हिमालय पर कचरे का पहाड़

हिमालय पर कचरे का अंबार दुनिया के इस सबसे ऊँचे पर्वत की शान को तो खराब कर ही रहा है, इससे पर्यावरण से जुड़ी गम्भीर चिन्ता भी पैदा हो गयी है। एक अनुमान के मुताबिक हिमालय पर लाखों टन कचरा जमा हो चुका है, जो भविष्य के लिए बड़े खतरे का संकेत करता है। इसी खतरे को रेखांकित करती राकेश रॉकी की रिपोर्ट

आज से 67 साल पहले 1953 में शेरपा तेनजिंग नॉरगे और सर एडमंड हिलेरी ने पहली बार एवरेस्ट पर कदम रखा था, तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन इस खूबसूरत पर्वत की चर्चा कचरे के कारण होने लगेगी। आज की तारीख में दुनिया के इस सबसे ऊँचे पर्वत पर टनों कचरा जमा है और पर्यावरण के लिहाज़ से इसे एक बड़े खतरे के रूप में देखा जा रहा है। अब जनवरी में ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित रिसर्च में यह तथ्य सामने आया है कि तापमान बढऩे से माउंट एवरेस्ट पर घास भी उगने लगी है, जिसने दुनिया भर के पर्यावरण विशेषज्ञों को गहरी चिन्ता में डाल दिया है। चिन्ता का एक बड़ा कारण यह भी है कि हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार इस सदी में दोगुनी हो चुकी है।

दुनिया की गलियाँ और नाले ही नहीं, दुनिया का सबसे ऊँचा शिखर भी अब कचरे की चपेट में है। एवरेस्ट के जिस हिस्से में तापमान बढ़ा है, वहाँ घास और झाडिय़ाँ उग आई हैं। इसका दुष्परिणाम यह हो सकता है कि बर्फ ज़्यादा पिघलने से बाढ़ की स्थिति बने और पानी की कमी हो जाए। ऐसा दावा ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित रिसर्च में भी किया गया है। इसके मुताबिक, दुनिया भर में 190 करोड़ लोगों को पहाड़ों से मिलने वाले पानी की कमी से जूझना पड़ सकता है। एवरेस्ट से जुड़े यह खतरे और भी कई कारणों से आये हैं। यह पर्वत रोमांच के लिए वहाँ जाने वालों की बड़ी संख्या के कारण एक तरह से सैर-सपाटे के स्पॉट के रूप में तब्दील होता जा रहा है। इससे कई दिक्कतें पैदा होने लगी हैं।  करीब 8,848 मीटर की ऊँचाई पर स्थित माउंट एवरेस्ट पर अब तक करीब 8,310 लोग चढ़ चुके हैं। पिछले वर्षों की अपेक्षा इनकी संख्या में तेज़ी से इज़ाफा हुआ है। पिछले साल ही एवरेस्ट के शिखर पर 802 लोग पहुँचे।

इतने लोगों के भीड़ से वहाँ बड़े पैमाने पर कचरा जमा होने लगा है, जो मानवीय मल, खाने के पैकेट, सिलिंडर, शवों आदि के रूप में है। नेपाल सरकार ने पिछले साल दुनिया की इस सबसे ऊँची चोटी के लिए एक सफाई अभियान चलाया था। यह अभियान पिछले साल मध्य अप्रैल में शुरू किया गया, जिसमें चढ़ाई में माहिर 12 शेरपाओं की एक टीम थी। इस टीम में करीब 35 दिन में यह कचरा जमा किया।

अभियान के दौरान 11,000 किलो यानी 11 टन कचरा वहाँ से जमा करके हटाया गया। इस कचरे के अलावा वहाँ चार शव भी मिले। इस अभियान पर करीब 2.30 करोड़ रुपये खर्च हुए। लेकिन यह तो वहाँ जमा कचरे का एक छोटा-सा ही हिस्सा है। एक अनुमान के मुताबिक, आज की तारीख में एवरेस्ट पर करीब दो लाख किलो कूड़ा-कचरा जमा हो चुका है। इंसानों के दखल से एवरेस्ट पर पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँच रहा है। अभी तक के अभियानों में भले काफी कूड़ा हटाया गया है; लेकिन अब भी वहाँ कचरे का पहाड़ जमा है।

