20 लाख करोड़ से खुलेगा आत्मनिर्भरता का रास्ता?

20 लाख करोड़! सुनने में बहुत अच्छा लगता है। यह इतनी बड़ी अंकगणितीय संख्या है कि इसके शून्य गिनने में अच्छे-अच्छों के पसीने छूटते हैं। हालाँकि यूँ तो 12वीं का गणित का अच्छा विद्यार्थी भी बता सकता है कि 20 लाख करोड़ में कितने शून्य होते हैं। लेकिन जनसामान्य कब इतनी बड़ी संख्या पर ध्यान देता है! दरअसल उसके व्यावहारिक जीवन में इसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ती। यही वजह है कि केंद्र सरकार का 20 लाख करोड़ रुपये का आॢथक पैकेज अब भी बहुतों को दिवास्वप्न जैसा है और कितने ही इस पैकेज से खुद को राहत मिलने की आस लगाये बैठे भी होंगे। यह आॢथक पैकेज कितनों को राहत पहुँचा पाता है, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इस आॢथक पैकेज में किसे क्या राहत देने की सरकार की योजना है? तहलका में इसे विस्तार से बताने का प्रयास किया गया हैं :-

अर्थ-व्यवस्था को खोलने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ या ‘आत्मनिर्भर भारत’ की सोच सामयिक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सकल घरेलू उत्पाद के 10 फीसदी के बराबर 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है।

लेकिन चुनौती अर्थ-व्यवस्था को दो तरफा पुनर्जीवित करने और कमज़ोर वर्गों को सहारा देने की है। साथ ही जीवन और आजीविका के बीच किसी एक को चुनने की भी बड़ी चुनौती है। प्रधानमंत्री ने एक नया नारा जोड़ा है, स्थानीय (स्वदेशी) को चुनो। यह प्रेरणादायक और उम्मीदों से भरा है।

हालाँकि बड़ा सवाल बना हुआ है। क्या यह मेगा पैकेज व्यापार और उद्योग में नयी जान फूँक सकेगा? क्या पैकेज पटरी से उतर चुकी अर्थ-व्यवस्था को सँभाल लेगा? हालाँकि इसमें कोई दो राय नहीं कि स्थानीय उत्पादों या आत्मनिर्भरता के लिए यह सही वक्त पर लिया गया कदम है, क्योंकि महामारी ने अर्थ-व्यवस्था के लिए समस्याओं का अंबार खड़ा कर दिया है। लेकिन यह भी एक कठोर वास्तविकता है कि ‘मेक इन इंडिया’ का नारा ज्यादा सफल होता नहीं दिखा है। इस रिपोर्ट में ‘तहलका’ यह विश्लेषण कर रहा है कि क्या यह पैकेज व्यवसायों और उद्योग के लिए पुनर्जीवन साबित होगा और अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाते हुए प्रवासी श्रमिकों और अन्य बेरोज़गारों की नौकरियों को वापस लायेगा?

रिवाइवल पैकेज

पहले रिवाइवल (बचाव) पैकेज की बात करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आॢथक और व्यापक पैकेज की घोषणा करके एक उम्मीद जगायी। उन्होंने आत्मानिर्भर भारत अभियान या आत्मनिर्भर भारत आन्दोलन के लिए अपने पाँच स्तम्भों- ‘अर्थ-व्यवस्था’, ‘बुनियादी ढाँचे’, ‘प्रणाली’, ‘जीवंत’, ‘जनसांख्यिकी’ और ‘माँग’ को रेखांकित किया।

यह केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण पर छोड़ दिया गया कि इस पैकेज से वह होने वाले संरचनात्मक सुधारों के बारे में लोगों को बताएँ। मीडिया के साथ अपनी पहली बातचीत में उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि कई क्षेत्रों को नीति सरलीकरण की ज़रूरत है, ताकि लोगों को यह समझना आसान हो सके कि कौन-सा क्षेत्र क्या दे सकता है? या कैसे भाग ले सकता है और गतिविधियों में और पारदर्शिता कैसे लायी जा सकती है? उन्होंने कहा कि एक बार जब हम सेक्टरों में कमी कर देते हैं, तो हम विकास के लिए सेक्टर को बढ़ावा दे सकते हैं।

