ज़िन्दगियाँ छीन लेने वाला धन्धा!

मोबाइल एप्लीकेशन (ऐप) से तुरन्त कर्ज़ का चलन ब्लू व्हेल जैसा ही है। यह भी उसकी तरह मौत का पर्याय बनने लगा है। ब्लू व्हेल में कोई टास्क दिया जाता था, जिसे पूरा करने के चक्कर में देश में कई मौतें हुईं। ऐसी भयावह मौतें, जिन्हें सुनकर या अहसास करने भर से रूह काँप उठती है। उस विदेशी मोबाइल ऐप के बाद अब चीन के कुछ मोबाइल ऐप फिर से जानलेवा साबित होने लगे हैं। इनमें किसी तरह का टास्क तो नहीं, बल्कि इंस्टेट लोन (हाथों-हाथ कर्ज़) देने का चक्कर है। एक बार जो इस कर्ज़ के चक्कर में फँस गया, उसका हश्र मौत या बर्बादी के रूप में होता है।

दरअसल एक हज़ार से 10 हज़ार रुपये का कर्ज़ लेने वाली कुछ कम्पनियाँ यह गोरखधन्धे में लगी हैं। कई लोग इनके चक्कर में आने के बाद लाखों रुपये के देनदार हो गये। फिर इन कम्पनियों के रिकवरी एजेंटों और कारिदों ने उनका समाज में जीना दुश्वार कर दिया। करीब एक साल से मोबाइल ऐप के ज़रिये तुरन्त कर्ज़ लेने का चलन जिस तेज़ी से बढ़ा है, वह बेहद खतरनाक है। केंद्र सरकार को तुरन्त प्रभाव से ठोस नतीजे वाली कार्रवाई करके उन लोगों को बेनकाब करना चाहिए, जो इस धन्धे में लगे हैं। फिर फास्ट ट्रेक अदालतों में इनके खिलाफ मामले चलाकर इन्हें कड़ा दण्ड दिलाने की व्यवस्था हो। क्योंकि यह एक तरह का साइबर क्राइम है, जो देश में जड़ें जमा रहा है। हैदराबाद, गुरुग्राम और बेंगलूरु में इन कम्पनियों के दफ्तर हैं। इन कम्पनियों के वसूली के दबाव और अपमान के कारण देश में अनेक लोग खुदकुशी कर चुके हैं। तेलंगाना के रंगारेड्डी ज़िले के सुनील नामक व्यक्ति ने एक मोबाइल ऐप से कुछ हज़ार का कर्ज़ लिया, लेकिन समय पर भुगतान नहीं कर सका। घोर सामाजिक अपमान के चलते उसने छ: माह के बेटे का गला दबाकर खुद फाँसी लगा ली। लॉकडाउन के दौरान सुनील की नौकरी नहीं रही। ज़रूरत के लिए उसने किसी ऐप से पैसा लिया; लेकिन तय समय में पैसा नहीं लौटा सका। अन्त में कम्पनी ने उसे इतना तंग और अपमानित किया कि उसे जान गँवानी पड़ी।

हैदराबाद की किरनी मोनिका ने एक ऐप से पाँच हज़ार का कर्ज़ लिया। समय पर भुगतान नहीं कर सकी, तो कम्पनी वालों ने उसका जीना हराम कर दिया। उसने दूसरे ऐप से कर्ज़ लेकर पहले वाला कर्ज़ चुकता किया। फिर तीसरे और चौथे ऐप से कर्ज़ लेती गयी और करीब 50 से ज़्यादा ऐप से उसने कर्ज़ लिया। नतीजतन पाँच हज़ार का कर्ज़ लाखों में पहुँच गया। अन्त में उसने ज़हर खाकर खुदकुशी कर ली। कृषि अधिकारी रही किरनी ने यह कर्ज़ अपने लिए नहीं, बल्कि किसानों की बीज-खाद की मदद वास्ते लिये।