सात साल पहले नेपाल ने एक नियम बनाया था कि पर्वत पर चढऩे वाली पर्वतारोहियों की टीम को ढाई लाख रुपये जमा करने होंगे और जो पर्वतारोही अपने साथ कम-से-कम आठ किलो कचरा लाएगा, उसे यह राशि वापस कर दी जाएगी। अच्छी बात यह है कि इसका सकारात्मक नतीजा निकला है। सागरमाथा प्रदूषण नियंत्रण समिति, जो यह काम करती है; के मुताबिक अभी तक बड़ी मात्रा में कचरा और मानवीय अपशिष्ट नीचे लाने में मदद मिली है।

जानकार हैरानी होगी कि दिसंबर, 2019 तक एवरेस्ट की ऊँचाई छूने की कोशिश में 310 लोग अपनी जान गँवा चुके हैं; जबकि सबसे ऊँची के-2 चोटी पर झंडा गाडऩे वालों की संख्या इससे कुछ कम 307 ही है। माउंट एवरेस्ट पर चढऩे वालों की संख्या से चिन्तित ब्रिटेन के दिग्गज पर्वतारोही डाउग स्कॉट ने तो नेपाल सरकार से अपील की है कि इतनी बड़ी तादाद में लोगों को इस पर्वत पर चढऩे की अनुमति देनी बन्द कर देनी चाहिए।

एशिया के 45 ऊँचे पर्वतों की चढ़ाई कर चुके स्कॉट ने चेताया है कि हिमालय अब शान्ति और एकांत का स्थान नहीं रह गया और इसके बहुत खतरनाक नतीजे हो सकते हैं। पिछले कुछ महीनों में ही हिमालय पर चढऩे की कोशिश में 12 लोगों की मौत हो चुकी है, जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस संख्या में लोग एवरेस्ट पर चढऩे की कोशिश में हैं।

पिछले साल करीब 850 लोगों ने एवरेस्ट की ऊँचाई का पता लगाने की कोशिश की, जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। इस संख्या को लेकर विशेषज्ञ अब खुलकर चिन्ता जताने लगे हैं। हाल में हिमालयन ट्रेवेल मार्ट-2019 के काठमांडू में हुए एक कार्यक्रम में पर्वतों की क्षमता का खयाल रखते हुए एक सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसका विषय था- ‘सीमित संख्या में ही पर्वतारोहियों को चढऩे की मंज़ूरी दी जानी चाहिए’ इस आयोजन में दुनिया भर से आए विशेषज्ञों ने हिमालय पर बढ़ते कचरे और इससे बढ़ती तमाम परेशानियों पर चिन्ता जतायी। नेपाल के पर्यटन विभाग के महानिदेशक रहे डांडू राज घिमिरे का हाल में एक बयान आया है, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की तरफ से बड़ी पर्यावरणीय चिन्ताएँ और आलोचनाएँ रही हैं कि नेपाल ने एवरेस्ट की सुंदरता को बनाये रखने के प्रति कोई गम्भीरता नहीं दिखाई है।

पर्वतारोहण से एवरेस्ट पर जाने वाले अमीर पर्वतारोहियों की संख्या बढ़ रही है। हिमालय पर मिलने वाले कचरे से ज़ाहिर होता है कि पर्वतारोही वहाँ पर्यावरण का लिहाज़ नहीं रख रहे हैं। वे बड़ी संख्या में सामान आदि वहाँ छोड़ देते हैं। इनमें खराब हो चुके टेन्ट, बेकार उपकरण, खाली गैस सिलेंडर और मानवीय अपशिष्ट शामिल है। पिछले साल के सफाई अभियान में जो 11 टन कचरा वहाँ से हटाया गया, उसमें से सात टन तो एवरेस्ट आधार शिविर और ऊँचाई वाले शिविरों से ही जुटाया गया। जबकि बाकी कचरा एवरेस्ट का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले लुकला और नामचे बाजार गाँवों से इकट्ठा हुआ। इससे मामले की गम्भीरता को समझा जा सकता है।

