ज़हरीली शराब की त्रासदी

पंजाब नशे के गढ़ के रूप में काफी समय से बदनाम रहा है। क्योंकि पंजाब में नशा माफिया काफी समय से सक्रिय हैं। हैरत की बात यह है कि ये नशा माफिया लॉकडाउन में भी सक्रिय रहे हैं। ये माफिया बड़ी निडरता से प्रदेश में नशीले पदार्थों का अवैध धन्धा करते रहे हैं और नशा करने वाले लोग इनकी मुखालिफत नहीं करते। नतीजा ये मनमाने तरीके से लोगों की ज़िन्दगी से खिलवाड़ करते रहे हैं। इसके चलते सैकड़ों लोग अब तक असमय मौत के मुँह में समा चुके हैं और अब ज़हरीली शराब ने 121 लोगों को मौत की नींद सुला दिया; जिनमें ज़्यादातर गरीब और मध्यम वर्गीय लोग हैं। इसी मुद्दे पर महेंद्र सिंह राठौड़ की रिपोर्ट :-

पंजाब में ज़हरीली शराब से 121 लोगों की मौत के लिए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकते; क्योंकि यह उनकी सीधी ज़िम्मेदारी बनती है। न ही वह इस संगीन मामले को राजनीतिक दलों के इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने का बहाना बनाकर अपना पल्ला झाड़ सकते हैं। बता दें तरनतारन में ज़हरीली शराब के सेवन से सबसे ज़्यादा लोगों की मौत हुई है। उसके बाद अमृतसर और बटाला के लोग ज़्यादा मरे हैं। घटना में मृतकों की संख्या और बढ़ सकती है; क्योंकि अस्पतालों में कई लोग गम्भीर हैं। इस ज़हरीली शराब के चलते बहुत-से लोग आँखों की रोशनी खो चुके हैं, तो कुछ सदमे जैसी हालत में हैं। प्रभावितों में ज़्यादातर गरीब या मध्य वर्ग के हैं। कई परिवारों में तो मुखिया या ज़िम्मेदार व्यक्ति की ही मौत हो गयी, जिससे परिवार के भरण-पोषण का संकट खड़ा हो गया है, क्योंकि घर में और कोई कमाने वाला नहीं है।

समस्या यह है कि बहुत बड़ी संख्या में निम्न और मध्यम वर्गीय लोग नशे के आदी तो हैं, मगर महँगी शराब पी नहीं सकते। इसलिए सस्ती शराब से नशा करते हैं और इसी लालच में बड़ी आसानी से माफिया के चंगुल में फँस जाते हैं। सरकारी ठेके से जितनी शराब उन्हें 50 से 60 रुपये में मिलती है, उतनी शराब तस्करों से उन्हें 20 से 30 रुपये में बड़ी ही आसानी से मुहैया हो जाती थी। हैरत की बात यह है कि राज्य के दूरदराज़ इलाकों से यह अवैध शराब बड़ी आसानी से गाँवों तक बिना किसी रोक-टोक और दिक्कत के पहुँच जाया करती थी। दरअसल शराब माफिया का नेटवर्क इतना बड़ा है कि छोटे से गाँवों में भी इनके कारिंदे आसानी से धन्धा कर रहे हैं। प्रदेश में नकली शराब के लिए कच्चे माल की कोई कमी नहीं है, इसलिए दिन दुनी रात चौगुनी के हिसाब से काम चलता रहा है। सरकारी ठेकों के समान्तर चलने वाली यह अवैध व्यवस्था राज्य में काफी समय से चल रही थी। लेकिन सरकार जान-बूझकर इससे अनजान बनी रही; नतीजा सैकड़ों लोगों को बेवजह मौत का शिकार होना पड़ा।

देश में सबसे ज़्यादा अन्न उत्पादक पंजाब के दामन पर करीब दो दशक से नशे का दाग लगा हुआ है। नतीजतन युवाओं का एक बड़ा वर्ग हेरोईन, ब्राउन शुगर, अफीम, पोस्त, नशीले कैप्सूल, टेबलेट्स और इंजेक्शन का आदी हो चुका है। नशे से राज्य की छवि भी धूमिल हुई है। चुनाव में नशा एक मुद्दे के तौर पर उभरता रहा है। दुर्भाग्य की बात यह कि कोई भी सरकार इस पर नियंत्रण नहीं पा सकी है।

