16,000 करोड़ के घोटाले के तिनके उड़े

देश के सबसे बड़े कॉरपोरेट समूह माने जाने वाले रिलायंस गु्रप के प्रमुख मुकेश अंबानी ने अपनी सालाना तनख्वाह 15 करोड़ फिक्स कर रखी है। जबकि आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी में काम कर रहे मुख्य निदेशक मुकेश मोदी की बेटी प्रियंका सालाना 24 करोड़ की तनख्वाह उठा रही थी। चींटी और हाथी के बीच चौंकाने वाले प्रतिस्पर्धा के यह अजब-गज़ब आँकड़े थेे? लेकिन किसी की भी पेशानी पर बल क्यों नहीं पड़ा? जहाँ सब्ज़बाग दिखाकर लोगों को रिझाने का खेल चल रहा था? वहंा चेतावनियों का असर होता भी तो कैसे? यह अनूठा कारनामा प्रदेश की आदर्श समेत तीन क्रेडिट सोसायटियों ने ही करके दिखाया। सहकारिता शुरू से ही लोकलुभावन राजनीति का मुख्य िकरदार रहा है। लेकिन 16 हज़ार करोड़ का ‘फ्रॉड’ इसका सबसे बदसूरत चेहरा साबित हुआ। आँख मूँदकर लोगों की बचत हड़पने तथा उनके साथ धोखाधड़ी का मामला न सिर्फ स्थानीय मीडिया में उछला, बल्कि ‘तहलका’ ने भी निवेशकों के दर्द से इत्तेफाक करते हुए रिपोर्ट छापी। बुनियादी शक-शुबहा की तहों को खँगालते हुए एसओजी ने जब इसकी तुरपाई उधेडऩी शुरू की, तो ऐसे चौंकाने वाले खुलासे हुए, जिनमें किसी धारावाहिक से कम नाटकीयता नहीं थी।

एसओजी ने आदर्श नवजीवन और संजीवनी समेत तीन क्रेडिट सोसायटियों के िखलाफ 96 हज़ार पन्नों की चार्जशीट पेश की है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि रिपोर्ट एक ऐसी तिलस्म को तार-तार करती है, जिसमें पूरी तरह मनमानी और िकस्म-िकस्म के घोटालों का संक्रमण रचा-बसा है। इतना ही नहीं, यह सहकारिता के मामले में सरकार का समग्र असफलता कार्ड है और सरकार को ‘धृतराष्ट्र’ का दर्जा देता है। एक बड़े फ्रॉड में जुटे लोगों में इस बात का कतई भय नहीं था कि अगर भेद खुला, तो उनके लिए बड़े जोखिम का सबब बनेगा। गज़ब तो यह है कि सोसायटियों का पूरा तंत्र अपारदर्शिता से लहालोट था। आदर्श क्रेडिट सोसायटी ने आठ साल में 20 लाख लोगों से 14 हज़ार 682 करोड़ निवेश करवाये। मुख्य निदेशक मुकेश मोदी की पत्नी मीनाक्षी और बेटी प्रियंका के खातों में बतौर वेतन-कमीशन के 795 करोड़ रुपये ट्रांसफर हुए। पूरे परिवार की बात करें, तो 990 करोड़ रुपये आपस में बाँट लिये गये। एसओजी की अपराध शाखा के प्रमुख सत्यपाल मिड्ढा इसे चिन्ताजनक बताते हुए कहते हैं कि निदेशक उसकी पत्नी और बेटी ने आपस में 795 करोड़ रुपये रेवडिय़ों की तरह बाँट लिए। सहकारिता के बधाई गीत गाते हुए 45 फर्ज़ी कम्पनियाँ बना ली गयी। सूत्र कहते हैं कि आिखर ऐसा कैसे हुआ कि सिस्टम को भनक तक नहीं हुई? क्या पूरा सिस्टम एडिय़ाँ रगड़ रहा था? किसी ने सोचा तक नहीं कि छोटे निवेशक मार खा जाएँगे। आदर्श क्रेडिट सोसायटी ने प्रदेश से बाहर भी छलाँग लगायी और 28 राज्यों में 806 शाखाएँ खोलीं। इनमें 309 शाखाएँ तो राजस्थान में ही थीं। लोगों को सपने दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं रखी गयी कि आपकी निवेश की गयी रकम कम्पनियों तथा अन्य रसूखदार लोगों को 22 प्रतिशत की ऊँची ब्याज दरों पर बतौर कर्ज़ दी जा रही है। फर्ज़ी कम्पनियों के चेहरे भी अपने ही नाते-रिश्तेदारों और कुनबों के लोगों के थे। लेकिन सोसायटी में निवेश की गयी रकम बतौर कथित कर्ज़ इन्हीं फर्ज़ी कम्पनियों को दे दी गयी। जबकि इन्हें डिपॉजिट जुटाने की छूट भी नहीं थी और ये पराये निवेश से उधार देने का धन्धा कर रही थी। यह रकम 12 हज़ार 414 करोड़ बतायी गयी है। सोसायटी के संचालकों ने सर्वशक्तिमान बनते हुए निवेशकों की रकम से अपने लिए कम्पनियाँ भी खरीद लीं। अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को दे की तर्ज पर फर्ज़ी कम्पनियों को कर्ज़ देने में  बिचौलियों की तस्वीर भी उकेरी गयी। इन्हें दो करोड़ तक का कमीशन बाँट दिया गया। एसओजी की पड़ताल में  बिचोलिये भी अपने ही निकले। किसी ने नहीं पूछा कि कर्ज़ लेने वाली कम्पनियाँ? देने वाली सोसायटी और कमीशनखोर बिचोलिये, सब अपने ही क्यों थे? ऐसी खामियाँ फौरन ऑडिट में पकड़ में आ सकती है। लेकिन ऑडिट अन्धा निकला और आयकर महकमा बेखबर; जबकि ऑडिट और आयकर महकमों को सूचनाएँ तलब करने का अधिकार था। संजीवनी क्रेडिट सोसायटी ने लोगों से निवेश के नाम पर 11,00 करोड़ रुपये ठगे। आँख मूँदकर भरोसा करने वाले निवेशकों को यह कहकर अँधेरे में रखा गया कि यह रकम ऊँची ब्याज दरों पर कम्पनियों को दी गयी है। इसके फर्ज़ी दस्तावेज़ भी तैयार कर लिये गये। लेकिन जब एसओजी ने रिकॉर्ड तलब किया, तो कागज़ात 30 लाख के ही पेश कर पाये। संजीवनी क्रेडिट सोसायटी की शुरुआत 2007 में बाड़मेर में हुई थी। इसके संस्थापक विक्रम सिंह को सितंबर, 2019 में गिरफ्तार कर लिया गया था। संजीवनी सोसायटी ने सौ कम्पनियों को कर्ज़ देना दिखाया। लेकिन एसओजी को एक भी कम्पनी का अस्तित्व नज़र नहीं आया। निवेशकों ने जब कभी पूछताछ की, तो उन्हें सभी कथित कम्पनियों के मुनाफे और डिविडेंट के फर्ज़ी कागज़ दिखाकर चुप कर दिया गया। तीनों ही सोसायटियों ने अनाप-शनाप गिफ्ट देने का खेल भी रचा। नवजीवन सोसायटी ने तो फर्ज़ी कर्ज़ बाँटने का एक नया रिकॉर्ड कायम कर दिया। सोसायटी ने कागज़ों की लिखा-पढ़ी दिखाने की बजाय निवेशकों को कह दिया कि सारा कर्ज़ सॉफ्टवेयर के ज़रिये बाँटा जा रहा है। सॉफ्टवेयर में ऐसे कथित लोगों के नाम पते और दी गयी रकम तो दर्ज है, लेकिन एसओजी की खोजबीन में एक आदमी भी ढूँढे नहीं मिला।