हज़ारों करोड़ रुपये के लेन-देन के ऐसे गोरखधन्धे में चीन की कुछ कम्पनियाँ संलिप्त है। चार चीनी नागरिक गिरफ्तार भी हुए हैं। मोबाइल ऐप से तुरन्त कर्ज़ में लगी ज़्यादातर कम्पनियाँ रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों की ज़रा भी पालना नहीं कर रही। सैकड़ों ऐप गूगल के प्ले स्टोर पर है, जिन्हें वहाँ नहीं होना चाहिए। दस्तावेज़ों के आधार पर कोई कम्पनी कर्ज़ देती है, तो उसके लिए बाकायदा रिजर्व बैंक के दिशा निर्देश है। कम्पनी किस बैंक या गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनी के साथ सम्बद्ध है, इसका उल्लेख होना चाहिए। प्ले स्टोर के अलावा गूगल पर सैकड़ों कम्पनियाँ हैं, जिन्हें डाउनलोड किया जा सकता है।  तेलंगाना पुलिस ने 150 से ज़्यादा ऐसे मोबाइल ऐप की पहचान कर गूगल से इन्हें तुरन्त हटाने को कहा है। बहुत-से ऐप हटा भी लिये गये हैं। बावजूद इसके अब भी ऐसे ऐप बहुत हैं, जिन पर कार्रवाई करने की ज़रूरत है। प्रवर्तन निदेशालय और रिजर्व बैंक ने इस दिशा में कार्रवाई तो शुरू कर दी है, लेकिन करोड़ों का यह धन्धा अब भी चल रहा है। मोटे ब्याज वसूलने वाली कम्पनियाँ खूब चाँदी काट रही हैं, जबकि ज़रूरतमंद या अनजान लोग इनके चक्कर में बर्बाद हो रहे हैं।

एक सप्ताह से एक माह की राशि पर 30 से 40 फीसदी तक ब्याज वसूला जा रहा है। ब्याज की राशि कम्पनी पहले ही काट लेती है, फिर मूलधन के लिए इतने इतने तकाज़े करती है कि उपभोक्ता को कुछ समझ ही नहीं आता कि वह क्या करे और क्या नहीं? भुगतान की देय तिथि के बाद न केवल उपभोक्ता के, बल्कि उसके मोबाइल के कॉन्टेक्ट नम्बरों पर फोन कर अभद्र भाषा में बात की जाती है, बल्कि गालियाँ दी जाती हैं। कॉन्टेक्ट नंबर वाला जब तक माजरा समझे, तब तक उसका बहुत अपमान हो चुका होता है। उसके आधार कार्ड और पेन कार्ड का इस्तेमाल कर दूसरी कम्पनी से कर्ज़ भी ले लिया जाता है। फिर दूसरी कम्पनी वाले उससे अदायगी का तकाज़ा करने लगते हैं।

मोबाइल ऐप वाली कम्पनियाँ एक हज़ार से 50 हज़ार रुपये तक का कर्ज़ एक सप्ताह से एक महीने तक के लिए देती है। पाँच हज़ार रुपये का कर्ज़ लेने वाले के 1180 रुपये या कहीं-कहीं इससे ज़्यादा पहले ही काट लिये जाते हैं। उपभोक्ता के खाते में 3820 रुपये आये; लेकिन वसूली पाँच हज़ार रुपये की होगी। देय तिथि के अगले ही दिन कम्पनी वालों के फोन आने शुरू हो जाते हैं। जैसे-जैसे समय बढ़ता जाएगा, सख्ती और दायरा बढ़ता चला जाता है। रिश्तेदारों, दोस्तों और परिचितों के फोन आने शुरू हो जाते हैं। कर्ज़ की बात गोपनीय नहीं रह पाती। सोशल मीडिया पर बदनामी होने लगती है। मोबाइल ऐप से कर्ज़ लेना बहुत आसान है।