कांग्रेस सरकार ने अपने एजेंडे में इसे वरीयता दी, और नशा तस्करी पर लगाम कसने की कोशिश में कुछ हद तक काबू पाने की मंशा दिखायी; लेकिन इसे खत्म नहीं किया जा सका। राज्य में ड्रग्स माफिया की तरह शराब माफिया भी सक्रिय हैं। इसी के चलते माझा इलाके में बड़ी त्रासदी हो गयी, जिसे समय रहते टाला जा सकता था; अगर सरकार इसे पहले ही गम्भीरता से लेती। जो पुलिस अब गाँव-गाँव जाकर दबिश देकर अवैध शराब बरामद कर रही है। फैक्ट्रियों का पता लगा रही है। धन्धा करने वाले लोगों को पकड़ रही है। क्या पुलिस यह सब पहले नहीं कर सकती थी?

इससे पहले कई थानों में अवैध शराब बिक्री की शिकायतें दर्ज हुईं; लेकिन किसी मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। यह सब मिलीभगत से चल रहा था। शराब माफिया पुलिस और आबकारी विभाग के संरक्षण में बे-खटके काम कर रहे थे। त्रासदी में अपने बेटे को खो चुकी एक महिला कहती है कि कितनी बार पुलिस को बताया कि गाँव में अवैध रूप से शराब बिक रही है। पुलिस को लोगों (शराब माफिया) के नाम भी बताये; लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। अगर की होती, तो उसका बेटा बे-मौत नहीं मरता। वह नशा करता था; लेकिन यह क्या पता था कि कभी वह शराब की जगह ज़हर ही पी लेगा और अपने साथ-साथ पूरे परिवार को भी बर्बाद कर देगा। वह कहती है कि शराब बेचने वाले कहते हैं कि हमारा कुछ नहीं बिगड़ सकता; क्योंकि हमारी पहुँच ऊपर तक है। उनके पास हर माह पैसा पहुँचता है। ऐसे में कोई क्या कर सकता है? सरकार के मुखिया होने के अलावा कैप्टन अमरिंदर सिंह पुलिस और आबकारी मंत्रालय भी सँभालते हैं। दोनों विभागों के कई अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है। इसी के चलते करीब एक दर्जन आबकारी और पुलिस विभाग के लोगों को निलंबित किया जा चुका है। इनमें आबकारी विभाग के दो प्रथम श्रेणी अधिकारी, दो डीएसपी, चार एसएचओ प्रमुख तौर है। इनके अधिकार क्षेत्र में त्रासदी हुई लिहाज़ा प्रथम दृष्टया ड्यूटी में कोताही के आरोप में कार्रवाई की गयी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ का कहना है कि अधिकारियों का निलंबन या बर्खास्ती ही काफी नहीं है, बल्कि इनके खिलाफ ऐसी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए; जिससे अन्य अधिकारियों को भी सबक मिल सके।

दोनों विभागों के कुछ अधिकारियों के संरक्षण में अवैध शराब का धन्धा खूब पनप रहा था। करोड़ों रुपये के इस धन्धे में कई सफेदपोश लोग भी हैंै। सरकार किसी भी दल की हो, मालिक बदल जाते हैं। पर धन्धा बदस्तूर चलता रहता है। अगर हादसा न होता, तो यह गोरखधन्धा पहले की तरह ही जारी रहता। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का प्रमुख मुद्दा राज्य में ड्रग्स को खत्म करने का रहा; क्योंकि अकाली-भाजपा सरकार में कुछ नेताओं पर करोड़ों के ड्रग्स धन्धे में अपरोक्ष हिस्सेदारी के आरोप लगते रहे हैं। राज्य से नशे का अवैध धन्धा खत्म करने और रसूखवाले नेताओं को बेनकाब करके उन्हें जेल में डालने का कांग्रेस का यह वादा काफी असरदार रहा।