हर वसंत में सिर्फ दो महीने के मौसम के दौरान ही माउंट एवरेस्ट खुलता है। इस दौरान कई शौकीन माउंट एवरेस्ट फतह करने की कोशिश करते हैं। हालाँकि, अपनी कोशिश के दौरान ये लोग एवरेस्ट मार्ग में दुनिया भर का कचरा छोड़ आते हैं। अपनी पुस्तक में पर्वतारोही मार्क जेनकिंस ने लिखा था कि दो बड़े मार्ग, पूर्वोत्तर रिज और दक्षिणपूर्व रिज न केवल खतरनाक रूप से भीड़ से भर रहे हैं, बल्कि बुरी तरह प्रदूषित भी हो चुके हैं। नेपाल पर्वतारोहण संघ के अध्यक्ष एंग शेरिंग ने भी कुछ इसी तरह चेताया है कि एवरेस्ट पर प्रदूषण, खासकर मानव मल-मूत्र खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है और यह दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर बीमारी तक फैला सकता है। पर्वतारोही शौचालय के जो ड्रम साथ ले जाते हैं, उन्हें भर जाने के बाद वे वहीं खाली कर देते हैं। पर्वतारोही शौच के लिए बर्फ के बीच एक बड़ा छेद कर देते हैं और शौच से निपटने के बाद उसे खुला ही छोड़ देते हैं।

वर्षों से यह गन्दगी वहाँ जमा हो रही है। चिन्ता की बात यह है कि नेपाल सरकार वहाँ पर्वतारोहियों के छोड़े मानव अपशिष्ट को निपटाने के लिए कोई ठोस रणनीति विकसित नहीं कर सकी है। अध्ययन बताते हैं कि सिर्फ एक ही सीजन में एवरेस्ट पर मानव विसर्जन 26,500 पाउंड से भी अधिक होता है। वैसे एवरेस्ट और पर्वतारोहण को नेपाल की अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा ज़रिया बन गया है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि पर्वतारोहण से होने वाली आय नेपाल की कुल जीडीपी का करीब पाँच फीसदी है। अब तो अमीर लोग मस्ती करने के लिए भी वहाँ जाने लगे हैं। दरअसल नेपाल का पर्वतारोहण विभाग शौकिया लोगों को एवरेस्ट की चढ़ाई की सुविधा देने के लिए पैसे के बदले गाइड उपलब्ध कराता है। साल 1990 में ही इसकी शुरुआत हो गयी थी; लेकिन शुरू में इतने लोग नहीं जाते थे। इसके लिए प्रति व्यक्ति करीब 24.30 लाख रुपये से 52.10 लाख रुपये तक वसूल किये जाते हैं। गाइड के जिम्मे बहुत से काम होते हैं, जिनमें रस्सी और फोल्डिंग सीढ़ी के ज़रिये बर्फ के बीच मार्ग बनाना भी एक है। इसके अलावा यह गाइड खाना भी बनाते हैं। एक तरह से इन पर्वतारोहियों का 70 फीसदी से ज़्यादा काम तो यही गाइड कर देते हैं।

हालाँकि, पर्यावरण विशेषज्ञ इससे चिन्तित हैं। उनका कहना है कि इसे मनोरंजन की चीज़ बना देने से पर्यावरण का बहुत नुकसान होने लगा है। एवरेस्ट के शिखर तक पहुँचने के 18 चढ़ाई मार्ग हैं। हालाँकि इनमें से दो ऐसे हैं, जहाँ इन शौकिया पर्वतारोहियों की संख्या ज़्यादा रहती है। धनाढ्य शौकीन इन दो मार्गों से जाना पसन्द करते हैं। इससे स्थिति खतरनाक हुई है। साल 2014 और 2015 में तो एवरेस्ट पर चढऩे की कोशिश के दौरान 38 लोगों की जान चली गयी थी। दरअसल 2015 में तो भूकम्प आने के कारण कई पर्वतारोही आधार शिविर में ही काल के ग्रास बन गये।