वित्त मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री का सुधार के लिए उपाय करने का मज़बूत रिकॉर्ड है। इसके लिए उन्होंने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण का हवाला दिया और कहा कि इससे लोगों को सीधे पैसा मिला। साथ ही एक देश में एक जीएसटी, एक बाज़ार, इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के अलावा व्यापार करने में आसानी अन्य उदहारण हैं। उन्होंने तेज़ी से निवेश के लिए नीतिगत सुधारों और सरकार के इस सम्बन्ध में उठाये गये कदमों की आवश्यकता को रेखांकित किया और कहा कि फास्ट ट्रैक क्लीयरेंस एम्पॉवर्ड ग्रुप ऑफ सेक्रेटरीज के माध्यम से किया जाएगा। निवेश परियोजनाओं को तैयार करने और निवेशकों और केंद्र और राज्य सरकारों के साथ समन्वय करने के लिए प्रत्येक मंत्रालय में एक परियोजना विकास सेल की स्थापना की जाएगी।

नीतिगत सुधार

वित्त मंत्री ने आत्मनिर्भर भारत की दिशा में तेज़ी से निवेश करने के लिए नीतिगत सुधारों की शृंखला की घोषणा की। उन्होंने कहा कि सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह के माध्यम से निवेश मंज़ूरी की तेज़ी से ट्रैकिंग होगी। निवेश मंत्रालय को निवेशकों और केंद्र और राज्य सरकारों के साथ समन्वय स्थापित करने के लिए प्रत्येक मंत्रालय में प्रोजेक्ट डेवलपमेंट सेल का गठन किया जाएगा। नये निवेश की प्रतिस्पर्धा के लिए निवेश आकर्षण पर राज्यों की रैंकिंग होगी। सौर पीवी विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में नये बेहतर क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की जाएँगी।

सीतारमण ने कहा कि राज्यों में आम बुनियादी सुविधाओं और कनेक्टिविटी के औद्योगिक क्लस्टर उन्नयन के लिए चुनौती मोड के माध्यम से एक योजना लागू की जाएगी। नये निवेश को बढ़ावा देने और औद्योगिक सूचना प्रणाली (आईआईएस) पर जीआईएस मैपिंग के साथ उपलब्ध कराने के लिए औद्योगिक भूमि और भूमि बैंकों की उपलब्धता होगी। लगभग 3376 औद्योगिक पार्क, सम्पदा और सेज पाँच लाख हेक्टेयर में आईआईएस पर नक्शा में डाले गये हैं। सभी औद्योगिक पार्कों को 2020-21 के दौरान स्थान दिया जाएगा।

प्रमुख कृषि सुधार

हालाँकि, जो सबसे महत्त्वपूर्ण सुधार है, वह शायद भारतीय कृषि के लिए एक प्रमुख सुधार के रूप में आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करने का केंद्र का निर्णय है। प्रोत्साहन पैकेज के तीसरे अंश के रूप में वित्त मंत्री के घोषित विपणन सुधार का उद्देश्य अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू को डी-रेगुलेट करना है। यह प्रोसेसर, मिलर्स, निर्यातकों और व्यापारियों को इन जिंसों का उतना स्टॉक रखने की अनुमति देगा, जितना वे चाहते हैं। अंतर्राज्यीय व्यापार के लिए बाधाओं को दूर करने के लिए एक नया विधेयक का प्रस्ताव है, जिसमें किसानों को अपने ज़िले में केवल लाइसेंस प्राप्त व्यापारियों को अपनी फसल बेचने के लिए बाध्य नहीं करने का अधिकार होगा। किसान किसी को भी और कहीं भी उत्पाद बेच सकते हैं और व्यापारी स्वतंत्र रूप से देश के भीतर कृषि-उपज की किसी भी मात्रा में खरीद, स्टॉक और स्थानांतरित कर सकते हैं।

