीसदी या उससे कम रहा है, वहाँ के शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए; कक्षा 12 के बाद प्रतिभावान बच्चों के लिए ट्रैकिंग सिस्टम डेवलप करने हेतु भी नीतियाँ बनायी जाएँ।

डिक्की मध्य प्रदेश के समन्वयक हृदयेश किरार ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में बिजनेस, तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित शिक्षा व्यवस्था को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि डिक्की आदिवासियों एवं दलितों को व्यवसाय के लिए ऋण दिलाने एवं व्यवसाय से जोडऩे के लिए कार्य कर रहा है और आदिवासी समुदाय को वर्तमान समय के अनुसार व्यवसाय से जुडऩे की ज़रूरत है।

आदिवासी महापंचायत गढ़ा-मंडला संरक्षक एवं निवास विधायक डॉ. अशोक मर्सकोले ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों के बारे में प्रदेश सरकार द्वारा मनमाने तरीके से कोई फैसले लिया जाना गलत है। आदिवासियों से सम्बन्धित किसी भी प्रकार के फैसले लेने से पूर्व राज्य सरकार को अपने प्रस्ताव आदिमजाति मंत्रणा परिषद् में भेजना होता है। आदिमजाति मंत्रणा परिषद् जो सुझाव देती है; उसी के अनुसार राज्यपाल की अनुमति से राज्य सरकार को आदिवासियों के बारे में फैसले लेने चाहिए। यह प्रदेश के आदिवासियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रदेश में आदिमजाति मंत्रणा परिषद् की बैठकें एक-दो वर्ष तक भी आयोजित नहीं की जातीं।

जल, जंगल, ज़मीन के मुद्दों के जानकार सामाजिक कार्यकर्ता अनिल गर्ग ने कहा कि चाहें शिक्षा, स्वास्थ्य हो या बस्ती विकास का मुद्दा, आदिवासियों के सभी मुद्दे संविधान की पाँचवीं अनुसूची कानून के तहत सुलझाये जा सकते हैं। पाँचवीं अनुसूची कानून मात्र दो पेज का है। लेकिन हमारे जनप्रतिनिधियों, राज्यों के राज्यपालों ने पाँचवीं अनुसूची को पढऩे की कभी भी ज़हमत नहीं उठायी और आदिवासियों के साथ आज़ादी के बाद से ही सरकारी अत्याचार करते आ रहे हैं। आज समाज को मुखर होकर पाँचवीं अनुसूची को लागू करने की माँग करनी चाहिए।

आदिवासी महिलाओं के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता सारिका सिन्हा ने कहा कि आदिवासी बच्चे शुरुआत से ही पढऩे में कमज़ोर हो जाते हैं या पढ़ नहीं पाते हैं। इसका कारण उनकी बोलचाल की भाषा में शिक्षा नहीं मिलना है। यदि शुरू से ही उनकी मातृ भाषा में उनको शिक्षा दी जाएगी, तो उनमें पढऩे की ललक जगेगी।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक भास्कर राव रोकड़े ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में शैक्षणिक गुणवत्ता का हर जगह अभाव है। उत्कृष्ट स्तर के शिक्षा संस्थानों की कमी है। क्रिश्चियन मिशनरी संस्थानों ने पिछड़े आदिवासी इलाकों में उत्कृष्ट स्तर के शिक्षण संस्थानों निर्माण कर लिया है; लेकिन सरकार इस कार्य में असफल रही है। इस दिशा में राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण कोई प्रयास नहीं किया गया। इस दिशा में प्रयास किये जाने की ज़रूरत है।

कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के धरमपुरी विधायक पांचीलाल मेड़ा, जोबट विधायक कलावती भूरिया, पानसेमल विधायक चंद्रभागा किराड़े, थांदला विधायक वीरसिंह भूरिया, पेटलावद विधायक वालसिंह मेड़ा, भगवानपुरा विधायक केदार डावर, म.प्र. कांग्रेस पार्टी के जनजाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अजय शाह मकड़ई, अखिल भारतीय गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा मोनिका बट्टी, म.प्र. आदिवासी महिला कांग्रेस अध्यक्ष चंद्रा सर्वट्टे, शिक्षाविद् अनवर जाफरी, सामाजिक कार्यकर्ता इरफान जाफरी, विमलेश आरबी, आरटीआई कार्यकर्ता सिद्धार्थ गुप्ता, अनुसूचित जनजाति एंपलाइज वेलफेयर एसोसिएशन (भोपाल) के अध्यक्ष यू.एस. सैयाम, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी पी.एल. सोलंकी, कृष्णा कुमरे, श्यामसिंह कुमरे समेत अनेक वक्ताओं ने विचार व्यक्त किये।

आर.बी. बट्टी, आर.एस. ठाकुर, ओ.पी. अहिरवार, देवेंद्र सिंह मंडलोई, नंदुसिंह रावत, राकेश परते, अनिल सिर्विया, करुणा शंकर शुक्ला, डॉ. श्यामसिंह कुमरे, डॉ. मनीष सुल्या, डॉ. हितेश मुझाल्दा, रविराज बघेल, राकेश मंडलोई, संदीप आर्य, मुकेश मल्होत्रा, सुरेश मालवीय, विपिन टोप्पो, केशव प्रसाद कुशराम, मातासिंह पोर्ते, श्याम सुन्दर भिलाला, गेंदालाल रणदा, प्रेम पटेल, अनिल परमार, विक्की धारीवाल, मुकेश खराड़ी समेत उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात सहित मध्य प्रदेश के अनेक ज़िलों से पहुँचे सैकड़ों बुद्धिजीवी एवं सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने इस परिचर्चा के हिस्सा बने एवं लिखित में अपने सुझाव भी दिये। कार्यक्रम के बीच जयस के कैलेंडर का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन जयस के राष्ट्रीय प्रवक्ता बाबूसिंह डामोर ने किया। मध्य प्रदेश जयस प्रदेश अध्यक्ष अंतिम मुझाल्दा ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम की समाप्ति के उपरांत विधायकों एवं बुद्धिजीवियों के एक प्रतिनिधि मण्डल ने मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव से इकबाल सिंह बैंस से मिलकर आदिवासी क्षेत्रों की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए माँग पत्र सौंपे।