एवरेस्ट के बारे में दिलचस्प बातें

माउंट एवरेस्ट पर चढऩे और वहाँ की ऊँचाई और तापमान को समझने और उससे तालमेल बैठाने में पर्वतारोहियों को करीब 40 दिन लग जाते हैं। वहाँ हवा की रफ्तार 321 किमी/घंटा तक पहुँच जाती है। वहाँ तापमान शून्य से 80 डिग्री फारेनहाइट नीचे चला जाता है। वैज्ञानिक शोधों से यह माना जाता है कि यह पर्वत हर साल चार मिलीमीटर बढ़ जाता है। यूइचिरो मियूरा दुनिया के चढऩे वाले सबसे ज़्यादा उम्र के व्यक्ति हैं। वे जब एवरेस्ट पर पहुँचे, उनकी उम्र 80 साल थी; जबकि जॉर्डन रोमेरो माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले सबसे छोटी उम्र के व्यक्ति हैं। वे 13 साल की आयु में एवरेस्ट पर चढ़े थे। बहुत कम लोग जानते होंगे कि एवरेस्ट पर भी चोरी होती है। जी हाँ, दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर चढ़ाई करने वाले कई विदेशी पर्वतारोही ऑक्सीजन सिलेंडर की चोरी की शिकायत कर चुके हैं।

क्या हिमालय पर हिममानव है?

हिम मानव यानी येती। जब भी हिमालय की बात होती है, तो येती का ज़िक्र भी होता है। भारतीय सेना ने कुछ महीने पहले कुछ तस्वीरें ट्वीट की थीं, जिनमें बर्फ पर विशालकाय पैरों जैसे निशान दिख रहे थे। आकार में यह निशाँ 32&15 इंच तक के थे। इसके बाद एक बार फिर हिमालय में हिममानव की मौज़ूदगी को लेकर चर्चा शुरू हो गयी। दुनिया में जब भी रहस्यमय प्राणियों की बात होती है, तो येति का ज़िक्र ज़रूर होता है। वैसे येति की कहानी है बड़ी पुरानी। कई बार येति को देखे जाने के दावे किये गये हैं। लद्दाख के बौद्ध मठों ने भी एक दावा किया था कि उन्होंने यह हिममानव देखा है। वैसे शोधकर्ता येति को मानव नहीं मानते। उनके मुताबिक, यह दरअसल ध्रुवीय और भूरे भालू की क्रॉस ब्रीड है। कुछ वैज्ञानिकों के मत के अनुसार, येती एक विशालकाय जीव है, जिसकी सूरत बंदरों जैसी है। लेकिन वह इंसानों की तरह ही दो पैरों से चलता है। आधुनिक समय में सबसे पहले 1921 में हिममानव को देखने का दावा किया गया था। हेनरी न्यूमैन नामक एक पत्रकार से ब्रिटेन के खोजकर्ताओं के एक दल ने इंटरव्यू के दौरान दावा किया था कि उनको पहाड़ पर पैरों के विशालकाय निशान देखे थे। तबसे अब तक येती को लेकर दर्जनों शोध हुए हैं; लेकिन कुछ साफ नहीं हो पाया है।

एवरेस्ट के कचरे से पदार्थ

नेपाल में एक संस्था अब एवरेस्ट के कचरे से बाज़ार में बिकने वाले पदार्थ बनाने लगी है। यह संस्था ब्लू वेस्ट टू वैल्यू नेपाल है। यह पुनर्चक्रमण संगठन एवरेस्ट पर व्यावसायिक पर्वतारोहण से एकत्र होने वाले कचरे, जिसमें खाली केन, एल्युमिनियम, गैस कनस्तर, बोतलें, प्लास्टिक और अन्य सामग्री शामिल है; को रिसाइकल कर गुलदस्ते, लैंप और ग्लास जैसी चीज़ें बना रही है। नेपाल की राजधानी काठमांडू में तो लोग कचरे के रिसाइकल से बनी चीज़ोंं का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। पर्यावरणविद् भी कचरे के रिसाइकल से बने पदार्थों को पर्यावरण के लिए शुभ संकेत मानते हैं और उनका कहना है कि यह रोज़गार की दृष्टि से भी लाभकारी है।