आठ प्रमुख क्षेत्र

संरचनात्मक सुधारों के लिए चुने गये आठ प्रमुख क्षेत्र कोयला, खनिज, रक्षा उत्पादन, नागरिक उड्डयन, बिजली क्षेत्र, सामाजिक अवसंरचना, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा हैं। कोयला क्षेत्र वाणिज्यिक खनन का रास्ता खोलेगा। सरकार कोल सेक्टर में प्रतिस्पर्धा, पारदर्शिता और निजी क्षेत्र की भागीदारी को निर्धारित रुपया / टन के शासन के बजाय राजस्व साझाकरण तंत्र के माध्यम से पेश करेगी। कोई भी पार्टी कोयला ब्लॉक के लिए बोली लगा सकती है और खुले बाज़ार में बेच सकती है। प्रवेश मानदण्डों को उदार बनाया जाएगा। लगभग 50 ब्लॉकों को तुरन्त पेश किया जाएगा। कोई पात्रता शर्तें नहीं होंगी और केवल एक छत के साथ अग्रिम भुगतान प्रदान किया जाएगा।

कोयला क्षेत्र में पूर्ण रूप से खोजे गये कोयला ब्लॉकों की नीलामी के पहले प्रावधान के खिलाफ आंशिक रूप से खोजे गये ब्लॉकों के लिए अन्वेषण-सह-उत्पादन वाली व्यवस्था होगी। यह अन्वेषण में निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति देगा। पहले से निर्धारित उत्पादन को राजस्व-हिस्सेदारी में छूट के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाएगा।

कोयला क्षेत्र में विविध अवसर होंगे। राजस्व हिस्सेदारी में छूट के माध्यम से कोयला गैसीकरण और द्रवीकरण को प्रोत्साहित किया जाएगा। इससे पर्यावरणीय प्रभाव काफी कम हो जाएगा और यह गैस आधारित अर्थ-व्यवस्था को बदलने में भारत की सहायता करेगा। करीब 50 हज़ार करोड़ का बुनियादी ढाँचा विकास कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के 2023-24 तक एक बिलियन टन (100 करोड़ टन) कोयला उत्पादन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें खदानों से रेलवे के किनारों तक कोयले (कन्वेयर बेल्ट) के मशीनीकृत हस्तांतरण में 18,000 करोड़ रुपये का निवेश शामिल होगा। यह उपाय पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में भी मदद करेगा।

कोयला क्षेत्र में उदारीकृत शासन के लिए कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की कोयला खदानों से कोल बेड मीथेन (सीबीएम) निष्कर्षण अधिकारों की नीलामी की जाएगी। खनन योजना सरलीकरण जैसे व्यवसाय करने में आसानी, उपाय किये जाएँगे। यह वार्षिक उत्पादन में स्वत: 40 फीसदी वृद्धि की अनुमति देगा। सीआईएल के उपभोक्ताओं को वाणिज्यिक शर्तों में रियायतें (5,000 करोड़ रुपये की राहत), गैर-बिजली उपभोक्ताओं के लिए नीलामी में आरक्षित मूल्य में कमी, ऋण की शर्तों में ढील दी गयी है।

इसमें खनिज क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने पर ज़ोर होगा। विकास को बढ़ावा देने, रोज़गार देने और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी लाने के लिए विशेष रूप से एक सहज समग्र अन्वेषण-सह-खनन-सह-उत्पादन शासन की शुरुआत के माध्यम से संरचनात्मक सुधार होंगे। लगभग 500 खनन ब्लॉकों को एक खुली और पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से पेश किया जाएगा। एल्युमीनियम उद्योग की प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए बॉक्साइट और कोयला खनिज ब्लॉकों की संयुक्त नीलामी से एल्युमीनियम उद्योग को बिजली की लागत कम करने में मदद मिलेगी।

खनन पट्टों के हस्तांतरण और अधिशेष अप्रयुक्त खनिजों की बिक्री की अनुमति देने के लिए बंदी और गैर-बंदी खानों के बीच का अन्तर, जिससे खनन और उत्पादन में बेहतर दक्षता हो सके; के लिए खान मंत्रालय विभिन्न खनिजों के लिए एक खनिज सूचकांक विकसित करने की प्रक्रिया में है। खनन पट्टों देते समय देय स्टाम्प ड्यूटी का युक्तिकरण होगा।

रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया जाएगा, जिसमें साल की समय-सीमा के साथ आयात पर प्रतिबन्ध लगाने, आयातित पुर्जों के स्वदेशीकरण और घरेलू पूँजी खरीद के लिए अलग से बजट प्रावधान के लिए हथियारों और प्लेटफार्मों की एक सूची को अधिसूचित किया जाएगा। इससे विशाल रक्षा आयात बिल को कम करने में मदद मिलेगी। आयुध निर्माणी बोर्ड के कॉरपोरेटीकरण द्वारा आयुध आपूर्ति में स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार के लिए कदम उठाये जाएँगे।