कांग्रेस नेता अमरिंदर सिंह जनसभाओं में कहा करते थे, यह उनका अन्तिम चुनाव है। उन्हें एक बार और मुख्यमंत्री बनाओ, फिर देखो क्या होता है; सरकार बनते ही चार सप्ताह के अन्दर पंजाब को नशामुक्त राज्य बना दूँगा। कांग्रेस जीती और सरकार बने तीन साल हो गये कैप्टन अपना वादा पूरा नहीं कर सके। लोग उसे राजनीतिक वादा कहकर मखौल उड़ाने लगे हैं। अकाली, भाजपा और आम आदमी पार्टी के नेता कैप्टन को कमज़ोर प्रशासक के तौर पर आँकते हैं, जबकि उनकी छवि कठोर प्रशासक के तौर पर है। जानकारों की राय में घटना के बाद अमरिंदर सख्त हो जाते हैं; उससे पहले वे नरम ही दिखते हैं। शराब त्रासदी के बाद उन्होंने जिस तरह से कड़ी कार्रवाई की है। वह मिसाल के तौर पर है; लेकिन क्या उन्हें या उनकी सरकार को पूरे राज्य में अवैध शराब के नेटवर्क के बारे में कुछ भी पता नहीं था?

अमरिंदर का गृह ज़िला पटियाला भी अवैध शराब का केंद्र बना हुआ रहा। ज़िले के राजपुरा और घन्नौर में अवैध शराब की फैक्टरियाँ पकड़ी गयी जहाँ से बड़ी मात्रा में शराब राज्य के विभिन्न हिस्सों में सप्लाई होती रही। यह संसदीय क्षेत्र उनकी पत्नी परणीत कौर का भी है। सांसद और मुख्यमंत्री जब एक ही परिवार से हों, हलके में शराब माफिया बड़े स्तर पर सक्रिय हों; तो इसे क्या कहेंगे? घोर लापरवाही और सरकार की नाकामी से ज़्यादा क्या कह सकते हैं?

वैसे सरकार बड़े स्तर पर राज्य स्तरीय कार्रवाई कर रही है। मुख्यमंत्री घटना में सीधी संलिप्तता वालों पर हत्या की धारा-302 लगाने का आदेश दे चुके हैं। वह इसे जान-बूझकर हत्या की घटना ही करार दे रहे हैं। एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है और अभियान जारी है। राज्य के सीमांत ज़िलों अमृतसर, तरनतारन, गुरदासपुर और पठानकोट में सरकार के समांतर अवैध शराब का धन्धा बरसों पुराना है।

ज़हरीली शराब से सामूहिक मौतों की घटनाएँ देश के किसी-न-किसी हिस्से में होती रहती हैं। अवैज्ञानिक तरीके से केमिकल युक्त शराब बनाने का काम बहुत खतरनाक है। मेथेनॉल, इथेनॉल, स्प्रिट या मेथे-अल्कोहल की मात्रा ज़्यादा हो जाए, तो बनने वाली शराब जानलेवा साबित हो सकती है। तरनतारन, गुरदासपुर और अमृतसर के ग्रामीण इलाकों में यही तो हुआ। शराब पीने के कुछ घंटों में ही ज़हर ने असर दिखाना शुरू किया और सेवन करने वालों में एक के बाद कई लोग मौत की नींद सो गये। ज़्यादा पीने वाले नहीं बच सके, जबकि पीने वाले अस्पतालों में इलाज के बाद ठीक हो गये। कुछ की मौत अस्पताल में भी हुई।

अमृतसर के मुच्छल गाँव में कई लोग ज़हरीली शराब से मरे हैं। ग्रामीण कहते हैं कि ज़हर पीने के बाद बचना मुश्किल ही होता है। लोग घरों तक नहीं पहुँच सके, रास्ते में ही बेहोश होकर गिर पड़े। ऐसा मंजर पहले कभी नहीं देखा, अस्पताल पहुँचाने का मौका भी नहीं मिला। जाँच में फँस जाने के डर से बहुत से परिजनों ने पुलिस-प्रशासन को बताए बिना अंतिम संस्कार कर दिये।