सवाल है कि चोर पूरी तरह मुखर होकर निवेशकों के भरोसे और रकम पर सेंध लगा रहे थे। सभी सूचनाएँ गलत भरी जा रही थी। कायदे-कानून का जमकर उलंघन हो रहा था। फिर सरकार क्या कर रही थी? सहकारिता महकमा कुम्भकर्णी नींद कैसे सोया हुआ था? आम आदमी के एक लाख के ऊपर के ट्रांजेक्शन पर नज़र रखने वाले आयकर महकमे को दो-दो करोड़ का लेन-देन क्यों नहीं खटका? जानकार कह रहे हैं कि ऊपर से नीचे तक का खेल बिना तालमेल के सम्भव ही नहीं था। एसओजी ने अपनी चार्जशीट में बेशक इन सवालों को चौड़ा नहीं किया लेकिन अप्रत्यक्ष संकेत में कह दिया कि ज़रूर इन सोसायटियों में कई रसूखदारों का कालाधन लगा था। इतना ही नहीं, सहकारी महकमे के अफसरों ने भी इन सोसायटियों में गहरी पैठ बनायी हुई थी। जब भी फर्ज़ीवाड़ा खुलने लगता रसूखदार पोल खुलने के डर से निवेशकों को खामोश रखने की कोशिश करते। यहाँ तक कि निवेशकों की आवाज़ दबाने की भी कोशिश करते। एसओजी का कहना है कि इनकम टैक्स एक्ट की धारा-80 (पी) में क्रेडिट सोसायटियों को छूट मिली हुई है। नतीजतन मुनाफे पर टैक्स नहीं लगता। इसी का फायदा उठाकर सोसायटियों ने सालाना हिसाब-किताब में जमकर घालमेल किया। इस पूरे मामले में शायद बदिकस्मती निवेशकों का शुरू से ही पीछाकर रही थी।