रक्षा उत्पादन में नीतिगत सुधार 49 फीसदी से 74 फीसदी तक के स्वचालित मार्ग के तहत रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में एफडीआई सीमा को बढ़ाने के लिए होगा। समय-समय पर रक्षा खरीद प्रक्रिया होगी और अनुबन्ध प्रबन्धन का समर्थन करने के लिए एक परियोजना प्रबन्धन इकाई (पीएमयू) की स्थापना करके तेज़ी से निर्णय लेने की शुरुआत की जाएगी। हथियारों और प्लेटफार्मों के जनरल स्टाफ गुणात्मक आवश्यकताओं (जीएसक्यूआर) की यथार्थवादी सेटिंग और परीक्षण और परीक्षण प्रक्रियाओं की ओवरहॉलिंग होगी।

नागरिक उड्डयन के लिए कुशल हवाई क्षेत्र प्रबन्धन लाने के लिए नागरिक उड्डयन क्षेत्र में भारतीय वायु अंतरिक्ष के उपयोग पर प्रतिबन्धों को आसान बनाया जाएगा, ताकि नागरिक उड़ान अधिक कुशल हो जाए। इससे विमानन क्षेत्र के लिए प्रति वर्ष कुल 1,000 करोड़ रुपये का लाभ होगा। इससे हवाई क्षेत्र का इष्टतम (सही) उपयोग होगा और ईंधन के उपयोग, समय में कमी और सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव होगा।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से अधिक विश्व स्तरीय हवाई अड्डे तैयार होंगे। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) आधार पर ऑपरेशन और रखरखाव के लिए दूसरे दौर की बोली के लिए छ: और हवाई अड्डों की पहचान की गयी है। पहले और दूसरे चरण में 12 हवाई अड्डों में निजी कम्पनियों से 13 हज़ार करड़ रुपये अतिरिक्त निवेश की उम्मीद है। तीसरे दौर की बोली के लिए छ: हवाई अड्डों को रखा जाएगा। भारत विमान रखरखाव, मरम्मत और ओवरहॉल (एमआरओ) के लिए एक वैश्विक केंद्र बनने का प्रयास करेगा। एमआरओ पारिस्थितिकी तंत्र के लिए कर व्यवस्था को युक्तिसंगत बनाया गया है। विमान घटक की मरम्मत और एयरफ्रेम रखरखाव तीन वर्षों में 800 करोड़ रुपये से बढक़र 2,000 करोड़ रुपये हो जाएगा। उम्मीद है कि आने वाले वर्ष में दुनिया के प्रमुख इंजन निर्माता भारत में इंजन मरम्मत की सुविधा स्थापित करेंगे। बड़ी तादाद में अर्थ-व्यवस्थाओं को बनाने के लिए रक्षा क्षेत्र और सिविल एमआरओ के बीच रूपांतरण स्थापित किया जाएगा। इससे एयरलाइंस की रखरखाव लागत में कमी आयेगी।

बिजली क्षेत्र में शुल्क नीति सुधार की राह पर है। इनमें उपभोक्ता अधिकार शामिल हैं। डिस्कॉम की अक्षमताओं को उपभोक्ताओं पर बोझ नहीं बनने दिया जाएगा और डिस्कॉम के लिए भी सेवा और सम्बद्ध दण्ड के मानक होंगे। साथ ही डिस्कॉम पर्याप्त बिजली सुनिश्चित करेगा और बिजली कटौती पर दण्डित करने का प्रावधान होगा। क्रॉस सब्सिडी और ओपन एक्सेस के समयबद्ध अनुदान में तेज़ी से कमी आएगी। पीढ़ी और पारेषण परियोजना डेवलपर्स को भविष्य में प्रतिस्पर्धात्मक रूप से चुना जाना है। बिजली क्षेत्र में स्थिरता हासिल करने के लिए कोई नियामक सम्पत्ति नहीं होगी, सब्सिडी के लिए गेनकॉस और डीबीटी का समय पर भुगतान होगा।

केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली विभागों और उपयोगिताओं का निजीकरण किया जाएगा। इससे उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा मिलेगी और वितरण में परिचालन और वित्तीय दक्षता में सुधार होगा। यह देश भर में अन्य उपयोगिताओं द्वारा अनुकरण के लिए एक मॉडल भी प्रदान करेगा।

सामाजिक बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने के लिए, सरकार केंद्र और राज्य और सांविधिक निकायों द्वारा वीजीएफ के रूप में कुल परियोजना लागत के 30 फीसदी तक की व्यवहार्यता गैप फंडिंग (वीजीएफ) की मात्रा में वृद्धि करेगी। अन्य क्षेत्रों के लिए भारत और राज्यों और वैधानिक निकायों से वीजीएफ को 20 फीसदी का मौज़ूदा समर्थन जारी रहेगा। कुल परिव्यय 8,100 करोड़ रुपये होगा।

परियोजनाओं को केंद्रीय मंत्रालयों/ राज्य सरकार/सांविधिक संस्थाओं द्वारा प्रस्तावित किया जाएगा। अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए उपग्रहों, प्रक्षेपणों और अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं में निजी कम्पनियों को प्रदान किया जाने वाला स्तरीय प्लेटफॉर्म होगा। निजी पार्टियों को भविष्यनिष्ठ नीति और नियामक वातावरण प्रदान किया जाएगा। निजी क्षेत्र को अपनी क्षमता में सुधार करने के लिए इसरो की सुविधाओं और अन्य प्रासंगिक सम्पत्तियों का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी। ग्रहों की खोज, बाहरी अंतरिक्ष यात्रा आदि के लिए भविष्य की परियोजनाएँ भी निजी क्षेत्र के लिए खुली रहेंगी। तकनीक-उद्यमियों को दूरस्थ-संवेदी डाटा प्रदान करने के लिए उदार भू-स्थानिक डाटा नीति होगी।

परमाणु ऊर्जा सम्बन्धित सुधारों के तहत कैंसर और अन्य बीमारियों के लिए किफायती उपचार के माध्यम से मानवता के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए मेडिकल आइसोटोप के उत्पादन के लिए पीपीपी मोड में अनुसंधान रिएक्टर की स्थापना की जाएगी। खाद्य संरक्षण के लिए विकिरण प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए पीपीपी मोड में सुविधाएँ, जैसे- कृषि सुधारों की सहायता के लिए और किसानों की सहायता के लिए भी स्थापित किया जाएगा। भारत के मज़बूत स्टार्ट-अप इकोसिस्टम को परमाणु क्षेत्र से जोड़ा जाएगा और इसके लिए अनुसंधान सुविधाओं और तकनीक-उद्यमियों के बीच तालमेल को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी विकास-सह-ऊष्मायन केंद्र स्थापित किये जाएँगे।

20 लाख करोड़ रुपये नहीं, 20.97 लाख करोड़ रुपये का पैकेज

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की घोषित प्रोत्साहन पैकेज के बाद किश्तों में 20,97,053 करोड़ रुपये शामिल हैं, जिसमें हाल ही में प्रधानमंत्री के घोषित उपायों से 1.92 लाख करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि भी शामिल है। जैसे कि 1.7 लाख करोड़ रुपये की प्रधान मातृ गरीब कल्याण योजना। एक बड़ा हिस्सा, वास्तव में आॢथक पैकेज का सबसे बड़ा 8.01 लाख करोड़ रुपये इस साल फरवरी, मार्च और अप्रैल में भारतीय रिज़र्व बैंक की तरफ से लिक्विडिटी को प्रोत्साहन के विभिन्न उपायों से सम्बन्धित था।

पहली किश्त- 5,94,550 करोड़ रू.

वित्त मंत्री के घोषित राहत उपायों का पहला सेट भारतीय अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ को मज़बूत करने पर केंद्रित है, जो एमएसएमई क्षेत्र में लगभग 11 करोड़ लोगों को रोज़गार देता है और जीडीपी का लगभग 29 फीसदी है। नकदी को बढ़ावा देने के लिए निधि के माध्यम से एमएसएमई के लिए तीन लाख करोड़ रुपये के जमानत-मुक्त ऋण और 50,000 करोड़ रुपये के इक्विटी जलसेक की घोषणा की गयी है। एनबीएफसी, एचएफसी आदि के लिए 30 हज़ार करोड़ रुपये की लिक्विडिटी राहत उपायों की घोषणा की गयी और बिजली वितरण कम्पनियों के लिए 90 हज़ार करोड़ रुपये की घोषणा की गयी।

दूसरी किश्त- 3,10,000 करोड़ रू.