गाँव में कई लोग अवैध शराब का धन्धा बरसों से कर रहे हैं, कई बार उनकी शिकायतें की गयी। पुलिस ने छापे मारे, लेकिन कोई बरामदगी नहीं हुई; तो मामले रफा-दफा होते रहे। पूर्व सरपंच सुखराज सिंह कहते हैं कि देसी तरीके से गुड़ आदि से चोरी-छिपे बनने वाली शराब के बारे में तो लोग जानते हैं; लेकिन केमिकल से बनने वाली विधि के बारे में कोई नहीं जानता। गाँव के हरजीत सिंह पिता बलविंदर सिंह की मौत से सदमे में है। वह बताते हैं कि पुलिस में नामजद शिकायतें दी हैं। पुलिस ने दिखावे के तौर पर कार्रवाई तो की, लेकिन अवैध धन्धा बन्द नहीं हुआ।

केमिकलयुक्त शराब बनाने से लेकर इसकी आपूर्ति के लिए बहुत बड़ा नेटवर्क है। इसके लिए राष्ट्रीय राजमार्गों पर बने खाने के ढाबे भी इनके काम आते हैं। ट्रकों के माध्यम से माल यहाँ उतरता था और फिर उसे जगह-जगह पहुँचा दिया जाता था। हज़ारों लोग इस धन्धे से परोक्ष या अपरोक्ष तौर पर जुड़े हुए थे। पुलिस ने इन ढाबों के मालिकों या प्रबन्धकों पर कार्रवाई की है। कुछेक के पास से केमिकल या शराब भी बरामद हुई है। हरियाणा सीमा पर स्थित शम्भू में झिलमिल ढावा, बनूड में ग्रीन और राजपुरा में छिंदा ढाबों पर पुलिस ने कार्रवाई की है। नकली शराब के काम में महिलाएँ भी कम नहीं है। बलविंदर कौर, दर्शन रानी, फौजन, और त्रिवेणी नामक महिलाएँ गिरफ्तार हुई हैं।

शराब में मिलावट के लिए राज्य में केमिकल्स की उपलब्धता बड़ी आसान है। यही वजह है कि धन्धा बड़े स्तर पर पनप रहा था। पुलिस ने लुधियाना में राजीव जोशी नामक एक पेंट विक्रेता को गिरफ्तार किया है। उसने शराब बनाने में काम आने वाले केमिकल मेथेनॉल (मेथे अल्कोहल) के तीन ड्रम किसी प्रभदीप सिंह नामक व्यक्ति को बेचे थे। इसी से इतनी बड़ी त्रासदी हो गयी; जबकि उसके गोदाम से 284 ड्रम इसी केमिकल के बरामद हुए हैं। राज्य में न जाने ऐसे कितने राजीव जोशी जैसे लोग होंगे, जो ज़्यादा पैसे के लालच में शराब माफिया को यह केमिकल बेचते होंगे। हादसे के बाद सरकार किस तरह से कार्रवाई को अंजाम दे रही है इसका सुबूत इससे मिलता है कि अभी तक एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। यह सिलसिला तो अभी शुरू हुआ है। अभी छोटे मोटे लोग ही पकड़े जा रहे हैं, जिनकी आजीविका का साधन ही यही बना हुआ था। ये कमीशन के आधार पर शराब सप्लाई से लेकर बेचने वाले हैं। यह धन्धा करोड़ों का है और छोटे मोटे लोगों के बस की बात नहीं है। बिना संरक्षण राज्य स्तर पर ऐसा काम करने वाले कौन हैं? क्या सरकार उन तक पहुँच पाएगी? अक्सर ऐसे लोग बच ही निकलते हैं क्योंकि उनकी पहुँच ऊपर तक होती है। अब देखना होगा कि सरकार किस मंशा से काम करेगी? सरकार ने दो स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीमें गठित की हैं। दोनों टीमें सहायक पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) ईश्वर सिंह की देख-रेख में काम करेंगी। सरकार ने आरोपियों के खिलाफ ठोस सुबूत जुटाने के आदेश दिये हैं; ताकि ये लोग अदालतों से नहीं बच सकें। इसके लिए पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी की सीधी ज़िम्मेदारी लगायी गयी है। अदालत में इनके हस्ताक्षर से ही चालान पेश होने हैं। ऐसे में सुबूतों के अभाव में आरोप साबित नहीं होंगे, तो पुलिस अधिकारी से जवाबदेही होनी तय है। आरोपियों पर पंजाब कंट्रोल ऑफ ऑरगेनाइजेशन क्राइम एक्ट (पीसीओसीए) के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए।

