ज़िन्दगी की सीख देते सदी के महानायक

‘पाँच डॉलर में लंच उपलब्ध है।’ जहाज़ में एमर हॉस्टेस ने जब घोषणा की तो जहाज़ में सवार सैनिकों मेें एक ने दूसरे से पूछा- ‘क्या लंच करेंगे भाई?’ दूसरे सैनिक ने न करते हुए कहा- ‘बहुत महँगा है।’ इसी जहाज़ में बॉलीवुड के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन भी सवार थे। उन्होंने सैनिकों की बातें सुन लीं और चुपचाप एयर हॉस्टेस को बुलाकर पैसे दिये और लंच लाने को कहा। दूसरे यात्रियों ने इस दृश्य को देखा, तो उन्होंने अमिताभ बच्चन को सम्मान भी दिया और प्यार भी। अपने एक ब्लॉग में लंदन यात्रा के दौरान हुए इस वाकये को उन्होंने शेयर किया था।

बिग बी यानी बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन को हाल ही में दादा साहेब फालके पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। सिनेमा मेें श्रेष्ठ अभिनय और ऐसी कई खूबियों के कारण वे करोड़ों दिलों पर राज करते हैं। राष्ट्रपति के हाथों से पुरस्कार लेने के बाद उन्होंने कहा- ‘मैं गर्व महसूस कर रहा हूँ; लेकिन मुझे शंका है कि उन्हें कहीं घर बैठकर आराम करने का इशारा तो नहीं।’ अमिताभ ने इच्छा ज़ाहिर की कि उन्हें अभी कई ज़रूरी काम पूरे करने हैं। पिछली 11 अक्टूबर को वे 77 वर्ष के हो चुके हैं, लेकिन काम करने का जज़्बा अब भी बरकरार है।

वर्ष 2013 में एक पत्रिका में उनके जानदार व्यक्तित्व के बारे में लिखा गया था- ‘अमिताभ की दाढ़ी भले ही सफेद हो पर उनके बाल अब तक पूरी तरह नहीं पके हैं। 70 के पार भी वे एकाध घंटे जिम में बर्जिश करते हैं। लेखन, ब्लॉग और ट्वीट करते हुए काफी वक्त गुज़ारते हैं। उनका यह कद बॉलीवुड पर दो दशक तक चले उनके राज से नहीं बना, बल्कि उन्होंने खुद को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए मेहनत की है। इसीलिए वे 2013 के सर्वेक्षण में अब्दुल कलाम, अण्णा हजारे, आमिर खान और सचिन तेंदुलकर से ऊपर बने रहे।’ बॉलीवुड में सुपर स्टार की पहचान बनाने के लिए बिग बी को संघर्ष के लम्बे दौर से गुज़रना पड़ा। िफल्मी करियर शुरू होने से पहले का संघर्ष और दो दशकों की अपार सफलता के शिखर के बाद से लेकर एबी कॉर्प बनाने से पहले का जानलेवा संघर्ष। अमिताभ न थके, न हारे। वे मायूस तो हुए, मगर ज़िन्दगी से भागे नहीं। ज़िन्दगी की कठोर तल्िखयों के बीच के अपने रास्ते बनाते रहे। 80 के दशक के अन्त में इस सुपर स्टार का जादू उतरने लगा था। वर्ष 1990 में आयी उनकी पसंदीदा िफल्म अग्निपथ भी दर्शकों का दिल जीत नहीं पायी इस दशक की शुरुआत में बच्चन ने अपनी कम होती लोकप्रियता को स्वीकार किया और सिनेमा जगत से अपना फासला बना लिया। लेकिन इसी दौर में अमिताभ ने अपनी कम्पनी एबीसीएस बनायी। बिग बी को अपनी इस कम्पनी से काफी उम्मीद बँधी थी। शुरू-शुरू में तो अच्छी चली, लेकिन धीरे-धीरे ये प्रयास भी असफल रहा; क्योंकि सही मैनेजमेंट नहीं रह पाया। इससे अमिताभ को सदमा लगा होगा। खासकर उस वक्त जब बेंगलूरु में कम्पनी द्वारा आयोजित की गयी मिस वल्र्ड प्रतियोगिता फ्लॉप हो गयी थी। इतना ही नहीं कानूनी दाँव-पेंच के चलते इन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ी थी। भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़े इस शख्स ने अपने प्रसिद्ध कवि पिता डॉ. हरिवंश राय बच्चन की इस कविता को हमेशा अपने ज़ेहन में रखा-

तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी

तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ

अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ

अमिताभ ने माना है कि असफलता उन लोगों के लिए रुकावट नहीं होती, जो उच्च लक्ष्य पर पहुँचने की ठान लेते हैं। बिग बी खासकर उन युवाओं के लिए एक बड़ी मिसाल हैं, जो करियर में असफल रहने पर आत्महत्या का सोचने लगते हैं या फिर नशे की लत में फँस जाते हैं। बल्कि देश के उन किसानों को भी इस महानायक से सीख लेनी चाहिए, जो दो-चार लाख के कर्ज़ के बोस तले ज़िन्दगी से दूर जाने की सोच लेते हैं। बॉलीवुड में 50 वर्ष का लम्बा समय रहे अमिताभ ने िफल्म सात हिन्दुस्तानी से लेकर आज तक कई हिट िफल्में दीं, जिन्होंने बॉक्स आफिस पर करोड़ों का बिजनेस किया। इनकी हिट िफल्मों में शोले, जंज़ीर, दीवार, अभिमान, शराबी, डॉन, कुली, गंगा यमुना, अमर अकबर एंथोनी, नमकहराम, आनंद, वक्त, ब्लैक, फैमिली, बागवान, आरक्षण, सत्यागृह, पिंक, सरकार, पीकू, नि:शब्द, कभी अलविदा न कहना, मोहब्बतें, अक्स, चीनी कम आदि।

अमिताभ के बड़े कद यानी व्यक्तित्व के पीछे एक मज़बूत पृष्ठभूमि काम करती है, जिसके पीछे इनके माता-पिता की शिक्षा भी रही है। वह है अमिताभ का ज़मीन से जुड़े होना, अपनी संस्कृति को जीना, अनुशासन, अनुभवी, स्वाभाविकता, संज़ीदगी, स्वावलंबन, अंतर्मुखी और कम बोलने वाले, परिस्थितियों से हार न मानने वाले। यही चीज़े उनके व्यक्तित्व को विराट बनाती हैं और उन्हें सदी के महानायक की उपाधि दिलाने में मुखर होती हैं।

डॉ. आशा अर्पित

(यह लेख लेखिका की आने वाली पुस्तक ‘अपने हिस्से का आदमी’ से है।)