24 बार एवेरेस्ट फतह

नेपाल के पर्वतारोही कामी रीता शेरपा 24 बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई कर चुके हैं और यह एक विश्व रिकॉर्ड है। साल 2019 में वे दो बार एवरेस्ट पर चढ़े। वे 25 बार दुनिया की इस सबसे ऊँची चोटी को फतह का विश्व रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं। कामी रीता ने साल 1994 में पहली बार एवेरेस्ट की चढ़ाई की थी और उस समय वे 24 साल के ही थे। वह कमोवेश हर साल एवरेस्ट की चढ़ाई करते हैं। साल 2019 में उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करके विश्व की सर्वोच्च चोटी पर पहुँचने के अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ा था। नेपाल में सोलुखुंबु ज़िले के थमे गाँव के रहने वाले कामी रीता 2017 में 21वीं बार माउंट एवरेस्ट पर चढऩे वाले तीसरे व्यक्ति बन गये थे। उनसे पहले यह कारनामा अपा शेरपा और फुरबा ताशी शेरपा ने ही किया था।

क्या कहती है जीसीबी में छपी स्टडी रिपोर्ट

ग्लोबल चेंज बायोलॉजी (जीसीबी) जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट ब्रिटेन की एक्सटर विश्वविद्यालय के अध्ययन पर आधारित है, जिसमें एवरेस्ट पर घास और झाडिय़ों के तेज़ी से बढऩे की जानकारी सामने आयी है। एवरेस्ट की कुल ऊँचाई को चार हिस्सों में बाँटकर यह अध्ययन किया गया है। इसके मुताबिक सबसे ज़्यादा घास/वनस्पति/झाडिय़ाँ 16 से 18 हज़ार की ऊँचाई वाले हिस्से में बढ़ रही हैं, जबकि तीन अन्य हिस्सों में यह बढ़ती देखी गयी हैं। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की हालत यह है कि पिछले चार दशक में लगभग एक-चौथाई से ज़्यादा बर्फ वहाँ पिघल चुकी है। वहाँ घास बढऩे का सबसे कारण बढ़ते तापमान को माना गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसके व्यापक नुकसान के बारे में अभी बताना मुश्किल है; लेकिन बर्फ और पेड़ों के बीच उगने वाली घास हिन्दू-कुश हिमालय क्षेत्र में बाढ़ के आसार बना सकती है। वैसे ग्लेशियर से होने वाली पानी की पूर्ति उतनी ज़्यादा नहीं है; लेकिन बाढ़ पहले से खराब स्थिति को और भयावह कर सकती है। जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक हिमालय में कुछ इलाके हैं, जहाँ पहले किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती थी और सालभर वहाँ बर्फ रहती थी। लेकिन अध्ययन बताता है कि इन स्थानों पर पानी की ज़्यादा आवक होने लगी है, जिससे वनस्पतियाँ पनपने लगी हैं। शोधकर्ता केरेन एंडरसन के मुताबिक, वहाँ पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु परिवर्तन की चपेट में है। वह कहती हैं कि हिमालय के ग्लेशियर पिघलने की दर 2000 से 2016 के बीच दोगुनी हो चुकी है। वे चिन्ता ज़ाहिर करते हुए कहती हैं कि पर्वतों पर बर्फ को हो रहे नुकसान को समझना और उस पर नज़र रखना बहुत ज़रूरी है। उनके मुताबिक छोटे पौधे जिस गति से हिमालय के बर्फबारी वाले हिस्से को घेर रहे हैं, उसे बुरी खबर के रूप में देखना चाहिए। वह कहती हैं कि पौधों पर जमी बर्फ तेज़ी से पिघलने का सीधा अर्थ है बाढ़ का खतरा बढऩा। एवरेस्ट से एशिया की 10 बड़ी नदियों की उत्पत्ति होती है और करीब डेढ़ अरब लोगों की प्यास बुझाती हैं। नासा के लैंडसेट सैटेलाइट से 1993 से 2018 के बीच ली गयी तस्वीरों की मदद से ब्रिटेन की एक्सेटर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने जो रिसर्च की उसके मुताबिक समुद्र के स्तर से 6000 मीटर तक की ऊँचाई पर घास उग रही है। मुख्य पहाड़ों पर बर्फ गायब हो रही है। भले यह बहुत बड़ा इलाका है, फिर भी इस पर नज़र रखी जानी चाहिए। नये पौधों के लिए 20 हज़ार फीट की ऊँचाई पर उगना सम्भव नहीं होता। कारण यह है कि इस ऊँचाई पर बर्फ के कारण पौधे उग नहीं पाते। गर्म होते इलाकों में से यह इलाका दुनिया में सबसे तेज़ी से गर्म हो रहे क्षेत्रों में से एक हैं। सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात ग्लेशियरों का पिघलना है। नासा की तस्वीरों में भी यह दृष्टिगोचर होता है। इन तस्वीरों में नीले रंग से 1993 की स्थिति बतायी गयी है, जबकि 2017 की तस्वीरों में वहाँ लाल रंग यह बताता है कि वहाँ घास कितनी तेज़ी से बढ़ गयी है। वैज्ञानिकों ने बर्फबारी के दौरान वहाँ उगने वाली घास और छोटी झाडिय़ों की तस्वीरें ली हैं।