मुख्यमंत्री त्रासदी को सीधी हत्या से जोडक़र देख रहे हैं। वह स्पष्ट कह चुके हैं कि कार्रवाई में कोई नरमी बरतने का सवाल ही पैदा नहीं होता। तस्करों ने शराब नहीं, बल्कि ज़हर बेचा है; उन्होंने निर्दोष लोगों की हत्या की है। कृत्य में संलिप्त कोई भी हो बख्शा नहीं जाएगा। घटना में एक कांग्रेस विधायक की संलिप्तता के आरोप लग रहे हैं। विरोधी दल शराब माफिया को सरकारी संरक्षण के आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री के लिए यह चुनौती जैसा काम होगा।

सरकार बड़े स्तर पर कार्रवाई करके सही दिशा में बढऩे का प्रयास कर रही है; लेकिन मामला अब राजनीतिक हो चला है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंदर केजरीवाल भी शराब त्रासदी की जाँच सी.बी.आई. को देने की माँग कर चुके हैं।

आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रमुख और सांसद भगवंत मान कह चुके हैं कि अमरिंदर सिंह को नाम के आगे कैप्टन लगाने का हक नहीं है। त्रासदी ने उनकी कार्यकुशलता को उजागर कर दिया है। ऐसे में कैप्टन लिखना भारतीय सेना के पद का अपमान है। वह नैतिकता के आधार पर अमरिंदर सिंह को कुर्सी छोडऩे का कहते हैं; क्योंकि घटना के लिए वह सीधे तौर पर उत्तरदायी हैं। आबकारी और पुलिस विभाग उनके पास है, फिर भी इतनी बड़ी त्रासदी हो गयी। ऐसे में वह कार्रवाई के नाम पर बचने का प्रयास करके रहे हैं। जिन लोगों पर संरक्षण का आरोप है; क्या पुलिस उनके खिलाफ जाँच करेगी? अगर करेगी, तो उनके खिलाफ रिपोर्ट होगी? जाँच के नाम पर यह लोगों की आँखों में धूल झोंकने जैसा ही है।

प्रदेश भाजपा और शिरोमणि अकाली दल को सरकार की जाँच पर कतई भरोसा नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री और शिअद अध्यक्ष सुखबीर बादल और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अश्विनी शर्मा मामले की जाँच सी.बी.आई. को सौंपने के हक में है। पंजाब के राज्यपाल वी.पी. सिंह बदनौर को इस बाबत ज्ञापन भी दिया है। विरोधी दलों के अलावा कांग्रेस के दो बड़े नेताओं ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। दोनों प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं और मौजूदा राज्यसभा के सदस्य भी हैं। प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलो त्रासदी के लिए अपनी ही कांग्रेस सरकार को ज़िम्मेदार बता रहे हैं। दोनों राज्यपाल बदनौर को मिलकर सी.बी.आई. जाँच का ज्ञापन दे चुके हैं।

दोनों का अमरिंदर सिंह से राजनीतिक तौर पर 36 का आँकड़ा है। विशेषकर बाजवा और अमरिंदर सिंह, तो एक दूसरे के घोर विरोधी है। बाजवा को राज्य की राजनीति से दूर करने में अमरिंदर सिंह की प्रमुख भूमिका रही है। क्या ऐसे मौके पर सांसदों का ऐसा रुख पार्टी के लिए ठीक है? दोनों आखिर क्यों सी.बी.आई. जाँच के पक्ष में है? क्या उन्हें अपनी सरकार की पुलिस की जाँच पर भरोसा नहीं है? क्या सरकार अपनी जाँच में उन लोगों को बचाना चाहती है; जो उसके बारे में काफी कुछ जानते हैं।

मुख्यमंत्री के नेतृत्व पर सवाल उठाने और सरकार की आलोचना से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ काफी नाराज़ हैं। वह भी पार्टी लाइन से हटकर दोनों की आलोचना करने में जुट गये हैं। जाखड़ कहते हैं कि जिस पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में सांसद बनाकर भेजा वहाँ वह प्रदेश हित का कोई मुद्दा नहीं उठा रहे। उन्हें प्रदेश या यहाँ के लोगों के हितों की चिन्ता है, तो कुछ करके तो दिखाएँ। वह दोनों की कार्रवाई को अनुशानहीनता मान रहे हैं और कड़ी कार्रवाई के पक्ष में हैं।