यह किश्त समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग, प्रवासी श्रमिकों से सम्बन्धित उपायों को लेकर है। प्रवासी श्रमिकों को देश के किसी भी डिपो से राशन खरीदने की अनुमति देने के लिए एक ‘एक राष्ट्र एक राशन कार्ड’ की योजना बनायी गयी है। जबकि लगभग 50 लाख स्ट्रीट वेंडर्स को मदद देने के लिए 5,000 करोड़ रुपये की क्रेडिट सुविधा की घोषणा की गयी है; जिनकी शुरुआती कार्यशील पूँजी 10,000 रुपये तक होगी।

किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से किसानों को लगभग दो लाख करोड़ रुपये दिये जाएँगे, जबकि मछुआरों और पशुपालन किसानों सहित 2.5 करोड़ किसान रियायती दर पर संस्थागत ऋण प्राप्त कर सकेंगे। सरकार ने राज्यों को आपदा प्रतिक्रिया कोष से प्रवासी श्रमिकों को भोजन और आश्रय की सुविधा देने की अनुमति दी गयी है, जिसके तहत केंद्र को 11,000 करोड़ रुपये की लागत आयेगी।

तीसरी किश्त- 1,50,000 करोड़ रु.

इसमें सरकार ने समग्र कृषि क्षेत्र को मज़बूत करने के लिए कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों डेयरी, पशुपालन और मत्स्य पालन के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये के उपायों की घोषणा की। वित्त मंत्री ने कोल्ड चेन और फसल बाद प्रबन्धन के बुनियादी ढाँचे की स्थापना के लिए इसका उपयोग करने सहित फार्म-गेट बुनियादी ढाँचे के लिए एक लाख करोड़ रुपये के कृषि अवसंरचना कोष की घोषणा की। वित्त मंत्री की अन्य प्रमुख घोषणाओं में 20,000 रुपये प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम से मछुआरों को प्रदान किये जाने और सूक्ष्म खाद्य उद्यमों को औपचारिक रूप देने के लिए 10,000 करोड़ रुपये शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यह एक क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण होगा, जिसके साथ स्थानीय मूल्य वर्धित उत्पाद वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच सकते हैं। हर्बल खेती के लिए 4,000 करोड़ रुपये, पशुपालन इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड के लिए 15,000 करोड़ रुपये, मधुमक्खी पालन से सम्बन्धित बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए 500 करोड़ रुपये मंत्री के घोषित अन्य उपाय थे।

चौथी/पाँचवीं किश्त- 48,100 करोड़ रू.

20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की चौथी िकस्त में कोयला, खनिज, रक्षा उत्पादन, वायु अंतरिक्ष प्रबन्धन, हवाई अड्डे, एमआरओ, संघ राज्य क्षेत्र की वितरण कम्पनियों, अंतरिक्ष क्षेत्र और परमाणु ऊर्जा क्षेत्रों आदि के सुधार शामिल हैं। भारत के भीतरी इलाकों में रोज़गार सृजन के लिए महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के लिए अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। सरकार ने पहले इस वित्तीय वर्ष के लिए बजट में 61,000 करोड़ रुपये आवंटित किये थे।

आॢथक पैकेज पर सवाल

पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने पाँच चरणों में घोषित 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक के मेगा पैकेज पर सवाल उठाया है। चिदंबरम ने कहा कि हम इस बात पर गहरा खेद व्यक्त करते हैं कि राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज में कई वर्गों को बेसहारा छोड़ दिया गया है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि हम इस पैकेज पर निराशा व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार से प्रोत्साहन पैकेज पर पुनर्विचार का अनुरोध करते हैं। आॢथक संकट की गम्भीरता को देखते हुए यह पूरी तरह से अपर्याप्त है। सरकार जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर वास्तविक अतिरिक्त व्यय के 10 लाख रुपये से कम नहीं के व्यापक राजकोषीय प्रोत्साहन की घोषणा करे। सुधारों को आगे बढ़ाते हुए सरकार अवसरवादी हो रही है, वह संसद में चर्चा को दरकिनार कर रही है और इसका विरोध किया जाएगा। वहीं सरकार को सुझाव देते हुए चिदंबरम ने कहा कि केंद्र सरकार अधिक उधार ले और अर्थ-व्यवस्था को एक प्रोत्साहन देने के लिए और अधिक खर्च करे।