एवरेस्ट पर वनस्पति बढऩे का क्षेत्र 5000 और 5500 मीटर की ऊँचाई के बीच देखा गया है। अधिक ऊँचाई पर, चपटे क्षेत्रों में विस्तार अधिक था, जबकि निचले स्तरों पर यह ढलान वाले जगहों पर अधिक था। बड़ा सवाल ये है कि इलाके में जल विज्ञान (जल के गुणों) के लिए वनस्पति में इस बदलाव का क्या अर्थ है? क्या इससे ग्लेशियर और बर्फ की चादरों के पिघलने की गति थमेगी या फिर इस प्रक्रिया में तेज़ी आएगी? हिन्दू कुश हिमालयी क्षेत्र पूर्व में म्यांमार से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक आठ देशों में फैला हुआ है। इस क्षेत्र के 140 करोड़ से अधिक लोग पानी के लिए इस पर निर्भर हैं, हल्के परिवर्तन हलके में नहीं लिए जा सकते।

करेन एंडरसन और डोमिनिक फॉसेट शोधकर्ता

पर्वतारोहण रोक देना चाहिए

एवरेस्ट पर बढ़ रहा दबाव बहुत चिन्ता पैदा करने वाला है। वहाँ कचरा तो जमा हो ही रहा है, लोगों की संख्या भी बढ़ रही है, जो अच्छी बात नहीं। वहाँ जमा हो रहे मलबे और इसके नुकसान पर हमने जो अध्ययन किया है, उसके संकेत विकट चिन्ता पैदा करने वाले हैं। एवरेस्ट पर करीब 11 लाख लीटर मानव मूत्र ही जमा हो चुका है। इसके अलावा पॉलिथीन, प्लास्टिक के अन्य अवशेष, खाने के पैकेट और खाली बोतलें और यहाँ तक की शव जिस तरह जमा हो रहे हैं, वे एवरेस्ट के लिए बहुत खतरनाक हैं। हेलीकॉप्टर के कचरे की भी कोई सीमा नहीं। हमारी माँग है कि जब तक एवरेस्ट को कचरा रहित नहीं बना लिया जाता, वहाँ पर्वतारोहण की गतिविधियों को रोक देना चाहिए। विकल्प के तौर पर पर्वतारोहण के लिए नयी चोटियों को तलाश किया जाना चाहिए। एवरेस्ट पर युद्ध स्तर पर सफाई अभियान की ज़रूरत है, अन्यथा इसे खत्म होने से कोई नहीं बचा पाएगा और इसकी सबसे बड़ी कीमत हम इंसानों को ही भुगतनी पड़ेगी।

जुको तापेई, जापान

एवरेस्ट पर चढऩे वाली पहली महिला

नेपाल सरकार की योजना

नेपाल सरकार अब एवरेस्ट और इसकी अन्य चोटियों पर जमा कचरे को बड़े पैमाने पर हटाने की योजना बना रही है। इस योजना में नेपाल सरकार सेना की भी मदद लेगी। पिछले साल जून में भी नेपाल सरकार ने एक अभियान चलाया था; लेकिन उसमें सेना की मदद नहीं ली गयी थी।

