1984 के दंगों में फिर फंसे कमलनाथ

तीन दशक पहले घटित हुए 1984 के दंगों का साया अभी भी कांग्रेस के कई नेताओं पर मंडरा रहा है जो कि समय-समय पर जागृत होकर उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। इससे बच पाना अब इन नेताओं के लिए नामुमकिन नहीं है। ‘‘क्या सभी महान सागर मेेरे हाथ से इस खून को धोंएगे?’’ मैकबेथ की तरह ही, तीन दशकों के बाद भी कांग्रेस नेता और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ 1984 के दंगों के मामले में बच नहीं पा रहे है, इस पर लिख रही हैं- अदिती चहार

1984 के भूत का डर कांग्रेस नेता और मध्यप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ को अभी भी सता रहा है। लगभग 35 सालों के बाद कमलनाथ अभी भी कांग्रेस गृह मंत्रालय द्वारा गठित विशेष जांच दल के कटघरे में खड़े हैं। आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा गठित विशेष जांच दल ने सिख विरोधी दंगों से जुड़े सात मामलों को फिर से खोलनेका फैसला किया है। जहां आरोपियों को या तो बरी कर दिया गया या मुकदमा बंद कर दिया है। एसआईटी ने इस मामले केा फिर से खोल दिया है और वश्ष्ठि अनुभवी कांग्रेस नेता के खिलाफ नए सबूतों पर विचार करने की संभावना है।

इस मामले को फिर से खोलने की घोषणा के तुरंत बाद शिरोमणि अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा, जो इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठा रहे है उन्होंने ट्वीट किया, ‘अकाली दल के लिए एक बड़ी जीत। एसआईटी ने

1984 के सिख नरसंहार में शामिल होने के लिए कमलनाथ के खिलाफ मामला खोला।’ नौ सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मामले को फिर से खोलने के लिए अपनी मंजूरी दे दी। एसआईटी 31 अक्तूबर 1984 को नई दिल्ली के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के नरसंहार में उनकी भूमिका के लिए कमलनाथ के खिलाफ नई जांच करेगी।

कमलनाथ शुरू में इस मामले के आरोपी थे, लेकिन अदालत ने उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं पाया। अब 72 वर्षीय बुजुर्ग कांग्रेसी नेता और गांधी परिवार के वफादार नेता को परेशानी हो रही है क्योंकि लंदन के पत्रकार संजय सूरी ने भी मामले में खुलासा करने को तत्परता (इच्छा) व्यक्त की है। पत्रकार संजय सूरी के 15 सितंबर के एसआईटी को अपने बयान दर्ज कराने के लिए उचित समय और तारीख देने के लिए लिखा था। शिरोमणि अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने ट्विटरपर सूरी के पत्र को सांझा किया।

वास्तव में 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले के मुख्य गवाह मुख्तार सिंह विशेष जांच दल (एसआईटी) के सामने अपना बयान पहले ही दर्ज करवा चुके हैं। इससे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कमलनाथ भी मुश्किलें बढ़ गई हैं। यह पहली बार है जब मुख्तार सिंह तीन सदस्यीय एसआईटी की टीम के सामने अपना बयान दर्ज कराने के लिए उपस्थित हुआ। एक उन्मादी (क्रोधित) भीड़ द्वारा 2 नवंबर 1984 को गुरूद्वारा रकाबगंज में सिखों की हत्या के बारे में उनका बयान दर्ज किया गया है।

यह याद किया जा सकता है कि गवाहों ने आरोप लगाया था कि कमलनाथ ने मध्य दिल्ली के रकाबगंज गुरूद्वारे के बाहर भीड़ का नेतृत्व किया था और उनकी उपस्थिति में दो सिख मारे गए थे। दंगों की जांच कर रहे नानावती आयोग ने दो लोगों की गवाही सुनी थी, जिसमें तत्कालीन इंडियन एक्सपे्रस के पत्रकार संजय सूरी, जिन्होंने बताया था कि कमलनाथ मौके पर मौजूद थे। हालांकि कमलनाथ ने कहा कि वे मौके पर मौजूद थे और लोगों के शांत करने का प्रयास कर रहे थे। नानावती आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कमलनाथ के शामिल होने की कोई सबूत नहीं है, जिससे सिख समुदाय में गुस्सा था।

इस बीच मनजिंदर सिंह सिरसा में के्रंदीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में गवाहों की सुरक्षा की मांग करते हुए आरोप लगाया कि वह इस मामलेे में गवाहों की सुरक्षा के लिए डरते है। हम गवाहों की सुरक्षा के लिए डरते है और इस तरह उन्हें पूरी सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। इस मामले की सुनवाई में तेजी लाई जानी चाहिए ताकि कमलनाथ को उनके अपराध के लिए  सज़ा दी जाए। शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने यह भी मांग की है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता को उनकी कथित भूमिका के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। सिरसा ने यह मांग भी की है कि कांग्रेस अध्यक्ष को तुरंत कमलनाथ का इस्तीफा ले लेना चाहिए और उन्हें अपने पद से हटा देना चाहिए ताकि सिखों को न्याय मिले।