उन्होंने कहा कि हमने वित्त मंत्री की ओर से घोषित पैकेज का पूरे ध्यान से विश्लेषण किया। हमने अर्थशास्त्रियों से बात की। हमारा यह मानना है कि इसमें सिर्फ 1,86,650 करोड़ रुपये का वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज है। चिदंबरम के मुताबिक, आॢथक पैकेज की कई घोषणाएँ बजट का हिस्सा हैं और कई घोषणाएँ कर्ज़ देने की व्यवस्था का हिस्सा हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार के आॢथक पैकेज से 13 करोड़ कमज़ोर परिवार, किसान, मज़दूर और बेरोज़गार हो चुके लोग असहाय छूट गये हैं। पूर्व वित्त मंत्री ने सरकार से आग्रह किया कि वह आॢथक पैकेज पर पुनर्विचार करें और समग्र वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा करें, जो जीडीपी का 10 फीसदी हो। यह 10 लाख करोड़ रुपये का वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज होना चाहिए। कांग्रेस नेता ने कि यह जुमला पैकेज है। इस सरकार को गरीबों की कोई चिन्ता नहीं है। लोगों की दर्द की अनदेखी की गयी है। कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार की तरफ से घोषित पैकेज सिर्फ 3.22 लाख करोड़ रुपये का है। यह जीडीपी का महज़ 1.6 फीसदी है; जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये का ऐलान किया था। उन्होंने कहा कि सच्चाई लम्बे समय तक छिपी नहीं रह सकती है और 1,86,650 करोड़ रुपये की राजकोषीय प्रोत्साहन जीडीपी का मुश्किल से 0.91 फीसदी पूरी तरह से अपर्याप्त होगा। यह आॢथक संकट और गम्भीर स्थिति को देखते हुए पूरी तरह से अपर्याप्त है। अधिकांश विश्लेषकों, रेटिंग एजेंसियों और बैंकों ने राजकोषीय प्रोत्साहन का आकार 0.8 से 1.5 फीसदी के बीच ही रखा है।

स्कॉटलैंड सरकार ने अखबारों को दिया पैकेज

क्या भारत ऐसा करेगा?

स्कॉटलैंड सरकार ने पूरे स्कॉटलैंड के अखबारों को 30 लाख पाउंड के विज्ञापन के रूप में प्रोत्साहन पैकेज दिया है। यह विज्ञापन वेस्टमिंस्टर सरकार के पूरे इंग्लैंड के अखबारों में चलाये जा रहे ऑल इन, ऑल टुगैदर विज्ञापन अभियान के अलावा होंगे।

स्कॉटलैंड सरकार ने ट्विटर पर इस कदम की घोषणा करते हुए कहा कि स्कॉटलैंड में समाचार पत्र उद्योग के लिए निवेश एक मूल्यवान आॢथक प्रोत्साहन प्रदान करेगा। ब्रिटेन सरकार ने कहा कि वह स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड में विज्ञापन योजना को जारी रखेगी। होलीरूड की मंत्रिमंडलीय वित्त सचिव केट एलिजाबेथ फोब्र्स ने कहा कि स्कॉटलैंड का समाचार पत्र उद्योग कोविड-19 के फैलने और इसके प्रभाव पर जनता को सूचित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

स्कॉटिश समाचार पत्र सोसायटी के निदेशक जॉन मैकलीनन ने इस घोषणा का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अखबार कोविड-19 संकट के पूर्ण प्रभावों को महसूस करने में किसी भी अन्य व्यवसाय से अलग नहीं हैं। लेकिन यह निवेश यह सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि हमारे प्रकाशन बहुत बेहतर हैं और संकट से बचने के लिए बेहतर उपाए के रूप में हैं।