वहीं अमरिंदर सिंह जहाँ वैश्विक महामारी के मोर्चे पर लड़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ विपक्ष के अलावा उन्हें अपनी ही पार्टी के लोगों के विरोध से जूझना पड़ रहा है। इसी समस्या को लेकर मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, प्रदेश कांग्रेस सुनील जाखड़ और पुलिस महानिदेशक दिनकर गुप्ता ने तरनतारन जाकर प्रभावितों के परिजनों से मुलाकात की। उन्होंने मामले की निष्पक्ष जाँच कर आरोपियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई का भरोसा दिलाया। विपक्षी दल के लोग भी गाँव-गाँव जाकर प्रभावितों के परिजनों से मिल रहे हैं। सवाल यही है कि क्या कांग्रेस सरकार कोई ऐसी कार्रवाई करेगी, जिससे भविष्य में ऐसी घटना न हो? क्या शराब माफिया को खत्म करने की उसकी मंशा है? सत्ता सँभालने के चार सप्ताह में पंजाब को नशामुक्त राज्य बनाने का वादा अभी अधूरा है मुख्यमंत्री जी!

कांड-दर-कांड

देश के विभिन्न राज्यों में ज़हरीली शराब पीकर सैकड़ों लोग मर चुके हैं। 1978 में बिहार के धनबाद में ज़हरीली शराब से 254 लोगों की जान गयी। वर्ष 1981 में कर्नाटक में 308 लोगों ने जान गँवायी। 1982 में केरल में 77 लोगों की मौत और 1991 में राजधानी दिल्ली में 199 लोग ज़हरीली शराब से मौत की नींद सो गये। 1992 में ओडिसा में 200 लोग और वर्ष 2008 में कर्नाटक और तमिलनाडू में 180 से ज़्यादा लोगों को ज़हरीली शराब ने निगल लिया। 2009 में गुजरात में 136 लोगों ने दम तोड़ा, तो वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल में 167 लोगों को शराब ने लील लिया। इसी वर्ष पश्चिम बंगाल में 167 लोगों की, जबकि 2012 में ओडिसा में 29 लोगों की मौत हुई। 2013 में आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में 39 लोगों की, जबकि वर्ष 2015 में पश्चिम बंगाल में 182 लोगों ने दम तोड़ा। मुम्बई में वर्ष 2015 में 45 लोगों की और 2016 में बिहार में 16 और वर्ष 2019 में असम में 100 से ज़्यादा लोग ज़हरीली शराब की वजह से मरे।

पीडि़तों को आर्थिक मदद

राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को पाँच-पाँच लाख रुपये की आर्थिक मदद की घोषणा की है। पहले यह राशि दो लाख रुपये ही थी। पता चला कि प्रभावितों में ज़्यादातर की आर्थिक हालत बहुत ही खस्ता है। रोज़ कमाने और रोज़ खाने वाले लोगों के लिए दो लाख रुपये की राशि कम होगी; लिहाज़ा इसे बढ़ाया गया है। जिन परिवारों में किसी के पास रोज़गार का साधन नहीं है। उन्हें काम देने का भरोसा दिलाया गया है। 92 परिवारों को आर्थिक मदद दे दी गयी है। प्रभावित परिवार चाहते हैं कि सरकार जाँच के बाद आरोपियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करे, ताकि भविष्य में फिर ऐसी घटना न हो। सस्ती शराब पीने की वजह से मरने वाले गरीब लोग ही होते हैं। कम पैसे में नशा करने के आदी ये लोग खतरा उठाकर नशा करते हैं। देश में ऐसी घटनाएँ हो चुकी हैं, जिनसे सबक लेना चाहिए, लेकिन कोई सबक नहीं लिया जाता। गाँव-गाँव में शराब बिकती है, यह लोगों को पता है; तो फिर पुलिस को ऐसी जानकारी क्यों नहीं होती?