वर्ष 2010 में आयकर महकमे ने आदर्श सोसायटी पर छापामारी भी की थी। काफी कुछ गड़बडिय़ाँ भी उजागर हुईं। लेकिन इस मामले में शिकायत-दर-शिकायत के बावजूद सहकारिता महकमे के रजिस्ट्रार कुछ करने को तैयार ही नहीं हुए। इन सोसायटियों का ऑडिट भी हुआ। लेकिन यह सिर्फ दिखावा भर था। अगर ऑडिट में औपचारिकता नहीं बरती ही गयी होती, तो क्या इतनी मोटी रकमों की लुकाछिपी का खेल अदृश्य रह सकता था? आदर्श सोसायटी ने गुजरात को भी अपना केंद्र बनाने की कोशिश की थी। लेकिन वहाँ की सरकार ने लाइसेंस देने से इन्कार कर दिया। अलबत्ता मध्य प्रदेश में ज़रूर अपना जाल फैलाने में कामयाब हो गये। घोटाले का इतना बड़ा बवंडर उठा और उसके तिनके इस तरह से उड़े, तो अब सरकार सतर्क होती नज़र आयी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बड़ा फैसला करते हुए  बचत एवं निवेश फ्रॉड कंट्रोल यूनिट का गठन करने के आदेश दिये हैं। यह यूनिट एसओजी की निगरानी में काम करेगी। घोटालेबाज़ों के गिरफ्त में आने के बाद लुटे-पिटे निवेशकों के चेहरों पर रोनक नज़र आती है कि शायद उन्हें उनकी डूबी हुई रकम मिल जाए?

नये घोटाले की नींव

पिछले 10 साल से चल रहे सिलसिले की बात करें तो, सरकार हर वित्तीय वर्ष में अपेक्स बैंक के माध्यम से ऋणी काश्तकारों के लिए जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा करवाती आयी है। लेकिन मौज़ूदा वित्तीय वर्ष में अभी तक दोनों ही बीमा नहीं करवाये गये हैं। वजह अपेक्स बैंक की ओर से दो बार निविदाएँ निकाले जाने के बावजूद किसी बीमा कम्पनी ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। वरिष्ठ पत्रकार सौरभ भट्ट कहते हैं कि प्रदेश में सहकारी बैंकों ने ऋणी किसानों के बीमा के नाम पर बड़े घोटाले की नींव रख दी गयी है। जिस तरह बीमा के लिए चहेते सलाहकार को तैनात करने और उसी के नाम पर बीमा कम्पनियों को बुलाने के लिए टेंडर की शर्तों में फेरबदल किया गया है? घोटाले की मुश्क छिपाये नहीं छिपती। किसानों की बीमा योजना को लेकर सरकार की मंशा पर इसी बात से उँगलियाँ उठ जाती हैं कि सहकारिता महकमे द्वारा इस फाइल के चलाने का क्या मतलब है कि बीमा कम्पनियों को बुलाने के लिए एक बीमा सलाहकार की तैनाती की जाए। सरकार के कहने पर अपेक्स बैंक ने 22 नवंबर को सलाहकार के लिए निविदाएँ आमंत्रित कीं और 20 दिसंबर को मुम्बई की ग्रो वेल्यू कम्पनी को सलाहकार नियुक्त भी कर लिया। शक-शुबहा की हवाबाज़ी इस बात को लेकर चली कि जब सलाहकार के लिए निविदाएँ आमंत्रित कीं, तो उसकी पहली शर्त थी कि सलाहकार का कार्यालय जयपुर में होना चाहिए। लेकिन ग्रो वेल्यू का मुख्यालय तो मुम्बई में है। गौर करने वाली बात है कि यह एक ब्रोकरेज फर्म है, जबकि अपेक्स बैंक ने इसे सलाहकार के नाम पर नियुक्ति दी है। निविदा की एक अहम शर्त सलाहकार आईआरडीए से मान्यता प्राप्त होना चाहिए, जबकि आईआरडीए में सलाहकार को मान्यता देेने का कोई प्रावधान ही नहीं है। आईआरडीए तो सिर्फ ब्रोकर को मान्यता देती है। अब जबकि सलाहकार के लिए कोई फीस तय नहीं की गयी है, तो ज़ाहिर है कि कम्पनी कमीशन पर काम करेगी। किसानों से बीमा कम्पनियों द्वारा वसूले गये प्रीमियम से इसकी वसूली होगी। सरकारी कम्पनियाँ ब्रोकर को 15 फीसदी तक कमीशन देती हैं। यानी किसानों का बीमा 100 करोड़ का हुआ, तो 15 करोड़ का कमीशन तो हो ही गया। अपेक्स बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर इंदर सिंह कहते हें कि सलाहकार नियुक्त करने का निर्णय राज्य सरकार के स्तर पर किया गया है। यह निर्णय किसानों के पुराने दावों के तय नहीं होने और भविष्य में कोई परेशानी न आये इसलिए किया गया है।