नेपाल सरकार ने महत्त्वाकांक्षी सफाई अभियान के लिए जो योजना बनायी है, उसमें करीब 35,000 किलो कचरा साफ करने का लक्ष्य रखा गया है। वैसे तो दुनिया के इस सबसे ऊँचे पर्वत पर हज़ारों टन कचरा जमा हो चुका है, लेकिन इस अभियान से इसे कम करने में काफी मदद मिलेगी। सरकार की योजना के मुताबिक, इस सारे अभियान पर करीब 860 मिलियन नेपाली रुपये यानी 86 करोड़ नेपाली रुपये और करीब 53.93 करोड़ से कुछ ज़्यादा भारतीय रुपये का खर्च आएगा। नेपाली सेना भी इस अभियान की तैयारी कर रही है। इस बार सफाई का अभियान एवरेस्ट के ऊँचाई वाले क्षेत्र में चलाया जाना है। लिहाज़ा इसे लेकर पर्वतारोही और पर्यावरणविद् दोनों उत्साहित हैं।

पहले यह सफाई अभियान कुछ निचले क्षेत्र में चलाया जाता रहा है। इसका एक कारण यह भी है कि ऊँचाई वाला क्षेत्र बहुत कठिन है और वहाँ विशेषज्ञ (अभयस्त शेरपा) ही जा सकते हैं। वैसे भी एवरेस्ट का अधिकतर हिस्सा बहुत मुश्किल है और वहाँ चढ़ाई करना तो मुश्किल है ही, सफाई करना और भी मुश्किल है। सम्भावना है कि इस सफाई अभियान में सेना हेलीकॉप्टर की भी मदद ले, हालाँकि बर्फ वाले क्षेत्र में हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल मुश्किल कार्य होता है। सेना के दक्ष लोगों को इस कार्य में शामिल किया गया है।

तहलका संवाददाता की जानकारी के मुताबिक, यह सफाई अभियान अप्रैल के आिखर में शुरू हो जाएगा। इसे अभी तक की योजना के मुताबिक, 5 जून तक चलाये जाने की योजना बनायी गयी है। वैसे पहले भी सेना को ऐसे अभियान में शामिल किया जाता रहा है, लेकिन इस बार इसे बड़े पैमाने पर जोड़ा जा रहा है और सफाई का क्षेत्र भी काफी ऊँचाई वाला होगा। एवरेस्ट की मुख्य छोटी के मार्गों के अलावा इस सफाई अभियान में इस पर्वत की कुछ अन्य चोटियों को भी शामिल किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे किसी हद तक एवरेस्ट पर कचरे को काम करने में मदद मिलेगी।

एवरेस्ट पर रिकॉर्ड 24 बार और पिछले साल कुछ ही समय के अंतराल में दो बार एवरेस्ट छोटी फतह करने वाले नेपाल के कामी रीता शेरपा का मानना है कि सरकार की यह योजना अच्छी तो है; लेकिन इस काम में अनुभवी लोगों को ही लगाया जाना चाहिए। वे हमेशा कहते रहे हैं कि सरकार जिन शेरपाओं को यह ज़िम्मेदारी देती है, उनके पास ऊँचाई पर चढऩे और सफाई का ज़रूरी अनुभव नहीं है।

कामी यह भी कहते रहे हैं कि सरकार को इस काम के लिए अनुभवी शेरपा गाइड और कुली की टीम गठित करनी चाहिए; क्योंकि उनसे बेहतर यह काम और कोई नहीं कर सकता। वे इन लोगों को उचित राशि भी दिये जाने के हक में हैं; क्योंकि उनके मुताबिक यह बहुत मेहनत ही नहीं, जोखिम वाला भी काम है। सरकार एवरेस्ट जाने वाले पर्वतारोहियों पर ऐसे प्लास्टिक, जो एकल इस्तेमाल वाला हो। पर लगे प्रतिबन्ध को और कड़ाई से लागू करने पर भी विचार कर रही है। प्रोत्साहन योजना के अलावा इसे नियमावली में जोडऩे पर भी विचार किया जा रहा है।