पाँच से सात मिनट में सारी प्रक्रिया पूरी हो जाती है। इसके लिए ज़रूरी दस्तावेज़ों में आधार कार्ड और पेन कार्ड ज़रूरी होता है, इसके अलावा किसी की कोई गारंटी आदि की कोई ज़रूरत नहीं होती है, जबकि बैंक या गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों में इतना आसान नहीं होता। कर्ज़ की जल्दी में उपभोक्ता कम्पनी की शर्तों को स्वीकार करता चला जाता है। सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद कम्पनी वालों के पास न केवल आधार और पेन कार्ड, बल्कि फोन के कॉन्टेक्ट नम्बर कब्ज़े में आ जाते हैं। अगर कम्पनी की सभी शर्तों का पालन न हो तो कर्ज़ मंज़ूर नहीं हो पायेगा, इसीलिए उपभोक्ता मानते चले जाते हैं। रोहन को किसी काम के लिए तीन हज़ार रुपये की ज़रूरत पड़ी, तो उसने तुरन्त मोबाइल ऐप की मदद ली। एक सप्ताह के बाद जब कम्पनी वालों ने भुगतान के लिए कहा, तो उसने दूसरे ऐप से कर्ज़ लेकर भुगतान कर दिया। फिर क्या था, वह इस चक्कर से निकल नहीं सका। उसकी राशि डेढ़ लाख रुपये से ज़्यादा की हो चुकी थी। पिता के पास रिकवरी एजेंट का फोन आया, तब कहीं जाकर पूरे माजरे का पता चला।

पिता ने किसी तरह पूरी कर्ज़ अदा करके रोहन को इस दुष्चक्र से निकाला। रोहन के मुताबिक, उसे कॉन्टेक्ट नंबर के हैक होने का पता नहीं था। कम्पनी किन शर्तों को मंज़ूर करा रही है? देखना ज़रूरी नहीं समझा। वह एक बड़ी मुसीबत से बाहर निकल गया है, भविष्य में न केवल खुद, बल्कि अन्य लोगों को भी मोबाइल ऐप से कर्ज़ न लेने को जागरूकता अभियान चला रहा है।

पुलिस, प्रवर्तन निदेशालय और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की कार्रवाई के बावजूद मोबाइल ऐप कम्पनियाँ धड़ल्ले से करोड़ों रुपये का कर्ज़ बाँट रही है और भुगतान न होने पर उपभोक्ता के गोपनीय दस्तावेज़ों को सार्वजनिक कर रही है। कर्ज़ वसूलने के लिए कम्पनी के कारिंदे सोशल मीडिया पर उपभोक्ता की फोटो डालकर डिफाल्टर या चोर साबित कर रहे हैं। उसके कॉन्टेक्ट नंबरों पर फोन करके न केवल अभद्रता से बात करते हैं, बल्कि गाली-गलौज करते हैं। बैंक खाता ब्लॉक करने और कानूनी कार्रवाई जैसी धमकी दे रहे हैं, जिसकी वजह से हज़ारों लोग बेहद मुश्किल में हैं।

केंद्रीय पोर्टल पर इनके खिलाफ शिकायत की जा सकती है, लेकिन कितने इस बारे में जानते हैं। एक हज़ार से पाँच हज़ार रुपये का एक सप्ताह का 15 दिन का कर्ज़ ऐसे लोग ले रहे हैं, जिन्हें 30 से 40 फीसदी ब्याज से ज़्यादा चिन्ता अचानक आया काम है। वह काम तो हो गया, लेकिन तय अवधि के बाद पैसा कहाँ से आयेगा? क्या इसकी भी कोई व्यवस्था है उनके पास?  बिना ज़्यादा औपचारिकता के तुरन्त कर्ज़ का यह व्यवस्था बेहद खतरनाक है। अगर कोई बहुत मुश्किल में है और काम ऐसा आ पड़ा, जिसमें तुरन्त पैसा चाहिए और कहीं से मिलने की कोई उम्मीद नहीं, तब तो बात अलग है। फिर भुगतान का प्रबन्ध भी होना चाहिए। एक कम्पनी का लोन उतारने के लिए दूसरी से लेना और फिर दूसरी का तीसरी से उतारने का चलन मौत के कुएँ जैसा ही है। गूगल को गहन जाँच के बाद ऐसे ऐप तुरन्त प्रभाव से प्ले स्टोर से हटाने की शुरुआत अपने आप कर देनी चाहिए। रिजर्व बैंक की सूची में सैकड़ों कम्पनियाँ पंजीकृत हैं, लेकिन इंटरनेट पर तो हज़ारों हैं; जिनका पंजीकरण तक नहीं है। झूठे दस्तावेज़ों के आधार पर वे गूगल प्ले स्टोर में कैसे आ गयीं? यह भी बड़ा सवाल है। पैसे की रिकवरी के लिए आठ से 10 हज़ार रुपये के कारिंदों को इंसेटिव मिलता है, जिसके लिए वे उपभोक्ता के साथ कुछ भी कर गुज़रते हैं।