भारत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च में राष्ट्र को अपने सम्बोधन में उल्लेख किया था कि मीडिया की गतिविधि आवश्यक है। इस महामारी में अखबारों से जुड़े लोग तमाम खतरे और नुकसान झेलते हुए अपना काम कर रहे हैं। इसमें समाचार पत्र के सम्पादकीय और अन्य विभागों के कर्मचारी, जिनमें उत्पादन, प्रिंटिंग प्रेस और वितरण विक्रेता खुद को बड़े व्यक्तिगत जोखिम में डालते हुए अग्रिम पंक्ति में डटे हैं, ताकि पाठकों को जीवन-रक्षण और अपने घरों में सुरक्षा से जुड़ी दिन-प्रतिदिन की  आवश्यक जानकारी मिल सके। इसने अखबार उद्योग के लिए प्रोत्साहन पैकेज की  उम्मीद जगायी है।  इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी (आईएनएस) ने सरकार से एक मज़बूत प्रोत्साहन पैकेज जारी करने के साथ-साथ अन्य राहत उपायों के साथ घाटे में चल रहे अखबार उद्योग की मदद करने का आग्रह किया है।

समाचार पत्र उद्योग को पहले ही 4,000 करोड़ रुपये का नुकसान झेल चुका है। आईएनएस ने सरकार को सौंपे एक माँग-पत्र में कहा है कि पिछले दो महीनों में 4,500 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। निजी क्षेत्र से कोई भी विज्ञापन न मिलने और अन्य आॢथक गतिविधि के अभाव में मीडिया इंडस्ट्री को अगले छ:-सात महीनों में 12,000 से 15,000 करोड़ रुपये के सम्भावित भारी-भरकम नुकसान की आशंका है। इस तरह के ज़बरदस्त नुकसान के बीच उद्योग वेतन देने और अपने विक्रेताओं को पैसा देने के लिए संघर्ष कर रहा है। करीब 30 लाख से अधिक लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अखबार उद्योग पर निर्भर हैं।

मीडिया उद्योग के पतन को रोकने के लिए, आईएनएस ने सरकार के सामने कुछ सिफारिशें रखी हैं-

सरकार को लिखे एक पत्र में आईएनएस ने कहा कि हमने अपने विभिन्न संवादों में अखबारी कागज़ (न्यूज प्रिंट) पर पाँच फीसदी सीमा शुल्क वापस लेने का अनुरोध किया है। प्रकाशक के लिए न्यूज प्रिंट की लागत का कुल खर्चा 40 से 60 फीसदी है। अखबारी कागज़ पर पाँच फीसदी सीमा शुल्क हटाने का घरेलू निर्माताओं या किसी मेक इन इंडिया के प्रयासों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

समाचार पत्र फर्मों के लिए दो साल की कर छुट्टी, विज्ञापन दर में ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन (बीओसी) की तरफ से 50 फीसदी की बढ़ोतरी और प्रिंट मीडिया के लिए बजट खर्च में 100 फीसदी की वृद्धि आईएनएस की अन्य माँगें हैं।

करीब 800 से अधिक अखबारों का प्रतिनिधित्त्व करने वाले आईएनएस के अध्यक्ष शैलेश गुप्ता ने कहा कि इन गम्भीर नुकसानों और नकदी प्रवाह के रुक जाने के कारण अखबार के प्रतिष्ठानों को कर्मचारियों के वेतन और पत्र विक्रेता के भुगतान में बहुत मुश्किल झेलनी पड़ रही है। आईएनएस के अनुमान के अनुसार, 9-10 लाख से अधिक लोग प्रत्यक्ष रूप से इस इंडस्ट्री में कार्यरत हैं; जबकि अन्य 18-20 लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप से पूरे भारत में समाचार पत्र उद्योग में कार्यरत हैं।

सरकार से अन्य उद्योगों को दी जा रही राहत का विस्तार समाचार पत्रों तक करने का आग्रह करते हुए आईएनएस ने सरकार के ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन (बीओसी, पहले डीएवीपी) की विज्ञापन दरों में 50 फीसदी की वृद्धि की माँग की है। साथ ही प्रिंट मीडिया के लिए बजट खर्च में 200 फीसदी वृद्धि की माँग की है। मुश्किल यह है कि लोकतंत्र के इस चौथे  स्तम्भ पर संकट के बादल छाये हुए हैं और सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अखबारों के अस्तित्व के दाँव पर लग जाने से पहले प्रोत्साहन की घोषणा करेंगे?