एवरेस्ट के रास्ते में उन पर्वतारोहियों के शव भी इकट्ठे होते रहे हैं, जिनकी अभियानों के दौरान मौत हो जाती है। यहाँ यह बताना भी दिलचस्प है कि एवरेस्ट का जैसा तापमान है, वहाँ 98 साल तक शव नहीं सड़ता। एवरेस्ट के मार्ग में बाकायदा एक डेथ जोन चिह्नित किया गया है, जो 8000 मीटर ऊँचाई तक का है। यह भी तथ्य है कि चोटी पर जाने वाले प्रत्येक 10 पर्वतारोहियों में से एक मुख्य आधार शिविर पर नहीं लौट पाता, जिससे इस पर्वत पर पर्वतारोहण के खतरे को समझा जा सकता है।

एवरेस्ट पर चढऩे के एक से ज़्यादा रूट हैं। चढ़ाई के मुख्य रास्ते पर स्थित एक ऊँची खड़ी चट्टान 2015 में नेपाल क्षेत्र में आये भूकम्प के दौरान ढह गयी थी। इससे यह रास्ता ज़्यादा खतरनाक हो गया है। साल 1953 में जब सबसे पहले सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने एवरेस्ट पर कदम रखा था; लिहाज़ा उसके बाद इस चट्टान को हिलेरी स्टेप नाम से जाना जाना गया है। यह चट्टान दक्षिणपूर्वी चोटी के पास स्थित थी और इसकी ऊँचाई करीब 12 मीटर थी। इसे पर्वतारोहियों के लिए एक बहुत मुश्किल पड़ाव माना जाता है। कहते हैं इस चट्टान के ढहने के बाद इस रूट में कुछ परिवर्तन देखा गया है, जिससे वे पहले जा चुके पर्वतारोहियों के लिए भी नया अनुभव है। इसके ढहने से खड़ी चढ़ाई को खत्म हो गयी; लेकिन उतरने के लिए सीधी ढलान बन गयी है, जिससे यह जोखिम वाली हो गयी है।

एवरेस्ट पर जाने के जितने भी रास्ते हैं, उन सभी पर कचरा है। बहुत लोग के-2 पर नहीं जाते और कम ऊँचाई वाली चोटियों पर ही जाते हैं। लिहाज़ा इन चोटियों के कमोवेश प्रत्येक हिस्से में कचरा जमा हुआ है।  एवरेस्ट की बुरी हालत के लिए लोगों का लालच भी ज़िम्मेदार है। साल 2007 में चीन ने ओलंपिक आयोजन को भव्य बनाने की अपनी ज़िद के चलते एवरेस्ट के आधार शिविर तक 17,060 फीट की ऊँचाई पर बाकायदा एक पक्की सड़क का निर्माण कर दिया था। वैसे वहाँ पहले कच्ची पगडंडीनुमा सड़क थी, जिस पर ट्रैकिंग कर पर्वतारोही आधार शिविर तक पहुँचते थे। यही नहीं, कहा जाता है कि चीन की नेपाल को सड़क और रेल से जोडऩे के लिए एवरेस्ट के भीतर से एक ट्रैक बनाने की योजना है। वह पहले ही ल्हासा (तिब्बत) तक दुनिया का सबसे ऊँचा रेल मार्ग बना चुका है। इस तरह चीन की यह महत्त्वाकांक्षा बहुत से लोगों को खटक रही है; क्योंकि वे मानते हैं कि एवरेस्ट किसी एक देश की बपौती नहीं है और यह दुनिया को प्रकृति की देन है।

हिमालय को कचरे के बोझ के अलावा चीन आदि की इस महत्त्कांक्षा का भी बड़ा खतरा है। एवरेस्ट को कच्ची पर्वत शृंखला और उसकी पारिस्थितिकी को बहुत नाज़ुक माना जाता है। ऐसे में दुनिया की सबसे ऊँची चोटी की तलहटी में इस तरह का निर्माण हिमालय के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। इंसानी लालच के चलते पहले से ही हिमालय के ग्लेशियर सिमट रहे हैं और पहाड़ दरक रहे हैं। लिहाज़ा चीन की यह कोशिश बहुत खतरनाक ही कही जाएगी। इस खतरे को तभी टाला जा सकता है, यदि सरकारें और पर्यावरणविद्, संगठन एकजुट होते हैं।