मोबाइल ऐप के ज़रिये तुरन्त कर्ज़ की व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा। वरना देश के हर हिस्से से खुदकुशी की घटनाएँ होती रहेंगी और हज़ारों करोड़ रुपये के इस गोरखधन्धे को चलाने वालों को भी उनके अंजाम तक पहुँचाना होगा। हज़ारों करोड़ के इस धन्धे में आधार और पेन कार्ड जैसे ज़रूरी दस्तावेज़ इन कम्पनियों के पास है, जिनका वे दुरुपयोग कर रही है। कर्ज़ के लिए एग्रीमेंट ज़रूरी होता है, जो इन कम्पनियों के पास नहीं होता। प्ले स्टोर से हटने के बाद ये कम्पनियाँ लिंक से भुगतान माँग रही है और लोग अदा करने पर मजबूर है। इस दिशा में वृहद स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने और ठोस कार्रवाई को अंजाम देने की ज़रूरत है। इसकी पहल हो गयी है, लेकिन इसकी रफ्तार बहुत धीमी है।

 फंडिंग की जाँच

उपभोक्ता से पैसे वसूलने के लिए हर हथकंडा अपनाने वाली इन कम्पनियों के खिलाफ यकीनी कार्रवाई होनी चाहिए। इस धन्धे में निजी और राष्ट्रीयकृत बैकों की भूमिका की भी जाँच होनी चाहिए। रिजर्व बैंक इस बाबत जाँच कर रही है कि कहीं इनकी साठगाँठ से तो यह धन्धा नहीं चल रहा। इन कम्पनियों को धन कौन मुहैया करा रहा है? इसका भी खुलासा होना चाहिए और उसकी जानकारी रिजर्व बैंक के पास होनी चाहिए। उपभोक्ता से गलत हथकंडें अपनाकर पैसा वसूल करने के आरोप बजाज फाइनेंस जैसी पंजीकृत और नामी कम्पनी पर भी ढाई करोड़ रुपये का ज़ुर्माना लगा है।

नागनाथ और साँपनाथ

इंटरनेट पर कर्ज़ देने वाले ऐप की भरमार है। ज़्यादातर कम्पनियाँ नागनाथ और साँपनाथ सरीखी हैं। मोटा ब्याज पहले वसूल कर बाकी रकम के लिए यह जो कुछ कर रहे हैं, वह डसने जैसा ही है। नौकरी बचाने के लिए ये लोग क्या-क्या कर रहे हैं? इन्हें पता ही नहीं चल पा रहा। रुपी लक्ष्मी, आई क्रेडिट, कैश ट्रेन, केश मामा, मेरा लोन, मंकी लोन, धनाधन लोन, हेयर फिश, रूपी टाइम, गो केश और रुपी लोन सरीखी सैकड़ों कम्पनियाँ हैं। ये सभी कम समय में आकर्षक ब्याज दरों पर कर्ज़ का दावा करती हैं; लेकिन कोई भी कसौटी पर खरी नहीं हैं। लोएबो नामक चीनी नागरिक को पुलिस ने दिल्ली हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया। वह देश में अपनी कम्पनियों के प्रमुख के तौर पर काम कर रहा था। तीन अन्य चीनी नागरिक भी अब पुलिस के कब्ज़े में है। इनके अलावा हमारे यहाँ की कम्पनियों के कई लोग गिरफ्त में है।